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कांग्रेस भले डूबे, युवराज को कोई चुनौती नहीं

अब तक पार्टी को उबारने का कोई संकेत नहीं दिया कांग्रेस उपाध्यक्ष ने
कार्यकर्ताओं का अभ‌िवादन स्वीकार करते राहुल गांधी

यूपी चुनाव के दौरान राहुल गांधी के एक व्यंग्य चित्र में उन्हें पेट पर एक तख्‍ती लगाए दिखाया गया जिस पर लिखा था- कांग्रेस को मैंने नहीं, मेरे भाषणों ने नष्ट किया है। लेकिन सिर्फ भाषण की बात की जाए तो इस बार राहुल थोड़ेनिखरे हुए लग रहे थे। यूपी के मुख्‍यमंत्री अखिलेश का पिछलग्गू सवार होने के बाद भी राहुल अपने भाषण से प्रभाव छोड़ रहे थे। अगर इसी तरह चुनावों की भ_ी में लंबे समय तक तपते रहे तो क्‍या पता कभी एक बेहद प्रभावी नेता बन भी जाएं। लेकिन कांग्रेस की नैया उनके भरोसे कभी पार लग पाएगी, ऐसी छाप उन्होंने अबतक तो नहीं छोड़ी है। 2014 के पहले 10 सालों तक केंद्र की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस यकायक इतनी अकिंचन क्‍यों हो गई? यह बड़ा सवाल है जो पार्टी को अंदर से मथना चाहिए। 130 वर्षों से भी अधिक पुरानी पार्टी आज अपने अस्तित्व के संकट से दो-चार हो रही है तो इसकी एक बड़ी वजह है कि कांग्रेस के पास ऐसा कोई दमदार एवं करिश्माई नेता नहीं है जो पार्टी को इस बुरे हालात से बाहर निकाल सके। ढीले-ढाले राहुल गांधी पर ही पूरी पार्टी की आशा टिकी है। लेकिन राहुल गांधी हमेशा ही 'कार्य प्रगति पर है’ जैसा संकेत देते रहते हैं। कत्ल की रात अभी है लेकिन कांग्रेस 2019 पर निशाना लगा रही है।

यह चुनाव कांग्रेस के लिए जीवन-मरण का प्रश्न होना चाहिए था। लेकिन पार्टी ने अंतिम समय में अपने पांव पीछे खींच लिए। लगा इस बार निश्चित ही प्रियंका गांधी भाजपा को आने से रोकने व कांग्रेस में जान डालने के लिए पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार करेंगी। लेकिन कार्यकर्ता फिर बुरी तरह निराश हुए। वे इक्‍के दुक्‍के जगह प्रकट भर हुईं। इससे यह संदेश गया कि शायद कांग्रेस को यूपी चुनाव में हारने का भान पहले हो गया, भले ही यह बात गलत ही निकले। प्रियंका के करिश्मे की पोल न खुल जाए, इसलिए उनके भरपूर प्रयोग की योजना मुल्तवी कर दी गई। पार्टी इस भ्रम को बनाए रखना चाहती है कि प्रियंका उसका ट्रंप कार्ड  है।

दरअसल, पार्टी की पूरी कसरत पार्टी को बचाने से अधिक सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को बचाने ऌपर केंद्रित रहती है। भले पार्टी डूब जाए, गांधी परिवार के सदस्यों पर कोई आंच न आए, उन्हें कोई खंरोच तक न पहुंचे।  2014 में भाजपा के हाथों अभूतपूर्व हार होने के बाद पार्टी के सबसे ईमानदार नेता माने जाने वाले पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी को हार के कारणों का पता लगाने की जिम्‍मेदारी दी गई। लेकिन एंटनी भी आम कांग्रेसी ही निकले। उन्होंने भी गांधी परिवार को बचाते हुए दूसरे कारण ज्यादा गिना दिए।  

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