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युवाओं को मिला नेतृत्व

अखिलेश यादव के नेतृत्व को मानकर आगे बढ़ रही युवा पीढ़ी
रैली में अख‌िलेश यादव

साल 2012 में जब अखिलेश यादव साइकिल यात्रा निकाल रहे थे तो उनके पीछे जो युवाओं का हुजूम था वही युवा अब परिपम्‍ होकर साल 2017 में भी पहले से ज्यादा उत्साहित नजर आ रहा है। अखिलेश की टीम के युवा साथीसुनील सिंह साजन ने 2012 में आउटलुक संवाददाता से बाचतीत में कहा था कि अब समाजवादी पार्टी को अगले 25-30 साल का नेतृत्व करने के लिए नया चेहरा मिल गया है। साल बीतता गया और अखिलेश यादव की छवि एक परिपम्‍ नेता की तरह उभरती गई। पारिवारिक विवाद के बीच समाजवादी पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव संरक्षक बना दिए गए तो कई पुराने चेहरे नेपथ्य में चले गए। अखिलेश के चेहरे में मुलायम का अक्‍स नजर आने लगा। पहले तो ऐसा लग रहा था कि समाजवादी पार्टी बड़े बिखराव की तरफ जा रही है लेकिन जैसे-जैसे मतदान का एक-एक चरण बीतने लगा वैसे-वैसे स्थितियां बदलती नजर आने लगीं। हालांकि मुलायम सिंह यादव ने केवल दो सीटों पर प्रचार किया तो शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल यादव, बेनी प्रसाद वर्मा, रेवती रमण सिंह जैसे नेता प्रचार से दूर ही नजर आए। शिवपाल अपनी विधानसभा सीट पर सक्रिय रहे लेकिन पार्टी के अन्य उम्‍मीदवारों से दूरी बनाए रहे।

अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के न केवल स्टार प्रचारक बन गए बल्कि कल तक उनका विरोध करने वाले भी मंच साझा करने लगे। अब समाजवादी पार्टी में केवल एक ही चेहरा है और वह है अखिलेश यादव का। अखिलेश यादव ने एक बार आउटलुक से बातचीत में कहा भी था कि साल 2017 में भले ही हम सत्ता में वापसी न कर पाएं लेकिन विपक्ष में भी बैठकर बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। यानी अखिलेश हर स्थिति के लिए पहले से ही तैयार हैं। समाजवादी पार्टी की कमान अब युवाओं के हाथ में आ गई है। संगठन में इसकी भरपूर झलक भी देखने को मिल रही है। अखिलेश यादव जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने तो सबसे पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश में संगठन में जो बदलाव किया उसमें युवाओं को बड़ी संख्‍या में जगह मिली। पार्टी प्रवक्‍ता के तौर पर भी युवाओं को ही महत्व मिला। यानी युवाओं के लिए एक बड़ा नेतृत्व तैयार हो गया है और इसे स्वीकारने वालों में केवल युवा ही नहीं बल्कि समाजवादी विचारधारा के वे लोग भी शामिल हैं जिनके लिए उम्र कोई मायने नहीं रखता। यानी इस चुनाव में हर वर्ग के बीच अखिलेश यादव ने अपनी एक अलग छवि पेश की। एक-एक दिन में छह से सात सभाएं करना। उसके बाद अलग-अलग जिलों में पार्टी के नाराज लोगों के बारे में जानकारी एकत्र करना और उनसे संवाद करना यह उनकी खूबियों में शामिल है।

हिंदीभाषी इलाके के नए हीरो के तौर पर उभरे अखिलेश को लेकर लोगों की जो उम्‍मीदें तभी पूरी होती दिखेंगी जब स्वतंत्र रूप से उन्हें सत्ता और संगठन की कमान मिले। क्‍योंकि संगठन के स्तर पर अखिलेश जब उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए थे तो उनके नेतृत्व में पार्टी को साल 2012 में बड़ी जीत मिली। लेकिन आज जब पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव जमाना हो तो उसमें अखिलेश यादव क्‍या कर पाएंगे यह देखने वाली बात होगी। क्‍योंकि एक दौर था जब मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में अपनी एक मजबूत इकाई खड़ा कर लिया था और पार्टी को कुछ सीटों पर सफलता भी मिली थी। आज क्‍या अखिलेश यादव उस सफलता से बड़ी कोई सफलता दिलवा पाएंगे यह भी एक सवाल है? उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान आउटलुक संवाददाता ने देखा था कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के युवा अखिलेश के समर्थन में समाजवादी पार्टी के लिए वोट मांग रहे थे। ये वे युवा थे जिनको आने वाले दिनों में अखिलेश राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व देते हुए नजर आने लगे हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी इस बात को मानते हैं कि पीढ़ीगत बदलाव में अखिलेश की छवि अन्य युवा नेताओं के मुकाबले बेहतर है।   

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