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योगी के दरबार में रीते पश्चिम के हाथ

केवल 12 मंत्री ही पा सके हैं उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में जगह, पंकज को भी नहीं मिला कैबिनेट में स्थान
शपथ लेते सुरेश राणा

सबका साथ सबका विकास’ के नारे पर प्रचंड बहुमत से उत्तर प्रदेश में चुनाव जीत चुकी भाजपा पश्चिमी क्षेत्र से न्याय करती नजर नहीं आती। मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फिलवक्‍त बने मंत्रिमंडल के 47 मंत्रियों में से केवल 12 ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं जबकि अवध सहित पूर्वांचल क्षेत्र से 26 मंत्रियों ने शपथ ली है। स्वयं मुख्‍यमंत्री योगी और उनके दोनों उप मुख्‍यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा भी पूर्वी उत्तर प्रदेश से हैं। हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई चुने हुए विधायकों का नाम मुख्‍यमंत्री पद के लिए भी चला, मगर बाद में उन्हें उप मुख्‍यमंत्री पद भी नसीब नहीं हुआ। उधर पूर्वांचल के योगी, मौर्य और दिनेश शर्मा किसी भी सदन का सदस्य न होने के बावजूद प्रमुख तीनों पद पा गए। पूरी तरह जातिगत समीकरणों के आधार पर बने मंत्रिमंडल में पश्चिम की अनेक प्रभावी और बड़ी आबादी वाली जातियों के हाथ भी रीते रहे। दो करोड़ से अधिक आबादी वाली गूजर बिरादरी से जहां एक भी मंत्री नहीं बनाया गया, वहीं जाटों को भी संख्‍याबल के अनुरूप हिस्सेदारी नहीं मिली। प्रदेश की अधिकांश मुस्लिम आबादी पश्चिमी भूभाग में रहती है और यहां के आधा दर्जन जिले गाहे-बगाहे दंगों की चपेट में भी आ जाते हैं मगर योगी कैबिनेट का एक मात्र मुस्लिम चेहरा भी पूर्वांचल से ही निकला है। इन विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत का परचम पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही लहराना शुरू हुआ था और पहले दो चरणों में यहां हुए चुनावों से ही पार्टी की जीत का माहौल प्रदेश भर में बना मगर मनोनीत मुख्‍यमंत्री योगी का कमंडल जब खुला तो उसमें इस क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं था।

पार्टी के आधिकारिक बयान के अनुरूप योगी कैबिनेट में 17 मंत्री पूर्वांचल, 12 पश्चिमी उत्तर प्रदेश, 9 अवध, 4 मध्य क्षेत्र और 3 मंत्री रुहेलखंड से बनाए गए हैं जबकि प्रदेश के लोग पूर्वांचल, पश्चिमी क्षेत्र और बुंदेलखंड के रूप में तीन भागों को ही जानते हैं। इसके अनुरूप अवध भी पूर्वी क्षेत्र के खाते में आता है। आबादी के लिहाज से भी पश्चिमी क्षेत्र किसी से कमतर नहीं है और राजस्व के मामले में भी पहले स्थान पर है। प्रदेश में कल्याण सिंह के गैर यादव, पिछड़े और गैर जाटव अनूसूचित जाति के लोगों को जोडऩे का फार्मूला खूब चला था। पश्चिम में गन्ना किसानों के बकाया भुगतान और सांप्रदायिक तनाव प्रमुख मुद्दे हैं। अपनी चुनावी रैलियों में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इन्हें प्रमुखता से उठाया था, मगर मंत्री बनाते समय पार्टी की नजर शायद किसी और निशाने पर ही रही। गन्ना उत्पादन में अधिकांशत जाट बिरादरी के लोग यहां लगे हैं और बिरादरी के अनेक लोग भाजपा के टिकट पर चुनाव भी जीते मगर पार्टी ने अपने विधायक भूपेंद्र सिंह और बसपा से आए लक्ष्मीनारायण सिंह पर ही विश्वास जताना उचित समझा और उन्हें ही मंत्री पद से नवाजा। जाट नेता चौधरी सतपाल सिंह कहते हैं कि क्षेत्र की सत्रह फीसदी जाट आबादी अजित सिंह का साथ छोड़ कर भाजपा से आ जुड़ी है मगर भाजपा शायद अभी भी उन्हें अपना नहीं मान रही। बकौल उनके हरियाणा के जाटों की नाराजगी कम करने को भी भाजपा जाटों को अधिक मंत्री पद दे सकती थी, मगर फिलहाल तो उसने यह अवसर खो दिया है। देश में सर्वाधिक मुस्लिम इस प्रदेश में ही रहते हैं और उनकी आबादी यहां 19 फीसदी के अनुरूप 3.84 करोड़ है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो मुस्लिमों की आबादी 26 फीसदी तक आंकी गई है। यहां के रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर, मुजफ्फर नगर और ज्योति बा फूले नगर की चालीस फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम है। क्षेत्र में मुस्लिमों के महत्व को समझते हुए 136 सीटों के इस बड़े भूभाग की 67 सीटों पर बसपा ने इस बार मुस्लिमों को मैदान में उतारा था। सपा ने भी मुस्लिमों को टिकट देने में पूरी दिलेरी दिखाई। उधर भाजपा ने यहां के मुस्लिमों को मंत्री पद तो दूर विधानसभा का टिकट भी नहीं दिया। जले पर नमक की स्थिति यह है कि मुजफ्फर नगर दंगों के आरोपी और कट्टर हिंदूवादी नेता सुरेश राणा को स्वतंत्र प्रभार के साथ मंत्री और बना दिया। राणा इसी सिलसिले में जेल भी गए थे। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्‍ता राजीव त्यागी आरोप लगाते हैं कि भाजपा मुजफ्फर नगर को जिंदा रखना चाहती है और इसलिए ही पश्चिम के सौहार्दवादी नेताओं को आगे नहीं ला रही। वह कहते हैं कि पश्चिम के मेरठ, मुजफ्फर नगर, अलीगढ़ और मुरादाबाद जैसे कई जनपद दंगों की चपेट में रहते हैं और योगी मंत्रिमंडल के चेहरों से यहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और तेज होगा। सपा के प्रदेश प्रवक्‍ता राजेंद्र चौधरी आरोप लगाते हैं कि भाजपा के मंत्रिमंडल के गठन से स्पष्ट हो गया है कि पार्टी धर्म और राजनीति का घालमेल ही तैयार करेगी और अल्पसंख्‍यकों की चिंताएं दूर करने में उसकी कोई रुचि नहीं है। उधर, योगी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शामिल किए गए गाजियाबाद के विधायक और प्रभावी वैश्य नेता अतुल गर्ग विपक्षी दलों के सभी आरोपों और आशंकाओं को खारिज करते हुए दावा करते हैं कि पश्चिम में दंगा कराने वाले अब सत्ता से बाहर हैं और वहां की जनता अब बिना किसी सांप्रदायिक भेदभाव के राष्ट्रनिर्माण में जुट सकेगी। बकौल उनके पश्चिम में कॉस्मेटिक विकास ही हुआ और उसका जमीनी लाभ जनता तक नहीं पहुंचा। उन्होंने दावा किया कि क्षेत्र में बिना भेदभाव के अब विकास होगा और भ्रष्टाचार से भी जनता को मुक्ति मिलेगी।

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रिमंडल के गठन से बेशक कुछ खास संदेश देने की कोशिश की हो मगर उससे यह संदेश भी अवश्य निकला है कि भाजपा में अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह की घेराबंदी शुरू हो गई है। सिंह के मुकाबिल एक और ठाकुर नेता खड़ा करने के लिए पहले अजय सिंह बिष्ट यानी योगी आदित्यनाथ को लाया गया और फिर राजनाथ सिंह के लोकसभा क्षेत्र लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा को उप मुख्‍यमंत्री बनाकर क्षेत्र में उनका वर्चस्व कम किया गया। यही नहीं सिंह के पुत्र और भारी मतों से नोएडा से जीते पंकज सिंह को भी परिवारवाद के नाम पर मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया। जबकि प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री और वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह और पूर्व मंत्री लालजी टंडन के पुत्र आशुतोष टंडन के लिए इस गणित को खारिज कर मंत्री बनाया गया। चर्चा है कि केंद्रीय मंत्री और नोएडा के ही सांसद महेश शर्मा की दौड़भाग के चलते आखिरी समय पर नीरज सिंह का नाम मंत्रियों की सूची से कटा।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की समस्याओं का जिक्र करते समय यहां महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध की बात करनी जरूरी हो जाती है। देश भर में ऑनर किलिंग के तीस फीसदी मामले यहीं होते हैं। कानून व्यवस्था को लेकर भी लोग दुखी हैं। क्षेत्र से कम मंत्रियों के बावजूद मुख्‍यमंत्री योगी इन तमाम समस्याओं का निदान कैसे करते हैं, इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में छुपा है।

 

स‌िदार्थनाथ स‌िंह

सरकार काम पर लग गई है

उत्तर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने इलाहाबाद शहर (पश्चिमी)विधानसभा सीट से ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। पेशे से कंसल्टिंग इंजीनियर सिद्धार्थनाथ सिंह पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री के नाती हैं और पिछले दो दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं। प्रस्तुत है उनके साथ स्नेह मधुर की बातचीत के संक्षिप्त अंश:

इतनी भारी विजय के बाद सरकार ने कैसे काम शुरू किया है।

सरकार के संकल्प पत्र के अनुसार सरकारी मशीनरी ने काम शुरू कर दिया है। जिलों में एंटी रोमियो स्ञ्चवायड काम करने लगे हैं। महिलाओं की सुरक्षा की दिशा में तेजी से काम शुरू हुआ है। बूचडख़ाने बंद हो रहे हैं। पारदर्शिता की नीति के तहत मंत्रियों और सरकारी अफसरों से 15 दिनों के भीतर अपनी चल-अचल संपत्ति की घोषणा करने के निर्देश जारी हो गए हैं। सरकार तंदरुस्त है और काम पर लगी है।

नौकरशाही में भी फेर-बदल शुरू नहीं हुआ है?

अफसर बदले जाएंगे, लेकिन सारे नहीं। आवश्यकतानुसार ही बदले जाएंगे।

आप इलाहाबाद से निर्वाचित हुए हैं। क्‍या यहां उद्योग-धंधे लाएंगे?

यहां पर सडक़ें नहीं हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का स्तर बढ़ाने की कोशिश करूंगा। शहर पश्चिमी से एक डेडीकेटेड फ्रीट कारीडोर गुजर रहा है। यहां पर आईटी पार्क बनने की ढेर सारी संभावनाएं हैं।

अखिलेश यादव युवा मुख्‍यमंत्री थे लेकिन कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए। आपकी नजर में

उनकी असफलता के क्‍या कारण थे?

अखिलेश यादव से बहुत उम्मीदें थीं। लेकिन वह परिवारवाद में बहक गए। युवा होने के बावजूद अखिलेश युवाओं की पहचान नहीं बन पाए। अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए उन्होंने अपने पिता और चाचा की आड़ ली।

इतनी भारी विजय का श्रेय किसे देंगे?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को लोगों ने विकास पुरुष के रूप में स्वीकार किया है। सारा श्रेय उनके व्यक्तित्व, उनकी सोच और उनकी मेहनत को है।

 

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