अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट की बातचीत के जरिये मुद्दा सुलझाने की सलाह के बाद आस्था पर राजनीति हावी हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर जारी टकराव को संवेदनशील और आस्था से जुड़ा मामला बताते हुए पक्षकारों से बातचीत कर मसले का हल आम सहमति से निकालने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी की राम जन्मभूमि विवाद मामले की जल्द सुनवाई की मांग पर बातचीत के जरिये मसला हल करने की सलाह दी है। जरूरत पडऩे पर सुप्रीम कोर्ट हल निकालने के लिए मध्यस्थता को भी तैयार है। दोनों पक्षों की राय पर सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य वार्ताकार भी नियुक्त करने का आश्वासन दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का केंद्र सरकार, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी समेत कई हिंदू संगठनों ने स्वागत किया है। दूसरी तरफ मुस्लिम नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह को पूरी तरह नकार दिया है। राम जन्मभूमि विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 30 सितंबर, 2010 में फैसला सुनाते हुए अयोध्या में जमीन को तीनों पक्षकारों रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पिछले छह साल से लंबित है। हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दे रखे हैं।
26 फरवरी, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने ही स्वामी को इजाजत दी थी कि वे अयोध्या टाइटल विवाद से जुड़े मामलों में दखल दें। स्वामी ने इस मामले में खुद एक अर्जी दाखिल कर मंदिर बनाने की मांग की है। स्वामी ने इस मामले में जल्दी सुनवाई के लिए याचिका दायर की थी। स्वामी का कहना है कि हम हमेशा बातचीत को राजी थे। संघ, विहिप और भाजपा के रुख की तरह स्वामी मंदिर और मस्जिद के निर्माण की बात तो कर रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि मस्जिद सरयू नदी के पार बननी चाहिए। राम जन्मभूमि पूरी तरह से राम मंदिर के लिए होनी चाहिए। उनकी दलील है कि भगवान श्रीराम का जन्मस्थान नहीं बदल सकते लेकिन मस्जिद हम कहीं भी बना सकते हैं।
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए लंबे समय से आंदोलन चला रहे विहिप के अध्यक्ष डॉ. प्रवीण तोगडिय़ा ने भी बातचीत से मसला हल न होने का संकेत दिया है और कहा कि केंद्र सरकार को राम मंदिर बनाने के लिए कानून बनाना चाहिए। विहिप का पक्ष है कि भगवान राम के मंदिर को मुगल शासक बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने 1528 में तुड़वा दिया और उसकी जगह मस्जिद बनवाई। इसी को बाबरी मस्जिद कहा गया था।
मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुआ नेता रहे, बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक और भाजपा सांसद विनय कटियार ने कहा कि सभी जानते हैं कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर था। अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है और इसके ऐतिहासिक प्रमाण हैं। ऐसे में मुसलमान नेता भी जानते हैं कि बातचीत में प्रमाण सामने रखने पर उन्हें अपना हक छोडऩा पड़ेगा। दूसरी ओर भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का सुझाव सही है, हम स्वागत करते हैं। अब मुस्लिम पक्षकारों को बैठकर मसला सुलझा लेना चाहिए। उनका कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं की आस्था का सवाल है। ऐसे में अगर मुस्लिम पक्ष जमीन पर हक छोड़ देता है तो विवाद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पहले कई बार हुई सुलह वार्ताओं के विफल रहने का हवाला देते हुए सभी पक्ष एक तरह से मान रहे हैं कि बातचीत से कोई हल नहीं निकल पाएगा। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी का कहना है कि 1986 में कांची कामकोटि पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष अली मियां नदवी के बीच हुई बातचीत से कोई रास्ता नहीं निकला। सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि मामला आगे बढ़ गया है। समझौते से हल नहीं निकलेगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सीधे दखल दें, तो हो सकता है कुछ बात बन जाए। 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे भैरोसिंह शेखावत भी बैठकर कोई हल नहीं निकाल पाए। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरसिंह राव ने भी मुद्दा सुलझाने की कोशिश की थी।
वैसे विहिप के नेता भी मानते हैं कि बातचीत से हल नहीं निकलेगा। विहिप के केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम दास के अनुसार मामला सुप्रीम कोर्ट में है और अयोध्या मामले में ज्ञानदास की कोई भूमिका नहीं है। विहिप के एक नेता का कहना है कि रामजन्म भूमि आस्था और श्रद्धा का मामला है। इसका समाधान तभी हो सकता है, जब दूसरा पक्ष भी यह मान ले कि विवादित स्थल ही राम जन्मभूमि है। 1949 से सुलह समझौते के कई दौर चले, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज पलक बसु ने भी समझौते के प्रयास किए थे। इस मामले का हल कोर्ट से या संसद से कानून बनाकर निकाला जा सकता है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी कहा है कि यह मसला बातचीत से हल नहीं होगा।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने हिंदुओं और मुस्लिमों की सहमति के बिना विवादित स्थल पर मंदिर या मस्जिद या कुछ और न बनाने की बात कही है। गिरी का कहना है कि राजनीतिक दलों को बातचीत से दूर रखने पर ही मामले का हल हो सकता है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अगर दोनों पक्षों से जुड़े लोग आपसी रजामंदी वाला हल निकाल लेते हैं तो इससे टिकाऊ अमन हासिल हो सकेगा और सभी पक्ष एक-दूसरे का सम्मान करेंगे।
मंदिर से पहले, रामायण संग्रहालय बनेगा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या में रामायण संग्रहालय बनाने में तेजी दिखानी शुरू कर दी है। रामायण संग्रहालय को जमीन देने के सिलसिले में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा से मुलाकात की। मुलाकात के बाद योगी ने कहा कि रामायण संग्रहालय के लिए तैयारी शुरू कर दें, एक सप्ताह में जमीन मिल जाएगी। केंद्र सरकार ने पहले ही संग्रहालय के लिए 151 करोड़ रुपये आवंटित कर दिए हैं। गौरतलब है कि पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार के समय में केंद्र सरकार ने पिछले साल रामायण सर्किट के तहत धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अयोध्या में रामायण म्यूजियम बनाने की घोषणा की थी मगर सपा सरकार ने इसके लिए जमीन मुहैया नहीं कराई। पिछले साल महेश शर्मा जमीन देखने अयोध्या गए थे और तब उन्होंने दावा किया था कि इस म्यूजियम का राम मंदिर विवाद से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि पर्यटन के लिए इसे बनाया जाएगा। यह ऐसा संग्रहालय होगा जहां श्रीराम और रामायण से संबंधित सारी जानकारी लोगों को एक ही जगह पर मिल जाएगी।
अब सरकार बदलने के बाद योगी सरकार ने इस संग्रहालय के लिए 25 एकड़ जमीन देने की घोषणा कर दी है और यह दावा भी किया है सारी औपचारिकताएं पूरी कर एक सप्ताह में निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा। दरअसल केंद्र सरकार पिछले साल के बजट में 151 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है और अगर इस वर्ष 31 मार्च तक निर्माण आरंभ नहीं हुआ तो नए वित्तीय वर्ष में सारा पैसा वापस हो जाएगा। ऐसे में नए सिरे से इसके लिए आवंटन कराना होगा। इससे बचने के लिए आनन-फानन में यह कवायद की गई है।
इस संग्रहालय के बारे में पिछले वर्ष केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने यह दावा किया था कि ये अयोध्या और पूरे देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास का हिस्सा है। उन्होंने बताया था कि रामायण सर्किट के लिए केंद्र सरकार ने 225 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। इनमें 151 करोड़ रुपये विशेष तौर पर केवल अयोध्या के लिए है जो इस सर्किट का केंद्र है। पिछले साल इस मुद्दे को लेकर अयोध्या में खूब राजनीति हुई थी। तब फैजाबाद के जिलाधिकारी रहे विवेक ने मीडिया को जानकारी दी थी कि जिले के अधिकारियों को जमीन के बारे में केंद्र की तरफ से कोई पत्र ही नहीं मिला है। दूसरी ओर महेश शर्मा सरयू नदी के किनारे जमीन चाहते थे और इसके लिए राज्य सरकार को पत्र भेजा था।