उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने पहली कैबिनेट बैठक में किसानों का कर्ज माफ कर ही दिया। यह फैसला कर उन्होंने देश में किसानों से बड़े-बड़े वादे कर भूल जाने की परंपरा तोड़ दी है। देश में बड़े स्तर पर अभी तक दो बार किसान कर्ज माफी हुई है। अस्सी के दशक में चौधरी देवीलाल ने उपप्रधानमंत्री रहते हुए किसानों के दस हजार रुपये तक के कर्ज माफ किए थे। उसके बाद केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पहली सरकार ने करीब 62 हजार करोड़ रुपये के कृषि कर्ज माफ किए थे। इसके बाद करीब एक दशक तक किसानों के साथ तमाम राजनीतिक दलों ने उनकी बदतर होती हालत को सुधारने के लिए कर्ज माफी के वादे तो किए लेकिन वह कभी पूरे नहीं हुए। जबकि इस दौरान किसानों की आत्महत्याओं का आंकड़ा बढ़ता गया।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत मजबूती के साथ अधिकांश चुनाव सभाओं में कहा था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आते ही पहली कैबिनेट बैठक में किसानों के कर्ज को माफ करने का फैसला लिया जाएगा। उस घोषणा के लिए उत्तर प्रदेश के करीब ढाई करोड़ किसानों के साथ राजनीतिक दलों, नीति निर्धारकों और बैंकरों समेत सभी को राज्य की पहली कैबिनेट बैठक का इंतजार था। राज्य में आदित्यनाथ योगी के नेतृत्व में बनी सरकार को कैबिनेट की पहली बैठक करने में करीब 15 दिन लगे। लगता है यह 15 दिन शायद वादा पूरा करने की तैयारी के काम आए और उसके बाद 4 अप्रैल को हुई कैबिनेट की बैठक राज्य के करीब सवा दो करोड़ लघु और सीमांत किसानों में से अधिकांश के लिए एक बड़ी राहत लेकर आई। राज्य सरकार ने किसानों के एक लाख रुपये तक के जो कर्ज माफ किए हैं तथा अन्य राहत दी है उससे राज्य के खजाने पर करीब 36 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। हालांकि राज्य में किसानों पर करीब 80 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है लेकिन यह राहत काफी बड़ी है और केंद्र की यूपीए सरकार के कर्ज माफी के आकार के आधे के आसपास है। यह बड़ा फैसला है। लेकिन अभी इस फैसले की बारीकियां सामने आनी हैं। उनको देखना होगा। साथ ही इस फैसले को लागू करने में किस तरह की पारदर्शिता और प्रभावी तरीका अपनाया जाता है वह देखना होगा ताकि राहत इसके हकदार जरूरतमंदों तक पहुंचे।
असल में जिस तरह से देश के किसानों की खेती से औसत आय करीब तीन हजार रुपये प्रति माह ही है वह किसानों को कर्ज के नीचे दबने के लिए मजबूर कर देती है। साथ ही किसानों पर कर्ज के ताजा आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि सरकारें किसानों को कर्ज देने की सीमा हर साल बढ़ाती रहती हैं और यह आंकड़ा 11 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है, लेकिन इसमें से अधिकांश फसली कर्ज होता है जिस पर सरकार ब्याज की छूट देती है। इसका भी एक बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट के पास चला जाता है क्योंकि सरकार ने कृषि कर्ज में पात्रता में बदलाव कर इसका रास्ता दिखाया है।
योगी का यह फैसला दूसरे राज्यों की सरकारों के लिए नया सरदर्द साबित हो सकता है और इसका पहला असर महाराष्ट्र सरकार पर देखने को मिल सकता है। देश में सबसे अधिक किसान आत्महत्याएं महाराष्ट्र में ही होती हैं। पिछले दिनों वहां किसान कर्ज माफी की मांग उठने पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने इस मुद्दे पर केंद्र से मदद की मांग की थी, लेकिन केंद्र सरकार संसद में साफ कर चुकी है कि वह किसानों का कर्ज माफ नहीं करेगी। ऐसे में जब उत्तर प्रदेश जैसे वित्तीय रूप से कमजोर राज्य की भाजपा सरकार किसानों का कर्ज माफ कर सकती है तो बेहतर आर्थिक स्थिति वाले महाराष्ट्र की भाजपा सरकार कैसे इस मांग को लटका सकती है।
वहीं भीषण सूखे की मार झेल रहे तमिलनाडु और कर्नाटक व केरल के किसानों के लिए तो यह मांग और अधिक तर्कसंगत लगती है। पंजाब में किसानों की बदतर हालत को सुधारने के नाम पर सत्ता में आई मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के लिए किसान कर्ज माफी का मुद्दा गले की फांस बना रहेगा।
असल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने देश भर के किसानों के लिए राहत की एक उम्मीद पैदा की है। इसकी राजनीतिक आंच देश के सभी मुख्यमंत्री और राज्य सरकारें महसूस करेंगी। साथ ही राज्यों के वित्तीय संसाधनों पर यह एक बड़ा बोझ साबित होगा। इसके लिए सरकारों को व्यवस्था करनी होगी जो किसानों की मौजूदा कमजोर वित्तीय हालत को देखते हुए जरूरी है। वहीं जो लोग किसानों की कर्ज माफी को वित्तीय अनुशासन के लिए गलत मानते हैं शायद उन्हें जमीनी हकीकत को स्वीकार करना चाहिए। वहीं इस तरह के कदम से कर्ज अदायगी के लिए जरूरी क्रेडिट डिसिप्लीन कमजोर होने की कुछ बड़े बैंकरों और इकोनॉमिस्ट्स के नैतिक पाठ को नजरअंदाज करना ही ठीक है क्योंकि उनको यह केवल किसानों के मामले में ही ज्यादा याद आता है।