इस बार दिल्ली नगर निगम के चुनाव कई मायनों में खास हो गए हैं। तीनों बड़ी पार्टियों कांग्रेस, भाजपा व आप की निगाहें निकाय चुनावों पर आकर टिक गई हैं। सभी प्रमुख पार्टियां इन चुनावों को मिशन 2019 से जोडक़र देख रही हैं। दिल्ली में हार-जीत किसी न किसी स्तर पर 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए मनोवैज्ञानिक आधार-भूमि तैयार करेगी। कई राज्यों में पटकनी खाने के बाद कांग्रेस को दिल्ली में फिर से अपनी एंट्री की उम्मीद है तो आम आदमी पार्टी अपनी साख बचाने में जुटी है। हाल ही में चार राज्यों में सरकार बनाने के बाद भाजपा के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं। चुनावों में सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है तथा शीर्ष स्तर के नेताओं को प्रचार में लगाया गया है। भाजपा की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रचार करेंगे ताकि उनकी हिंदुत्व की छवि को भुनाया जा सके तो कांग्रेस की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पंजाबी वोट बैंक में सेंध मारने की कोशिश करेंगे। वहीं सपा, बसपा, जदयू और स्वराज अभियान भी चुनावों में समीकरण बनाने- बिगाडऩे में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। यूं तो निकाय चुनाव स्थानीय तौर पर ही देखे जाते हैं लेकिन इस बार दिल्ली नगर निगम के चुनाव अलग ही नजर आ रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की शिरकत ने इन्हें अलग रंग दे दिया है।
हाल में पांच राज्यों के चुनाव से देश की राजनीति में बदलाव आया है और उस नाते अब सभी दलों की निगाहें निगम चुनावों पर आकर टिक गई हैं। आम आदमी पार्टी को पंजाब व गोवा में खासी उम्मीदें थीं लेकिन नतीजों ने इस पर पानी फेर दिया। दिल्ली विधानसभा चुनावों में जिस तरह आप को प्रचंड बहुमत मिला उसे देखते हुए आप के लिए यह चुनाव खासे अहमियत रखते हैं। देखना यह होगा कि इन चुनावों में आप अपनी साख को कितना बचा पाएगी। यह चुनाव दिल्ली सरकार के दो सालों के कार्यकाल को परखने का पैमाना भी होंगे।
कांग्रेस भी इन चुनावों को काफी गंभीरता से ले रही है क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। हालांकि पिछले साल निगम के 13 वार्डों पर हुए उपचुनावों में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी। फिलहाल तीनों नगर निगम में कांग्रेस विपक्ष में है। कांग्रेस अपने गिरते ग्राफ को सुधारने की कवायद में जुटी है और निगम चुनाव उसके लिए एक परीक्षा ही साबित होंगे।
भाजपा भी तीनों निगमों पर फिर से काबिज होने के लिए कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती जिसके चलते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनावों में बुलाया गया है। इससे इन चुनावों की देश की राजनीति में चर्चा शुरू हो गई है। वैसे भी भाजपा मिशन 2019 के एजेंडे पर काम कर रही है और वह चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा सदस्य विनय सहस्रबुद्धे समेत तीन केंद्रीय मंत्रियों निर्मला सीतारमण, जितेंद्र सिंह व संजीव बालियान को नजर रखने के लिए नियुक्त किया है। हाल में चार राज्यों में सरकार बनने से उत्साहित भाजपा के लिए यह चुनाव चुनौती ही है जिसके चलते इस बार भाजपा ने अपने सभी वर्तमान पार्षदों को टिकट न देने का फैसला भी लिया है। भाजपा का मकसद युवाओं को मौका देना व जनता के सामने साफ छवि पेश करना है। समझा जाता है कि भाजपा के लिए आप कांग्रेस से भी बड़ा खतरा है इसलिए भाजपा आप को राजनीतिक तौर पर खत्म होते देखना चाहती है। हालांकि, भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि पार्टी के भीतर टिकटों के बंटवारे को लेकर काफी रार मची हुई है।
छोटी सभाएं करेगी कांग्रेस
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सात मार्च को रामलीला मैदान से निगम चुनावों के लिए बिगुल फूंककर अभियान की शुरुआत की थी। इस चुनाव में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के स्टार प्रचारक के तौर पर सामने आए हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी. चिदंबरम, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सलमान खुर्शीद, आनंद शर्मा, जयराम रमेश, शशि थरूर व रणदीप सुरजेवाला को पार्टी की चुनावी रणनीति में शामिल किया गया है। इसके अलावा कांग्रेस के राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के नेताओं को भी चुनाव में लगाया जाएगा। दिल्ली कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान को 'दिल की बात दिल के साथ’ का नारा दिया है। इसके अलावा छोटी सभाएं करने व सोशल मीडिया को मजबूत करने पर बल दिया गया है। इसके लिए अलग से टीम भी लगाई है।
सोशल मीडिया पर भाजपा की नजर
सभी पार्टियां सोशल मीडिया के जरिए भी वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। सोशल मीडिया के लिए कई स्तरों पर सामग्री तैयार की जा रही है। भाजपा ने सोशल मीडिया के लिए आईटी सेल से सात सौ कार्यकर्ताओं को जोड़ा है। वाट्सअप, फेसबुक व ट्विटर जैसी चीजों पर खास तवज्जो दी जा रही है। इसी तरह आप भी सोशल मीडिया पर ज्यादा तवज्जो दे रही है। राजनीतिक दलों का मानना है कि युवा आजकल सोशल मीडिया से ज्यादा जुड़ा है जिसके चलते इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसदों के साथ एक समीक्षा बैठक में कहा भी है कि अगले लोकसभा चुनाव में मोबाइल अहम होंगे और इन्हीं से चुनाव लड़ा जाएगा।
पूर्वांचल के मतदाताओं ने बदला समीकरण
पूर्वांचल के मतदाताओं की दिल्ली के चुनाव में खासी अहमियत है। दिल्ली में कभी पंजाबी, गुर्जर व जाट मतदाताओं का दबदबा होता था लेकिन समय के साथ बिहार व पूर्वांचल के लोगों ने इस समीकरण को बदल दिया। अब दिल्ली में इनकी बड़ी हिस्सेदारी है और किसी भी राजनीतिक दल के लिए इस वोट बैंक को नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं है। इन्हें रिझाने के लिए भाजपा ने भोजपुरी में भी गीत तैयार किए हैं। एक गीत में खुद दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने अपनी आवाज दी है। हर दल पूर्वांचल से जुड़े चेहरों को पार्टी से जोडक़र रखता है ताकि पूर्वांचली मतदाताओं को रिझाया जा सके। इसके चलते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू के पक्ष में प्रचार करने आ रहे हैं। कांग्रेस में महाबल मिश्रा का नाम पूर्वांचल से जोड़ कर देखा जाता है। कांग्रेस का मानना है कि नीतीश पूर्वांचली मतों को रिझा सकते हैं जिसका सीधा असर भाजपा समर्थक पूर्वांचली मतदाताओं पर होगा।
खर्च सीमा 5.75 लाख रुपये
दिल्ली नगर निगम के चुनाव 23 अप्रैल को होंगे तथा 25 अप्रैल को नतीजे आएंगे। उम्मीदवारों को चुनाव में 5 लाख 75 हजार रुपये तक खर्च करने की सीमा है। उत्तरी नगर निगम में 104, दक्षिणी नगर निगम में 104 व पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 64 वार्ड हैं। इसमें 42 वार्ड उत्तरी, 45 वार्ड दक्षिणी, 27 वार्ड पूर्वी नगर निगम की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। दिल्ली में एक करोड़ 32 लाख दस हजार 206 मतदाता हैं, जिसमें 73 लाख 15995 पुरुष व 58 लाख 93418 महिला मतदाता हैं तथा 993 अन्य मतदाता हैं। मतदान के लिए 14 हजार पोलिंग बूथ होंगे जबकि 2012 में 11452 मतदान केंद्र थे। इस बार ईवीएम मशीनों पर उम्मीदवारों के फोटो भी लगे होंगे।