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शराब बिक्री के चोर रास्तों की तलाश

राजमार्गों के किनारे शराब बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट की रोक को बेअसर करने की तैयारी, दूसरे रास्तों की तलाश में राज्य सरकारें भी पीछे नहीं
हाईवे ‌क‌िनारे शराब की दुकानें बंद होने से बढ़ीं राजस्व और रोजगार की च‌िंता

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानों को बंद करने का आदेश दिया है। इस फैसले के चलते एक अप्रैल से देश भर में शराब की हजारों दुकानें बंद हो चुकी हैं या फिर दूसरी जगह शिफ्ट की जा रही हैं। सड़क सुरक्षा के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय की ओर से उठाए गए इस सख्त कदम का स्वागत करने के बजाय कई राज्य सरकारें इससे बचने के चोर रास्ते तलाशने में जुट गई हैं। कहीं स्टेट हाईवे को शहरी मार्गों में बदला जा रहा है तो कहीं बाई पास के नाम पर राजमार्ग का दर्जा बदलने की तैयारी चल रही है।

ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि राज्य  सरकारें और स्थानीय निकाय सर्वोच्च अदालत के आदेश को लागू कराने से ज्यादा उससे बच निकलने के उपाय खोजने में जुट जाएं। लेकिन हाईवे किनारे शराब की बिक्री बंद कराने के मामले में यही देखने को मिल रहा है। इस मामले के पहलू सरकारों के आबकारी राजस्व, शराब उद्योग की कमाई और हाईवे से दुकानों को दूसरी जगह ले जाने की दिक्कतों से भी जुड़े हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर, 2016 को ही नेशनल और स्टेट हाईवे के दोनों तरफ 500 मीटर के दायरे में शराब की बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया था। लेकिन इस आदेश का पालन करना तो दूर तमिलनाडु समेत कई राज्यों ने इस आदेश से राहत पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना बेहतर समझा। शराब और पर्यटन कारोबार से जुड़े विभिन्न पक्षों ने भी फैसले के खिलाफ अदालत से गुहार लगाई थी। लेकिन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने 15 दिसंबर के हाईवे किनारे शराबबंदी के फैसले को जारी रखने का आदेश दिया। हालांकि, हाईवे से लगे 20,000 या इससे कम आबादी वाले नगरपालिका/स्थानीय निकायों के संबंध में प्रतिबंध में ढील करते हुए दूरी को घटाकर 220 मीटर कर दिया गया है।

भारत में हर साल करीब डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटना में अपनी जान गंवाते हैं। साल 2015 में शराब पीकर गाड़ी चलाने की वजह से देश में कुल 16298 सडक़ हादसे हुए जिनमें 6755 लोगों की जान गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शराब पीकर गाड़ी चलाने को सड़क हादसों की प्रमुख वजह माना है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए ट्रांसपोर्ट क्षेत्र के विशेषज्ञ एस.पी. सिंह कहते हैं कि आबकारी राजस्व का महत्व लोगों की जान से अधिक नहीं है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को पूरी कड़ाई से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित करना चाहिए। सिंह का कहना है कि हाईवे पर शराब पीने का चलन घरों से भी ज्यादा है। इस मामले में जिस तरह का सक्त कदम सर्वोच्च अदालत ने उठाया है, वह सरकार को उठाना चाहिए था। महंगी शराब पीने वाला व्य‌क्ति 500 रुपये के जुर्माने से नहीं डरता। सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए ऐसे कदम उठाने जरूरी हैं।

हाईवे का दर्जा हटाने की होड़

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करने से पहले ही इससे बच निकलने के हथकंडे सामने आने लगे हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों  में शराब बिक्री का रास्ता खोलने के लिए कई स्टेट हाईवे को बाईपास या जनपद मार्ग घोषित किए जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। पश्चिम बंगाल की ममता सरकार तो 15 दिसंबर के आदेश के बाद दो महत्वपूर्ण स्टेट हाईवे का दर्जा समाप्त कर चुकी है जबकि कई जगह स्टेट हाईवे को बाईपास का दर्जा देकर शराबबंदी से बचने की कोशिश की जा रही है।

राजस्थान सरकार ने एक कदम आगे जाते हुए 19 मार्गों को राज्य राजमार्ग की सूची से हटा दिया। वसुंधरा सरकार की ओर से दलील दी गई कि इन मार्गों पर बाईपास बन जाने की वजह से ऐसा किया गया है। अनुमान है कि राजस्थान सरकार के इस फैसले से शराब की 400 से ज्यादा दुकानों के खुले रहने का रास्ता साफ हो जाएगा। राजस्थान में कई जगह स्टेट हाईवे को शहरी सडक़ों में तब्‍दील कर दिया गया है। इससे भी यहां शराब ब्रिकी का रास्ता साफ हो जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत नेशनल और स्टेट हाईवे पर पडऩे वाले 20 हजार से कम आबादी के शहरों को जो रियायत दी गई है, उसका फायदा उठाने के लिए बड़े शहरों के बाहरी इलाकों को अलग नगरपालिका बनाया जा सकता है। विशेषकर शहरों के बाहर हवाई अड्डों के आसपास होटल, बार आदि को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से छूट दिलाने के लिए इस तरह के कदम उठाए जा सकते हैं।

राज्य सरकारों द्वारा राजमार्गों का दर्जा बदलने का मामला भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के लिए भी सिरदर्द साबित हो सकता है। एनएचएआई के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि पहले राज्य सरकारों की ओर से उनकी सडक़ों को नेशनल हाईवे घोषित करने का दबाव रहता था, लेकिन अब उल्टा हो सकता है। शराब बिक्री से मिलने वाला राजस्व बचाने के लिए राज्य सरकारें नेशनल हाईवे को डी-नोटिफाई कराने का प्रयास कर सकती हैं।

 महिलाओं का गुस्सा

एक तरफ जहां कई राज्य सरकारें शराब की दुकानों को बचाने की कोशिश में जुटी हैं, वहीं दूसरी तरफ हाईवे से बस्तियों में शिफ्ट होने वाली शराब की दुकानों को लेकर विरोध-प्रदर्शन उग्र हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, मेरठ, अमरोहा और आगरा में शराब की दुकानों का विरोध करते हुए महिलाओं ने दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की कोशिश की। शराब की ये दुकानें हाईवे से अंदर शिफ्ट की जा रही थीं, उसी समय मोहल्ले की महिलाएं इसका विरोध करने लगीं और दुकान में घुसकर बोतलों को निकाल कर सडक़ पर फेंक दिया और आग लगा दी।

 राज्य चिंतित, कारोबारी लामबंद 

राज्य सरकारें हाईवे के आसपास शराब की दुकानें बंद होने से राजस्व को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं। हालांकि, बिहार जैसे राज्य का उदाहरण भी सामने है, जहां कमाई की फिक्र किए बिना राज्य सरकार ने पूरी तरह शराबबंदी का फैसला कड़ाई से लागू किया है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद यूपी में करीब 8000 दुकानें बंद होने का अनुमान है। इनमें से करीब पांच हजार दुकानों को दूसरी जगह स्थानांतरित किया जा रहा है, जबकि तीन हजार से अधिक दुकान सील कर दी गई हैं। पर्यटन पर निर्भर गोवा, केरल जैसे राज्य भी शराबबंदी के इस आदेश को लेकर खासे चिंतित हैं। गौरतलब है कि देश में नेशनल और स्टेट हाईवे की कुल लंबाई करीब ढाई लाख किलोमीटर है। हाईवे किनारे शराब की दुकानें बंद करने के लिए केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कुछ वक्त की मोहलत मांगने का फैसला किया है।

शराब, होटल और पर्यटन उद्योग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पूरी तरह लामबंद है। उनके कारोबार पर हाईवे किनारे शराब की बिक्री बंद होने का असर भी दिखने लगा है। नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रियाज अमलानी का कहना है कि इस फैसले से न सिर्फ हजारों करोड़ रुपये के कारोबार का नुकसान होगा बल्कि लाखों लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। अकेले महाराष्ट्र में करीब दो हजार होटल और 10 हजार रेस्त्रां व बार हाईवे किनारे शराब की दुकानें हटाने के फैसले से प्रभावित हो सकते हैं। गोवा में भी तीन हजार से ज्यादा शराब की दुकानें, बार, होटल और रेस्त्रां हाईवे के 500 मीटर के दायरे में आते हैं।

उद्योग जगत को समर्थन 

शराबबंदी को लेकर छिड़ी इस बहस के बीच नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने ट्वीट किया कि टूरिज्म से रोजगार के मौके बनते हैं। इसे खत्म क्यों करना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट के हाईवे पर शराबबंदी के फैसले से 10 लाख लोगों का रोजगार खतरे में पड़ सकता है।

नीति आयोग के सीईओ की इस टिप्पणी की काफी आलोचना भी हुई। ताज्जुब की बात है कि जो केंद्र सरकार आर्थिक दुष्परिणामों की चिंता किए बगैर नोटबंदी जैसा साहसिक कदम उठाती है, उससे जुड़े अधिकारी शराबबंदी के मामले में रोजगार की दुहाई दे रहे हैं। केंद्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने भी पर्यटन उद्योग को इस समस्या के हल के लिए बीच का रास्ता निकालने और इस मुद्दे पर कानूनी राय लेने का भरोसा दिलाया है।

भाजपा सांसद किरण खेर ने भी पंच सितारा होटलों में शराब की बिक्री नहीं करने देने पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि यह लाखों लोगों के रोजगार का मामला है। सड़क सुरक्षा पर सवाल उठाते हुए खेर ने पूछा कि आदतन शराब पीने वाले ट्रक चालकों पर नजर कौन रखेगा, वे तो शराब की बोतलें साथ लेकर चल सकते हैं।

इस मामले में यह देखना दिलचस्प है कि नोटबंदी और यूपी में अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करते हुए जो भाजपा सरकारें रोजगार और आर्थिक मुद्दों को पूरी तरह नजरअंदाज कर रही थीं, शराबबंदी के मामले में उनके सुर बदले हुए हैं।

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