जिस समय हम लोग आईपीएल 10 का मजा ले रहे होंगे, ठीक उसी समय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड एक नई उधेड़बुन में लगा होगा। बीसीसीआई के प्रशासकों की टीम ठीक उसी समय आईपीएल यानी इंडियन प्रीमियर लीग की अगली दस साल की साइकिल की रूपरेखा तय करने में लगी होगी। जबरदस्त हिट रही इस क्रिकेट लीग के दस साल ही नहीं पूरे होंगे बल्कि इसकी एक साइकिल यानी एक चरण पूरा हो जाएगा। अब बारी होगी रू-ब-रू होने की आईपीएल के नए अवतार से, जिसमें सब कुछ नया होगा। सब कुछ नए तरीके से तैयार होगा। सभी खिलाडिय़ों की नए तरीके से नीलामी होगी। यानी कोई किसी भी टीम में जा सकता है। प्रसारण अधिकारों को लेकर बीसीसीआई का खजाना फिर लबालब हो जाएगा। अभी ये तस्वीर साफ नहीं है कि फ्रेंचाइजी का मालिकाना फिर से तय होगा या फिर इन्हीं फ्रेंचाइजीज को नवीनीकरण के लिए अपनी झोली फिर खाली करनी होगी।
खेल बाजार आए साथ
दस साल पहले वर्ष 2008 में जब आईपीएल की शुरुआत हुई थी, तब इसको लेकर तमाम आशंकाएं भी थीं और कौतूहल भी। ये कहना चाहिए कि इस लीग ने भारतीय स्पोर्ट्स में एक नई तरह की हलचल ही पैदा नहीं की बल्कि खेलों औऱ बाजार को साथ आने का मौका भी दिया। ये भी सही है कि आईपीएल ऐसी लीग थी, जिसको देखकर भारत में तकरीबन हर खेल में एक नई लीग का जन्म हुआ। इसने भारतीय खेलों और खिलाडिय़ों को नया आत्मविश्वास ही नहीं दिया बल्कि उन्हें दुनिया के शीर्ष खिलाडिय़ों और कोचों के साथ खेलने-सीखने का मौका दिया। याद आता है 80 का दशक, जब भारतीय खेल काफी हद तक हीन भावना से ग्रस्त लगते थे। जब हमारी टीमें और खिलाड़ी बड़े आयोजनों में जाते थे या विदेश का दौरा करते थे तो काफी हद तक सहमे ही नहीं लगते थे बल्कि खुद को पहले से ही हारा हुआ मानने लगते थे। अब हाल ये है कि भारत में होने वाली तमाम स्पोर्ट्स लीग न केवल दुनिया की बेहतरीन लीग में शामिल हो रही हैं बल्कि उसमें खेलने के लिए दुनिया के तकरीबन सारे ही टॉप खिलाड़ी लालायित रहते हैं। जितना पैसा उन्हें यहां मिल रहा है, उतना दुनिया में गिने-चुने देशों में ही मिलता होगा। यही वजह है कि पिछले पांच सालों में बैडमिंटन से लेकर टेनिस तक में दुनिया का हर स्टार खिलाड़ी यहां की स्पोर्ट्स लीग का हिस्सा बन चुका है।
एक जमाने में जब भारतीय क्रिकेटर काउंटी क्रिकेट खेलने इंग्लैंड जाया करते थे तो यह बड़ी बात मानी जाती थी। बड़ी हसरतों के साथ हमारे क्रिकेटर वहां जाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते दिखते थे, क्योंकि इसके जरिए जो धन मिलता था, वो उन्हें धन्य करने के लिए काफी होता था। हालांकि इतिहास और वाकये दोनों गवाह हैं कि काउंटी क्रिकेट के ठेठ नस्ली वातावरण में भारतीय क्रिकेटरों को हमेशा दोयम दर्जे सरीखा ही व्यवहार मिला। अगर उसकी तुलना आईपीएल में मिलने वाले धन से करें तो कोई अंधा भी कहेगा-अरे भई दोनों की कोई तुलना ही नहीं है। काउंटी क्रिकेट खेलकर भारतीय क्रिकेटर जो पैसा दस सालों में नहीं कमा पाते थे, उतना आईपीएल के एक सीजन में कमा लेते हैं। अब तो शायद ही अपने देश का कोई क्रिकेटर उधर जाने की सोचता है। आईपीएल ने हमें एक तरह का गर्व भी दिया है।
आईपीएल के अगले दस साल को लेकर होने वाली तैयारियों पर बात करने से पहले हमें तब के हालात पर भी नजर दौड़ा लेनी चाहिए, जब इसकी रूपरेखा बनाई जा रही थी। ललित मोदी जिस लीग की कल्पना संजो रहे थे, वो इंग्लैंड की विश्व प्रसिद्ध इंग्लिश प्रीमियर लीग (ईपीएल) के आसपास थी। चूंकि वह अमेरिका, यूरोप और इंग्लैंड जैसे कई देशों की जानी-मानी स्पोर्ट्स लीग के हर पहलू को नजदीक से देखकर आए थे। उन्हें अंदाज था कि खेल अब केवल खेल नहीं रहने वाले बल्कि आने वाले समय में दुनिया की सबसे बड़ी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में तब्दील होने वाले हैं। या यूं कहिए कि खेल अब महज खेल नहीं, ये अकूत पैसा कमाने के दरवाजे भी खोल सकते हैं। लेकिन ऐसा भारत में हो पाएगा..इसे लेकर सवाल और आशंकाएं थीं।
खिलाड़ियों पर धन वर्षा
बीसीसीआई के बड़े-बड़े सूरमाओं को लगता था कि ये प्रयोग कामयाब नहीं हो पाएगा। लीग की पूरी योजना बन गई। जब ललित मोदी ने क्रिकेट बोर्ड को यकीन दिलाया कि बड़े-बड़े कॉरपोरेट हाउस शहर आधारित टीमों को मोटे दामों में खरीदेंगे और फिर ऊंचे दामों पर दुनिया भर के क्रिकेटरों को अपनी टीम में रखने के लिए बोली लगाएंगे तो भी किसी को विश्वास नहीं था कि ऐसा हो पाएगा। शायद उन्हें यकीन नहीं था कि भारत के कॉरपोरेट और बड़े सेलिब्रिटीज इसके लिए दोनों हाथ खोल सकेंगे। लेकिन जब फ्रेंचाइजी की नीलामी हुई और लोगों ने करोड़ों में इन टीमों को बिकते देखा तो ज्यादातर लोग आश्चर्यचकित रह गए। फिर बारी आई दुनिया भर के जाने-माने क्रिकेटरों की नीलामी की। उसमें खिलाड़ियों की जो कीमत लगी और जिस तरह मुंह मांगे दामों पर उन्हें खरीदने के लिए फ्रेंचाइजी में होड़ लगी, वो तो और भी ज्यादा हैरान करने वाली थी। कोई क्रिकेटर कभी जिंदगी में नहीं सोच सकता था कि उसकी एक सीजन की कीमत सात या आठ करोड़ हो सकती है।
बीसीसीआई की भरी तिजोरी
सब कुछ किसी सपने सरीखा लग रहा था। ये ललित मोदी की बड़ी सफलता थी। बीसीसीआई की तो आंखें ही चौंधिया गईं। इतने वर्षों से उसका खजाना जिस भी हाल में रहा हो लेकिन अब तो इस तरह लबालब भर गया था कि वो पदाधिकारी भी चकित रह गए, जिन्हें इस प्रयोग में सैकड़ों छेद दिख रहे थे। लेकिन खजाना तो और भरने वाला था और इसमें इजाफा होने वाला था प्रसारण अधिकारों की बिक्री से। यहां भी कमाल हो गया। बीसीसीआई ने पिछले दस वर्षों में आईपीएल के मीडिया राइट्स से 6700 करोड़ रुपये कमाए हैं।
खैर, जब हम बीसीसीआई के छप्पर फाड़ खजाने की बात कर रहे हैं तो 90 के दशक के बाद देश के बदले हुए आर्थिक माहौल के बारे में सोचना चाहिए, जब बाजार फैलने लगा था। दुनिया में आर्थिक उदारीकरण की हवा बहने लगी थी। भारत एक बड़ा बाजार था, लिहाजा यहां दुनिया भर के बड़े ब्रांड्स दस्तक देने लगे थे। बड़े पैमाने पर विदेशी निवेशक आकर्षित हो रहे थे। ऐसे में बाजार को कुछ ऐसे टूल्स की जरूरत थी, जिसके जरिए वो न केवल पंख लगाकर उड़े बल्कि लोगों के दिलोदिमाग में जगह बनाए। इसके लिए उन्हें खेलों से गलबहियां करना सबसे मुफीद लगा। तो ये वो घुमाव था, जो भारतीय खेलों के लिए बदलाव की नई उम्मीदें लिए आया था। चूंकि क्रिकेट हमारे लिए जुनून और धर्म की तरह है, लिहाजा बाजार ने अपने दोनों हाथ पहले उसी के लिए फैलाए।
हालांकि ये शंकाएं थीं कि जितना पैसा आईपीएल फ्रेंचाइजीज लगा रही हैं, वो निकाल भी पाएंगी या नहीं। 2013-14 के आंकड़े कहते हैं कि आईपीएल बिजनेस को जिस फ्रेंचाइजी ने समझा, बिजनेस सरीखी समझबूझ के साथ प्रबंधन किया, मार्केटिंग और सेल्स में नए प्रयोग किए, वो फायदे में रहीं। जो ऐसा नहीं कर सकीं, वो जबरदस्त घाटे में रहीं। कुछ आईपीएल टीमों ने बेहतर प्रदर्शन किया और खुद की ब्रांड वैल्यू बढ़ाई तो कुछ ने अच्छा प्रदर्शन तो किया लेकिन बिजनेस के फार्मूलों को यहां लागू नहीं किया, लिहाजा उनकी बैलेंस शीट घाटे में पहुंच गई। हां, कुछ टीमें ऐसी जरूर हैं जो आईपीएल-9 के बाद बेहतर प्रदर्शन के बावजूद घाटे में तो हैं लेकिन बेहतर ब्रांड वैल्यू बनाने में सफल रहीं। आईपीएल में भी तरह-तरह के बिजनेस मॉडल दिखे। कुछ फ्रेंचाइजी ने दिल खोलकर पैसे बहाए। बड़े-बड़े क्रिकेटरों को खरीदने में दोनों हाथ खोले। कुछ ने संतुलन कायम करने की कोशिश की तो कुछ ने छोटे लेकिन संभावनाशील खिलाड़ियों को लेना पसंद किया और खर्च पर लगाम लगाए रखी। फायदे के लिहाज से देखें तो शाहरुख खान की कोलकाता नाइट राइडर्स ने तकरीबन हर साल अपनी कमाई बढ़ाई। आज की तारीख में वह कमाई में भी सबसे आगे है। दूसरे नंबर पर राजस्थान रॉयल्स जैसी टीम रही, जिसने हमेशा कम बजट में विश्वास किया और कमाई भी जबरदस्त की। मुंबई इंडियंस जैसी टीम ने वर्ष 2016 के बाद सबसे बेहतरीन ब्रांड वैल्यू तो बनाई लेकिन कमाई में घाटे में ही रही। दिल्ली टीम के प्रोमोटर्स जीएमआर ने विशुद्ध बिजनेस पेशेवर क्षमता दिखाते हुए खराब प्रदर्शन करने वाली टीम के साथ भी पैसा कमाया। हालांकि किंग्स इलेवन पंजाब, सनराइजर्स हैदराबाद कमाई के मामले में नुकसान यानी निगेटिव बैलेंस शीट दिखाती रहीं।
शीर्ष पांच ब्रांड में शामिल
कहने की बात यही है कि जब आईपीएल वर्ष 2018 से दूसरे चरण में कदम रखेगा और उसकी नजर दस साल के अपने दूसरे चरण पर होगी तो टीमों की खरीद- फरोक्त और फ्रेंचाइजी का इस लीग में बने रहने का आधार भी काफी हद तक उनकी पिछले दस वर्षों की बैलेंस शीट, भविष्य की संभावना और अपने बिजनेस मॉडल पर विश्वास की होगी। वहीं बीसीसीआई को ये मालूम है कि आईपीएल ब्रांड अब खेलों की दुनिया में सबसे मजबूत पहले पांच ब्रांड में है। इस समय जबकि दुनिया के सभी क्रिकेट खेलने वाले देश आईपीएल की देखादेखी में अपने यहां इसी तरह की लीग आयोजित करने की कोशिश कर रहे हैं, तब भी भारतीय लीग आकार-प्रकार, ग्लैमर, व्यवसाय और ट्रेंड सेट करने के मामले में उनसे काफी आगे है। हालांकि आईपीएल को लेकर पिछले कुछ बरसों में बीसीसीआई के आला पदाधिकारियों की काफी लानत-मलामत हुई। ये वो लीग भी है, जिसके चलते बीसीसीआई को इस समय उसके स्वनामधन्य पदाधिकारी नहीं चला रहे बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की एक कमेटी संचालित कर रही है। वजह ये थी कि आईपीएल-6 में जिस तरह इसकी कुछ टीमों, उनके कर्ताधर्ताओं के साथ क्रिकेटरों पर फिक्सिंग और घूसखोरी के आरोप लगे, उसने लीग के साथ बीसीसीआई की भी पारदर्शिता पर सवाल उठाए। आखिरकार बोर्ड की अहम कुर्सियों पर बरसों से जमे हुए जाने-पहचाने चेहरों को जाना पड़ा है। बीसीसीआई की सफाई का काम जारी है और बेहतर तरीके से इसे संरचनाबद्ध करने का भी।
कमेटी ऑफ एडमिनिट्रेटर्स यानी सीओए यानी प्रशासकीय समिति आईपीएल के दूसरे साइकिल यानी वर्ष 2018 से लेकर 2027 तक के प्रावधानों को तय करेगी। ये बड़ा काम है। प्रसारण अधिकारों से लेकर फ्रेंचाइजी के नवीनीकरण, समूचे तौर पर क्रिकेटरों की नीलामी, नई व्यवस्थाओं और नए तौर-तरीकों को अंतिम रूप दिया जाना है। पता चला है कि व्यवस्थाएं पारदर्शी और पुक्ता रहें, किसी तरह की कोई कसर नहीं रहे, इसलिए दस्तावेजीकरण यानी डॉक्यूमेंट बनाने का काम पूरा किया जा रहा है।
अगले वर्ष बढ़ सकती हैं टीमें
पहला सवाल होगा कि आईपीएल के दूसरे साइकिल में कुल कितनी टीमें होंगी? इसके लिए हमें आईपीएल के पहले दस साल के सफर की ओर निगाह दौड़ानी चाहिए। जब आईपीएल का मसौदा बना था तो उसमें ये प्रावधान किया गया था कि धीरे-धीरे इसमें टीमों की संख्या बढ़ाई जाएगी, जो अधिकतम 12 हो जाएंगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मौजूदा आईपीएल में दस टीमें हैं। दो टीमें चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स फिक्सिंग के आरोपों के चलते दो साल के लिए प्रतिबंधित की गईं थीं। उनकी जगह दो नई टीमें राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स और गुजरात लायंस अस्तित्व में आईं।
ये सवाल इन दिनों लगातार पूछा जा रहा है कि आईपीएल के नए साइकिल में टीमों की संख्या 10 रहेगी या 12। अगर आईपीएल की पुरानी अवधारणा को देखा जाए तो वहां ये व्यवस्था थी कि टीमों की कुल संख्या 12 तक पहुंचानी है। 12 टीमों के आईपीएल में कोई खराबी भी नहीं है। इससे बीसीसीआई का राजस्व तो बढ़ेगा ही, आईपीएल को नए शहरों या सूबों से जुडऩे का मौका भी मिलेगा। उम्मीद ये है कि नया साइकिल 12 टीमों को ही रखेगा। लेकिन इसका रोमांच इसमें भी होगा कि फुटबाल की इंग्लिश प्रीमियर लीग की तरह इसके भी दो स्तर बनाए जाएं। पहले स्तर में ज्यादा टीमें रहें। वहां से हर साल दो टीमों को एलीट स्तर में पहुंचने का मौका मिले तो एलीट स्तर की टीमों में खराब प्रदर्शन करने वाली दो टीमों को पदावनत करके पहले स्तर में पहुंचा दिया जाए। इससे रोमांच भी बढ़ेगा और स्पर्धा का स्तर भी। जब वर्ष 2008 में आईपीएल टीमों की नीलामी हुई थी तब ये साफ नहीं था कि ये नीलामी क्या पहले साइकिल तक ही प्रभावी रहेगी या आगे भी चलती रहेगी। यहां ऐसा लग रहा है कि बीसीसीआई मौजूदा फ्रेंचाइजी से नवीनीकरण के लिए फिर मोटी फीस वसूलेगा और टीमों व बीसीसीआई के बीच राजस्व में हिस्सेदारी की नई शर्ते भी तय होंगी।
वर्ष 2017 के आईपीएल के लिए जब क्रिकेटरों की नीलामी हुई तो ये काफी हद तक फीकी थी क्योंकि ये सबको मालूम था कि अगले साल सभी क्रिकेटरों की नए सिरे से नीलामी प्रक्रिया शुरू होगी। नए तरीके से उनकी बेसप्राइस तय होगी और किसी भी फ्रेंचाइजी के पास किसी भी क्रिकेटर को खरीदने का अवसर होगा। जैसा पहले आईपीएल से पहले हुआ था। यानी नीलामी रिंग में दुनिया भर के 500 से ज्यादा क्रिकेटरों का जमावड़ा होगा और ये एक बड़ा इवेंट होगा।
अगले आईपीएल से पहले क्रिकेट आयोजन के कुछ नए केंद्र भी तय किए जाएंगे ताकि इस लीग का आनंद अब उन छोटे शहरों के लोग भी ले सकें जहां क्रिकेट का बेहतर स्टेडियम हो यानी भविष्य में नोएडा, कानपुर और इसी तरह के अन्य केंद्रों पर भी आईपीएल सर्कस अपना लंगर डालेगा। सबसे बड़ी और अहम बात कमाई की होगी। नए सिरे से आईपीएल के मीडिया राइट्स, स्पॉन्सरशिप राइट्स और अन्य राइट्स की नीलामी भी होगी। अंदाजा है कि मीडिया राइट्स के तौर पर ही बीसीसीआई की कमाई अगले दस वर्षों में 18 हजार करोड़ से 30 हजार करोड़ या और ज्यादा तक जा सकती है।