Advertisement

किसानों की कर्ज माफी से परहेज

किसानों का नाम सामने आते ही सरकार और बैंकों को कर्ज अनुशासन की चिंता सताने लगती है
राजू शेट्टी

किसानों की कर्ज माफी का सवाल उठाते ही देश और राज्यों की सरकारें और कॉरपोरेट के पिट्ठू बैंकर ज्ञान बघारने लगते हैं। संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री ने साफ कह दिया कि केंद्र सरकार किसानों का कर्ज माफ नहीं करेगी, भले ही राज्य सरकारें चाहें तो अपने स्तर पर कर्ज माफ कर दें। यही वित्त मंत्री केंद्र सरकार के कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ देने के लिए एक लाख 15 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था करने में जरा नहीं हिचकते क्योंकि ये कर्मचारी सरकार पर दबाव बनाने में सफल हो जाते हैं।

महाराष्ट्र में हमने पिछले आठ-नौ महीने में किसानों का एक डाटा बैंक तैयार कराया है जिसमें उनकी माली हालत से लेकर उनके कर्ज की स्थिति, कितना कर्ज लिया, कितना चुकाया, कितना बकाया है, बकाया है तो क्यों है, खेती की स्थिति कैसी रही आदि बातों को शामिल किया है। हम इस रिपोर्ट को अब प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सौंपकर यह बताने वाले हैं कि किसानों ने अगर कर्ज नहीं लौटाया तो इसमें उनकी गलती नहीं है। उनके सामने हालात ही ऐसे हैं कि वे कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। चंद उदाहरण से बात अच्छी तरह समझ आएगी। पिछले साल जिन किसानों ने अरहर की खेती की थी उन्हें 12 हजार रुपये क्विंटल तक का रेट मिला। इसे देखकर इस साल किसानों में अरहर उगाने की होड़ लगी और बैंकों से मोटा कर्ज लेकर उन्होंने इसकी खेती की मगर इस बार रेट पहुंच गया 38 सौ रुपये क्विंटल पर। इसी प्रकार पिछले साल आलू का भाव तेज था इसलिए किसानों ने इस बार जमकर आलू की खेती की और अब आलू के भाव जमीन पर हैं। ऐसे में किसान अपना पेट भरने का इंतजाम करेगा या फिर बैंकों का कर्ज चुकाने का प्रयास करेगा। इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में सूखे, बाढ़, अन्य प्राकृतिक आपदा आदि के कारण किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा है। उपज अच्छी हो तो मुसीबत और खराब हो तो मुसीबत। इसलिए हम ये पूरी रिपोर्ट सरकार के सामने रखकर उनसे पूरे देश के किसानों का कर्ज माफ करने की मांग करेंगे। देश के छोटे किसानों पर कोई बहुत बड़ी रकम बकाया नहीं है। यह बमुश्किल 90 हजार करोड़ रुपये के आसपास है जिसे केंद्र सरकार आसानी से माफ कर सकती है।

देश में किसानों की स्थिति आधारभूत ढांचे और तकनीक के मामले में बेहद खराब है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने आस्ट्रेलिया दौरे के बाद संसद में बताया कि वहां के किसान कितने बेहतर तरीके से खेती करते हैं। मैं प्रधानमंत्री जी को कहना चाहता हूं कि हिमाचल के किसानों को अपना सेब दिल्ली तक पहुंचाने में 8 दिन लग जाते हैं। ऐसा घटिया आधारभूत ढांचा आपने किसानों को दे रखा है। ऐसे में आस्ट्रेलिया से भारतीय किसानों की तुलना हास्यास्पद है। यही नहीं सरकार आवश्यक वस्तु कानून के तहत बार-बार किसानों के मामले में हस्तक्षेप करती है। जब किसी फसल का भाव बढ़ रहा हो तो महंगाई का हवाला देकर तत्काल उस फसल के आयात की इजाजत दे दी जाती है जिससे किसानों को मुनाफा कमाने का अवसर नहीं मिलता। देश में सिर्फ यही तबका है जिसके साथ ऐसा बर्ताव किया जाता है।

किसान कर्ज माफी पर हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य ने बयान दिया कि इससे कर्ज का अनुशासन बिगड़ जाएगा। मैं इन मोहतरमा से पूछना चाहता हूं कि जब देश की चुनिंदा कॉरपोरेट कंपनियों ने इन बैंकों का लाखों करोड़ रुपया डकार लिया तब इन्होंने क्यों चुप्पी साध ली। ऐसी कंपनियों में अडानी समूह भी शामिल है और इसी अडानी समूह की आस्ट्रेलियाई कोयला परियोजना को फंड देने में अरुंधति भट्टाचार्य ने अति उत्साह दिखाया था।

किसानों की हालत को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को मेरी सलाह और मेरी मांग है कि किसानों का पिछला पूरा ऋण माफ किया जाए। अगर ऐसा नहीं हो पाया तो भविष्य में किसान खेती से मुंह मोड़ सकता है और तब भारत ऐसे अन्न संकट में फंस सकता है कि उससे बाहर आना मुश्किल हो जाएगा। किसान अपना हक मांग रहा है जो उसे मिलना ही चाहिए।

(लेखक लोकसभा के सदस्य और स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के प्रमुख हैं)

Advertisement
Advertisement
Advertisement