Advertisement

आईएआरआई ने विकसित की गर्मी से बेअसर गेहूं की किस्म

क‌िसानों के ल‌िए फायदेमंद है क‌िस्म
आईएआरआई

 

मार्च महीने में तापमान में आए अचानक बदलाव का सबसे ज्यादा असर गेहूं की फसल पर पड़ता है। इस साल इस मार्च के अंतिम दिनों में जिस तरह से तापमान 40 डिग्री तक जा पहुंचा उसका गेहूं की फसल पर प्रतिकूल असर पड़ा है और यह उत्पादन को प्रभावित करेगा। इस तरह के संकट से किसानों को बचाने के लिए नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वैज्ञानिकों ने गेहूं की नई प्रजाति विकसित कर रास्ता निकाला है। इस प्रजाति का नाम है एचडीसीएसडब्‍ल्यू-18।

यह किस्म विकसित करने वाले और आईएआरआई में प्रिंसिपल साइंटिस्ट (जेनेटिक्स) डॉक्टर राजवीर यादव ने आउटलुक को बताया कि यह किस्म किसानों के लिए काफी लाभदायक है। इस पर मार्च में अचानक बढ़े तापमान का असर नहीं पड़ता और इसका उत्पादन भी ज्यादा होता है। इसे अक्टूबर के अंत में बोते हैं और इसमें जनवरी में बाली आ जाती है। यह प्रजाति 150 दिनों में पक जाती है और मार्च के अंत में इसकी कटाई हो जाती है। सामान्य तौर पर गेहूं की एक बाली में 50 से 55 दाने होते हैं पर एचडीसीएसडब्‍ल्यू-18 में दानों की संक्चया 70 से ज्यादा होती है। इसकी पैदावर एक एकड़ में 25 ञ्चिवंटल तक होती है। इसकी बुआई के लिए जीरो टिलेज तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके जरिए धान की कटाई के बाद बचे अवशेष के बीच ही बिना खेत की जुताई किए इसकी बुआई हो जाती है।

गेहूं की एक दूसरी वेरायटी एचडी 3117 है। इसे 15 नवंबर से दिसंबर के आखिर तक बो सकते हैं। इसमें भी तापमान में आए अचानक बदलाव को बर्दाश्त करने की क्षमता होती है और इसमें करनाल बंट बीमारी भी कम आती है। नवंबर में बोने पर इसे 138 से 140 दिनों में काटा जाता है जबकि दिसंबर में बोने पर यह अवधि 130 दिनों की होती है। नवंबर में बोने पर इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 60 क्विटल और दिसंबर में बोने पर 45 से 50 क्विटल के बीच होता है।

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement