करीब डेढ़ साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक गांव का जिक्र करते हुए कहा था कि देश को आजाद हुए 70 साल होने को हैं लेकिन यहां लोगों के घरों में बिजली नहीं है। उन्होंने देश के सभी गावों में बिजली मुहैया कराने के लिए लागू एक केंद्रीय योजना को संदर्भ बनाते हुए उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार को कटघरे में खड़ा करने के मकसद से यह बात कही थी। असल में दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। देश की राजनीति में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश ने अभी तक के सबसे अधिक प्रधानमंत्री दिए हैं। लेकिन यहां की बीस करोड़ से अधिक की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी अंधेरे में डूबा है। स्कूल-कालेज के दिनों में हमने अपने गांव और कस्बे में बिजली के खंभे और तार तो देखे थे लेकिन उनके जरिए आने वाली बिजली के दर्शन बहुत कम होते थे। यह बात राज्य के सबसे समृद्ध माने जाने वाले पश्चिमी हिस्से की थी जबकि बड़े हिस्से में तो यह ढांचा भी नहीं था। लेकिन पिछले दो दशकों में स्थिति थोड़ी बदली है और अब ग्रामीण इलाकों में भी हफ्ते के अधिकांश दिन कुछ घंटे बिजली आ जाती है लेकिन इसका कोई तय समय और अवधि नहीं है। यही वजह है कि अब भी राज्य के अधिकांश हिस्सों में दिन ढलने के साथ ही जिंदगी थम जाती है। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक गतिविधियां रुक सी जाती हैं। गांव देहात में रहने वाले छात्र अपने कॅरिअर के शुरुआती दौर में ही अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले गैर-बराबरी की स्थिति में चले जाते हैं। वहीं खेती से लेकर छोटे-बड़ी कारोबारी और औद्योगिक गतिविधियों पर बिजली की खराब आपूर्ति का प्रतिकूल असर पड़ता है और यह राज्य की सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) से लेकर कृषि उत्पादन की दर पर साफ दिखता भी है। यह स्थिति तब है जब पिछले एक दशक में देश में बिजली की उत्पादन क्षमता काफी बढ़ी है और यह करीब ढाई लाख मेगावाट तक पहुंच गई है जो देश में अभी निकल रही मांग से करीब एक लाख मेगावाट अधिक है। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों की 19 फीसदी और ग्रामीण इलाकों की 71 फीसदी आबादी के पास बिजली कनेक्शन नहीं है। सेंट्रल इलेकिट्रसिटी अथॉरिटी (सीईए) के मुताबिक बिहार में भी अभी तक शहरी आबादी का 33 फीसदी और ग्रामीण आबादी के 87 फीसदी लोगों के पास बिजली के कनेक्शन नहीं है। सही मायने में यही वह पैमाना है जो इन दो राज्यों की कमजोर आर्थिक स्थिति को आंकने के लिए काफी है।
देश के कई राज्यों में बिजली, सड़क और पानी के नाम पर सरकारें बनती और गिरती रही हैं। इस बात को राजनीतिक दल बखूबी समझते भी हैं। इसके बावजूद करीब सात दशक तक उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में हालात न सुधरना अपने आप में एक पहेली है। हो सकता है कि राज्य की जनता भी इसके लिए जिम्मेदार हो कि वह राजनीतिक दलों को अपनी इस मूलभूत जरूरत का अहसास नहीं करा पाई। लेकिन जिस तरह से हाल के राज्य विधानसभा चुनावों के पहले पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार ने बिजली आपूर्ति सुधारने के दावे किए वह लोगों में बिजली की कमी से बढ़ रही बेचैनी और उससे होने वाले राजनीतिक नुकसान का संकेत था। गांवों और शहरों को अधिक बिजली आपूर्ति बढ़ाने के उनके दावे लोगों के गले नहीं उतरे। यही वजह है कि राज्य के वोटरों को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वह चुनावी वादा पसंद आ गया जिसमें 2017 में ही गांवों में 22 घंटे और शहरों में 24 घंटे बिजली देने की बात कही गई थी। राज्य में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारी बहुमत वाली भाजपा सरकार को भी इस राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे का अहसास है। यही वजह है कि शुरुआती महीने में ही उसने इस मोर्चे पर कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। सरकार ने गांव, छोटे शहरों और जिला मुख्यालयों के लिए बिजली आपूर्ति के घंटे भी तय कर दिए हैं। लेकिन राज्य के लोगों के जीवन को बदलने के साथ ही राज्य के आर्थिक हालात सुधारने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाने वाला यह लक्ष्य पाना बहुत आसान नहीं है। इसके लिए योगी सरकार को राजनीतिक नुकसान की परवाह किए बगैर बड़े फैसले लेने पड़ेंगे।
राज्य में एटी एंड सी लॉस 35 से 40 फीसदी तक है। सही मायने में यह घाटा तकनीकी कम और बिजली चोरी के कारण ज्यादा है। पिछली सरकार के दौर में कई जगहों पर यह घाटा 80 से 89 फीसदी तक चला गया था। यह वह इलाके रहे हैं जहां पर राज्य के सबसे मजबूत राजनीतिक लोगों का प्रतिनिधित्व रहा है। एक तरह से गरीब राज्य में राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर लोगों के बीच गैर-बराबरी पैदा करने का यह बहुत की भयावह उदाहरण रहा है। पहले से ही करीब 60 हजार करोड़ रुपये के घाटे में फंसा राज्य का बिजली विभाग अगर बिजली चोरी पर नकेल कसे बिना सप्लाई बढ़ाता है तो यह नुकसान कब एक लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा, किसी को पता भी नहीं चलेगा। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार की उदय योजना का सहारा भी काम नहीं आएगा। वैसे भी देश भर की बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय सेहत सुधारने वाली इस योजना के बावजूद राज्यों की वितरण कंपनियों का घाटा तीन लाख साठ हजार करोड़ रुपये के करीब पहुंच गया है।
असल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशासकीय क्षमता की भी यह सबसे बड़ी परीक्षा होगी, क्योंकि सबको बिजली देने की इस महत्वाकांक्षी पहल की कामयाबी लोगों के जीवन की बेहतरी से सीधे जुड़ी है। वहीं उनको पिछली सरकार के पूरे न किए जा सके वादे और आंकड़ों की बाजीगरी पर लोगों के भरोसा न करने के नतीजे से भी सीख लेनी होगी। नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि नया इंडिया बनाना है इसके लिए वह 2022 तक हासिल करने वाले कई लक्ष्यों पर काम करने की बात करते हैं। लेकिन राजनीतिक रूप से सबसे पावरफुल राज्य का पावर का प्लग ही निकला हुआ है तो नए इंडिया के साथ उत्तर प्रदेश को कदमताल करने के लिए बाकी राज्यों से तेज दौड़ना होगा जो मौजूदा हालात में काफी मुश्किल भरा काम है।