Advertisement

भुवनेश्वर में भाजपा के नए तेवर

राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उभरे सामाजिक समीकरणों के नए सूत्र
अब मोदी की न‌िगाहें ओड‌िशा पर

'जरा मौन रहना सीखिए।’ भुवनेश्वर में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को इस सीख के राजनैतिक हलकों में कई मायने लगाए जा रहे हैं। मोदी की सीख इतनी भर ही नहीं थी। उन्होंने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के पार्टी के प्रस्ताव पर बहस के दौरान इसमें पिछड़े मुसलमानों को जोडऩे की बात कहकर भी सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा, 'जब हम सामाजिक न्याय की बात करते हैं तो मुसलमानों को भी न्याय मिलना चाहिए।’ तीन तलाक के मुद्दे पर भी मुसलमान महिलाओं की मदद सहमति से करने की सलाह दी न कि टकराव से। इस संदर्भ में देखें तो पार्टी कार्यकर्ताओं को मौन रहना सीखने के कई मायने खुलते हैं।

दरअसल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारी जीत से उत्साहित भारतीय जनता पार्टी के लिए भुवनेश्वर में पार्टी की 15-16 अप्रैल को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के आयोजन के खास मकसद थे। भाजपा ने करीब 120 संसदीय क्षेत्रों में फैलाव की विशेष रणनीति तैयार की है, जहां भाजपा की अभी तक खास मौजूदगी नहीं रही है। ये क्षेत्र ज्यादातर पूर्वी और दक्षिणी भारत के हैं। ओडिशा पूर्वी और दक्षिणी भारत दोनों के मुहाने पर है। दूसरे, आदिवासियों और हाशिए के समूहों को अपनी ओर खींचने का खाका भी तैयार करना है। मोदी ने इसमें मुसलमानों को जोड़ने की पहल की बात करके सामाजिक समूहों का ऐसा इंद्रधनुषी गठजोड़ बनाने की कोशिश का संकेत दिया जो कभी कांग्रेस का आधार हुआ करता था। यह अलग सवाल है कि वे इसे अपनी पार्टी और संघ परिवार के मिजाज में कितना ढाल पाते हैं।

बेशक, यह भाजपा और प्रधानमंत्री की नीतियों में एक बड़ा बदलाव है। इसके पहले तक भाजपा और संघ परिवार या प्रधानमंत्री खुद मुसलमानों को किसी तरह का आरक्षण देने के खिलाफ रहे हैं। अगर पार्टी उन्हें पिछड़ा मान लेती है तो आरक्षण की बहस भी आगे बढ़ सकती है। असल में एक दावा यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं के वोट मिले हैं। अगर यह सही है तो मुसलमानों के बीच पैठ बनाने की रणनीति का लाभ पार्टी को मिल सकता है। बिहार में पिछड़े या पसमांदा मुसलमानों की सहानुभूति नीतीश कुमार ने हासिल की ही है। भाजपा अगर इसके जरिए थोड़ी भी पैठ मुसलमानों में बनाने में कामयाब हो गई तो पूर्वी और दक्षिणी भारत में उसका ज्यादा लाभ मिलेगा, जहां मुस्लिम आबादी अच्छी-खासी संख्या में है।

इसकी एक वजह शायद यह भी हो सकती है कि पूर्वी और दक्षिण भारत में बढ़ने के लिए खालिस हिंदुत्ववादी मुद्दों से काम नहीं चलेगा। पार्टी को इसका अहसास बिहार के विधानसभा चुनावों में भी हो गया था और उसने रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी की पार्टियों को साथ लेकर पिछड़ों, दलितों में सेंध लगाने की कोशिश की लेकिन लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे नेताओं के कारण वह रणनीति कारगर नहीं हो पाई। इसलिए उत्तर प्रदेश में भाजपा ने बसपा और सपा नेताओं को तोड़कर अपने पाले में लाने की रणनीति अपनाई तो वह कारगर साबित हुई। वहां ध्रुवीकरण भी किया गया लेकिन पिछड़ों और दलित समूहों में सेंध लगाने से ही उसे बड़ी जीत हासिल हुई। भुवनेश्वर सम्मेलन एक तरह से इसी रणनीति को और व्यापक बनाने का संकेत देता है।

जनाधार व्यापक करने के मकसद से 20 बरस बाद ओडिशा की राजधानी में 1817 के पाइका विद्रोह, जिसे अब पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जा रहा है, से जुड़े परिवारों और लोगों को भी सम्मानित किया गया। अंग्रेजों की जमीन बंदोबस्ती के खिलाफ किसानों के इस विद्रोह में आदिवासियों की विशेष भूमिका थी। बैठक का एक मकसद ओडिशा में भाजपा के पक्ष में हवा बनाना था, जो पंचायत चुनावों में बहती दिखी है। हाल के पंचायत और जिलापरिषद चुनावों में भाजपा को अप्रत्याशित बढ़त मिली। संकेत हैं कि भाजपा बड़े पैमाने पर कांग्रेस के लोगों पर डोरे डाल रही है। हालांकि चुनावों में राज्य में सत्तारूढ़ बीजद को हल्का झटका ही लगा लेकिन उसके बाद उसके नेताओं में छिड़ी कलह से पार्टी में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मोहभंग का अंदाजा लगता है। बीजद के चर्चित सांसद बिजयंत जय पांडा ने ओडिशा के सबसे बड़े अखबार 'संदेश’ में लेख लिखा कि पार्टी को पंचायत चुनावों में हार पर आत्ममंथन करना चाहिए। इससे पांडा के भाजपा की ओर झुकने के कयास भी लगाए जाने लगे।

वैसे भी, भाजपा अध्यक्ष दूसरी पार्टियों के नेताओं को भाजपा में लाने में महारत कई राज्यों में दिखा चुके हैं। शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री ने उन्हें 'चाणक्य’ की पदवी से नवाजा। सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जैसे राज्य के अपने नेताओं की छवि भी बड़ी बनाने की कोशिश की गई। बहरहाल, शाह ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक पार्टी के प्रसार की बात कुछ इस अंदाज में कही है मानो देश का कोई कोना बाकी नहीं छोडऩा है। अब देखना यह है कि हिंदुत्व के मुद्दों के साथ पार्टी व्यापक सामाजिक समीकरण कैसे साध पाती है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement