हरियाणा में एक पखवाड़ा पहले नजारा कुछ और था, अभी कुछ और है। लग रहा था, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की या तो विदाई होगी या मंत्रिमंडल विस्तार के बहाने कुछ नएमंत्री और डिप्टी सीएम नियुक्त कर उनके अधिकारों में कटौती कर दी जाएगी। मगर अभी सब के सुर बदले हुए हैं। कोई दबी जबान में भी स्वीकारने को तैयार नहीं कि मंत्रिमंडल विस्तार की कोई बात थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला तो इसे 'मीडिया की खुराफात’ मानते हैं। इस बारे में केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह का कहना है कि हरियाणा में डिप्टी सीएम की कोई आवश्यकता नहीं। पहले भाजपा से ही खबर छनकर आ रही थी कि मंत्रिमंडल विस्तार में बड़ा उलट-फेर होने वाला है और पार्टी के सोलह बागी विधायकों में दो-एक एडजस्ट किए जाएंगे। इसके लिए चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता का नाम भी लिया जा रहा था। बागी विधायकों में वह भी गिनी जाती हैं।
मुख्यमंत्री खट्टर की छवि मृदु भाषी, नरम स्वभाव, नपी-तुली कार्यशैली की रही है। सार्वजनिक तौर पर उन्हें आक्रमक होते नहीं देखा गया है। बागी विधायकों के मामले में भी अब तक नरम ही दिखे हैं। कभी उनके खिलाफ खुलकर कुछ नहीं कहा। इस बारे में उनकी प्रतिक्रिया रही है कि वे अपनी शिकायतें लेकर उनके पास आते हैं तो अवश्य सुनी जाएगी। मगर अब ऐसा नहीं है। वे अब किसी को भी खरी-खोटी सुना देते हैं। हाल में खट्टर द्वारा लिए गए कुछ फैसले उनके बदलते स्वभाव के साथ यह भी संकेत देते हैं कि अब वे किसी के दबाव में नहीं आने वाले। सप्ताह भर पहले 23 एचपीएस और 43 एचसीएस अधिकारियों के तबादले किए गए। उनमें खट्टर के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले विधायकों में शामिल मुलाना की विधायक संतोष सारवान के पुत्र तथा गुरुग्राम के एसडीएम सुशील सारवान भी हैं। जिस प्रकार सुशील सारवान को गुरुग्राम के एसडीएम पद से हटाकर अंबाला में नागरिक सुरक्षा का संयुक्त नियंत्रक बनाया गया है, उससे उन्होंने नाराज विधायकों को संदेश देने की कोशिश की है।
दरअसल, ऐसी नौबत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के सोलह विधायकों के अचानक बागी हो जाने से आई है। बागियों के खेमे में प्रदेश के पांच निर्दलीय विधायक भी आ गए थे। उसके बाद मुख्यमंत्री और उनके करीबी मंत्रियों पर ताबड़-तोड़ हमले किए गए। घेरने के लिए बागियों ने उन पर भ्रष्टाचार और भूमि घोटाला में संलिप्तता के भी आरोप लगाए। बागियों के नेता गुरुग्राम के विधायक उमेश अग्रवाल ने अपनी सरकार को ही सदन के भीतर और बाहर घेरना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री के चहेते अफसरों और कई मंत्रियों पर दिल्ली से लगते ग्वाल पहाड़ी की साढ़े चार सौ एकड़ भूमि अनियमित ढंग से निजी कंपनियों को स्थानांतरित करने, भू-माफिया को लाभ पहुंचाने के लिए गुरुग्राम से औद्योगिक नगरी मानेसर को जोड़ने वाली मेट्रो लाइन में परिवर्तन करने और बिजली के छह लाख सिंगल मीटर और स्कूलों के लिए डेस्क की खरीद में गोलमाल के आरोप लगाए। अग्रवाल खुले आम कहते हैं कि मुख्यमंत्री कार्यालय के अफसर जब गुरुग्राम और फरीदाबाद में नगर निगम आयुक्त थे तो उनकी कार्यशैली को लेकर भाजपा ने भी विरोध जताया था। इस मुद्दे पर दो केंद्रीय मंत्री और पार्टी के चार सांसद खुले तौर पर नाराजगी जता चुके हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आने तक बागी विधायकों ने स्थिति ऐसी बना दी थी कि लगा कि कांग्रेस या इंडियन नेशनल लोकदल भाजपा में तोड़-फोड़ कर कोई बड़ा 'गेम’ कर देगी। पांच राज्यों के चुनाव के बाद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेताओं ने हरियाणा का मसला सुलझाने का प्रयास तेज कर दिया। अध्यक्ष अमित शाह के दूत बनकर राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री वी. सतीश हरियाणा आए। उन्होंने गुरुग्राम में प्रदेश भर के पदाधिकारियों एवं दिल्ली के हरियाणा भवन में विधायकों, मंत्रियों एवं सांसदों से सरकार और मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर चर्चा की। उसके तुरंत बाद ही ऐसा माहौल बना जिससे लगने लगा कि मुख्यमंत्री की या तो विदाई होगी या मंत्रिमंडल विस्तार के बहाने डिप्टी सीएम नियुक्त कर और कुछ मंत्रालय में उलट-फेर के बहाने उनका रुतबा कम कर दिया जाएगा। इसके बाद ही पार्टी के भीतर से छनकर सूचना आई थी कि अमित शाह कैप्टन अभिमन्यु और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को डिप्टी सीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। यह भी कहा गया कि कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ मंत्रिमंडल से हटाकर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बनाए जा सकते हैं।
अपने खिलाफ बदलते माहौल को लेकर खट्टर के सक्रिय होने से तस्वीर बदल सी गई है। उन्होंने खुले तौर पर कहा है कि अब वे अपनी कार्यशैली बदलेंगे। वे बागी विधायकों के पर कतरने के भी मूड में आ गए हैं। उन्होंने सुशील सारवान का तबादला कर इसका एहसास भी करा दिया है।