नाइट लाइफ....मुजफ्फरनगर के गांव में। मगर यह नाइट लाइफ देश के पॉश इलाकों में मौज मस्ती की नहीं है बल्कि कड़ी मेहनत और नींद हराम करने वाली है। किस्सा मुजफ्फरनगर के बढ़ेडी गांव का है। यह गांव उत्तर प्रदेश के उन हजारों गांवों में से एक है, जहां लोगों ने अपनी जिंदगी को बिजली के टाइम-टेबल के हिसाब से ढाल लिया है। रात में बिजली आए या दिन में, लोगों की दिनचर्या बिजली के आने-जाने से ही तय होती है। यहां महिलाएं रात में बिजली आने के साथ ही जग जाती हैं। वह समय रात के 12 बजे से दो बजे या तीन बजे भी हो सकता है। उसके बाद वाशिंग मशीन, दूध से मक्खन निकालने वाली मशीन को चालू करने से लेकर सबमर्सिबल पंप से पानी भरने का कई घंटे का काम चलता है। उत्तर प्रदेश में 71 फीसदी ग्रामीण घरों में बिजली का कनेक्शन नहीं है जो देश में बिहार के बाद दूसरे नंबर पर है।
इसी वजह से पूर्व समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विधानसभा चुनावों के पहले प्रदेश के शहरों और गांवों में भरपूर बिजली देने का दावा कर रहे थे। मगर इस दावे में कुछ खोट था जिसे भुनाने में भारतीय जनता पार्टी कामयाब रही क्योंकि उसने ग्रामीण इलाकों में 22 घंटे और शहरों में 24 घंटे बिजली देने का सपना दिखाया। इस सपने को वोटों में बदलने में तो भाजपा कामयाब रही लेकिन इस वादे को जमीन पर उतारना कितनी बड़ी चुनौती है यह आने वाले दिनों में साफ होगा। मौजूदा आंकड़े तो इस चुनौती को बेहद कठिन बनाते हैं।
मांग-आपूर्ति का गणित
बिजली की मांग और आपूर्ति का गणित भी योगी सरकार की खूब परीक्षा लेगा। फिलहाल, उत्तर प्रदेश की पीक लोड पावर डिमांड करीब 15 हजार मेगावाट है, जो मई-जून की गर्मियों में 18-19 हजार मेगावाट तक पहुंच जाती है। जबकि इस दौरान राज्य के सरकारी ताप और पन बिजली परियोजनाओं से महज 4000-4,500 मेगावाट बिजली पैदा होती है। प्राइवेट बिजलीघरों का उत्पादन भी 5,000 मेगावाट के आसपास है। केंद्र सरकार के बिजलीघरों में यूपी का कोटा करीब 6,000 मेगावाट है, जिसमें उसे करीब 5,000 मेगावाट बिजली मिल रही है। इस तरह यूपी के पास करीब 14,500 मेगावाट बिजली का इंतजाम है। बाकी जरूरत पूरी करने के लिए उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) ने करीब 3,000 मेगावाट बिजली खरीद के दीर्घकालिक और अल्पकालिक करार किए हैं। इस तरह खरीदी गई बिजली कई बार काफी महंगी पड़ती है।
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि 2011-12 के दौरान यूपी में बिजली की मांग और आपूर्ति में 11.3 फीसदी का अंतर था, जो 2015-16 में बढ़कर 12.5 फीसदी हो गया। मांग और आपूर्ति के आकलन में गड़बड़ियों की वजह से भी कई बार आनन-फानन में महंगी बिजली खरीदनी पड़ी है, जिसका बोझ आखिरकार उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है। यूपी सरकार ने कई कंपनियों से महंगी कीमत पर बिजली खरीद के समझौते किए हुए थे, जो 25-25 साल तक के हैं। अब देखना होगा कि योगी आदित्यनाथ इन समझौतों का क्या करते हैं।
बड़े राज्य की दिक्कतें बड़ी
आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 20 करोड़ से ज्यादा लोग दो तरह का जीवन जीते हैं। इनमें करीब 95 फीसदी आबादी ऐसी है जो बिजली के अभाव में जिंदगी बिता रही है और देश के कई हिस्सों में 20 से 24 घंटे की बिजली आपूर्ति की बातें उनके लिए एक सपने की तरह है। लेकिन इसी राज्य में राजनीतिक रसूख वाले पावरफुल लोगों के चहेते ऐसे शहर या जिले रहे हैं जो करीब एक माह पहले तक 24 घंटे बिजली का सुख भोगते आए हैं और वह भी अधिकांश मामलों में बिना कोई बिजली बिल भरे। यही वजह रही है कि इटावा, रामपुर, ओरैया, कन्नौज और आजमगढ़ में बिजली चोरी का स्तर 80 फीसदी से 89 फीसदी रहा है। राजनीति एक ही राज्य के लोगों के लिए कितना तीखा विभाजन कर सकती है, यह इसी का नमूना है। वहीं इसके उलट अधिकांश गांव और कस्बे शाम होते ही अंधेरे में डूब जाते हैं और सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक गतिविधियां थम जाती हैं। इसका असर हर बच्चे से लेकर बड़े व्यक्ति पर पड़ता है जो उन्हें देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले पिछड़ों की कतार में खड़ा करने के साथ ही उनकी प्रतिस्पर्धा की क्षमता को भी कमजोर बना देता है।
अखिलेश सरकार ने भी अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में कुछ इसी तरह का माहौल बनाने की कोशिश की थी। साल 2016-17 तक राज्य में बिजली की उपलब्धता दोगुनी कर 21 हजार मेगावाट करने और पीक आवर डिमांड 23 हजार मेगावट करने का लक्ष्य रखा था, जो कभी पूरा नहीं हो पाया।
यूपी सरकार ने केंद्र सरकार से इसकी शिकायत की है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईसी) के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2016 में यूपी में 11.5 फीसदी बिजली की कमी थी, लेकिन जनवरी 2017 में यह आंकड़ा घटकर सिर्फ 0.8 फीसदी रह गया। जबकि इस दौरान बिजली की मांग व आपूर्ति में खास अंतर नहीं था। दरअसल, विधानसभा चुनाव से पहले 24 के बजाय 18 घंटे के आधार पर बिजली की मांग की गणना की जाने लगी। मांग व आपूर्ति में अंतर को मिटाने का इससे बेहतर शॉर्ट-कट क्या हो सकता था! यूपी में बिजली महकमे का इतिहास ऐसी कलाबाजियों से भरा पड़ा है।
अखिलेश का तंज
योगी सरकार की 24 घंटे बिजली देने की घोषणा पर तंज कसते हुए अखिलेश यादव ट्वीट करते हैं, 'जितनी बिजली पहले से ही मिल रही है, उतने की घोषणा फिर से करना निरर्थक है। जनता की अपेक्षा यथास्थिति की नहीं, इससे अधिक आपूर्ति की है।’ देखा जाए तो योगी आदित्यनाथ को अखिलेश सरकार का अधूरा काम ही पूरा करना है, जिसका पूरा श्रेय उन्हें मिल सकता है। लेकिन राह इतनी भी आसान नहीं है। यूपी सरकार के खजाने की हालत पहले ही खस्ता है। वित्त वर्ष 2015-16 के आखिर में राज्य की पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों का घाटा 60 हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच चुका था। ऊपर से बिजली चोरी और महंगी बिजली खरीद की मार!
यूपी देश के उन गिने-चुने राज्यों में से एक है, जिन्हें अक्सर पावर एक्सचेंज से बिजली खरीदनी पड़ती है। देश के जिन राज्यों में बिजली कनेक्शन से वंचित परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा है, बिहार के बाद यूपी उनमें टॉप पर है। सेंट्रल इलेक्लिट्रसिटी अथॉरिटी(सीईए) के अनुसार, यूपी में 19 फीसदी शहरी और 71 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास बिजली कनेक्शन नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इतने ज्यादा परिवारों के पास कनेक्शन न होना, बड़ी तादाद में अवैध कनेक्शनों का प्रमाण है।
कटियाबाज इलाके
उत्तर प्रदेश के पावर डिस्ट्रीब्यूशन में लाइन लॉस 35 फीसदी से ज्यादा है। वास्तव में यह आंकड़ा 40 फीसदी तक हो सकता है, क्योंकि राज्य के 1.88 करोड़ बिजली उपभोक्ताओं में से 88 लाख के यहां मीटर ही नहीं हैं। सपा शासन के दौरान प्रदेश में कई ऐसे वीआईपी इलाके सामने आए जहां लाइन लॉस 80 फीसदी से ज्यादा है। यानी कुल आपूर्ति की केवल 20 फीसदी बिजली का ही भुगतान हो पाता है। एक तरफ इन इलाकों में बिजली चोरी बहुत अधिक थी, जबकि दूसरी तरफ इन इलाकों में उतनी ही ज्यादा बिजली पहुंची। यह यूपी में बिजली संकट की दुखती रग है। ऐसी जगहों पर 24 घंटे बिजली देने का मतलब है, ज्यादा चोरी। पिछली सरकारों द्वारा पैदा की गई इस बीमारी का इलाज भी योगी सरकार को ही खोजना पड़ेगा।
अंधेरे में डूबे राज्य के जगमग टापू
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिजली को लेकर जिस भेदभाव का मुद्दा उठाया था, उसका एक पहलू ये वीआईपी इलाके भी हैं। रामपुर, इटावा, कन्नौज, आजमगढ़ और ओरैया ऐसे जगमग टापू रहे हैं जहां सपा के कार्यकाल में 24 घंटे बिजली आपूर्ति होती रही। लेकिन यहां बिजली के बिलों का भुगतान इतना कम था कि चोरी जिसे तकनीकी भाषा में एटी एंड सी (एग्रीगेट टेक्नीकल एंड कमर्शियल) लॉस कहते हैं वह 80 फीसदी से 89 फीसदी तक पहुंच गया था। पूरे राज्य में इसका औसत करीब 40 फीसदी है। जाहिर है वीआईपी इलाकों में तो यह सबसे अधिक होना ही था क्योंकि ज्यादातर बिजली तो बिना मीटर या सस्ते दरों वाले कनेक्शनों से ही उपयोग की जा रही थी। अब इसे दस फीसदी पर लाने की चुनौती योगी और उनकी सरकार के लिए एक बड़े पुरस्कार की तरह ही होगी।
इस तरह के लॉस को 2017 तक घटाकर 5 से 10 फीसदी के बीच लाने का लक्ष्य रखा गया था, जो पूरा होना मुश्किल है। एक अनुमान के मुताबिक, यूपी में रोजाना 30 करोड़ यानी साल में करीब 10 हजार करोड़ रुपये की बिजली चोरी होती है। राज्य में 63 लाख उपभोक्ता कटिया डालकर बिजली ले रहे हैं। यह बरसों से चली आ रही समस्या है।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे का कहना है कि 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर बहुत काम और भारी निवेश करने की जरूरत है। सबसे पहले ट्रांसमिशन सिस्टम और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को 24 घंटे बिजली का लोड उठाने लायक बनाना होगा।
बिजली विभाग के कामकाज, खासतौर पर बिजली की दरों के निर्धारण में राजनीतिक हस्तक्षेप ने राज्य में पावर सेक्टर के गणित को गड़बड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इससे बिजली के मामले में बाहरी खरीद और सौदेबाजी को बढ़ावा मिलता चला गया। बाकी रही-सही बिजली की मांग के गलत आकलन, बुनियादी ढांचे के रख-रखाव में लापरवाही और वित्तीय निगरानी की कमी ने पूरी कर दी। दुबे कहते हैं कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के बगैर बिजली की चोरी नहीं रोकी जा सकती।
खरीद-बिक्री का गणित
यूपी में बिजली की खरीद और बिक्री की गणित कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। फिलहाल यूपीपीसीएल सरकारी थर्मल पावर प्लांट से 3.80 रुपये/यूनिट और हाइडल प्लांट से 0.67 रुपये/यूनिट की दर से बिजली खरीद रही है। सेंट्रल सेक्टर से 3.20 रुपये और निजी बिजलीघरों से 4.14 रुपये से लेकर 6-7 रुपये यूनिट के हिसाब से बिजली मिलती है।
साल 2000 में जब राज्य बिजली बोर्ड का विघटन हुआ तो उसका कुल घाटा 453 करोड़ रुपये था, जो मार्च 2016 तक बढ़कर 63 हजार करोड़ रुपये के ऊपर पहुंच चुका है। घाटा बढ़ने के दो ही प्रमुख कारण हैं। पहला, बिजली की चोरी और दूसरा, प्राइवेट कंपनियों से महंगी बिजली खरीद। यह बोझ आखिर में उपभोक्ताओं पर पड़ता है या सरकार के लिए घाटा साबित होता है।
प्राइवेट सेक्टर पर बढ़ती निर्भरता
बिजली के मामले में प्राइवेट सेक्टर पर बढ़ती निर्भरता भी यूपी की मुश्किलें बढ़ा रही है। पिछले 15 वर्षों में सरकारी क्षेत्र में 2,000 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता जुड़ी जबकि प्राइवेट सेक्टर में 6,800 मेगावाट का इजाफा हुआ। प्राइवेट सेक्टर से 7 रुपये तक की ऊंची दरों पर बिजली खरीद वितरण कंपनियों के मुनाफे को निगलती जा रही है। लगातार दोषपूर्ण नीतियों के चलते यूपीपीसीएल को बहुत ऊंचे दामों पर अल्प अवधि के बिजली खरीद सौदे करने पड़े। यह सिलसिला अब भी जारी है। दुबे का आरोप है कि बाजार में सस्ती बिजली उपलब्ध होने के बावजूद प्राइवेट कंपनियों से महंगी बिजली खरीदी जा रही है। जबकि कम लागत में बिजली बनाने वाले सरकारी बिजलीघर ठप किए जा रहे हैं।
संभव है 'पावर फॉर ऑल’
मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह कड़े फैसले लेने शुरू किए हैं, उसे देखते हुए बिजली की व्यवस्था को पटरी पर लाना असंभव नहीं है। यूपी में अभी करीब 1.88 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं जबकि 'पावर फॉर ऑल’ के तहत दो करोड़ घरों को बिजली के दायरे में लाने का लक्ष्य है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो बिजली की मांग डेढ़ लाख मेगावाट के आसपास है जबकि उत्पादन क्षमता ढाई लाख मेगावाट से अधिक है। यानी देश में कुल मिलाकर बिजली की कमी नहीं है। बस सवाल बचता है बिजली खरीदने, इसे घर-घर तक पहुंचाने और बिलों की वसूली करने की क्षमता का। यहीं योगी आदित्यनाथ की असल परीक्षा होनी है।
बिजली चोरी के खिलाफ योगी सरकार का अभियान ज्यादा सुर्खियां भले नहीं बटोर रहा है, लेकिन इससे पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा है। इस अभियान के तहत मेरठ, मुरादाबाद, आगरा, बरेली, कानपुर जैसे शहरों के उन इलाकों में छापेमारी की जा रही है, जहां 50-60 फीसदी लोग कटिया डालकर बिजली चोरी कर रहे हैं। पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अभिषेक प्रकाश बताते हैं कि बिजली चोरी रोकने के लिए व्यापक धरपकड़ अभियान चलाया जा रहा है। इसकी जिम्मेदारी विजिलेंस टीम को दी गई है। 32 बिजली चोरों पर लगभग 30 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।
'पावर फॉर ऑल’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा परिवारों को नए कनेक्शन देने होंगे, जिससे बिजली की खपत बढ़ेगी। अगले दो वर्षों में अगर सभी परिवारों के पास बिजली कनेक्शन हों, तो प्रदेश में कुल 21-22 हजार मेगावाट बिजली की जरूरत होगी। बिजली विभाग के एक आला अधिकारी का मानना है कि अगर बिजली चोरी पर नकेल कसी जाए तो इससे होने वाली बचत से ही भविष्य की मांग पूरी हो जाएगी। इस मामले में योगी सरकार गुजरात मॉडल से सीख लेने और बिजली चोरी रोकने के लिए विशेष थाने बनवाने की बात कह रही है।
छाप छोड़ने की होड़
विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जोर-शोर से 24 घंटे बिजली देने का वादा किया था। हालांकि, इससे पहले अखिलेश सरकार भी 2017 तक शहरों में 24 घंटे और गांवों में 22 घंटे बिजली देने के वादे पर काम शुरू कर चुकी थी। लेकिन अखिलेश यादव मोदी सरकार की 'पावर फॉर ऑल’ योजना पर हस्ताक्षर करने से बचते रहे। इस करार पर हस्ताक्षर नहीं करने वाला यूपी देश का एकमात्र राज्य था। इसी तरह अखिलेश सरकार ने मोदी सरकार की 'उजाला योजना’ को भी नहीं अपनाया, जिसके तहत सस्ते एलईडी बल्ब बेचे जाते हैं।
यूपी के साथ 'पावर फॉर ऑल’ का करार करते हुए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि उजाला योजना के पैकेट पर अखिलेश का फोटो नहीं था, इसलिए उन्होंने इसे नहीं अपनाया। वैसे हकीकत यह है कि अखिलेश के राज में भी रियायती दरों पर एलईडी बल्ब बेचे गए थे। इनके पैकेट पर अखिलेश यादव की तस्वीर भी थी। अखिलेश सरकार ने 2016-17 तक बिजली की उपलब्धता दोगुनी कर 21 हजार मेगावाट तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था, जो हासिल नहीं हो पाया।
तराजू और गल्ला दोनों दूसरे के हाथ में!
उत्तर प्रदेश के बिजली महकमे के अधिकारियों के बीच एक जुमला खूब चलता है कि जब तराजू और गल्ला दोनों दूसरे के हाथ में हैं तो घाटा कैसे खत्म होगा। असल में राज्य में बिजली खपत के आधार पर बिलिंग को बेहतर बनाने के लिए कई बार नीतियां बदलीं। इसके लिए स्पॉट मीटर रीडिंग और बिल वसूलने की प्रक्रिया शुरू की गई। लेकिन विभाग के कर्मचारियों की संख्या नाकाफी देखते हुए यह काम ठेकेदारों को दे दिया गया। यह काम ठेके के कर्मचारी करते हैं। राज्य के बिजली विभाग के एक बड़े अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि हमारे लिए तराजू मीटर है जिससे पता चलता है कि उपभोक्ता ने कितनी बिजली की खपत की और उसके आधार पर बिलिंग होती है। विभाग ने पहले सेल्फ डिक्लेरेशन का मौका उपभोक्ताओं को दिया, जिसमें रेंडम चेकिंग विभाग को करनी थी। लेकिन इसमें खेल होने लगा रेंडम चेकिंग करने वाला अमला ही रीडिंग रीस्टोर करने लगा और इसमें रिश्वतबाजी होने लगी। इसके बाद रीडिंग और बिलिंग का काम संविदा कर्मियों को दे दिया गया।
यहां संविदा कर्मियों ने उपभोक्ताओं को लालच देकर आपस में पैसा बांटने का खेल चालू कर दिया। यानी कुछ पैसा उपभोक्ता को बचा तो कुछ संविदा कर्मियों की जेब में चला गया। थोड़ा बहुत पैसा विभाग को पहुंचा। विभाग की चेकिंग में रीस्टोर रीडिंग पकड़ी जाने लगी। तो बड़े पैमाने पर मीटर हैकिंग होने लगी। राज्य में मुरादाबाद सहित कई शहरों में लोगों ने इसे धंधा बना लिया। आप मीटर लेकर आइए और इसमें रीडिंग बदल दी जाएगी। इस सीधे-सादे मामले को समझने की कोशिश सरकार नहीं कर रही है। इस गड़बड़झाले के चलते ही राज्य में एटी एंड सी लॉस 35 से 40 फीसदी तक पहुंच गया है। जिससे घाटा बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में अगर सरकार इस तराजू और गल्ले के मसले को नहीं सुलझाएगी तो रामपुर, कन्नौज, इटावा और आजमगढ़ की तरह एटी एंड सी लॉस 80 फीसदी को पार कर जाएगा, क्योंकि जितनी आपूर्ति बढ़ेगी उतनी ही चोरी भी बढ़ जाएगी।