श्रीनगर के दिल लाल चौक पर एक लड़की एक साथ दो रूप में दिखती है। पहला रूप उसके गुस्से को दिखा रहा है तो दूसरा उसके खिलाड़ी होने का। वह दाएं हाथ से पुलिसकर्मियों पर पत्थर फेंक रही है और उसके बाएं हाथ में बास्केटबॉल है। सड़क पर हंगामा चल रहा है पर वह अपने हाथ से गेंद को नहीं गिरने देती है, इसे अपने सीने से चिपकाए रखती है। इसके अलावा कई और लड़कियां भी हैं जो पुलिस की बक्चतरबंद गाड़ियों पर पत्थर बरसाती दिख रही हैं।
सड़क पर हालात यह है कि एक छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान घायल होकर पड़ा है। वह जहां पर गिरा हुआ है वह जगह बिलकुल ‘नो मैंस लैंड’ की तरह है। यानी एक तरफ पत्थर बरसाते छात्र हैं तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी। ऐसे में उसके कुछ साथी उसे बचाने के लिए आगे आते हैं। वे आजादी के नारे लगाते और पत्थर फेंकते हुए बढ़ते हैं। थोड़ा संघर्ष होता है और वे पुलिसकर्मियों को कुछ मीटर पीछे करने में सफल हो जाते हैं। इसके बाद बिलकुल सैनिक की तरह वे उस छात्र को युद्धभूमि से बाहर ले जाने में सफल हो जाते हैं।
वहीं दूसरी ओर, सफेद सलवार कुर्ते में एक लड़की वहां आती है। इस लड़की ने मुंह में नीला दुपट्टा बांध रखा है। दुपट्टा बांधने का मकसद आंसू गैस से बचने के अलावा पुलिस से अपनी पहचान छुपाना भी है। यह लड़की एक हाथ में पत्थर और दूसरे में रोड़ा लिए हुए पुलिस की ओर दौड़ पड़ती है। इसके बाद निशाना लगाकर वह इन्हें पुलिस पर फेंकती है। पुलिस सूत्रों के अनुसार इस तरह की विचलित और हैरान करने वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रही हैं। पुलवामा में 15 अप्रैल को डिग्री कॉलेज के छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई के बाद घाटी के शैक्षणिक संस्थान बंद कर दिए गए थे। ये संस्थान सोमवार 24 अप्रैल को फिर से खोले गए। श्रीनगर का श्री प्रताप (एसपी) कॉलेज राज्य के सबसे पुराने कॉलेजों में से एक है। कॉलेज के अधिकारियों के अनुसार इस दिन लाल चौक के निकट एम.ए. रोड पर स्थित कैंपस में सब कुछ सामान्य था। एक ईंट की दीवार एसपी कॉलेज को राज्य की नामी महिला कॉलेज गवर्नमेंट कॉलेज फॉर वूमन से अलग करती है। उस दिन इस दीवार को दोनों कॉलेजों के छात्रों ने तोड़ दिया और गवर्नमेंट गल्र्स हायर सेकेंडरी स्कूल, कोठीबाग की छात्राओं से साथ विरोध में शामिल हो गए। यह स्कूल महिला कॉलेज के ठीक पीछे है। इस प्रदर्शन ने न सिर्फ अधिकारियों को हैरान कर दिया बल्कि कश्मीर के असंतोष को अलग तरह से मीडिया के सामने ला दिया। हंगामा करने वाले छात्रों ने पहले एसपी कॉलेज कैंपस में प्रदर्शन किया। कुछ प्रोफेसरों ने उनसे क्लास करने के लिए कहा तो वे उग्र हो गए। एक प्रोफेसर के अनुसार ‘उन्होंने हमारा मजाक उड़ाया’ और बाहर सड़क पर जाने लगे। इतना ही नहीं महिला कॉलेज की छात्राओं ने तो प्रोफेसरों को प्रदर्शन में भाग लेने तक के लिए कहा। एक प्रोफेसर के अनुसार उन्होंने हमें गुप्पन (पशु) तक कहा। पुलिस सूत्रों के अनुसार करीब 11 बजे छात्रों ने नजदीक की ट्रैफिक पुलिस चौकी पर पत्थर बरसाए। इसके दो घंटे के अंदर लाल चौक तक पूरा एम.ए. रोड उनके कब्जे में था। वे पुलिस पर लगातार पत्थर और रोड़े फेंक रहे थे। यहां के दुकानदारों ने खुद को बचाने के लिए अपनी दुकानें तक बंद कर लीं। पहले घंटे में प्रदर्शन की अगुआई कर रहे चार छात्रों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। इस इलाके में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार इसके बाद रोज पत्थरबाजी करने वालों के अलावा सभी लोग छात्रों के साथ आ गए। इसके बाद बड़ी संक्चया में छात्र एम.ए. रोड पर बख्तरबंद गाडिय़ों पर हमला करने लगे। जब पुलिस ने उन पर पानी की बौछार की और आंसू गैस के गोले छोड़े तब भी छात्र वहां से नहीं हटे। लगातार पत्थरबाजी के बीच दो-तीन छात्र बख्तरबंद गाड़ियों पर डंडा चलाने लगे। पुलिस सूत्रों के अनुसार कुछ प्रदर्शनकारी, जो छात्र नहीं थे, गाड़ी पर चढ़ गए और उसे रोड़े से तोड़ने की कोशिश करने लगे। इस दौरान श्रीनगर के एसएसपी इक्वितयाज इस्माली पार्रे और डीएसपी अरमान फारूक सहित 22 पुलिसकर्मी घायल हो गए।
पुलिस सूत्रों के अनुसार छात्रों ने आजादी के नारे लगाए जबकि कुछ ने पाकिस्तान के समर्थन में भी नारेबाजी की। इन छात्रों के साथ पारंपरिक पत्थरबाज भी शामिल थे जो पुलिस को गालियां देने के अलावा पत्थर भी चला रहे थे। एक पुलिसकर्मी के अनुसार एक व्यक्ति काला झंडा भी लहराते देखा गया। पुलिस काले झंडे को आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) से जोड़ती है जबकि कशमीरी इसे इस्लाम धर्म से जोड़ते हैं।
एक दुकानदार के अनुसार एम.ए. रोड, लाल चौक और रीगल चौक का पॉश इलाका युद्धभूमि में तब्दील हो चुका था। कश्मीर के आतंकवाद के इतिहास में पहला मौका था जब कोठीबाग पुलिस स्टेशन पर पत्थर फेंके गए हों। हालांकि यहां तैनात पुलिस अधिकारी इस विरोध को शांत करने में लगे रहे। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ‘अगर तीन शैक्षणिक संस्थान, जिनकी क्षमता 15,000 की है, में से 300 छात्र पत्थरबाजी में शामिल होते हैं तो यह बड़ा मुद्दा नहीं है।’ इस अधिकारी का मानना है कि प्रदर्शन चाहे कितना भी बड़ा हो उसे वह बिना किसी प्रदर्शनकारी को मारे भी शांत किया जा सकता है। अगर कोई प्रदर्शनकारी मारा जाता है तो विरोध लंबा चलता है और नियंत्रण से बाहर हो जाता है।
पुलिस के अनुसार इस बात की आशंका है कि छात्र फिर से प्रदर्शन कर सकते हैं। इस प्रदर्शन के पीछे अलगाववादी ताकतों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। पुलिस इस बात को लेकर हैरान है कि उन पर पत्थर फेंकने में बड़ी संख्या में कम उम्र की और 20 साल के करीब की छात्राएं कैसे शामिल हैं। एक प्रोफेसर भी कहती हैं कि मैंने भी लड़कियों को पत्थर और रोड़े इकट्ठे करते देखा था। लाल चौक पर अभी जो स्थिति है वह कश्मीर की राजनीतिक स्थिति को बयान करने वाली है। पिछले साल यहां छह महीने तक चले प्रदर्शन में करीब 90 प्रदर्शनकारी सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए थे। महिला कॉलेज की एक छात्रा कहती है, ‘हम सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, हम एक मुद्दा उठाना चाहते हैं। कश्मीर में सब कुछ ठीक नहीं है। हमारे भी कुछ राजनीतिक अरमान हैं। हमारे भाई मारे जा रहे हैं, वे अंधे किए जा रहे हैं। ऐसे में हम कैसे चुप रह सकते हैं?’
एक कोच हूं, मुझे शांत रहना चाहिए था: अफशां आशिक
अभ्यास करने से रोके जाने पर 24 अप्रैल को पत्थर बरसाने वाली कश्मीर की पहली महिला फुटबॉल कोच अफशां आशिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलना चाहती है। वह आउटलुक से कहती है, ‘उस दिन टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर (टीआरसी) ग्राउंड में हम 16 लड़कियां थीं। पुलिस ने हमें रोका, फिर गालियां दीं और एक लड़की को थप्पड़ जड़ दिया। जिससे गुस्सा भडक़ा।’ अफशां आम तौर पर ट्रैक सूट पहनती है और सिर ढंके रहती है पर उस दिन उसने सलवार, लंबा फ्रॉक और द्ब्रलू स्कार्फ पहन रखा था। वह कहती है, ‘हमने पुलिसकर्मियों से गुजारिश की कि वे खिलाड़ी हैं, पत्थर फेंकने वाली नहीं। पर उनकी नहीं सुनी गई।’
पुलिकर्मियों द्वारा तथाकथित तौर पर गाली देने के बाद लड़कियों ने कहा कि वे विरोध करेंगी। अफशां कहती है, ‘मैं एक कोच हूं। मुझे शांत रहना चाहिए पर मैं अपनी लड़कियों को तब नहीं छोड़ सकती थी जब वे विरोध करने लगीं। इसके बाद मैंने उनका नेतृत्व किया।’ इसके बाद उसके दाएं हाथ में पत्थर, बाएं हाथ में ईंट का टुकड़ा, कंधे पर बैग लिए पुलिस की ओर दौड़ती तस्वीर पत्थरबाजी को परिभाषित करने वाली बन गई।
अफशां कहती है, ‘मैं पत्थर फेंकना नहीं चाहती। मैं जानती हूं इससे हमें कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। मगर जब कुछ घटित हो जाता है तो आप अपनी भावनाएं नहीं रोक पाते।’ गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ वूमेन में मनोविज्ञान की छात्रा अफशां कॉलेज की स्टार है। लड़कियां उससे फुटबॉल खेलने की प्रेरणा लेती हैं। लेकिन उस दिन उसने पुलिसकर्मियों पर 50 से ज्यादा पत्थर फेंके। ये पत्थर उसे वहां मौजूद लड़के दे रहे थे। वह कहती है, ‘जब सीआरपीएफ ने हवा में फायरिंग की तो वह वहां मौजूद एकमात्र लड़की थी। वहां कुछ लड़के भी मौजूद थे। जब उसने विरोध प्रदर्शन होते देखा तो वह प्रैक्टिस के लिए तेजी से टीआरसी ग्राउंड जाने लगी। मगर पुलिस ने हमें रोक कर हमारा दिन बर्बाद कर दिया। मैं फुटबॉल पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहती हूं। यहां की राजनीति पर ध्यान नहीं देना चाहती।’ अफशां का मानना है कि कश्मीर की अनिश्चितता से यहां के युवाओं में निराशा है। वह कहती है कि पुलिस ने उसे वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश होने के लिए कहा था पर राज्य की स्पोर्ट्स काउंसिल ने उसे इससे बचा लिया।