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चांदी के तबले वाला संगीतकार

भोला श्रेष्ठ अच्छे संगीतकार और तबलावादक थे, उनके गीतों में अलग ही तरह की मिठास थी
इस फ‌िल्म में भोला श्रेष्ठ ने कर्ण प्र‌िय संगीत द‌िया था

भोला श्रेष्ठ नाम के एक गुणी संगीतकार, जिन्हें आज हम भूल चुके हैं। भोला तबले के भी उस्ताद थे। तबला बजाने की कला से प्रभावित होकर गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने उन्हें इनाम में चांदी का तबला भेंट किया था। भोला श्रेष्ठ का आरंभिक संगीत जीवन कलकत्ता में के.सी. डे और मन्ना डे के साथ बीता। उन्हीं के साथ पांचवें दशक में वह बंबई आए। बंबई में महल फिल्म तक वह खेमचंद प्रकाश के सहायक के रूप में काम करते रहे। दारोगा जी (1949) में वह संगीतकार बुलो सी. रानी के सहायक थे। मुकद्दर (1950) में उन्होंने खेमचंद प्रकाश के साथ मिलकर कुछ गीत कंपोज किए जिनमें पश्चिमी ऑर्केस्ट्रा की छाप लिए ‘जब नैनों में कोई आन बसे’, राजा मेहंदी अली खां लिखित ‘देख गगन में काली घटा क्या कहती है’ और ‘आहें भर-भर के तुझे याद किया करती हूं’ (दोनों नलिनी जयवंत) भी शामिल थे। गीता बाली, सज्जन और बेगम पारा अभिनीत नजरिया (1952) में भोला श्रेष्ठ के संगीत- निर्देशन में कोरस के सुंदर प्रयोग के साथ लोकशैली का ‘ये काली घटा, काली घटा है बादे सबा’ (किशोर,  महिला स्वर और साथी), तबले की सुंदर संगत के साथ ‘लो जी हमें भी हिचकी आई’ (लता), दर्दीले सुर लिए ‘हंसते-हंसते रोना पड़ा’ (लता), किशोर कुमार के मस्ती भरे स्वर में ‘कारें हैं बेकार सभी’ और ‘अजी माना कि आपका जवाब’ और लता के मीठे स्वर और लोच भरी शैली में गवाए मेलोडी प्रधान ‘धूप छैंया में सैंया से नैना’ जैसे गीतों में भोला श्रेष्ठ ने अपनी प्रतिभा का सिक्का जमा दिया था। खेमचंद प्रकाश के सहायक के रूप में किशोर कुमार की प्रतिभा से वह वाकिफ हो चुके थे। भोला श्रेष्ठ के लिए किशोर इतने महत्वपूर्ण थे कि न केवल ‘जिस दिन से मुहब्बत’ जैसे गैर फिल्मी गीत के लिए उन्होंने किशोर का स्वर लिया बल्कि उस दौर में किशोर को याद किया जब संगीतकार सचिन देव बर्मन को छोड़कर किसी और के बारे में लोग कम ही सोचते थे। उन्होंने नजरिया में एकमात्र पुरुष पार्श्व गायक के रूप में किशोर को चुना। किशोर कुमार व्यक्तिगत तौर पर भी उनके अच्छे दोस्त बन चुके थे। इस सिलसिले को जारी रखते हुए फिल्म नौलखा हार (1953) में भी किशोर कुमार की आवाज को उन्होंने शीर्षक गीत ‘मोहे ला दे नौलखा हार’ में अच्छी तरह इस्तेमाल किया।

यह गीत उन दिनों लोकप्रिय रहा। वैसे इस फिल्म का सबसे खूबसूरत गीत आशा भोंसले के स्वर में रिद्म मिठास के सुंदर संगम से युक्त ‘लगता मधुर-मधुर मुझे बंधन’ था। क्लोरोनेट और बांसुरी के सुंदर प्रयोगवाला यह गीत आज पूरी तरह भुला दिया गया है। इस गीत की गिनती आशा भोंसले के आरंभिक दौर के सर्वश्रेष्ठ गीतों में की जा सकती है। इसी फिल्म का मधुबाला झावेरी का गाया मधुर गीत ‘सुन सुन ओ प्यारे हंसा’ भी हिट रहा था।   

भोला श्रेष्ठ ने कम फिल्मों में संगीत दिया। कम अवसर के बावजूद उन्होंने मीठे और कर्णप्रिय गीत दिए। गुलाम हैदर के पाकिस्तान जाने के बाद उनकी अधूरी छोड़ी फिल्म आबशार (1953) के संगीत को पूरा करने का जिम्मा मोहम्मद अशर्फी और भोला श्रेष्ठ को दिया गया और इस फिल्म में भी लता के गाए ‘चले आओ तुम्हें आंसू हमारे याद करते हैं’ तथा ‘मुझको है तुमसे प्यार क्यूं यह न बता सकूंगी मैं’  में मिठास बखूबी झलकती है। ‘मुझको है तुमसे प्यार क्यूं’(पुरुष आवाज में) जगमोहन की गाई प्रसिद्ध रचना ‘दिल को है तुझसे प्यार क्यूं’ के शब्दों की याद दिलाता है। मेलोडी और रिद्म का सुंदर समन्वय भोला श्रेष्ठ की संगीतबद्ध लाखों में एक (1955) फिल्म के ‘मंजिल की तरफ अपनी बढ़ते ही जाएंगे’ (तलत) में भी मिलता है। ‘इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’ से मिलती-जुलती इस धुन को सजाने में पृष्ठभूमि में पियानो और गीत के साथ-साथ बांसुरी के बेहद मनोहारी टुकड़ों का प्रयोग भोला श्रेष्ठ ने किया था। पर भोला श्रेष्ठ की सर्वश्रेष्ठ मेलोडी और कंपोजीशन वाली फिल्म थी, छठे दशक की यह बस्ती यह लोग जो दुर्भाग्य से प्रदर्शित नहीं हो सकी। इस फिल्म में लता के गाए ‘दिल जलेगा तो जमाने में उजाला होगा’  की तर्ज और गायकी बहुत चर्चित हुई थी और यह आज भी दिल को छू लेती है। प्रेम वारबर्टनी लिखित यह खूबसूरत गजल अपने शब्दों से जितना मोहित करती है, उतनी ही तबले के ठेकों के प्रशंसनीय प्रयोग से। मधुबाला और बलराज साहनी अभिनीत इस फिल्म में भोला श्रेष्ठ ने आशा भोंसले से ‘इधर तो देखो’ जैसा क्लब सॉन्ग और आशा तथा तलत से ‘यह तारों की महफिल’ जैसे कर्णप्रिय गाने भी गवाए थे। भोला श्रेष्ठ द्वारा संगीतबद्ध कई फिल्में रिलीज नहीं हो पाईं और उनकी आखिरी रिलीज फिल्में कीमत और तनखा (1956) भी फ्लॉप रहीं। हालांकि तनखा में ‘सो जा दिले नाशाद सो जा’  और ‘टकराई है, जिस दिन से नजर तेरी नजर से’ आशा की सुंदर गायकी का उदाहरण थे। अवसरों की कमी ने भोला श्रेष्ठ को फिल्मों से अलग कर दिया। बाद के सालों में भोला श्रेष्ठ की पुत्री सुषमा श्रेष्ठ ने बाल गायिका के रूप में ‘तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई’ और ‘क्या हुआ तेरा वादा’ जैसे गीतों से खूब नाम कमाया। आज की पार्श्व गायिका पूर्णिमा वही सुषमा श्रेष्ठ हैं। सुषमा श्रेष्ठ का जिस दिन पहला स्टेज प्रोग्राम था (दस वर्ष की उम्र में) उसके एक दिन पहले ही दिल का दौरा पड़ने से भोला श्रेष्ठ का निधन हो गया था। भोला श्रेष्ठ तबले पर एक किताब लिखना चाहते थे पर मृत्यु उनकी यह इच्छा भी अपने साथ ले गई।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं।)

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