मेरे अपने, मेरा गांव मेरा देश, अमर अकबर एंथनी समेत विनोद खन्ना की ऐसी पचासों फिल्में हैं जो मैंने बचपन से देखी थीं। एक अजीब बात आपको बताता हूं, विनोद जी की मृत्यु से तीन दिन पहले मैं अपने टीवी शो ‘इंडियाज असली चैंपियन... है दम’ की गोवा में शूटिंग कर रहा था। इसका एक सीन शूट हो रहा था और मैं बार-बार अपनी टीम से कह रहा था कि मुझे धोती और कुर्ता पहनना है। कैसा? काला कुर्ता और सफेद धोती। सब पूछ रहे थे कि यह फरमाइश अचानक क्यों और मैंने कहा कि पता नहीं क्यों विनोद खन्ना वाला मेरा गांव मेरा देश टाइप लुक बनाने का मन है। शो की शूटिंग में मुझे उस फिल्म वाली उनकी इमेज खूब याद आ रही थी, जिसमें विनोद जी काले कुर्ते-सफेद धोती में माथे पर लाल टीका लगाए नजर आते हैं। हाथों में बंदूक लिए, घोड़े पर सवार। मैंने भी शो में आखिरकार शूटिंग के लिए उन्हीं के अंदाज में कुर्ता और धोती पहना। मैं इस बात से खुश था कि अगले ही दिन खबर आई, विनोद जी का देहांत हो गया। मेरे लिए यह किसी सदमे की तरह था।
विनोद खन्ना से मेरा रिश्ता फिल्मों की वजह से और रस्म अदायगी वाला नहीं था। मेरी जिंदगी के शुरुआती दिनों से वह मेरे साथ थे। वह दक्षिण मुंबई के उसी इलाके में रहते थे, जहां हमारा घर था। मेरे पिता जी का होटल बिजनेस था। तब मैं छोटा-सा लड़का था और उन्हें वहां अक्सर देखा करता था। उनका अपना स्टाइल था। उनकी अपनी पर्सनैलिटी, अपनी बॉडी लैंग्वेज थी। वह सब कुछ बहुत प्रभावित करने वाला था। कुछ बड़ा हुआ तो मेरा एक दोस्त था, जिसका वहीं एक स्टोर था। हम वहां पर हर शाम 6.30-7.00 बजे खड़े हो जाते थे। विनोद खन्ना अपने घर लौटते हुए रोज स्टोर के सामने अपनी कार रोक कर आते थे और उन्हें यह पता होता था कि हम वहां जरूर होंगे। वह हम दोस्तों को देखते थे और ‘हाय’ जरूर बोलते थे। बरसों यह चलता रहा। जब मुझे उनके साथ पहली बार फिल्म में काम करने का मौका मिला तो मैंने उन्हें वह स्टोर वाले दिन बताए। वह चौंक गए। उन्होंने कहा, ‘अच्छा तो आप ही वह लड़के हो। मुझे आज भी उनकी याद है, मैं उन्हें हाय बोला करता था, वहां दो-तीन लडक़े रहते थे।’ मैंने उनसे कहा कि हां, मुझे आपको और जैकी श्रॉफ को देख कर लगा कि फिल्मों में आना चाहिए। विनोद खन्ना बहुत स्टाइलिश और सॉफ्ट स्पोकन इंसान थे। मैं उनके चुनाव कैंपेन के लिए गुरदासपुर (पंजाब) भी गया था, दूसरी बार जब वह जीते थे। उन्हें लोगों का जो प्यार मिला, वैसा मैंने कम देखा है। उन्होंने वहां जो काम किया था और जिस तरह से लोगों के साथ वहां लगतार रहते, उठते-बैठते, खाना खाते, दुनिया भर की बातें करते थे वह अपने आप में दुर्लभ है। मैंने उनके साथ अपने जीवन के कई खूबसूरत पल गुजारे हैं।
अभी कुछ साल पहले 2014 में हमने साथ में एक फिल्म की थी, कोयलांचल (निर्माता-निर्देशक : आशु त्रिखा)। फिल्म की लोकेशन और दृश्यों की सिचुएशन बहुत मुश्किल थी। हम इसमें अक्सर रात में खदानों में शूटिंग किया करते थे। जब तापमान शून्य डिग्री या माइनस के आस-पास रहता था। विनोद खन्ना ऐसे नहीं थे कि उनका सीन खत्म हो गया और वह चले गए। वह सुबह पांच बजे हमारा शूट खत्म होने तक रहते थे और खास तौर पर देखते कि मेरे सीन इमोशन और डायलॉग के स्तर पर सही तथा बेहतर हो सकें। फिल्म में वह खतरनाक विलेन, भू माफिया सूर्य भान सिंह के रोल में थे और मैं उनसे टकराने वाला जिला कलेक्टर निशीथ कुमार बना था। इससे पहले एक फिल्म कर्मवीर की शूटिंग के दौरान हमने परिवार के तौर पर साथ में लंबा वक्त गुजारा था। तब उनका बेटा साक्षी और मेरी बिटिया अथिया छोटे बच्चे थे। तब हम लोग दक्षिण मुंबई में नजदीक ही रहा करते थे और शूटिंग पर जाने के लिए दो-तीन घंटे साथ सफर करते थे।
विनोद जी और मेरी एक अनटाइटल्ड फिल्म थी। इसमें वह मेरे पिता का रोल कर रहे थे और उन्हें कैंसर हो जाता है। यह खबर मिलने के बाद मैं पहली बार उनसे मिलने जाता हूं। वह बहुत लंबा सीन था। मुझे उन्हें देख कर पहले इमोशनल होना था और फिर डायलॉग बोलने थे। जबकि सीन में वह मुझे देखते ही बेहद भावुक हो गए और गले लगाने के कुछ सेकंड बाद वह सचमुच रो रहे थे और मैं भी रो रहा था! मुझे लगता है कि वह मेरे कॅरिअर का एक बेहतरीन सीन था। आप समझ सकते हैं कि मेरा उनसे कितना गहरा संबंध था। यह दुर्भाग्य है कि वह फिल्म पांच-छह दिन बनने के बाद बंद हो गई। उनके बेटों, अक्षय और साक्षी से भी मैं परिवार की तरह जुड़ा हूं।
(लेखक प्रसिद्ध अभिनेता हैं और विनोद खन्ना के साथ कोयलांचल फिल्म में काम कर चुके हैं)