आईपीएल और टी-20 क्रिकेट की निरंतर बढ़ती कामयाबी से टेस्ट क्रिकेट पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। अब क्रिकेट को चलाने वाले लोग टेस्ट क्रिकेट व 50-50 ओवरों के मैचों की कटौती करके टी-20 पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की बात करने लगे हैं। यह निहायत ही चिंताजनक बात है कि परंपरागत क्रिकेट यूं लगातार असहाय होता जा रहा है। क्रिकेट खेलने वाले विभिन्न देश अपने यहां आईपीएल की तर्ज पर टी-20 क्रिकेट प्रतिस्पर्धा शुरू करने की कवायद कर रहे हैं। विश्व में क्रिकेट चलाने वाली संस्था इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) भी अब मानने लगी है कि इससे टेस्ट क्रिकेट को ठेस लगेगी और कुल आठ वर्षों में यह परंपरागत संस्करण रसातल में चला जाएगा।
कहते हैं कि अर्थशास्त्र आदमी को चलाता है। टी-20 क्रिकेट से उपजने वाले धन ने दुनियाभर के प्रभावशाली लोगों में हलचल पैदा कर दी है। इंडियन प्रीमियर लीग की चौंकाने वाली कामयाबी ने बाकी देशों को भी क्रिकेट का दोहन करने के लिए पे्ररित किया है। ऑस्ट्रेलिया में पहले ही 'बिगबैश’ टी-20 क्रिकेट लीग कामयाबी के नए झंडे गाड़ रही है। अब तो परंपराओं को मानने और उसकी पूजा करने वाले देश इंग्लैंड में भी टी-20 लीग की मांग हो रही है। रात्रिकालीन स्पर्धा यूं भी कृत्रिम दूधिया रोशनी के प्रकाश के कारण रोमांचकारी होती है, तिस पर ग्लैमर का तड़का इसे और भी लोकप्रिय बना रहा है।
पर जो क्रिकेट की परंपरा और उसकी रूह से प्यार करते हैं, उन्हें यह सब बड़ा नागवार लग रहा है। वे जो टेस्ट क्रिकेट को ही असली क्रिकेट मानते हैं, उन्हें क्रिकेट खेल का यह अवमूल्यन रास नहीं आ रहा है। उन्हें लग रहा है कि क्रिकेट का टी-20 खेल पैसों के तराजू पर मूल्यवान हो रहा है, पर यह खेल की तकनीकी बारीकियों व मूल संस्कृति पर करारा धब्बा है। पर आज की युवा पीढ़ी में धैर्य नहीं, वे जल्दी से आगे बढ़ना चाहते हैं। भारत के भी कई पुराने खिलाड़ी पहले क्रिकेट के इस संक्षिप्त संस्करण के खिलाफ थे। अब इसकी चमक-दमक, व बरसते-खनकते पैसे व ग्लैमर के तड़के ने उनके दृष्टिकोण को बदल दिया है। वे भी अब टी-20 की हिमायत करने लगे हैं। आपको याद होगा कि जब टी-20 विश्व कप क्रिकेट स्पर्धा की शुरुआत हो रही थी, तब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने उसका विरोध किया था। पर जब पहला टी-20 विश्व कप ही भारत जीत गया, तो सारे समीकरण बदल गए।
विश्व क्रिकेट में पैदा होने वाले कुल धन का 75 प्रतिशत धन भारत से ही पैदा होता है। ऐसे में अगर भारत को विश्व क्रिकेट का लीडर कहा जाए, तो इसमें गलत क्या है? भारत के शशांक मनोहर विश्व क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी के अध्यक्ष हैं। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवासन से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की मदद से ही शशांक मनोहर आईसीसी के अध्यक्ष बने। पर आते ही उन्होंने बीसीसीआई के आर्थिक पर कतरने शुरू कर दिए। पहले ऑस्ट्रेलिया, भारत व इंग्लैंड को विशिष्ट सदस्य का दर्जा मिला हुआ था। एकत्रित धन में से भारत को 593 मिलियन डॉलर मिलते थे। इसका एक अनुबंध भी हुआ था। पर शशांक मनोहर ने अपने प्रभाव से भारत का विशिष्ट सदस्य का दर्जा निरस्त करवा कर सामान्य सदस्य का दर्जा करवा दिया। फलस्वरूप भारत को अब 393 मिलियन डॉलर ही मिलने हैं।
बीसीसीआई ने इसका विरोध किया, पर चुनाव में उसको मुंह की खानी पड़ी। तब बीसीसीआई में इस बात की भी सुगबुगाहट होने लगी कि चैंपियंस ट्रॉफी में टीम न भेज कर दबाव डाला जाए। पर लोढ़ा समिति की सिफारिशों व सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद भारत को इसमें भाग लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यह भी आश्चर्यजनक है कि क्रिकेटीय आचरण की रक्षा करने वाली आईसीसी अब टेस्ट क्रिकेट के मुकाबले टी-20 क्रिकेट की वकालत कर रही है। आज जब कीर्तिमानों की बातें होती हैं, तो टेस्ट क्रिकेट के कीर्तिमान ही ज्यादा अहमियत रखते हैं। टेस्ट क्रिकेट ही खिलाड़ी के धैर्य, एकाग्रता, तकनीक व दिमागी दृढ़ता की सही परीक्षा लेता है। सचिन तेंदुलकर या डॉन ब्रेडमैन अगर विश्व इतिहास में प्रसिद्ध हुए हैं तो टेस्ट क्रिकेट के कारण। सचिन के टेस्ट क्रिकेट के कीर्तिमानों के कारण ही उन्हें 'भारत रत्न’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
एक मांग यह भी उठ रही है कि टेस्ट क्रिकेट को 90 ओवरों की 2-2 पारियों में बांटा जाए और चार दिनों में ही टेस्ट मैच समाप्त किया जाए। दुनियाभर में बढ़ती प्रतिस्पर्धा व वक्त की कमी को ध्यान में रखकर ऐसा कहा गया होगा। टेस्ट क्रिकेट को रोमांचकारी बनाने के लिए 'फ्लडलाइट’ में रात को क्रिकेट खिलवाने की बात भी कही गई। लाल की जगह गुलाबी रंग की गेंद के इस्तेमाल का प्रयोग भी किया गया। पर टेस्ट क्रिकेट के प्रति दर्शकों के रुझान में कमी ने टेस्ट क्रिकेट पर संकट ला खड़ा किया है। यह सही है कि टेस्ट क्रिकेट चूंकि दो देशों के बीच होता है, तो देशप्रेम की भावना भी दर्शकों में छा जाती है। अपने-अपने देश के झंडे लहराते हुए व समर्थन में नारे लगाते हुए दर्शक वातावरण के रोमांच में वृद्धि करते हैं। पर धैर्य आज की पीढ़ी में खत्म होता जा रहा है। पांच दिन खेलने के बाद भी जब परिणाम शुष्क 'ड्रा’ के रूप में मिलता है, तो युवा दर्शकों को बड़ी निराशा होती है। इस नियम में भी परिवर्तन किया जा सकता है। बनाए गए रन व खोए हुए विकेट देखकर किसी एक टीम को विजयी घोषित किया जा सकता है। इससे अनिर्णय की स्थिति से छुटकारा मिलेगा और खेल में रोमांच व रोचकता जारी रहेगी।
रात में टेस्ट क्रिकेट खिलवाना तो ठीक नहीं है। क्योंकि पुराने खिलाड़ी जब नए खिलाडिय़ों को प्रेरित करते हैं तो कहते हैं, ''धूप में मेहनत करके अपने खेल को निखारो।’’ अगर रात्रिकालीन क्रिकेट होगा, तो क्या यह कहेंगे, ''चांदनी में मेहनत करके अपने खेल को निखारो।’’ इसीलिए गुलाबी गेंद का इस्तेमाल भी उचित नहीं है। जब परंपरा व संस्कृति के नाम पर टेस्ट क्रिकेट को जिंदा व लोकप्रिय बनाए रखने की कवायद हो रही है, तो फिर पुराने रीति-रिवाजों के साथ छेड़छाड़ तो उचित नहीं कही जा सकती।