जेएनयू में एमफिल और पीएचडी की सीटें घटाने के विवाद पर मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की अपनी दलीलें हैं लेकिन वह कहते हैं कि उनके लिए देश में उच्च शिक्षा और शोध को बढ़ावा देना पहली प्राथमिकता है। केंद्र में एनडीए सरकार के तीन साल पूरे करने पर उन्होंने आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह और सहायक संपादक आकांक्षा पारे काशिव के साथ बातचीत में शिक्षा जगत की खामियों, सुधार के कदमों और शिक्षा के रोजगार से रिश्ते पर विस्तार से चर्चा की। कुछ अंश:
आपके मंत्रालय का विवादों से नाता नहीं टूटता। एमफिल, पीएचडी की सीटें घटाने का मामला गंभीर होग या है।इसे कैसे जायज ठहराएंगे?
देश में आठ सौ विश्वविद्यालय हैं। सात सौ निन्यानबे विश्वविद्यालय यूजीसी के नियमों से चलते हैं। एक विश्वविद्यालय (जेएनयू) में ऐसी पद्धति कैसे आ गई कि वहां नियम नहीं चलता। कोर्ट ने भी कहा कि यूजीसी के नियम फॉलो करने पड़ेंगे। नियम के अनुसार एक प्रोफेसर आठ छात्रों को गाइड कर सकता है, लेकिन वहां चालीस को कर रहा है। पीएचडी गाइडेंस क्लास रूम का मामला नहीं होता। हर शोधार्थी को अलग से गाइड करने की दरकार होती है। यानी यह तरीका तो सिस्टम को हाईजैक करने जैसा था। सीटों में कटौती गलत तरीके से बढ़ी सीटों की वजह से दिखाई दे रही है। हम प्रोफेसरों की संख्या बढ़ा रहे हैं। उस विश्वविद्यालय में दस साल से दलित, आदिवासी और दिव्यांग प्राध्यापकों की भर्ती नहीं हुई है। इन श्रेणियों में 300 नए प्राध्यापक आएंगे। तब सीटों में खुद-ब-खुद इजाफा हो जाएगा।
जब इतनी अनियमितताएं हैं तो जेएनयू विश्वविद्यालय रैंकिंग में ऊपर कैसे आ जाता है?
यह बहुत अच्छा सवाल है। मैंने वहां भी भाषण में कहा था कि जेएनयू को पुरस्कार, 'अफजल गुरु तेरे कातिल जिंदा हैं’ नारे पर नहीं मिला। यह कैंसर की दवाई पर शोध, पोल्यूशन पर नया काम करने, बॉयोटेक्नोलॉजी पर नई खोज के लिए मिला है। लेकिन ऐसी खबरें बाहर नहीं आती हैं। मात्र सात-आठ सौ छात्रों को पूरा विश्वविद्यालय समझना गलत है।
यूजीसी की कार्य-प्रणाली में बदलाव की जरूरत है?
अब यूजीसी नियमित रूप से देखरेख का काम करेगा। जो अच्छे कॉलेज होंगे, उन्हें ज्यादा स्वतंत्रता मिलेगी। जो कॉलेज अच्छे नहीं हैं, उनके लिए अलग नियम होंगे। समझिए कि ए, बी, सी जैसी श्रेणी बनाई जाएगी। ए के लिए कम नियम, अनुशासन ज्यादा आजादी, बी के लिए आधा-आधा, सी के लिए आजादी कम नियम-अनुशासन ज्यादा।
'नैक’ हर साल कॉलेजों-विश्वविद्यालयों को रैंकिंग देता है। इसके आधार पर संस्थान फीस बढ़ाते हैं, खुद का विज्ञापन करते हैं।यह सरकारी संस्था भी नहीं है, इसके बारे में क्या सोचते हैं?
'नैक’ ऑटोनॉमस बॉडी है। यह संस्था शिक्षा संस्थानों को रैंक देती है। इसे बने दस साल हो गए हैं और यह अब स्थापित हो गई है। मैं स्वायत्तता में विश्वास करता हूं। यही वजह है कि हमने आईआईएम को पूरी तरह स्वायत्त बना दिया है। इसके लिए बिल लाए हैं। 'नैक’ की तरह ही एक एनबीए है, वह कोर्स को एक्रेडेट करता है। एनआईआरएफ है जो बताती है कि इतने संस्थानों में आपका नंबर कौन-सा है। मेरा शोध और अनुसंधान पर जोर है। हमने तय किया है कि तीन साल में बीस हजार करोड़ रुपये अच्छी शोध संस्थाओं को देंगे। विश्व स्तर की सुविधाएं बनाने के लिए यह पैसा होगा। हमने ज्ञान कोर्स शुरू किया है। विदेश से प्रोफेसर आते हैं। दो या तीन सप्ताह में कोर्स पूरा करते हैं। लेक्चर देते है, रीडिंग मैटीरियल देते हैं। परीक्षा लेते हैं। रही बात फीस की तो सरकारी एजुकेशन में विचित्र स्थिति है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी 38 हैं। उनमें दो लाख छात्र हैं। हर छात्र पर ढाई लाख रुपये साल का खर्च होता है लेकिन वे फीस के रूप में देते हैं 15 रुपये महीना। अब हमने अनुसूचित जाति, जनजाति, दिव्यांग, बीपीएल को फीस से पूरी तरह छूट दे रखी है। नौ लाख से कम आय वाले परिवारों के बच्चों को एजुकेशन लोन। तीन साल में 24 सौ करोड़ इंट्रेस्ट सब्सिडी दी है। गरीब भी पढें, गुणी भी पढ़ें। मेरा प्रयास यही है कि उच्च शिक्षा की क्वॉलिटी सुधरे।
भगवाकरण के आरोप भी गाहे-बगाहे उछलते रहते हैं?
हमने ऐसा कोई बदलाव नहीं किया है। हम कोई भाषा, विचार या किताब थोपना नहीं चाहते।
बीच कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बदलाव की जरूरत क्यो महसूस हुई थी? क्या यह मंत्रालय को विवाद से बाहर लाने की कवायद थी?
मंत्रिमंडल में किसको क्या काम देना है, यह प्रधानमंत्री जी तय करते हैं। वह अपने हिसाब से बदलाव करते हैं। मुझे लगता है, इस बदलाव का कारण मेरा पुराना अनुभव रहा होगा। मैं छात्र आंदोलन से जुड़ा रहा हूं। मैंने महाराष्ट्र विधानपरिषद में 12 साल तक शिक्षा का ही प्रतिनिधित्व किया है। मैं योजना आयोग में भी सदस्य के नाते एचआरडी कमेटी में था। यही वजह है कि मुझे यहां दिक्कत नहीं हुई। मेरा रास्ता संवाद का है। कोई प्रदर्शन करने आता है तो मैं कहता हूं, अंदर आकर बात करो। संवाद मेरी ताकत है।
शिक्षा को लेकर आपकी क्या चिंता है?
मेरी चिंता गुणवत्ता है। मैं देहात में पढ़ा हूं। मां प्राइमरी टीचर रही हैं। सर्वे में हमने पाया कि बड़ी कक्षा के बच्चे छोटी कक्षा के सवाल हल नहीं कर पाते। गुणवत्ता सुधारने के लिए लर्निंग आउटकम जरूरी है। पहले होता था कि जिस छात्र ने पहली कक्षा में प्रवेश लिया, वह नौवीं तक जाएगा ही, चाहे उसे कुछ आए या न आए। इससे छात्रों को नुकसान हुआ। हमने इस लर्निंग आउटकम को डिफाइन किया। अब हर क्लास के लिए योग्यता का पैमाना तैयार किया गया है। शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को इसकी हैंडबुक दी गई है।
आपकी सरकार के कार्यकाल में दसवीं बोर्ड परीक्षाओं की वापसी हुई है। इससे छात्रों पर दबाव नहीं बढ़ेगा?
इस निर्णय को नब्बे प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला है। किसी ने इसका विरोध नहीं किया। दबाव ग्रेडिंग से भी आता है। लेकिन एक स्पर्धा तो होनी ही चाहिए।
पांचवीं से आठवीं कक्षा की पढ़ाई में भी कुछ बदलाव करने जा रहे हैं?
हां, हमने पांचवीं से आठवीं तक बच्चों को अगली कक्षा में जाने से रोकने का अधिकार राज्य को देने का प्रस्ताव किया है। उसकी दो शर्तें हैं। पहली परीक्षा मार्च में होगी। छात्र उसमें फेल हुआ तो जून में दोबारा परीक्षा होगी। जून में यदि वह पास न हो सका तो उसे अगली कक्षा में रोकने का अधिकार राज्यों के पास रहेगा। अब यह बिल संसद में आएगा।
अध्यापकों की गुणवत्ता सुधरे बगैर यह कैसे संभव है?
अब कोई नया बीएड कॉलेज नहीं खोला जाएगा। पहले से चल रहे कॉलेजों से हमने उनकी गुणवत्ता और सुविधाओं के बारे में एफिडेविट मांगा है, वीडियोग्राफी मांगी है। जिन कॉलेजों का एफीडेविट नहीं आएगा उनकी मान्यता समाप्त कर देंगे। कुछ सरप्राइज विजिट भी करेंगे। बीएड करने वालों को सरकारी स्कूलों में जाकर ही कक्षा लेनी होगी। छात्रों को भी फीडबैक फॉर्म दिया जाएगा। अब बिना मेहनत बीएड करना आसान नहीं होगा। टीचर इंटीग्रेटेड कोर्स भी ला रहे हैं। बारहवीं के बाद चार साल में बीए-बीएड, बीएससी-बीएड, बीकॉम-बीएड का कोर्स किया जा सकेगा।
अमूमन मंत्री फ्लाईओवर, सड़कों और इंफ्रास्ट्रक्चर की बातें तो खूब करते हैं, लेकिन शिक्षा और रोजगार पर कम चर्चा होती है।ऐसा क्यों?
मैं करता हूं। मैंने उद्योग और शिक्षा जगत के बीच संपर्क स्थापित किया। एक योजना चला रहे हैं, उच्चतर आविष्कारी योजना। उद्योग जगत और छात्रों के बीच संपर्क हुआ तो उद्योग जगत की ओर से 200 से ज्यादा समस्याएं बताई गईं। कई छात्र इस पर काम कर रहे हैं। फंडिंग सरकार और इंडस्ट्री मिलकर कर रही हैं। इंप्रिंट नाम से कार्यक्रम शुरू किया है। इसके लिए 290 शोध फाइनल किए हैं। तीन हजार दूर-दराज के कॉलेज जो अच्छा काम कर रहे हैं, उन्हें शोध के लिए मदद कर रहे हैं। टेक्निकल एजुकेशन के लिए बीमारू राज्य, हिल स्टेट और अंडमान को 2600 करोड़ रुपये देंगे।