ज्यादातर मां-बाप आज भी अपने बच्चे को इंजीनियर बनाने का सपना देखते हैं। सबसे पसंदीदा पेशों में शुमार होने के बावजूद इंजीनियरिंग शिक्षा आज भारी संकट के दौर से गुजर रही है। पिछले कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग कॉलेजों की तरफ छात्रों का रुझान कम हुआ है, जिसकी वजह से बहुत से कॉलेज बंद होने के कगार पर हैं या फिर दाखिलों के लिए छात्रों के पीछे दौड़ रहे हैं। देश के टॉप 200-300 कॉलेजों में अब भी दाखिले की मारामारी है, लेकिन बाकी कॉलेजों की हालत खराब है। पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में बहुत-से कॉलेज अपनी सीटें भरने के लिए जूझते रहे और ताज्जुब की बात नहीं है कि इनमें से बहुत से कॉलेजों ने बंद होने के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) से गुहार लगाई है। पिछले साल 200 से ज्यादा कॉलेज बंद हो चुके हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात है कि पिछले दो वर्षों में 55 कॉलेजों में 100 से भी कम छात्र दाखिल हुए, जबकि वहां तीन हजार से ज्यादा सीटें थीं। इस साल छात्रों की कमी के चलते करीब 30 कॉलेज बंद होने के लिए आवेदन कर चुके हैं जबकि बहुत-से संस्थानों ने सीटें कम करने की अर्जी लगाई है। कई कॉलेज ऐसे कोर्स बंद कर रहे हैं, जिनमें कोई एडिमशन नहीं हुआ है।
छह-सात साल पहले जब तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कुकुरमुत्ते की तरह इंजीनियरिंग कॉलेज उग रहे थे, तब से आज तक हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। इंजीनियरिंग के साथ-साथ इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी छात्रों का भरोसा कम हुआ है। इसका कारण बाजार में इंजीनियरिंग जॉब्स की कमी तो है ही, लेकिन यह भी सच है कि कॉलेजों से निकलने वाले बहुत कम इंजीनियर बाजार में उपलब्ध नौकरियां पाने के काबिल हैं। जानकार मानते हैं कि कॉलेजों से निकलने वाले सिर्फ 24 फीसदी इंजीनियर ही वास्तव में रोजगार के लायक हैं। निश्चित तौर, इस स्थिति का असर देश के टॉप 200-300 कॉलेजों में दाखिले की होड़ पर पड़ेगा। कॉम्पीटिशन बढ़ेगा और आने वाले वर्षों में उम्दा कॉलेजों में प्रवेश मुश्किल होता जाएगा।
इस साल एक बड़ा बदलाव नीट परीक्षा भी रही। इस प्रवेश परीक्षा की प्रक्रिया और सुरक्षा के नाम पर छात्रों की तलाशी के तौर-तरीकों पर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं। गुजरात, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में प्रश्नपत्रों को लेकर समस्याएं रही हैं। वारंगल में दोबारा परीक्षा करानी पड़ी। पूरी परीक्षा पर भी दोबारा कराए जाने का खतरा मंडरा रहा है। एक संयुक्त प्रवेश परीक्षा के तौर पर नीट से बहुत उम्मीदें थीं। सरकार आईआईटी-जेईई को सम्मिलित करते हुए इंजीनियरिंग के लिए भी इसी तरह की प्रवेश परीक्षा कराने पर विचार कर रही है। नीट की गड़बड़ियों को देखते हुए इस बारे में दोबारा सोचना पड़ सकता है।
प्रवेश परीक्षा को लेकर जारी असमंजस के बीच देश के बेस्ट प्रोफेशनल कॉलेजों की आउटलुक रैंकिंग (जो दृष्टि स्ट्रैटेजिक रिसर्च सर्विसेज की भागीदारी में हुई) कॉलेजों में दाखिले की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले साल की तरह देश के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग कॉलेजों की फेहरिस्त में कमोबेश वही संस्थान टॉप पर हैं, जबकि मध्यम स्तर के संस्थानों में काफी उलट-फेर दिख रहा है। इनमें कई नए कॉलेजों ने जगह बनाई है। मेडिकल कॉलेजों में भी यही ट्रेंड नजर आया, जहां टॉप के कॉलेज अमूमन अपनी जगह बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।
इस सर्वे की नौ शाखाओं में कॉलेजों की बढ़ती भागीदारी बहुत उत्साहजनक है। इसी के चलते हमने मेडिकल, डेंटल और लॉ रैंकिंग में टॉप 20 के बजाय टॉप 25 संस्थानों को शामिल किया। इसी तरह आर्किटेक्चर और फैशन डिजाइन में टॉप 10 की जगह टॉप 15 की रैंकिंग दी गई है। इससे रैंकिंग की उपयोगिता और दायरा बढ़ेगा और छात्रों को सोच-समझकर निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
देश के उम्दा प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग के अलावा हम उच्च शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर विशेषज्ञों के लेख और फिल्म मेकर और शेफ बनने की राह आसान करने वाले संस्थानों पर विशेष जानकारी दे रहे हैं। उम्मीद है कि प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिग और उच्च शिक्षा से जुड़ी सामग्री छात्रों और अभिभावकों के लिए उपयोगी साबित होगी।
रैकिंग पद्धति 2017 आउटलुक - दृष्टि सर्वे
भारत के बेस्ट प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग तैयार करने की प्रक्रिया संस्थानों की एक विस्तृत सूची और गत वर्षों के दौरान रैंकिंग में हिस्सा ले चुके संस्थानों के निदेशकों से संपर्क साधने के साथ हुई। इस साल सभी स्ट्रीम्स में नए संस्थानों को मौका देने और संस्थानों के संचालकों के रुझान को देखते हुए ई-मेल, टेलीफोन और फील्ड विजिट के जरिए हमने भागीदारी बढ़ाने के भरसक प्रयास किए। अधिकांश स्ट्रीम्स के लिए तय नियम के मुताबिक सरकारी मान्यता या संबद्धता वाले सिर्फ ऐसे संस्थानों पर गौर किया गया, जिनके कम से कम तीन बैच निकल चुके हैं।
इंजीनियरिंग, मेडिकल, आर्किटेक्चर, डेंटल, लॉ, सोशल वर्क, होटल मैनेजमेंट, फैशन और मास कम्युनिकेशन समेत 9 स्ट्रीम्स में देश भर के कुल 1900 कॉलेजों को विस्तृत वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली भेजी गई। पिछले साल की तरह इस बार भी हमने कॉलेजों को आउटलुक की वेबसाइट से प्रश्नावली डाउनलोड करने को कहा। इस तरह कॉलेज रैंकिंग की यह प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन रही।
इस वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली में कॉलेजों को पांच प्रमुख पैरामीटर-चयन प्रक्रिया, अकादमिक स्तर, व्यक्तित्व एवं विकास, प्लेसमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर की कसौटी पर परखा गया। पिछले साल की रैंकिंग से तुलना की जा सके इसलिए इन मापदंडों को इस बार भी समान महत्व दिया गया। किस पैरामीटर और सब-पैरामीटर को कितना महत्व देना है यह हमने साल 2010 में एक अनुभवी
एक्सपर्ट पैनल के साथ विचार-विमर्श कर तय किया था।
इस प्रश्नावली के अलावा दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलूरू, हैदराबाद, इलाहाबाद, इंदौर, भोपाल, कोच्चि, चंडीगढ़, जयपुर, लखनऊ, कोयंबटूर, पटना और भुवनेश्वर में छात्रों, शिक्षकों, नियोक्ताओं और अपने-अपने क्षेत्र में कार्यरत डॉक्टरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, फैशन डिजाइनरों, इंजीनियरों, वकीलों, आर्किटेक्ट्स और होटल मैनेजमेंट से जुड़े प्रोफेशनल्स के बीच अलग से एक पर्सेप्चुअल सर्वे भी कराया गया।
इस साल विभिन्न स्ट्रीम्स के करीब 350 संस्थानों ने रैंकिंग प्रक्रिया में हिस्सा लिया, जिनमें से 172 इंजीनियरिंग कालेज हैं।
पर्सेप्चुअल सर्वे के तहत हमने प्रश्नावली के आधार पर 8,000 से अधिक इंटरव्यू किए, जिनमें अनुभवी शिक्षक, छात्र, नियोक्ता और विभिन्न क्षेत्रों के प्रोफेशनल्स शामिल थे। जवाब देने वालों की यह संख्या पिछले साल के मुकाबले 266 फीसदी ज्यादा है। इस बढ़ी भागीदारी की वजह यह रही कि हमने हरेक संस्थान को उसके शिक्षकों, छात्रों, पूर्व छात्रों और नियोक्ताओं को ऑनलाइन सर्वे में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। ज्यादा से ज्यादा भागीदारी बढ़ाने के लिए कई बार फॉलो-अप किया।
अंतिम चरण में एक गहन ऑडिट हुआ, जिसके तहत 15 शहरों के 160 कॉलेजों का दौरा किया गया। सभी स्ट्रीम्स के कॉलेजों के ऑब्जेक्टिव और पर्सेप्चुअल सर्वे में स्कोर को जोडक़र फाइनल स्कोर निकाला गया, जिसके आधार पर फाइनल रैंकिंग तैयार की गई है।
(दृष्टि रिसर्च टीम में ए.के. बालाजी प्रसाद, नीतीश प्रताप सिंह और जिग्नेश बाफना शामिल थे)