भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों को बेहतरीन आर एंड डी के साथ विश्वस्तरीय पहचान बनाने की कोशिश करनी चाहिए। उन्हें भी अपने यहां से नोबेल पुरस्कार पाने वाली और विश्व स्तर की प्रतिभाओं को पैदा करना होगा। उन्हें देश में मजबूत मैन्यूफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र के विकास में मददगार बनना चाहिए। नए शोध, नवाचार और कुल प्रदर्शन को ध्यान में रखकर इस बारआउटलुक ने 'दृष्टि’ के सहयोग से प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग तैयार की है।
इस बार की रैंकिंग में बहुत सारे नए इंजीनियरिंग कॉलेजों को भी शामिल किया गया है। साथ ही दूसरी स्ट्रीम्स से भी भागीदारी को बढ़ाया गया है। इसके लिए कॉलेजों से सत्यापित डाटा मंगाया गया और फिर कुछ कॉलेजों में जाकर डाटा की सच्चाई भी परखी गई। यह अब तक का सबसे बड़ा अवधारणात्मक सर्वेक्षण है क्योंकि इसमें करीब 7000 छात्रों, पेशेवरों, प्रोफेसरों और नियोक्ताओं को शामिल किया गया है। ऐसे में, इस सर्वे को आज तक का सबसे मजबूत सर्वे कहा जा सकता है। इसलिए इस का इस्तेमाल संस्थागत सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने में किया जाना चाहिए। हालांकि केवल रैंकिंग के जरिए ही संस्थागत सुधार नहीं होता है। प्रमुख संस्थानों में नवोन्मेष और विकास की क्या स्थिति है, यह हमारे सामाजिक और आर्थिक हितों को कितना प्रभावित कर रहा है, यह समाचार पत्रों को देखते ही पता चल जाता है। आज भी हम ज्यादातर तकनीकों का आयात करते हैं चाहे वह डिफेंस हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक्स, पावर, या मैटीरियल जैसे सेक्टर।
इसके लिए जहां कुछ लोग सरकार को दोषी ठहराते हैं तो वहीं कुछ का कहना है कि इसके लिए भारत की पुरानी बंद अर्थव्यवस्था जिम्मेदार है। अगर ऐसा है तो फिर इसरो के विकास को कैसे परिभाषित करेंगे? इस संस्थान ने सिद्ध कर दिया है कि विनम्रता के साथ अगर अपने लक्ष्य पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित किया जाए तो बड़े से बड़े लक्ष्य पाए जा सकते हैं। अगर चीन की बात की जाए तो उसने लंबे वक्त तक अपने आप को बंद रखा लेकिन 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की चीन यात्रा के बाद उसने अपने दरवाजे खोलने शुरू किए। आज वह इलेक्ट्रॉनिक्स और प्लास्टिक में लीडर है। वह अपनी ज्यादातर जरूरतों को खुद पूरा कर रहा है। चीन में नवोन्मेष सरकारी मदद से किया जाता है।
अगर कुछ दूसरे देशों को देखें तो इस वक्त अमेरिका नवोन्मेष और रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आर एंड डी) में लीडर है लेकिन इसके लिए वहां सरकार, उद्योग और संस्थान तीनों अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कनाडा में न्यूक्लियस फ्यूजन पर एक फर्म काम कर रही है जिसमें सरकार और उद्योग दोनों ने निवेश किया है। इसके साथ ही इन दोनों देशों का शिक्षा तंत्र नए विचारों को बढ़ावा देने वाला है।
जैसा कि मैंने पिछले साल महसूस किया, अंतरविषयक प्रक्रिया और बहुआयामी नजरिया भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भविष्य की तैयारियों के लिए जरूरी है कि हम आविष्कार और नवाचार की एक मजबूत संस्कृति बनाएं। बहुआयामी शिक्षा के जरिए इंजीनियरिंग और जीव विज्ञान जैसे विषयों में नवोन्मेष बढ़ाएं। हालांकि अभी तक मुझे बहुआयामी व्यवस्था का कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया है लेकिन आशा है कि भविष्य में यह होगा। अब मैं कुछ महत्वपूर्ण और किसी संस्थान के भविष्य के लिए जरूरी चीजें रखने की कोशिश करता हूं। ये किसी बड़े संस्थान से लेकर बहुत छोटे स्तर तक लागू की जा सकती हैं।
-बुनियादी ढांचा और अच्छे प्रोफेसरों के लिए फंडिंग।
अ-क्योंकि सही बुनियादी ढांचा अच्छी प्रतिभा को आकर्षित करता है।
ब-अच्छी प्रतिभा ही अगली पीढ़ी को प्रेरित करती है।
-सरकारों, संस्थानों और उद्योगों के बीच सहयोग के साथ ही संस्थाओं को स्वतंत्र होना चाहिए लेकिन उनको जवाबदेह और वित्तपोषित भी होना चाहिए।
-आर एंड डी संस्कृति के निर्माण की स्वतंत्रता, नवीनता और सीखने के लिए पुरस्कार दिए जाने चाहिए (कोर्स में सरकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, साथ ही जवाबदेही के साथ नवोन्मेष किया जाए) देश के उद्योग और अर्थव्यवस्था के लिए काम किया जाए।
-पाठ्यक्रम में बार-बार बदलाव और बदलते माहौल के साथ शिक्षा में भी बदलाव होना चाहिए। कोर्स के डिजाइन में केंद्र का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। साथ ही बड़े संस्थानों में छात्रों के लिए बहुआयामी एक्सपोजर होना चाहिए।
शुरुआती स्तर की अगर बात करें तो स्कूली सिस्टम में बदलाव होना चाहिए। अच्छी शिक्षा द्वारा अच्छे विचारों का जन्म होता है, इसलिए रट्टू संस्कृति को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही प्रशासनिक स्तर पर भी बदलाव की जरूरत है क्योंकि वो भी दोहराव को बढ़ावा देता है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में उम्मीद दिख रही है। करीब 95 फीसदी कॉलेजों के पास अपने इनक्युबेशन सेंटर है। संस्थानों और कॉलेजों के बीच संबंध बढ़ रहे हैं। सरकार रिफॉर्म ला रही है और उसने रक्षा सहित कई क्षेत्रों को खोल दिया है।
छात्रों के लिए बस इतना ही कहूंगा कि कुछ साल दिक्कत रहेगी, क्योंकि पश्चिमी देशों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (आईई) में रिसर्च के चलते सॉफ्टवेयर में नौकरियां कम हो सकती हैं। मेरा मानना है कि अगर संस्थान मौजूदा रास्ते पर ही आगे बढ़ते हैं तो आने वाले कुछ समय में भविष्य अतीत से बेहतर रहेगा।
(लेखक दृष्टि स्ट्रैटजिक रिसर्च सर्विस के एम.डी. हैं)