राष्ट्रीय योग्यता व प्रवेश परीक्षा (नीट) को शुरू हुए दो साल ही हुए हैं और कभी यह विवादों से मुक्त नहीं हो पाई। इस बार भी ड्रेस कोड को लेकर विवाद उभरकर सामने आया जिसके चलते कई छात्रों की परीक्षा या तो छूट गई या फिर वे परीक्षा हाल में देरी से पहुंचे। यही नहीं, दूसरी अनियमितताएं और विसंगतियां भी छात्रों की भारी परेशानी का सबब बनीं। इस वजह से, स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, मेडिकल प्रवेश परीक्षा पिछले साल की तरह फिर से आयोजित की जा सकती है। 2016 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 24 जुलाई को फिर से नीट की परीक्षा करानी पड़ी थी। विवादों के चलते इस साल भी कुछ छात्र कोर्ट जाने को मजबूर हुए। मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय से इस साल फिर से नीट परीक्षा कराने पर राय मांगी गई है।
इस बार नीट में और समस्याएं उभर आईं। बिहार में पेपर लीक होने की अफवाह उड़ी। फिर खासकर गुजराती और बंगाली के छात्रों को शिकायत रही कि उनकी भाषाओं में प्रश्नपत्र अंग्रेजी और हिंदी के मुकाबले ज्यादा कठिन थे। इससे प्रश्नपत्रों की वैधता और एकरूपता पर भी सवाल उठा। इससे तो नीट का असली मकसद ही बेमानी हो गया।
नीट का मकसद दाखिले के लिए सभी छात्रों को समान मौका देना था। 2015 में नीट के गठन के समय यही कल्पना की गई थी कि इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में सरकारी और गैर-सरकारी कॉलेजों में दाखिले के लिए जिस तरह जेईई परीक्षा होती है उसी तरह एमबीबीएस और बीडीएस में दाखिले के लिए एक ही परीक्षा हो। इस साल जब छात्र सात मई को परीक्षा देने गए तो देखा गया कि ड्रेस कोड को लेकर सीबीएसई की वेबसाइट पर जारी एडवाइजरी के तहत एक ड्रेस में न आने वाले छात्रों से जूते और कपड़े उतारने को कहा गया। केरल में तो कुछ परीक्षा निरीक्षकों ने नकल विरोधी दिशा-निर्देशों पर सख्ती से अमल करने के लिए छात्राओं से अंडरगारमेंट तक उतारने को कह दिया। यह किसी भी मायने में नीट के मकसद में फिट नहीं बैठता। इसके खिलाफ सरकार क्या कार्रवाई करती है, यह तो अलग है। असल सवाल यह है कि नकल रोकने के नियम भी ऐसे नहीं होने चाहिए, जिनसे परीक्षार्थियों का मनोबल ही टूट जाए।
कोच्चि में आयोजित परीक्षा में शामिल हुई एक छात्रा आरती मेनन ने कहा कि तलाशी और कक्ष की निगरानी के लिए अलग-अलग निरीक्षकों को जिम्मा सौंपा गया। छात्रा ने कहा कि हमारे परीक्षा केंद्र पर छात्रों ने सीबीएसई के दिशा-निर्देशों का पालन किया था, बावजूद इसके कई शिक्षकों ने उन छात्रों के भी जूते और कपड़े उतरवा दिए, जो ड्रेस कोड के मुताबिक कपड़े पहनकर आए थे।
सेंट थॉमस स्कूल, दिल्ली की शिक्षिका देवलीना गांगुली कहती हैं कि शिक्षकों को ड्रेस कोड का पालन करने के लिए सख्त निर्देश दिए गए थे। उन्होंने आउटलुक को बताया, ''जाहिर है, कई छात्र परीक्षा को लेकर पहले ही आतंकित थे। सख्त जांच-पड़ताल और ड्रेस कोड थोपने की कोशिश ने उनका आत्मविश्वास और तोड़ दिया। हम यह समझ रहे थे लेकिन हमें नियमों को शब्दश: पालन करने के निर्देश दिए गए थे।’’
देशभर के तीन हजार कॉलेजों में 53,430 सीटों के लिए इस साल 11 लाख से ज्यादा छात्र परीक्षा में बैठे। परीक्षा के प्रश्नपत्र नौ विभिन्न भाषाओं में तैयार किए गए थे। पिछले साल की तरह इस बार भी कई तरह की विसंगतियां और भ्रम की स्थिति सामने आईं। कई छात्र जिन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा का विकल्प चुना था, उन्हें अंग्रेजी के प्रश्नपत्र दे दिए गए। पश्चिम बंगाल में बांग्ला को माध्यम चुनने वाले छात्रों का आरोप है कि उनके प्रश्नपत्र में कम सवाल थे। एक छात्र के मुताबिक, ''कायदा यह है कि नीट परीक्षा में 180 सवाल पूछे जाते हैं और हर सवाल चार अंक का होता है यानी कुल 720 अंक के सवाल होते हैं। बांग्ला में कम सवाल पूछे गए जिससे छात्रों का तत्काल नुकसान यह हुआ कि वे रैंकिंग में पीछे चले गए।’’ पश्चिम बंगाल सरकार ने भी इसकी शिकायत केंद्र से की कि बांग्ला का प्रश्नपत्र अन्य भाषाओं के मुकाबले ज्यादा कठिन था। तेलंगाना के वारंगल में 230 छात्रों से दोबारा परीक्षा लेने का मसला सीबीएसई के सामने आया। मामला उन 228 छात्रों का था जिन्होंने तेलुगु में परीक्षा देने का विकल्प चुना था लेकिन उन्हें हिंदी में प्रश्नपत्र दे दिए गए। इस तरह नए सिरे से प्रश्नपत्रों का इंतजाम करके दोबारा परीक्षा ली गई।
तमिलनाडु, गुजरात और बंगाल समेत देश के विभिन्न हिस्सों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए। हाल में कई छात्रों ने शिकायतों को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात भी की। मंत्रालय ने शिकायतों पर सीबीएसई से रिपोर्ट मांगी है लेकिन अभी तक सीबीएसई ने कोई जवाब नहीं दिया है। सीबीएसई ने एक ई-मेल के जवाब में कहा कि 12वीं के नतीजों की तैयारी में व्यस्तता के चलते टिप्पणी करने के लिए अधिकारी उपलब्ध नहीं थे। नाम न छापने की शर्त पर सीबीएसई के कुछ अधिकारियों ने कहा कि छात्रों और अभिभावकों के विरोध को देखते हुए पूरी संभावना है कि परीक्षा फिर से करा ली जाए।
सुप्रीम कोर्ट में नीट परीक्षा में अहम भूमिका निभाने वाले संकल्प चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. मेजर गुलशन गर्ग का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर फिर से परीक्षा कराना जरूरी हो गया है। इस बारे में वे पहले ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा को पत्र लिख चुके हैं। उनका कहना है कि इस साल हुई नीट परीक्षा न केवल विभिन्न राज्यों के छात्रों के लिए एक जैसी नहीं थी, बल्कि असंवैधानिक भी थी। नीट परीक्षा के बारे में पारित कानून में साफ लिखा है कि विभिन्न भाषाओं के प्रश्नपत्रों में एकरूपता होनी चाहिए। हालांकि कुछ शिक्षक और छात्र इस साल फिर से परीक्षा कराने की बात को सही नहीं मानते। परीक्षा में शामिल होने वाले दिल्ली के एक छात्र का मानना है, ''इसका सीधा मतलब है कि परीक्षा के लिए एक और दौर की तैयारी करनी होगी। नतीजा यह होगा कि विभिन्न कालेजों के दाखिले की प्रक्रिया में देरी हो जाएगी।’’
विवादों के बीच अफवाह यह भी है कि नीट परीक्षा अगले साल से बंद हो सकती है। इस तरह के कदम से न केवल दाखिला प्रक्रिया में अराजकता फैल जाएगी, बल्कि निम्न स्तर के कॉलेजों को बढ़ावा मिलेगा जो छात्रों का चयन मानक के आधार पर नहीं करेंगे और उनका मनमाना दोहन करने की कोशिश करेंगे। हालांकि गर्ग का कहना है कि नीट को बंद करना बेहद मुश्किल है क्योंकि संसद के दोनों सदनों से पारित नीट कानून में साफ है कि इसे बंद करने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी है। इसका मतलब पूरी प्रक्रिया को फिर से दोहराना होगा। लेकिन आशंकाएं कई तरह की हैं। कई लोगों का मानना है कि निजी कॉलेजों को छूट देने के लिए जानबूझकर नीट में विसंगतियां पैदा की जा रही हैं। दरअसल निजी कॉलेज इसका शुरू से विरोध करते आए हैं। उनकी दलील है कि इससे उनकी स्वायत्तता खत्म होती है। लेकिन नीट की व्यवस्था निजी कॉलेजों की मनमानी और भारी कैपिटिशन फीस पर अंकुश लगाने के लिए और एक समान दाखिला नीति चलाने के लिए की गई थी। मार्के की बात यह भी है कि इसके जरिए यह कोशिश भी की गई कि देश भर में एक ही पाठ्यक्रम चले।
नीट ने सीबीएसई के साथ राज्य बोर्ड के पाठ्यक्रम को एकीकृत करने में मदद की है। इससे कक्षा 11 और 12वीं के पाठ्यक्रम को बेहतर किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि इससे कई अभिभावक अपने बच्चों को राज्य बोर्डों के बजाय सीबीएसई से जुड़े स्कूलों में पढ़ाई कराने को प्रेरित हुए हैं। यानी नीट का एक बड़ा पहलू यह भी है कि इससे पूरे देश की शिक्षा में एकरूपता आएगी।
लेकिन परीक्षा में लगातार होती अनियमितताओं के मद्देनजर आम लोगों, सिविल सोसायटी के अलावा मद्रास हाईकोर्ट व पश्चिम बंगाल सरकार का केंद्रीय स्वास्थ्य और मानव संसाधन मंत्रालयों पर बढ़ते दबाव के चलते नीट परीक्षा के फिर से होने की काफी संभावनाएं हैं। परीक्षा के लिए अहम जवाब जल्द ही आनलाइन अपलोड किए जा रहे हैं, हालांकि विभिन्न कोचिंग संस्थान में यह पहले ही उपलब्ध है। इससे एक तरह के घोटाले की भी बू आती है।
फिर से परीक्षा की स्थिति में सवाल यह भी है कि क्या पिछली परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को बिना परीक्षा के रैंकिंग में शामिल किया जाएगा। सरकार को परीक्षा की प्रक्रिया में मानकीकरण और एकरूपता लाने की जरूरत है, साथ ही संसाधनों व जनशक्ति के बेहतर प्रबंधन की। लेकिन सवाल यह भी है कि छात्रों के भविष्य के साथ कब तक यह खिलवाड़ चलता रहेगा। उन्हें परेशान करने का आखिर मकसद क्या है?