अंबर श्रीवास्तव अपनी नई रचना 'ट्रू एचबी हेमोमीटर’ की बढ़ती डिमांड को लेकर खुश हैं। ट्रू एचबी हिमोग्लोबिन मापने का मीटर है, जिसके पेटेंट के लिए उन्होंने भारत और अमेरिका में आवेदन किया है। रिग्स नैनो सिस्टक्वस प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और प्रबंध निदेशक 32 वर्षीय अंबर श्रीवास्तव ने आईआईटी दिल्ली में बॉयोकेमिकल इंजीनियरिंग और बॉयोटेक्नोलॉजी में एमटेक करने के दौरान ही बतौर उद्यमी काम शुरू कर दिया था। आईआईटी दिल्ली के फाउंडेशन फॉर इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (एफआईटीटी) विभाग ने एक उद्यमी के रूप में श्रीवास्तव के सफर को आकार दिया।
एफआईटीटी में अपने दो साल के अनुभव के बारे में श्रीवास्तव कहते हैं कि वहां पूरी तरह से अनुकूल और वर्ल्ड क्लास माहौल था, न कोई पावर कट, न कोई सुरक्षा की चिंता और न ही प्रबंधन की तरफ से कोई समस्या। वे कहते हैं, ''वहां हमें कैंपस में लैबोरेटरी के साथ-साथ नई प्रतिभाओं और विशेषज्ञों का पूरा सहयोग मिला।’’ विदेश तक अपने उद्यम को फैलाने वाले उद्यमियों पर अगर नजर दौड़ाएं तो श्रीवास्तव उन प्रतिभाओं में एक हैं, जिन्हें स्टार्टअप के लिए सरकार से मदद मिली है।
फिलहाल देश में सरकारी मान्यता वाले 120 टेक्नोलॉजी बिजनेस इंक्यूबेटर हैं, जो नवोन्मेष आधारित स्टार्टअप को शुरुआती आइडिया से लेकर फाइनल प्रोडक्ट, पेटेंट, शोध और बाजार में जगह बनाने तक, हर स्टेज पर मदद करते हैं। इनमें अधिकतर इंक्यूबेटर सरकार के शोध संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम और एनआईडी से जुड़े हुए हैं। अब इस दिशा में अधिक से अधिक निजी भागीदार भी जुड़ रहे हैं, जिनके साथ सरकार द्विपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारी कर टेक्नोलॉजी आधारित स्टार्टअप को बढ़ावा दे रही है। बंबई शेयर बाजार का बीएसई इंस्टीट्यूट कनाडा की रेयरसॉन यूनिवर्सिटी के डिजिटल मीडिया जोन के साथ मिलकर जोन स्टार्टअप इंडिया इंक्यूबेटर चला रहा है। वहां अभी तक 80 स्टार्टअप शुरू हो चुके हैं।
हालांकि नवाचार आधारित स्टार्टअप भले ही कोई नई बात न हो, लेकिन पिछले दशक में टेक बबल के फटने के बाद जब बहुत से भारतीय अमेरिका की सिलिकॉन वैली से स्वदेश लौटे तो इस तरह के स्टार्टअप ने गति पकड़ी है।
इंक्यूबेटर्स शुरू करने के लिए सस्ती जगह देने और तमाम जरूरी मदद के साथ-साथ जबसे सरकार ने इसके लिए आर्थिक सहायता जैसे स्कॉलरशिप और मूल पूंजी के लिए पैसा देना शुरू किया है, पिछले कुछ साल में इस दिशा में रुझान ने जोर पकड़ा है। इसके लिए आर्थिक मदद के रूप में कुछ लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक सहायता या सस्ता लोन मिल सकता है।
राष्ट्रीय विज्ञान और तकनीकी उद्यमिता विकास बोर्ड (एनएसटीईडीबी) के सलाहकार और सदस्य सचिव डॉ. एच.के. मित्तल कहते हैं, ''टेक्नोलॉजी बिजनेस इंक्यूबेटर्स शुरुआती आइडिया से लेकर प्रोडक्ट के तैयार होने और बाजार तक उद्यमी की मदद करते हैं। आज विभिन्न क्षेत्रों में 3000 से ज्यादा स्टार्टअप काम कर रहे हैं।’’ इनमें से बहुत से स्टार्टअप अपने प्रोडक्ट भी बाजार में उतार चुके हैं। इन उत्पादों में चिकित्सा जांच उपकरण से लेकर दवाएं, आईटी और इलेक्ट्रॉनिक, कृषि मशीनरी, इंजीनियरिंग और इंटरनेट से जुड़े प्रोडक्ट तक शामिल हैं। इनमें से कई सारे स्टार्टअप आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और बॉयोटेक्नोलॉजी पर फोकस कर रहे हैं। इनके उत्पाद बाजार में आने को तैयार हैं और जरूरी अनुमति का इंतजार कर रहे हैं।
इंक्यूबेटर्स का मॉडल संस्थानों और क्षेत्रों के मुताबिक अलग-अलग होता है। जैसे आईआईटी दिल्ली और आईआईटी बॉम्बे अपने ही छात्रों पर फोकस करते हैं, जबकि आईआईएम अहमदाबाद बाहरी प्रतिभाओं को भी प्रवेश परीक्षा के आधार पर अवसर प्रदान करता है। इंक्यूबेटर में रहने का समय भी संस्थान और उद्योग के मुताबिक भिन्न होता है। उदाहरण के तौर पर आईटी इंडस्ट्री में छह माह तक इंक्यूबेटर में काम किया जा सकता है तो बॉयोटेक्नोलॉजी में पांच साल तक रहा जा सकता है। मित्तल के मुताबिक पिछले साल नेशनल इनिशिएटिव फॉर डेवलपिंग एंड हार्नेसिंग इनोवेशंस (एनआईडीएचआई) की शुरुआत करने के साथ ही डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) ने पहले से मौजूद और नए इंक्यूबेटर्स की काफी मदद की। हर साल चार से पांच की बजाय अब 15 से 20 नए इंक्यूबेटर शुरू किए जा रहे हैं। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स, नैनो इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी में इनोवेशन, शोध और उत्पाद के विकास को बढ़ावा देने के लिए लघु उद्योग विकास बोर्ड की देखरेख में पिछले साल वेंचर कैपिटल के लिए 10,000 करोड़ रुपये का फंड स्थापित किया गया है।
मित्तल बताते हैं, ''वेंचर कैपिटलिस्ट शुरुआती स्तर पर किसी उद्यम में पैसा लगाने को लेकर काफी सतर्क रहते हैं। वे ऐसे उद्यमों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं जिनका कारोबार 10 करोड़ रुपये या उससे अधिक होता है।’’ इस पर सहमति जताते हुए एफआईटीटी के प्रबंध निदेशक डॉ. अनिल वाली कहते हैं कि एंजेल निवेशक अमूमन उद्यम की योजना को ठोक बजाकर देखने के बाद निवेश करने पर राजी हो जाते हैं, फिर भी इंक्यूबेशन के दौरान कम ही पैसा लगाते हैं। हालांकि एक बार उद्यम में कमाई होने लगे तो निजी निवेश मिलना आसान हो जाता है।’’
हालांकि अधिकतर इंक्यूबेटर्स में स्टार्टअप को पर्याप्त हैंड होल्डिंग या शुरुआती आर्थिक मदद मिल जाती है। वाली के मुताबिक एफआईटीटी में बिजनेस डेवलपमेंट, कोचिंग और नेटवर्किंग के लिए मदद की जाती है। नवोन्मेषकों को आईआईटी, दिल्ली में अपने आइडिया पर काम करने के लिए पूरी मदद की जाती है। यहां वे संस्थान के सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि इनमें से कुछ ही स्टार्टअप के रूप में सामने आते हैं।
तन्मय बुनकर का बोटलैब डायनॉमिक्स ऐेसा ही उद्यम है। बोटलैब डायनॉमिक्स, धरती, आकाश और पानी में माइक्रो यूएवी और रोबोटिक्स से डाटा जुटाने के साथ ही फसलों का क्षेत्रफल और उत्पादन जानने पर काम करता है। 2016 में शुरू की गई यह कंपनी आज भी एफआईटीटी की सहायता से शोध में लगी है। साथ ही कंपनी नागरिक उड्डयन महानिदेशालय से अनुमति मिलने के बाद अपने प्रोडक्ट को लांच करने की तैयारी कर रही है। बुनकर ने अपनी योजना का खुलासा करते हुए कहा है कि वे दिल्ली स्थित भारतीय कृषिशोध संस्थान के साथ मिलकर काम करने की तैयारी कर रहे हैं।
डॉ. रेनू स्वरूप, प्रबंध निदेशक, बॉयोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च एसिस्टेंस काउंसिल (बीआईआरएसी) और सलाहकार डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) का कहना है कि जैसे-जैसे माहौल बेहतर हो रहा है, निवेशकों का आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है। बीआईआरएसी, डीबीटी के माध्यम से अभी तक 800 प्रोजेक्ट, 350 से ज्यादा स्टार्टअप, 500 लघु उद्योगों और छोटी कंपनियों को मदद दी जा चुकी है।
स्वरूप कहती हैं, ''करीब 70 उत्पादों के साथ शुरुआती स्तर पर कई तकनीक विकसित की जा चुकी है और 120 बौद्धिक संपत्ति अधिकार लिए गए हैं। अधिकतर शोध नए प्रोडक्ट और तकनीकी विकास के लिए किए गए हैं। कुछ स्टार्टअप एक प्लेटफॉर्म के रूप में तकनीक पर काम कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा सकेगा। इसे सर्विस मॉडल के रूप में भी पेश किया जा सकेगा।’’
बीआईआरएसी फंडिंग के साथ काफी उद्यमी और स्टार्टअप काम कर रहे हैं। यहां काफी बड़े पैमाने पर रिस्क मैनेजमेंट पर फोकस रहता है, जिसके चलते प्रोजेक्ट की शुरुआती और बाद की फंडिंग के लिए निजी निवेशक आकर्षित होते हैं।
डीबीटी ने बायोटेक इक्विटी फंड लाने का एक प्रस्ताव रखा है। यह एक बड़ा फंड होगा, जो दूसरे निवेश फंड्स को इस क्षेत्र में लाने में मददगार होगा। बीआईआरएसी पहले ही सीड फंड लांच कर चुका है, जिसका प्रबंधनबॉयो इंक्यूबेटर्स के हाथ में है। नवाचार शोध को ध्यान में रखते हुए पांच साल के लिए 10 हजार करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। बॉयोटेक सेक्टर में अधिकतर उद्यमी युवा शोधार्थी और छात्र हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, शोध संस्थान, अस्पताल और लैब
टेक्निशियन भी उद्यमशीलता को तेजी से अपना रहे हैं। इनकी सहायता के लिए हैदराबाद और बेंगलूरू में दो केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने का काम कर रहे हैं।
सोसाइटी फॉर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (एसआईएनई), आईआईटी बॉम्बे की मुख्य संचालन अधिकारी पोयनी भट्ट कहती हैं कि उनका फोकस खासकर तकनीक आधारित उत्पादों पर है न कि सेवाओं पर, क्योंकि उनके यहां अधिकतर उद्यमी छात्र टेक और इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के हैं। वे कहती हैं, ''हमारे यहां 65 से 70 फीसदी प्रोजेक्ट सफल रहते हैं। हमारी चयन प्रक्रिया काफी सख्त और मूल्यांकन आधारित है। इसलिए सफलता का प्रतिशत भी ज्यादा है।’’ भट्ट कहती हैं कि उनके इंक्यूबेटर में अभी तक करीब 110 स्टार्टअप की मदद की गई है। इनमें से करीब 25 आगे नहीं बढ़ पाए, जबकि 45 के साथ वे अभी भी जुड़ी हुई हैं। एसआईएनई करीब 50 स्टार्टअप में से प्रत्येक पर तीन से 25 लाख रुपये तक लगा चुका है। आईकेपी नॉलेज पार्क की सीईओ दीपनविता चट्टोपाध्याय कहती हैं कि पिछले तीन साल में जिस तरह से शुरुआती स्तर पर ही स्टार्टअप को मदद करने के लिए वेंचर कैपिटलिस्ट सामने आए हैं, उससे इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है। इसके तहत अब हेल्थकेयर, एजुटेक और फिनटेक सेक्टर आधारित फंड उपलब्ध हैं। कुछ सहयोगियों की मदद से आईकेपी ने 114 करोड़ की फंडिंग जुटाई है, जिसके तहत करीब 100 स्टार्टअप और अकादमिक नवोन्मेषकों की सहायता की गई है। आईकेपी, लाइफ साइंस, मैटीरियल साइंस और हेल्थकेयर प्रोजेक्ट को अपने हैदराबाद और बेंगलूरू केंद्र पर फोकस कर रहा है। चट्टोपाध्याय का कहना है कि उनके यहां से निकले अधिकतर स्टार्टअप पांच साल से भी अधिक समय तक चलने में कामयाब रहे हैं। हालांकि बड़ी सफलता यानी 10 करोड़ रुपये के टर्नओवर तक कुछेक स्टार्टअप ही पहुंच पाए हैं।
आईआईएम अहमदाबाद के सेंटर फॉर इनोवेशन, इंक्यूबेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (सीआईआईई) में कई स्टार्टअप में 16-17 करोड़ रुपये के निवेश के अलावा 20 करोड़ रुपये तक इक्विटी इंवेस्टमेंट हुआ है।
सीआईआईई की मुख्य संचालन अधिकारी प्रियंका चोपड़ा का कहना है कि उनके यहां विभिन्न सेक्टरों में तीन से छह माह के कार्यक्रम पर फोकस किया जाता है। जिनमें आईसीटी, हेल्थ, खेती और अक्षय ऊर्जा शामिल हैं। इन सभी प्रोजेक्ट में यहां काफी सफलता मिली है। इसके अलावा पिछले साल सीआईआईई की तरफ से 'पावर ऑफ आइडिया’ एंटरप्रेन्योरियल कॉन्टेस्ट किया गया था। इसमें करीब 90 हजार एंट्री आई। इनमें से कुल 75 का ही चुनाव किया गया और 25 को ही आर्थिक सहायता दी गई।
चोपड़ा कहती हैं कि किसी भी स्टार्टअप के सफल होने और आगे बढ़ने से संबंधित इंक्यूबेटर की सहायता के अवसर भी बढ़ जाते हैं। सीआईआईई के मामले में अच्छी बात है कि 70 फीसदी राजस्व ला रहे हैं, जबकि 25 फीसदी स्टार्टअप बहुत अच्छा कर रहे हैं। इनके पैसा जुटाने पर ही आगे विस्तार हो पा रहा है। यहां स्टार्टअप की सफलता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि एक रुपये के निवेश के बदले बाजार से 20 से 25 रुपये तक जुटाए जा रहे हैं। इससे यहां स्टार्टअप में हो रहे इनोवेशन की गुणवत्ता का पता चलता है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनआाईएफ) के प्रोफेसर अनिल गुप्ता एक अहम तथ्य की तरफ इशारा करते हैं कि अनियोजित श्रेत्र में नियोजित से ज्यादा पेटेंट किए गए हैं। गुप्ता कहते हैं कि अभी तक मौजूदा क्षमता का एक फीसदी भी पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं हुआ है।
एसआरआईएसटीआई से जुड़े टेकपीडिया का उल्लेख करते हुए गुप्ता कहते हैं कि यह पांच हजार छात्रों के किए गए 1.8 लाख इनोवेशन के बारे में जानकारी देता है। इनमें से कई अपने काम के लिए नगद पैसे के रूप में पुरस्कार तक जीत चुके हैं। जबकि अभी इनमें अधिकतर इनोवेशन साकार होने बाकी हैं। गुप्ता वर्चुअल इंक्यूबेशन और युवाओं को प्रोत्साहित करने की बात करते हैं। गुप्ता के मुताबिक मौजूदा हालात में हर कोई आर्थिक रूप से मजबूत स्टार्टअप से फायदा तो उठाना चाहता है, लेकिन शुरुआती आइडिया से लेकर उत्पाद के तैयार होने तक स्टार्टअप को आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाती है।
गुप्ता, जो आईआईएम के प्रोफेसर भी हैं, कहते हैं, ''यह एक लंबी और कठिन यात्रा है, जिसको अभी तक पर्याप्त मदद नहीं मिली है। हमें छात्रों के साथ नई उम्र में ही इसकी शुरुआत करनी चाहिए।’’
देश में इनोवेशन की स्थिति और बेहतर करने के लिए कॉलेजों, संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए, खासकर उद्योगों को इस दिशा में काम करने की जरूरत है। इसके अलावा मित्तल के मुताबिक भारत की स्टार्टअप स्टोरी की एक बड़ी बाधा है, उद्यमियों के सीमित लक्ष्य। वे 20 से 25 करोड़ के टर्नओवर से ही संतुष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा पेशेवर प्रबंधकों को नियुक्त करने से बचना भी स्टार्टअप के लिए एक बड़ी बाधा के रूप में देखा गया है।