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बरेली के बाजार में अब गिरे सितारे

सिनेमा की संस्कृति और कारोबार ऐसा बदला कि बॉलीवुड को अब छोटे कस्बे और धूल भरे गांव भाने लगे
अक्षय-भू‌म‌िका देंगे संदेश

एक वक्त वह भी था जब बॉलीवुड के धांसू स्टार पटकथा लेखकों से छूटते ही तपाक से पूछते कि कोई फॉरेन लोकेशन है न? तब फिल्मों को हिट कराने का अमूमन यही फॉर्मूला हुआ करता था। अगर पटकथा की डिमांड नहीं होती तब भी फिल्म निर्माता अक्सर हीरो-हीरोइन को खुश रखने के लिए कुछ विदेशी फंतासी उसमें डलवा दिया करता था। मसलन, ज्यूरिख में बर्फ से ढंके पहाड़ों के बीच कोई रोमांस वाला गीत या एमस्टर्डम के पास ट्युलिप से भरे मैदान में हीरो-हीरोइन की कोई रोमांटिक मुलाकात या पेरिस की सड़कों पर कार रेस का कोई दृश्य। लेकिन अब नजारे बदल गए हैं। पिछले महीने सुपरस्टार अक्षय कुमार ने अपनी नई फिल्म टॉयलेट: एक प्रेम कथा की शूटिंग उत्तर प्रदेश में मथुरा के एक धूल-धक्कड़ भरे गांव में की। उनकी आगामी फिल्म पद्मन की आउटडोर शूटिंग भी गर्मी की तपिश के बीच मध्यप्रदेश के इंदौर, होशंगाबाद और भोपाल में होनी है।

अब कस्बों और छोटी जगहों में इतनी फिल्मों की शूटिंग होने लगी है कि लगता है कि बॉलीवुड सितारों के लिए विदेशी लोकेशन का कोई आकर्षण नहीं रह गया है। बड़े-से बड़े सितारे अब अनजान देहात में शूटिंग करना चाहते हैं, ताकि लोगों को हकीकत का अहसास दिलाया जा सके। वैसे, अक्षय कुमार ने पहले भी धूलभरे इलाकों में शूटिंग की है। इस साल उन्होंने ब्लॉकबस्टर फिल्म जॉली एलएलबी-2 की शूटिंग लखनऊ के पास की। सलमान खान ने खुद मुजफ्फरनगर जिले के मोरना में सुलतान की शूटिंग की। फिल्म जगत में अब इस तरह का बदलाव आया है कि अगर स्क्रिप्ट की जरूरत है तो फिल्म निर्माता असल लोकेशन पर जाकर शूटिंग करना पसंद करते हैं, न कि मुंबई के स्टूडियो में।

वह जमाना लद गया जब मुंबई के मड आइलैंड या चीन क्रीक के बाहर के नजारे फिल्माने के लिए स्विट्जरलैंड नहीं तो गुलमर्ग, मनाली या ऊटी का रुख किया जाता था। यह कल्पना से परे था कि शूटिंग के लिए झांसी, कोटा, मेरठ, पटना या झारखंड के दुमका जैसे आदिवासी इलाके में जाया जा सकता है। अब छोटे इलाकों या कस्बों पर बरेली की बर्फी या अनारकली ऑफ आरा जैसी फिल्में बन रही हैं। इलाकों की खासियत के चलते बॉलीवुड में नए कारोबार को बढ़ावा मिला है। अभिनेता फरहान अख्तर उत्तर प्रदेश की राजधानी में इस समय लखनऊ सेंट्रल की शूटिंग कर रहे हैं।

अनुराग कश्यप और अश्विनी अय्यर-तिवारी ने अपनी अगली फिल्म मुक्केबाज और बरेली की बर्फी की शूटिंग अभी खत्म की है। बरेली फिल्मी दुनिया में वैसे भी अनजाना नहीं है। सन 1966 की फिल्म मेरा साया में 'बरेली के बाजार में झुमका गिरा रे’ की धुन पर आज भी लोग झूम उठते हैं। बॉलीवुड विश्लेषकों का मानना है कि फिल्म निर्माताओं और दर्शकों के बदलते प्रोफाइल के चलते मौजूदा समय की फिल्मों का मिजाज बदल रहा है। अनारकली ऑफ आरा के निर्देशक अविनाश दास कहते हैं, ''इंटरनेट क्रांति ने छोटे शहरों और जिलों के लोगों को सिनेमा सुलभ कर कई रास्ते खोल दिए हैं। सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की पहुंच अब सिर्फ विशेष वर्ग तक नहीं रह गई है। बिहार के दरभंगा और मधुबनी जैसे कस्बों में रहने वाले भी इन्हें आसानी से देख सकते हैं। देश में नए सिनेमा ने पूरी दुनिया को बदलकर रख दिया है।’’

छोटे शहरों से मुंबई आने वाले लोग अब अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए नई कहानियों और विचारों के साथ पहुंच रहे हैं। अनुराग कश्यप, तिगमांशु धूलिया, आनंद एल राय, हंसल मेहता जैसे फिल्म निर्माताओं ने अपने क्षेत्र की कहानियों से बड़ा असर पैदा किया है। हिंदी पट्टी में फिल्म निर्माताओं के लिए रास्ते बढ़े हैं, खासकर यूपी में बड़े पैमाने पर बढ़ावा मिला है। अनुराग कश्यप (गैंग्स ऑफ वासेपुर), आनंद एल राय (रांझणा, तनु वेड्स मनु), हंसल मेहता (अलीगढ़), सुभाष कपूर (जॉली एलएलबी) और तिगमांशु धूलिया (पान सिंह तोमर) की फिल्मों ने उन रास्तों को विकसित करने में मदद की है जो कभी बॉलीवुड में कमाई के लिए सुरक्षित नहीं माने जाते थे। फिल्म लेखक विनोद अनुपम का कहना है, ''मध्यवर्ग के उदय और उदारीकरण के युग में उनके खर्च करने की क्षमता, डिजिटल तकनीक छोटे कस्बों में फिल्म शूटिंग के लिए जिम्मेदार है।’’ उनका कहना है कि सिनेमा को उभरते बाजारों को पूरा करना है, जो मध्यम वर्ग के दर्शकों पर निर्भर है। हाफ गर्लफ्रेंड फिल्म भी बक्सर के लड़के की कहानी को दर्शाती है, न कि बांद्रा के किसी लड़के की। पहले फिल्म बनाने में कुछ ही परिवारों का हस्तक्षेप था, लेकिन नई पीढ़ी के अनुराग कश्यप जैसे फिल्म निर्माता अपनी कहानियों को आगे बढ़ाते हैं। ट्रेड से जुड़े विश्लेषक छोटे शहरों की फिल्मों की संख्या में बढ़ोतरी के लिए एक और कारण बताते हैं कि इसमें राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले प्रोत्साहन की अहम भूमिका रहती है। यूपी और कई अन्य सरकारें जैसे झारखंड ने अपने राज्यों में शूटिंग के लिए सब्सिडी देना शुरू कर दिया है। यह न केवल सिनेमा उद्योग को बढ़ावा देने में मदद करता है बल्कि स्थानीय पर्यटन और रोजगार के साथ ही अन्य संबंधित क्षेत्रों को भी बढ़ावा देता है।

हाल ही में, झारखंड सरकार ने बेगम जान की शूटिंग के लिए नकद प्रोत्साहन राशि दी क्योंकि अभिनेत्री विद्या बालन की इस फिल्म की ज्यादातर शूटिंग दुमका जिले के रनिश्वर ब्लॉक में की गई थी। फिल्म को बढ़ावा देने के लिए टैक्स फ्री भी कर दिया गया। यूपी सरकार भी अपने प्रदेश में फिल्माई गई फिल्मों को दो करोड़ रुपये तक की राशि प्रोत्साहन के लिए दे रही है। छोटे कस्बों की बातें अब पूरी तरह बदल चुकी हैं। छोटे कस्बे पर आधारित बद्रीनाथ की दुल्हनिया इस साल की ब्लॉक बस्टर साबित हुई है। छोटे कस्बों की फिल्में अभी अतीत का हिस्सा बनती दिखाई नहीं देतीं। बॉलीवुड की कस्बों में जाकर शूटिंग करने की शुरुआत अभी बदलती दिखाई नहीं देती। भविष्य में फिल्मों का मध्यवर्गीय दर्शक भी कम होता दिखाई नहीं देता।

 

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