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गलत नीति से कर्ज में फंसे किसान

कर्ज माफी के वादे पर अमल नहीं होने पर 25 जुलाई से फिर आंदोलन करेंगे महाराष्ट्र के किसान
कर्ज माफी की मांग को लेकर सड़क पर उतरे महाराष्ट्र के किसान

सरकार की गलत नीतियों और प्राकृतिक आपदा के कारण ही किसान कर्ज के जाल में फंसे हैं। महाराष्ट्र सरकार ने किसानों की तकलीफ का वास्तविक कारण जाने बिना ही छोटे किसानों के कर्ज माफ करने का फैसला कर लिया। एक माह पहले तक सरकार कह रही थी कि वह कर्ज माफ करने के पक्ष में नहीं है लेकिन वह उन्हें सहायता देने के लिए जलयुक्त शिविर लगाने जैसे उपाय करने के लिए तैयार है लेकिन उसने कभी नहीं सोचा कि किसानों में असंतोष क्यों बढ़ रहा है। कर्ज माफी के फैसले के बाद भी सरकार यह देखने के लिए तैयार नहीं है कि इसका किसानों की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा है। क्या इससे किसानों की खुदकुशी रुकेगी? खुदकुशी सरकार और समाज के लिए शर्मनाक है। फिर भी यह सरकार की नीतियों के एजेंडे में नहीं है और राज्य में यह जारी है।

एक जून से अहमदनगर जिले के पुणतांबा से शुरू हुआ आंदोलन नासिक, विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र तक फैल गया। इस दौरान किसानों ने कृषि उपज नहीं बेचने का फैसला किया। इस आंदोलन में सभी किसानों ने भाग लिया। महाराष्ट्र के किसान अपना काम शांत तरीके से निपटाने वाले के लिए जाने जाते रहे हैं। यह पहली बार हुआ है कि न केवल महाराष्ट्र बल्कि मध्यप्रदेश के किसान भी आक्रामक हुए हैं। वहीं दूसरी ओर, सरकार और अफसर नीतियां बनाने के अलावा यह दिखाने में व्यस्त रहे कि कर्ज माफी की राशि का क्या असर होगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के अनुसार कर्ज माफी की राशि तीस हजार करोड़ रुपये होगी। आंदोलन के दौरान और तीस हजार करोड़ रुपये की कर्ज माफी के फैसले, जिससे राज्य की 40 फीसदी आबादी को फायदा होगा, पर सबसे बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक की प्रमुख श्रीमती अरुंधति भट्टाचार्य का व्यवहार बेहद रूखा रहा।

ऐसे में इस आंदोलन ने सरकार को यह सीख दी कि वर्षों से दबा हुआ किसान जब सभी ओर से निराश हो जाता है तो वह बड़ा उग्र हो सकता है। कर्ज माफी के अलावा किसान स्वामीनाथन समिति की सिफारिश लागू करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की मांग कर रहे हैं। इस संदर्भ में तूर (अरहर) की समस्या मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन द्वारा सितंबर 2016 में संज्ञान में लाई गई। उस समय तूर की कीमतें बड़ी तेजी से गिरीं और सरकार भी इसे किसानों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर लेने में नाकाम रही। किसानों को दाल पैदा करने के लिए बढ़ावा देने वाली केंद्र सरकार भी समस्या के समाधान करने से अलग रही। इसके अलावा वह किसानों के असंतोष को दूर करने में भी विफल रही। यह हर व्यक्ति को समझना चाहिए कि किसी को भी किसानों को अपनी नीतियों के जाल में फंसाकर उनमें फूट डालने का अधिकार नहीं है।

फूट डालने की प्रारंभिक कोशिश राज्य सरकार द्वारा की गई। सरकार ने वैसे लोगों के सहारे मध्य रात्रि में आंदोलन समाप्त करने की घोषणा करा दी जिनकी किसानों में कोई पहचान नहीं है और जो अपने स्वार्थ में लगे रहते हैं। इसके लिए दूसरे किसान संगठनों की सहमति नहीं ली गई। इस घोषणा के बाद अगले दिन ही राज्य भर के किसान हिंसक हो गए। कई जगह वाहन जलाने और पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं। किसानों ने सरकारी कार्यालयों में ताले जड़ दिए। इसके बाद सरकार जागी और किसान संगठनों के साथ फिर से समझौता करना शुरू किया। किसानों की प्रमुख मांग थी कि किसान कर्ज मुक्त हो और स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें लागू की जाएं। इसके अलावा मूलभूत सुविधाएं जैसे सिंचाई, बिजली, भंडारण, रोड, प्रसंस्करण उद्योग की भी मांग की गई। ऐसा होने पर उत्पादन लागत में कमी आएगी। सरकार ने किसानों की समस्या को समझा और कर्ज माफी की घोषणा की गई। इसके बाद किसानों ने आंदोलन समाप्त करने का एलान किया। हालांकि यह भी कहा गया कि यदि फडणवीस सरकार किसानों से किए गए अपने वादों पर अमल करने में विफल रहती है तो 25 जुलाई से किसान फिर आंदोलन की राह पर होंगे।

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर किसानों की फसल का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) देने की बात की थी जिसके तहत लागत के साथ 50 फीसदी मुनाफा दिया जाना था लेकिन इस वादे पर आज तक अमल नहीं हो पाया। अगर किसानों को एमएसपी मिल जाता तो उसे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती। मंदसौर का आंदोलन भी सरकार की उदासीनता का ही नतीजा है। किसानों के सब्र का बांध अब टूट गया है और आंदोलन अब तेज होगा। किसानों को कर्ज माफी से पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए ताकि उन्हें अपनी फसल के वाजिब दाम मिल सकें। कर्ज माफी समस्या का स्थायी हल नहीं है।

सरकार अब वादे से मुकर रही है। दिल्ली में 16 जून को तय अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति की बैठक के एजेंडा में इसके लिए रणनीति पर विचार होगा। साथ ही, जैसा महाराष्ट्र में कर्ज माफी का फैसला लिया है उसी तरह किसानों के कर्ज की माफी के लिए अन्य राज्यों में भी किसानों को जगाने का काम किया जाएगा। इस बैठक में देश के किसान संगठनों के बीच तालमेल की रणनीति तय होगी।

(लेखक लोकसभा के सदस्य और स्वाभिमानी शेतकरी संघटना के प्रमुख हैं) 

 

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