उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार ने भी कुछ शर्तों के साथ किसानों के बकाया कर्ज माफ करने का एलान कर दिया है। राज्य में एक जून से छिड़े किसान आंदोलन को देखते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस छोटे किसानों के कर्ज माफ करने को तैयार हो गए थे। आंदोलनकारी किसान इससे संतुष्ट नहीं हुए और आंदोलन जारी रहा। आखिरकार महाराष्ट्र सरकार को छोटे-बड़े सभी किसानों के कर्ज माफ करने का एलान करना पड़ा। हालांकि अभी इसके नियम-कायदे तय होने बाकी हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इस कर्ज माफी पर करीब 35,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। दावा है कि यह महाराष्ट्र में अब तक की सबसे बड़ी किसान कर्ज माफी है, जिसका फायदा राज्य के 1.36 करोड़ में से करीब 31 लाख यानी 23 फीसदी किसानों को मिलेगा। यहां थोड़ा रुक कर सोचने की जरूरत है।
अभूतपूर्व कर्ज माफी के बावजूद महाराष्ट्र में 77 फीसदी किसानों को इसका कोई फायदा नहीं पहुंचेगा। इनमें से अधिकांश ऐसे छोटे किसान हैं जो बैंकों से कर्ज हासिल नहीं कर पाते और साहूकारों से कर्ज लेते हैं। या फिर ऐसे बड़े किसान हैं जो कर्ज माफी के दायरे में नहीं आते, भले ही उनका घाटा कितना ही ज्यादा क्यों न हो। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के 2013 में कराए एक सर्वे के मुताबिक, महाराष्ट्र में 57 फीसदी किसान परिवार कर्ज में डूबे हैं। सभी किसानों का पूरा कर्ज माफ करने के लिए सरकार को 1.14 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है, जबकि राज्य का कुल बजट ही करीब 2.57 लाख करोड़ रुपये है।
इस तरह अगर महाराष्ट्र सरकार अपने वादे पर खरी उतरती है, तब भी तकरीबन एक-चौथाई किसानों को ही कर्ज माफी का लाभ मिल सकेगा। इससे स्पष्ट है कि रोजाना औसतन सात किसानों की खुदकुशी देखने वाले महाराष्ट्र में सिर्फ कर्ज माफी से किसानों के संकट दूर होने वाले नहीं हैं। कर्ज माफी के अलावा भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। फिर किसानों को संकट से उबारने में कर्ज माफी की अहमियत को इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि साल 2015 में खुदकुशी करने वाले 8007 किसानों में से करीब 39 फीसदी किसानों ने कर्ज और आर्थिक तंगी की वजह से मौत को गले लगाया था।
कृषि ऋण माफी के लिए आंदोलन चलाने वाले स्वाभिमानी शेतकरी संघटना के प्रमुख राजू शेट्टी का कहना है कि इस समय किसानों की हालत इतनी खराब है कि कर्ज माफी जैसी दवा की तत्काल जरूरत है। भले ही यह कृषि संकट का स्थायी समाधान न हो, लेकिन इस कर्ज माफी से किसानों को उनकी मौजूदा बदहाली से बाहर निकलने में कुछ मदद जरूर मिलेगी।
उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान समेत देश के अन्य राज्यों पर भी किसानों के कर्ज माफ करने का दबाव बढ़ गया है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य और कई अर्थशास्त्री किसानों की कर्ज माफी के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं। बैंक ऑफ अमेरिका के मैरिल लिंच ने एक रिपोर्ट में 2019 के आम चुनाव से पहले राज्यों द्वारा जीडीपी के दो फीसदी (करीब 2.57 लाख करोड़ रुपये) के बराबर कृषि ऋण माफी की उम्मीद जताई, जिससे बैंकों की बैलेंस शीट पर बुरा असर पड़ेगा। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने किसानों की कर्ज माफी को 'नैतिक त्रासदी’ करार दिया है जबकि एसबीआई की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य ने इसे कर्ज अनुशासन बिगाड़ने वाला कदम बताया। तीन साल में कार्पोरेट जगत को मिले करीब 17.5 लाख करोड़ रुपये के फायदों, जान-बूझकर बैकों को करीब 56 हजार करोड़ रुपये का कर्ज दबाने वाले 5,275 डिफॉल्टरों और बैंकों के करीब 6.8 लाख करोड़ रुपये के डूबते कर्ज को देखते हुए इन अर्थशास्त्रियों का किसानों के प्रति एकदम विरोधाभासी रुख सामने आता है। तब न तो कर्ज अनुशासन का मुद्दा उठता है और न ही बैंकों की बैलेंस शीट की फिक्र होती। कृषि नीति के विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कृषि ऋण माफी को लेकर अर्थशास्त्रियों के दोहरे मानदंड पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यदि कार्पोरेट्स का कर्ज माफ करना आर्थिक समझदारी है तो फिर किसानों के कर्ज माफ करना गलत कैसे हो सकता है।
किसानों के जिस कर्ज को माफ करने को लेकर इतना विवाद खड़ा हुआ है, हर साल वित्त मंत्री उसमें बढ़ोतरी को बजट के दौरान एक उपलब्धि के तौर पर पेश करते हैं। साल 2004-05 से 2014-15 के दौरान संस्थागत कृषि कर्ज 1.25 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 8.45 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। वर्ष 2017-18 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रिकॉर्ड 10 लाख करोड़ रुपये के कृषि ऋण का एलान किया था। सितंबर, 2016 तक कृषि ऋणों का कुल बकाया 12.60 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। इनमें से 7.75 लाख करोड़ रुपये ही फसल कर्ज है, जबकि 4.84 लाख करोड़ रुपये टर्म लोन है।
साल 2013 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के अर्थशास्त्री आर. रामकुमार और पल्लवी चह्वाण के एक अध्ययन के मुताबिक, 44 फीसदी कृषि ऋण कमर्शियल बैंकों की शहरी और महानगरीय शाखाओं से बांटे गए थे। वर्ष 2005 से 2013 के दौरान कमर्शियल बैंकों से सीमांत किसानों को मिलने वाले 25 हजार रुपये तक के प्रत्यक्ष कृषि कर्ज की हिस्सेदारी 23 फीसदी से घटकर सिर्फ 4.3 फीसदी रह गई, वहीं एक करोड़ रुपये से ज्यादा के प्रत्यक्ष कृषि कर्ज की हिस्सेदारी 7.5 फीसदी से बढक़र 10 फीसदी पहुंच गई। देश में कितने किसान एक करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लेंगे, समझना मुश्किल नहीं है। जाहिर है किसान के नाम पर मिलने वाले कर्ज में कई कंपनियां और कार्पोरेट्स भी सेंध लगा रहे हैं।
दरअसल, नब्बे के दशक के बाद कृषि कर्ज से जुड़े नियम-कायदों में इस तरह बदलाव किए गए कि किसानों के नाम पर जारी होने वाले कर्ज में एग्री-बिजनेस से जुड़ी कंपनियां और कार्पोरेट्स सेंध लगाने लगे। प्रत्यक्ष कर सीधे तौर पर खेती से जुड़े कामों के लिए दिए जाते हैं जबकि अप्रत्यक्ष कर्ज कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियों के लिए मिलते हैं।
मध्यप्रदेश में हरदा जिले के किसान विष्णु सिंह देवड़ा बताते हैं कि पिछले साल दाल का दाम अच्छा था तो उन्होंने दो के बजाय छह हेक्टेअर में अरहर की बुवाई की, लेकिन बाजार में बेचने गए तो समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाया। सोयाबीन में तो और ज्यादा हालत खराब रही। क्योंकि पैदावार भी कम थी और दाम भी नहीं मिला। इस साल खेती से उन्हें करीब तीन लाख रुपये का शुद्ध घाटा हुआ है। अकसर कृषि ऋण माफी का विरोध इस आधार पर किया जाता है कि ऐसा होने से किसान कर्ज चुकाना ही बंद कर देंगे। लेकिन आरबीआई के आंकड़े अलग ही तस्वीर पेश करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में कृषि क्षेत्र का 7.4 फीसदी कर्ज दबाव में है, यानी जिन्हें लौटाना मुश्किल हो रहा है। औद्योगिक क्षेत्र में ऐसा कर्ज 19.4 फीसदी है यानी कर्ज लौटाने के मामले में किसान का रिकॉर्ड उद्योगपतियों के मुकाबले कहीं बेहतर है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2016 में केवल छह फीसदी कृषि कर्ज में डिफॉल्ट हुआ, जबकि कंपनियों ने 14 फीसदी कर्जों में डिफॉल्ट किया। इसमें संदेह नहीं है कि इस साल बंपर पैदावार और नोटबंदी के बाद जिस तरह आलू, प्याज, टमाटर, सोयाबीन, मूंग, अरहर, मक्का जैसी फसलों के दाम थोक मंडियों में धराशायी हुए हैं, उससे बहुत से किसानों के लिए कर्ज लौटाना मुश्किल हो जाएगा, इसलिए वे राहत के तौर पर सरकार से कर्ज माफी की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
कर्ज माफी की दरकार
महाराष्ट्र , 35,000, करोड़ रुपये
उत्तर प्रदेश, 36,500,करोड़ रुपये
राजस्थान, 30,000, करोड़ रुपये
हरियाणा, 23,000, करोड़ रुपये
पंजाब, 9,845, करोड़ रुपये
मध्यप्रदेश, 30,000, करोड़ रुपये