पूर्व कोयला सचिव एच.सी. गुप्ता और दो अन्य को सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा धोखाधड़ी के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश कैडर के कई वरिष्ठ अधिकारी सकते में हैं। इन्हें डर है कि राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह तेजी दिखा रहे हैं उससे उन पर भी शिकंजा कस सकता है और गुप्ता की तरह उनका भी नंबर आ सकता है। सरकार ने भी दोषी अफसरों पर कार्रवाई करने की तैयारी कर ली है ताकि नौकरशाही में भ्रष्टाचार और ढिलाई के मामले में कड़ा संदेश जाए। इस कड़ी में यूपीएसआईडीसी के प्रबंध निदेशक (एमडी) रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अमित घोष के खिलाफ विजिलेंस जांच शुरू कर दी गई है।
सत्ता में आते ही योगी आदित्यनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती व अखिलेश यादव की सरकार के दौरान योजनाओं में कथित अनियमितता और सार्वजनिक धन के बंदरबांट की जांच कराने की बात कही थी। पदभार संभालने के बाद दो माह के भीतर योगी ने अखिलेश सरकार की कई अहम परियोजनाओं की जांच का आदेश दे दिया है। इसमें गोमती रिवर फ्रंट, आगरा लखनऊ एक्सप्रेस-वे, जय प्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, पुराने लखनऊ के सौंदर्यीकरण जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं। मायावती के शासन (2007-12) में सरकारी स्वामित्व वाली चीनी मिलों की बिक्री का मामला भी योगी की निगाह में है। 2010-11 के दौरान की गई इन मिलों की बिक्री के लिए अप्रैल में विभागीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं। सरकार का मानना है कि अगर जरूरी हुआ तो सीबीआई जांच की सिफारिश भी की जाएगी।
योगी ने हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास कॉरपोरेशन (यूपीएसआईडीसी) के प्रबंध निदेशक (एमडी) रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अमित घोष के खिलाफ विजिलेंस जांच के आदेश दिए हैं। उन पर पद पर रहने के दौरान 1,100 करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ियों में शामिल रहने का आरोप है। उन्होंने ये गड़बड़ियां ट्रांस गंगा सिटी (कानपुर) और सरस्वती हाई-टेक सिटी (इलाहाबाद) में ठेका देने के दौरान की थीं। घोष को दो अगस्त 2016 को अखिलेश यादव सरकार ने एमडी बनाया था। लेकिन जब योगी सरकार आई तो 14 अप्रैल 2017 को उन्हें हटा दिया गया। यूपीएसआईडीसी के मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा की शिकायत पर जांच कराई जा रही है। मिश्रा खुद भी भ्रष्टाचार के आरोप में जांच के घेरे में हैं।
योगी ने मुख्यमंत्री बनने के एक सप्ताह बाद गोमती रिवर फ्रंट का मुआयना किया। उन्होंने प्रोजेक्ट के अधूरा रहने व लागत में सौ फीसदी वृद्धि होने पर नाराजगी जताई। गोमती रिवर फ्रंट की अनुमानित लागत 15 सौ करोड़ रुपये थी और अब भी इसका काम सिर्फ 60 फीसदी ही पूरा हो पाया है। अभी इसके पूरा होने के लिए अतिरिक्त 15 सौ करोड़ रुपये की मांग की गई है यानी इसकी लागत करीब तीन हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। योगी ने मौका-मुआयना करने के बाद देखा कि निर्माण करने वाली एजेंसी ने गुणवत्ता पर ध्यान के बजाय पानी के फव्वारे जैसे गैर-जरूरी सिविल कार्यों को प्राथमिकता दी है।
योगी ने रिटायर्ड जस्टिस आलोक कुमार सिंह को गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट की जांच की जिम्मेदारी दी थी, जिसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौप दी गई है और प्रोजेक्ट से जुड़े इंजीनियरों व ठेकेदारों के अलावा सरकार के कई सीनियर अफसरों को भी कटघरे में खड़ा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रोजेक्ट में पर्यावरणीय मुद्दों की अनदेखी गई। लागत भी जरूरत से ज्यादा बढ़ गई। इसके डिजाइन में त्रुटि भी थी। जांच में नदी से जुड़े एक रिटायर्ड इंजीनियर और लखनऊ आईआईएम के प्रोफेसर ने मदद की।
जस्टिस सिंह की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है ताकि अफसरों पर आरोप तय किए जा सकें और कार्रवाई की जा सके। नई समिति की कमान यूपी के कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना को सौंपी गई है। समिति के अन्य सदस्यों में राजस्व बोर्ड के अध्यक्ष प्रवीर कुमार, अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) अनूप चंद पांडे और लॉ एंड ऑर्डर के प्रमुख सचिव रंगनाथ मिश्रा शामिल हैं। समिति इस बात की सिफारिश करेगी कि क्या मामले में सीबीआई जांच कराई जा सकती है।
करीब 15 हजार करोड़ रुपये के आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट की भी जांच हो रही है। इसका उद्घाटन 21 नवंबर को अखिलेश यादव ने अपने पिता व तत्कालीन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में किया था। तब छह लेन के एक्सप्रेस-वे को बढ़ाकर आठ लेन कर दिया गया। इसका रास्ता दस जिलों आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर शहर, उन्नाव, हरदोई और लखनऊ होकर जाता है। इसका मकसद आगरा तक पहले से बने एक्सप्रेस-वे की कनेक्टिविटी लखनऊ तक करना था। यह अब भी अधूरा है और घोटाले के आरोपों के चलते जांच के दायरे में है। जिसमें आवासीय व खेती की जमीन को ऊंची दरों पर मुआवजे लेने के लिए दे दिया गया। इसके अलावा एक्सप्रेस-वे के लेखों की जांच व तकनीकी सर्वे के लिए एक केंद्रीय एजेंसी गठित की गई है। इससे पहले यूपी एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरण (यूपीईआईडीए) के अफसर ने फिरोजाबाद जिले में पांच चकबंदी अफसरों व दो दर्जन भू-स्वामियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। इन पर आरोप है कि इन्होंने अपनी कृषि भूमि आवासीय में बदलवा दी।
सौ दिन का रिपोर्ट कार्ड
28 अप्रैल को योगी ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार सरकारी मशीनरी व नौकरशाही में कार्य संस्कृति में बदलाव लाने के एजेंडे पर काम कर रही है। इसी के साथ मंत्रियों से सौ दिन के एजेंडे के लिए श्वेतपत्र जारी करने के लिए कहा गया है। कुछ सप्ताह पहले योगी ने राज्य की वित्तीय स्थिति तथा धन की जरूरतों के बारे में कई बैठकें कीं। यूपी के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि सौ दिन पूरा होने के बाद सभी विभाग फिर से समीक्षा करेंगे। गन्ना उद्योग व गन्ना विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सुरेश राणा ने कहा कि सौ दिन का रिपोर्ट कार्ड तय रूप से पिछली सरकारों के दौरान की गई वित्तीय अनियमितताओं पर अंकुश लगा पाएगा तथा सरकार के एजेंडे को अमलीजामा पहनाया जा सकेगा। कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि सौ दिन के रिपोर्ट कार्ड से भविष्य का रोडमैप तैयार हो सकेगा।
जांच के दायरे में अन्य प्रोजेक्ट
- अखिलेश ने पुराने लखनऊ के हुसैनाबाद क्षेत्र में एक संग्रहालय की नींव पिछले साल चार दिसंबर को यूपी में आचार संहिता लागू करने से कुछ सप्ताह पहले ही रखी थी।
- जय प्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय केंद्र जिसमें संग्रहालय, गेस्ट हाउस, विश्व स्तरीय तैराकी, ड्राइविंग स्कूल, कन्वेंशन सेंटर व खेल परिसर बनाया जाना था।
- लखनऊ इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम की जांच रिपोर्ट यूपी के खेल विभाग से मांगी गई है।
- अखिलेश शासन में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत किए गए सिविल कार्य की जांच की जा रही है। यह योजना केंद्र ने मनमोहन सिंह सरकार के समय शुरू की थी जिसका मकसद शहरी बुनियादी ढांचे का सुधार करना था। मोदी सरकार इस योजना को अटल मिशन के नाम से ले आई है।
- अन्य प्रोजेक्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में पीने के पानी की पाइप लाइन और ओवरहेड वाटर टैंक शामिल हैं।
- इसके अलावा सीबीआई पहले से ही यूपी में कथित खनन घोटाले की जांच कर रही है। इसमें बुंदेलखंड क्षेत्र में अवैध रूप से नदी किनारे खनन का मसला प्रमुख है।