आरएसएस से जुड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ का मानना है कि नीति आयोग की नीतियां विकास विरोधी हैं तथा मजदूरों को बदहाली के कगार पर ले जाने वाली हैं। उन्हें एसी कमरों में बैठकर बिना सोचे-समझे तैयार किया गया है। अगर इन सिफारिशों को लागू किया गया तो देश के छोटे उद्योग बंद हो जाएंगे और लोग बेरोजगार हो जाएंगे। इन मुद्दों पर बीएमएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सी.के. सजी नारायणन से आउटलुक के विशेष संवाददाता शशिकांत वत्स ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:
मोदी सरकार के तीन साल हो गए हैं लेकिन रोजगार का मोर्चा कठिन बना हुआ है?
नीति आयोग की गलत नीतियों के कारण ही रोजगार की दिशा में उपलब्धि हासिल नहीं हो पाई है। हालांकि मोदी और मोदी सरकार का इरादा अच्छा है। मोदीजी अभी देश में सबसे ज्यादा प्रेरक व्यक्तित्व हैं, देशभक्त हैं, देश के लिए वह कुछ करना चाहते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर आम जनता को कुछ नहीं मिला है। इसका कारण है गलत नीतियां। देश में वही नीतियां लागू करने की कोशिश हो रही है जो अमेरिका और यूरोप में फेल हो चुकी हैं। जैसे वित्तीय संकट वॉल स्ट्रीट से होकर पूरे विश्व में फैला था। ठीक इसी तरह की गलत नीतियां ही नहीं, बल्कि वॉल स्ट्रीट की बड़ी संस्थाओं को देखने वाले एक्सपर्ट देश में लाए जा रहे हैं। इन संस्थाओं को भी यही एक्सपर्ट सलाह दे रहे हैं, जिससे हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आईटी कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनी के आसार हैं। सरकार क्यों अर्थव्यवस्था में नई जान नहीं डाल पा रही है?
आईटी कंपनियों में इसकी आशंका है क्योंकि आईटी कंपनियों में रोजगार पैदा करने के मामले में सरकार का कोई कंट्रोल नहीं है। इसलिए ये सब कुछ अपनी मनमर्जी से कर रही हैं। अभी सरकार लेबर लॉ रिफॉर्म में चैप्टर 5-बी को खत्म करना चाहती है ताकि फैक्ट्री बंद करने के अधिकार मालिकों को मिल जाएं। अभी फैक्ट्री बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी लेनी होती है लेकिन यह क्लॉज रिफॉर्म के नाम पर निकालने की बात हो रही है। इसी का ट्रेड यूनियन विरोध कर रही हैं। इसका प्रस्ताव भी नीति आयोग ने ही दिया है।
श्रम कानूनों में ढिलाई के लिए दलील दी जाती है कि इससे उद्योग और निवेश बढ़ेगा, लेकिन यह नहीं हो पाया। इस पर आपकी क्या राय है?
जो लोग बाहर से यहां आते हैं उन लोगों के देश में एक मजबूत श्रम कानून है। यूरोप में श्रम कानून अच्छा है लेकिन जब भारत में आते हैं तो वह यूनियन फ्री चाहते हैं जबकि यूरोप में यूनियन बहुत मजबूत है। अपने देश का श्रम कानून और यूनियन मजबूत स्थिति में है। इसी तरह देख लीजिए, जापान में सबसे अच्छा वर्क कल्चर है जहां मालिक और कर्मचारी के बीच अच्छा रिश्ता होता है, वे पूरे देश में एक रोल मॉडल हैं। लेकिन जापान की कंपनी मारुति सुजुकी जब नोएडा और मानेसर में फैक्ट्री चलाती हैं तो उनकी मांग है कि ट्रेड यूनियन नहीं होनी चाहिए, स्थायी कर्मचारी नहीं होना चाहिए। सारा ठेका मजदूर होना चाहिए। ढिलाई के नाम पर केवल मजदूरों का शोषण करना चाहते हैं। इसलिए भारत पूरे विश्व में एक मैसेज फैलाता है कि यहां चीप लेबर उपलब्ध है। आप जितना शोषण कर सकते हैं, कर लीजिए। देश में गरीबी रेखा से नीचे रोजगार पैदा करने की कोशिश चल रही है, इसी को लेकर हमारा विरोध है।
आप सत्तारूढ़ दल से जुड़ा संगठन माने जाते हैं तब आपका किन मुद्दों को लेकर विरोध है?
हमारा विरोध 14 मुद्दों को लेकर है। इसमें कृषि, श्रम, एफडीआई, कोल नीति, फूड सब्सिडी, नए रोजगार पैदा करने, रात की पाली में महिलाओं के काम करने, ईपीएफ, ठेका मजदूरी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर समान काम के लिए समान वेतन आदि शामिल हैं। कोर्ट ने रूल 25 के आधार पर फैसला लिया था जिसे कानून से हटाने का प्रस्ताव है यानी स्थायी व ठेका मजदूरों के वेतन में असमानता पैदा करना है। कर्ज माफी व किसानों को ज्यादा सपोर्ट पर भी आयोग को ऐतराज है ।
आप नीति आयोग के पुनर्गठन की भी मांग कर रहे हैं?
आयोग सामाजिक क्षेत्र के बीपीएल, बनवासी, ग्रामीण, किसान व लघु उद्योग मजदूर की समस्याओं पर कुछ नहीं कहता है। उसका ध्येय है बड़े औद्योगिक घरानों को कैसे रिलीफ दी जाए। नियोक्ता के ईपीएफ में कम योगदान की बात करता है। ईपीएफ और ईएसआई दुनिया में मजदूरों के लिए दो बड़ी सामाजिक सुरक्षा की योजना हैं जिन्हें रोका नहीं जा सकता। भारत की परिस्थिति के अनुसार क्या होना चाहिए, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। यहां की परिस्थितियों को नजरअंदाज कर आयोग बेतुकी सिफारिशें लागू करना चाहता है।
रोजगार पैदा करने के मामले में सरकार की क्या नीतियां रही हैं और कितनी कामयाब रही हैं?
रोजगार सृजन के लिए बहुत कोशिश की जा रही है लेकिन गलत नीतियों के कारण रोजगार घट रहा है। मसलन एफडीआई से लघु व माइक्रो इंडस्ट्री खत्म हो जाएगी। कभी फरीदाबाद माइक्रो हब के तौर पर विकसित था और वहां परंपरागत सामान बनते थे लेकिन अब सारा खत्म हो गया यानी कोई मल्टीनेशनल कंपनी आती है तो दो हजार लोगों को रोजगार मिलता है लेकिन दूसरी तरफ दो लाख रोजगार चले जाते हैं। आज अमेरिका तक में रोजगार का संकट है। वहां भी यही नारा दिया जा रहा है कि अमेरिकी सामान खरीदें, अमेरिकी को नौकरी दें। एफडीआई से रोजगार का संकट ही पैदा हुआ है। एक तरह से आयोग कॉरपोरेट लॉबी को शक्तिशाली बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
महिलाओं के रात की पाली में काम करने के बारे में आयोग क्या कहता है?
आयोग ने अपनी नीति में कहा है कि महिलाओं को रात की पाली में काम करना चाहिए। इसे यूरोप से लिया गया है लेकिन भारत की स्थिति इसके विपरीत है। बेंगलुरु जैसे महानगर तक में महिलाएं रात में काम करने के दौरान सुरक्षित महसूस नहीं करतीं और यहां आईटी कंपनी रात की पाली से महिलाओं को हटाने पर विचार कर रही है। आयोग के विशेषज्ञों को भारत की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं है तभी अव्यावहारिक राय दी गई है।
श्रम कानूनों में क्या अंतर्राष्ट्रीय मानकों को भी नजरअंदाज करने की कोशिश की गई है?
अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) जैसे सबसे बड़े त्रिपक्षीय निकाय द्वारा तय किया जाता है। लेकिन देश में इसकी अनदेखी की जा रही है। संगठन के मानक पूरे विश्व के लिए तैयार किए गए हैं और उसके अनुसार यह तय होने चाहिए वरना संगठन में शिकायत कर सकते हैं। संगठन में भारत ने भी दस्तखत किया है जिसके चलते सरकार कुछ नहीं कर सकती। सरकार की तरफ से इंस्पेक्टरेट खत्म करने के प्रस्ताव पर संगठन में शिकायत की गई तो प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। नीति आयोग को आईओएल व कन्वेंशन की कोई जानकारी नहीं है जिसके चलते यह प्रस्ताव लाया गया था। इसमें कोई सलाह ट्रेड यूनियन के साथ नहीं की गई।
आप सरकार से किस तरह का भारत बनाने की उम्मीद रखते हैं?
हमारी अर्थव्यवस्था कई विषम स्थितियों का सामना कर रही है। देश में आज 50 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे या आसपास हैं। उनके लिए क्या नीति है। हमारे आदिवासी इलाकों में लोग आज भी कुपोषण से मर रहे हैं। उसके बारे में कुछ नहीं है और हमारे यहां अशिक्षित लोगों की आबादी भी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही मानव विकास सूचकांक जो इस बार एक अंक नीचे चला गया। पहले यह नंबर 150 देशों में 130 पर था जो इस साल में 131 पर आ गया। किसान भी खुदकुशी कर रहे हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी लगभग खत्म हो गया है और रोजगार बढ़ने के बजाय घट रहे हैं। नीति आयोग इन सभी मुद्दों पर नहीं सोच रहा है जिससे विकास पर असर पड़ा है। इन सभी मुद्दों पर सोचने की जरूरत है, तभी असली भारत की कल्पना की जा सकती है। पहले योजना आयोग रूसी मॉडल पर लाया गया था यानी समाजवादी दृष्टिकोण था लेकिन आयोग अब पूंजीवाद के सिद्धांत पर काम कर रहा है। इसकी सिफारिशों में कोई बुद्धिजीवी तत्व भी नहीं दिखता।
तो क्या आप पूंजीवाद के खिलाफ हैं?
1920 में नागपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में आरएसएस के संस्थापक डॉ. के.बी. हेगडेवार ने पूंजीवाद के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया था। अगर साम्यवाद नाकाम होगा तो पूंजीवाद भी नहीं रहेगा और 2008 में पूंजीवाद का यही हाल हुआ। आज पूरी दुनिया इसके विकल्प की तरफ देख रही है। आज नीति आयोग के सभी प्रस्ताव आम आदमी के खिलाफ हैं। सरकार भी इसमें कुछ प्रस्तावों के पक्ष में नहीं है। मसलन कृषि आय पर कर लगाना या दवा पर कीमतों का नियंत्रण हटाना।
संघ का कोल क्षेत्र में सुधार को लेकर विरोध पहले से रहा है। इसमें कितनी कामयाबी मिल पाई?
कोल सेक्टर में समस्या नहीं रही और कई कंपनियां मुनाफे में हैं। इस संगठित क्षेत्र में काफी संख्या में कर्मचारी हैं जिसके चलते सुधारों पर बल दिया गया है लेकिन नीति आयोग ने सिफारिश की है कि कोल की कीमत तय करने में अंतर्राष्ट्रीय ताकतें भी होनी चाहिए जिसे लेकर विरोध है। मजदूर संघ की मंशा केवल कर्मचारियों का पक्ष रखने को लेकर है कि सरकार कर्मचारियों के हित में क्या कदम उठा रही है।