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कोच पर आगा-पीछा सुधारों से बचने की चाल

बीसीसीआई के कर्ताधर्ता सुप्रीम कोर्ट के आदेश में फच्चर फंसाने के तलाश रहे तरीके
बर्मिंघम ने नेट पर मौजूद कुंबले

चैंपियंस ट्रॉफी के खिताब की रक्षा का अभियान भारतीय क्रिकेट टीम ने चार जून को एक जोरदार जीत से शुरू किया। भारतीय टीम की पाकिस्तान पर इस विजय से दो चीजें साफ होती हैं, एक तो यह कि भारतीय टीम की बल्लेबाजी की प्लानिंग और उसे अमल में लाने की काबिलियत बेजोड़ है और दूसरी यह कि विराट कोहली और अनिल कुंबले के बीच विवाद का इस पर खास असर नहीं है। हालांकि कोहली ने कहा है कि टीम में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन बीसीसीआई के सूत्र ऑफ द रिकॉर्ड बताते हैं कि जिस दिन से पूर्व स्पिनर इंडियन टीम के कोच बने हैं उसी दिन से कप्तान को पसंद नहीं हैं। कुंबले की नियुक्ति में शामिल रहे बोर्ड सचिव अजय शिर्के भी यह बात स्वीकार करते हैं।

पाकिस्तान को रौंदने के बाद टीम में कुछ दिनों के लिए गतिरोध कम रहने की उम्मीद है। लेकिन साथ ही, कोच के चयन की प्रक्रिया को भी थोड़ा झटका लगा है। कोच बनने की रेस में कुंबले (गौरतलब है कि बीसीसीआई ने उन्हें सीधे प्रवेश दिया था, उसके बाद ही उन्होंने आवेदन किया), वीरेंद्र सहवाग, लालचंद राजपूत, टॉम मूडी, डोडा गणेश, रिचर्ड पायबस सहित छह लोग हैं। बीबीसीआई क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी के तीन सदस्य सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण इन सभी लोगों का इंटरव्यू करेंगे। यह इंटरव्यू सीधे और स्काइप के जरिये होंगे। इंडियन क्रिकेट टीम के कोच को अपने रुटीन काम के साथ-साथ प्रशासनिक और क्रियात्मक दोनों पक्षों पर ध्यान देना पड़ता है। वहीं बोर्ड में पुराने जमे लोगों के बीच कुर्सी बचाने के अलावा, दूसरे किन्हीं मुद्दों को लेकर कोई साम्य नहीं है। कोच के लिए आवेदन करने वाले छह नामों के बीच कुंबले इक्कीस नजर आते हैं, क्योंकि उनकी कोचिंग की अनदेखी नहीं की जा सकती है। उनकी गाइडेंस में टीम ने 17 में से 12 टेस्ट मैचों में जीत हासिल की है, केवल एक में हार मिली चार मैच ड्रॉ हुए थे। इसके साथ ही वन-डे और टी-20 में इंडिया टॉप पर रहा। कुंबले बहुत कम ही आपा खोते हैं, शांत स्वभाव उनका सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है। विराट कोहली जैसे आक्रामक कप्तान के साथ वह बेहतर विकल्प हैं। उन्हें वेस्टइंडीज दौरे तक टीम का कोच बनाए रखा गया है। अगर एक कोच के रूप में लालचंद राजपूत और टॉम मूडी को देखें तो दोनों के सी.वी. में उम्दा उपलब्धियां शामिल हैं। राजपूत इस वक्त अफगानिस्तान के राष्ट्रीय कोच हैं और इससे पहले वह 2007-08 के दौरान भारतीय टीम के भी कोच रहे हैं। उनकी गाइडेंस में ही एमएस धोनी के नेतृत्व में भारतीय टीम ने सभी को हैरान करते हुए पहली बार साउथ अफ्रीका में टी-20 वर्ल्ड कप जीता था। लेवल-3 सर्टिफिकेट होल्डर, 55 साल के लालचंद राजपूत, इंडिया-ए टीम, इंडिया अंडर-23, अंडर-19, अंडर-15 टीम के भी कोच रहे हैं। लालचंद राजपूत गर्व के साथ कहते हैं कि अंडर-19 टीम ने कभी सीरीज नहीं हारी और विदेशी दौरों में सभी पांच मैच जीते। लेकिन फिर भी बीसीसीआई ने सीनियर टीम के लिए इस लो-प्रोफाइल कोच को कभी पर्याप्त मौके नहीं दिए हैं हालांकि वह पूरी तरह इसके योग्य हैं।

मूडी दो बार विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलियाई टीम के साथ रहे हैं। इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 2007 में श्रीलंका को विश्व कप फाइनल में पहुंचाना था हालांकि वह वहां ऑस्ट्रेलिया से हार गई थी। इस वक्त वह सनराइजर्स हैदराबाद के हेड कोच हैं। इस टीम में पिछला खिताब जीता था और इस बार मामूली अंतर से हारी थी। मूडी ने पिछले साल के अलावा 2005 में भी कोच के लिए आवेदन किया था। पिछले साल जहां वह कुंबले से हार गए थे वहीं 2005 में ग्रेग चैपल से पिछड़ गए थे। अभी वह मेलबर्न रेंगेड्स बीबीएल टीम के क्रिकेट निदेशक हैं।

52 साल के साउथ अफ्रीकी पायबस ने 1999 में विश्व कप के दौरान पाकिस्तान को गाइड किया था, हालांकि फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से पाकिस्तान हार गया था। इसके साथ ही, उन्होंने बांग्लादेश को भी कोचिंग दी है गौरतलब है कि चोटों की वजह से उनका खिलाड़ी के रूप में कॅरियर छोटा ही रहा है, इस वक्त वह वेस्टइंडीज क्रिकेट के डायरेक्टर हैं। 43 साल के डोडा गणेश, पिछले चार साल से गोवा की टीम को कोचिंग दे रहे हैं, इसके अलावा उन्होंने अंडर-19 और अंडर-16 टीम को भी कोचिंग दी है।

कोच विवाद ने बीसीसीआई में सुधारों की गति पर भी ग्रहण लगा दिया है। गौरतलब है कि लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में सुधार के लिए निर्देश जारी किए थे लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। रामचंद्र गुहा के क्रिकेट प्रशासक समिति से इस्तीफा देने के बाद सुधारों को एक और धक्का पहुंचा है। बीसीसीआई की क्रिकेट प्रशासन समिति का कहना है सुधारों में गति इसलिए कम है कि सुप्रीम कोर्ट को मुख्य विवाद सहित कई मामलों पर स्थिति साफ करनी है। लोढ़ा कमेटी क्रिकेट में सुधार को लेकर बहुत सारे सुझाव दिए थे लेकिन सभी ठंडे बस्ते में पड़े हैं। बीसीसीआई और स्टेट बोर्ड सुझावों के कई बिंदुओं पर उलझे हुए हैं ताकि अपने कार्यकाल को और ज्यादा लंबा खींच सकें। इन सबसे देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आर.एम. लोढ़ा नाखुश हैं। आउटलुक को जस्टिस लोढ़ा बताते हैं कि यह सब बहाने हैं। उनका कहना है इन बातों को तब तो समझा जा सकता था जब सुप्रीम कोर्ट यह कहता कि तुम सब दूर रहो और जब तक हम कुछ नहीं कहते तब तक कुछ मत करो, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, ये लोग बिना मतलब मामले को पेचीदा बना रहे हैं। उनका कहना है कि जो लोग सुधार नहीं करना चाहते, वे ही काम में बाधा पैदा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेट प्रशासन समिति के सुझाव लागू करने को कहा था। वहीं इस पर क्रिकेट प्रशासक समिति का कहना है कि हमारे हाथ बंधे हैं, जब तक सुप्रीम कोर्ट साफ-साफ निर्देश नहीं दे देता है तब तक हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई जुलाई में होनी है। इसके साथ ही जस्टिस लोढ़ा का कहना है कि कई लोग हैं जो समिति की रिपोर्ट के बारे में जानना चाहते हैं। किसी रिपोर्ट या कानून को समझना सबके बस की बात नहीं है इसलिए क्रिकेट प्रशासन समिति का काम है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करे, हमें उम्मीद है कि वे अपना काम अच्छे से करेंगे। सुधारों की प्रक्रिया स्टेट एसोसिएशन से शुरू होनी चाहिए। सुझावों के अनुसार स्टेट एसोसिएशन को अपने संविधान में, बीसीसीआई को चुनावों में बदलाव करना चाहिए। उनका कहना है कि क्रिकेट में हितों में टकराव के बारे में तो हमने अपने सुझावों में एक पूरा चैप्टर दिया है। इस वक्त जो क्रिकेट में चल रहा है उससे जस्टिस लोढ़ा खुश नहीं हैं। अब सबकी आंखें भारतीय क्रिकेट टीम के बनने वाले कोच पर लगी हैं, कोच की नियुक्ति भी एक संकेत मिलेगा कि बीसीसीआई के टॉप बॉस कौन होने वाले हैं।    

 

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