तीस जून की आधी रात को संसद का सेंट्रल हाल देश में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) नाम की नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के लागू होने का गवाह बनेगा। राजनैतिक आजादी हासिल करने के 70 साल बाद भी देश एक बाजार नहीं बन पाया। राज्य की तो छोड़िए, कई बार तो एक ही राज्य के अलग-अलग शहर अलग बाजार बने रहे क्योंकि एंट्री टैक्स जैसे स्थानीय कर जो लागू हैं। इसके विपरीत, यूरोपीय संघ का उदाहरण दशकों से हमारे सामने है, जहां 28 अलग-अलग देश अपनी-अलग राजनैतिक पहचान के साथ गुड्स, सर्विसेज, कैपिटल और लेबर के मामले में इकलौते बाजार के रूप में मौजूद हैं। लेकिन अब ऐतिहासिक बदलाव हो रहा है। यही वजह है कि देश को इकलौते बाजार में तब्दील करने वाली नई कर व्यवस्था की शुरुआत के लिए संसद के उसी सेंट्रल हाल को चुना गया है, जहां 1947 में आजादी की घोषणा हुई थी।
जीएसटी में केंद्र सरकार और राज्यों के सभी अप्रत्यक्ष कर समाहित हो जाएंगे। इससे देश में कारोबारी व्यवस्था के सरलीकरण के साथ ही कर चोरी पर अंकुश से लेकर वस्तुओं और सेवाओं की दरें कम होने का दावा किया जा रहा है। जीएसटी से देश में राजस्व संग्रह में भारी बढ़ोतरी की भी उम्मीद है। इन दोनों बातों के चलते देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एक से दो फीसदी तक की बढ़ोतरी का दावा सरकार और एक्सपर्ट कर रहे हैं।
यह व्यवस्था बेहतर होगी, इसको लेकर देश के राजनैतिक दलों में सहमति भी बनी। यही वजह है कि राज्यसभा में बहुमत न होने के बावजूद केंद्र की एनडीए सरकार जीएसटी के लिए 122वां संविधान संशोधन पारित कराने में कामयाब रही। नई व्यवस्था देश में क्षेत्रीय आर्थिक असमानता को कम करने में मददगार होगी क्योंकि उत्पादक राज्यों के मुकाबले उपभोक्ता राज्यों का राजस्व बढ़ेगा। उत्पादों के ट्रांसपोर्टेशन में जाया होने वाले करीब 16 फीसदी समय की बचत भी होगी।
लंबी जद्दोजहद के बाद वस्तुओं और सेवाओं की दरें तय की गईं और उनकी कैटेगरी बनाई गई। इनमें 81 फीसदी वस्तुओं पर कर की दर 18 फीसदी या उससे कम है। ऐसा महंगाई दर को काबू में रखने के लिए किया गया है। जीएसटी लागू करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच कर संग्रह के अधिकारों का बंटवारा हुआ। सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी के साथ यूटीजीएसटी और राज्यों को होने वाले संभावित राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए भी कानून बना। हालांकि नई व्यवस्था में जिस 'एक देश, एक बाजार, एक कर’ की आदर्श व्यवस्था की परिकल्पना की गई थी, वह नहीं हो पाई। जहां जीएसटी के लिए पांच दरें होंगी, वहीं सेवा कर के लिए एक दर की जगह कई दरें होंगी। कुल मिलाकर काम बहुत हुआ और जीएसटी लॉन्च होने को तैयार है। लेकिन इस लॉन्च पैड से एक-तिहाई से ज्यादा कारोबार अभी भी बाहर रह गया है। शराब, पेट्रोलियम उत्पाद, बिजली और रियल एस्टेट जैसे अधिक राजस्व देने वाले क्षेत्र इससे बाहर रह गए। इससे सिंगल मार्केट का दावा कमजोर होता है क्योंकि इन उत्पादों के लिए राज्यों में कर की दरें और दाम दोनों अलग होंगे। कहा जा रहा है कि बाद में इनके बारे में भी सोचा जाएगा। हालांकि जिस इनपुट क्रेडिट की सुविधा को बड़े फायदे के रूप में नई व्यवस्था के लिए बेचा जा रहा है, उस मामले में इन उत्पादों के बाहर रहने से इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा। नतीजा यह होगा कि या तो सामान महंगा रहेगा या फिर कारोबारी का फायदा कम होगा।
इस पूरी कवायद की परीक्षा इसके अमल में होगी। इसमें बहुत कुछ टेक्नोलॉजी पर आधारित है। हर रोज करोड़ों इनवायस लोड होंगी और इनकी प्रोसेसिंग होगी। जीएसटी नंबर लेना सभी कारोबारियों के लिए अनिवार्य है। वैसे, देश के कॉर्पोरेट जगत का बड़ा हिस्सा कह रहा है कि वह अभी तैयार नहीं है क्योंकि उसकी पूरी अकाउंटिंग व्यवस्था इससे बदलने वाली है। लेकिन सरकार का कहना है कि कई साल से यह चल रहा है इसलिए कॉर्पोरेट को शिकायत करने का कोई हक नहीं है। यह बात अलग है कि जीएसटी से संबंधित नियम काफी देरी से तय हुए हैं। कई मामलों में तो 30 जून को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में फैसला होगा। ऐसे में कंफ्यूजन बेहिसाब है। यह कंफ्यूजन केवल कारोबारियों के बीच ही नहीं, उपभोक्ताओं के मामले में भी है। जीएसटी के नियमों को लेकर कारोबारियों में कई तरह की चिंता और डर है।
एक बड़ी चिंता छोटे कारोबारियों की है जिनमें करीब 60 फीसदी अभी भी ऐसे हैं जो कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हालांकि छोटे कारोबारियों को इससे बाहर रखा गया है और एक निश्चित सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को कंपोजिट स्कीम का विकल्प दिया गया है। लेकिन ये लोग इनपुट क्रेडिट का फायदा नहीं ले सकेंगे। फिर, ये कारोबारी उस संगठित क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा कैसे करेंगे, जो इनपुट क्रेडिट का फायदा लेगा। यह सही है कि देर-सबेर देश की अर्थव्यवस्था संगठित या औपचारिक ही होनी है और उसमें अनौपचारिक क्षेत्र के लिए कोई जगह नहीं होगी।