वसुंधरा राजे से राजस्थान में सक्रिय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं-कार्यकर्ताओं और उसमें भी दिग्गज घनश्याम तिवाड़ी का छत्तीस का आंकड़ा कोई नया नहीं है, लेकिन इस बार वार-प्रतिवार का सिलसिला ज्यादा तीखा होने लगा है। छठी बार विधायक चुने गए संघ पृष्ठभूमि के तिवाड़ी ने दो महीनों में मुख्यमंत्री पर इतने हमले किए कि विरोधी भी हैरान हैं। यह चर्चा आम है कि जो काम कांग्रेस नहीं कर पाई, वह अकेले तिवाड़ी बेखौफ कर रहे हैं।
तिवाड़ी ने हाल में मुख्यमंत्री पर राजनैतिक ही नहीं, व्यक्तिगत आरोपों की भी बौछार कर दी है। तिवाड़ी का आरोप है कि पिछले बजट सत्र में 26 अप्रैल 2017 को पारित 'राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) विधेयक 2017’ की आड़ में मुख्यमंत्री सिविल लाइंस में बंगला नंबर 13 को हड़पना चाहती हैं, जिसकी कीमत लगभग दो हजार करोड़ रुपए है और इसे आजीवन अपना निवास बनाना चाहती हैं। तिवाड़ी ने राज्यपाल कल्याण सिंह को पत्र लिखकर इस विधेयक को नामंजूर करने की मांग की है। उन्होंने इस मुद्दे पर राज्य के लोकायुक्त को भी ज्ञापन दिया है। इस विधेयक में प्रावधान है कि पूर्व मुख्यमंत्री चाहे किसी पद पर चला जाए, मकान उसके पास बना रहेगा। विधेयक की धारा 7 ख में लाया गया संशोधन पूर्व मुख्यमंत्रियों को उनके पूरे जीवनकाल के लिए कई विशेष सुविधाएं प्रदान करता है।
बकौल तिवाड़ी, 2008 में हार के पहले ही राजे ने 13, सिविल लाइंस का बंगला अपने लिए आवंटित करवा लिया था। 2008 से 2017 तक इस बंगले को आलीशान महल में बदलने के लिए जनता का पैसा भी पानी की तरह बहाया गया। इस पर उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफे के बाद भी कब्जा कायम रखा। दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद भी 8, सिविल लाइंस के बजाय 13, सिविल लाइंस में ही रह रही हैं। 8, सिविल लाइंस तो मुख्यमंत्री का आधिकारिक निवास ही है, वह किसी और को आवंटित नहीं हो सकता।
तिवाड़ी के मुताबिक, बंगले के चारों ओर लगभग 15 फुट ऊंची दीवार खींचकर इसकी किलेबंदी-सी कर दी गई है। नाम भी निजी आवास की तरह 'अनंत विजय’ कर दिया गया है, जो नियमों के विरुद्ध है। उन्होंने मांग की है कि दस दिन के भीतर 13, सिविल लाइंस को मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास घोषित किया जाए या राजे 8, सिविल लाइंस में चली जाएं। उन्होंने 13, सिविल लाइंस के कायांतरण पर अब तक किए गए खर्च को सार्वजनिक करने की भी मांग की है। मांगें न मानने की स्थिति में उन्होंने अपने संगठन दीनदयाल वाहिनी के बैनर तले आंदोलन और सत्याग्रह करने की चेतावनी भी दी है। तिवाड़ी ने मुख्यमंत्री को 'अनुशासनहीनता की महारानी’ का खिताब दे डाला है।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री खुद तो चुप हैं लेकिन उनके खेमे ने जवाब में तिवाड़ी के खिलाफ भी कई राजनैतिक और आर्थिक आरोप जड़ दिए हैं। कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी और परिवहन मंत्री यूनुस खान तथा राजस्थान अंतरराज्यीय जल-विवाद समझौता समिति के अध्यक्ष रोहिताश्व शर्मा ने तिवाड़ी पर 'लैंड बैंक’ बनाने का आरोप लगाया है। तिवाड़ी इसे चरित्रहनन की कोशिश मानते हैं। उन्होंने राज्य भाजपा की मीडिया प्रकोष्ठ के खिलाफ जयपुर के एक थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई है। दरअसल, इस दंगल की नींव 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही पड़ गई थी जब संघ और तिवाड़ी जैसे नेताओं के विरोध के बावजूद राज्य की कमान वसुंधरा राजे को सौंप दी गई। सांगानेर सीट से लगभग 65,000 मतों से जीते तिवाड़ी मंत्री नहीं बनाए गए। मुख्यमंत्री मोटे तौर पर तिवाड़ी के आरोपों को नजरअंदाज करती रही हैं लेकिन नागौर विधानसभा उपचुनाव में पार्टी की जीत के बाद राजे के तेवर कड़े हो गए। तिवाड़ी की अनुशासनहीनता के खिलाफ प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी की सिफारिश पर केंद्रीय नेतृत्व ने छह मई को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
नोटिस के जवाब में तिवाड़ी ने राजे के कथित तौर पर विवादास्पद तौर-तरीकों का भारी-भरकम कच्चा-चिट्ठा केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दिया। इसमें पिछले 8-9 वर्षों का ब्योरा और राजे के सरकारी कामकाज के विरुद्ध गंभीर आरोप भी हैं। तिवाड़ी के दो किस्तों में जवाब की पहली किस्त 74 पृष्ठों की है जिसमें छह पेज तो जवाब है, बाकी 68 पेज संलग्नक हैं।
'लैंड बैंक’ के आरोप पर तिवाड़ी कहते हैं कि यही आरोप पहले एक कांग्रेसी नेता लगा चुके हैं, जिनके खिलाफ मामला कोर्ट में विचाराधीन है। जो भी हो, राजस्थान में यह आरोप-प्रत्यारोप और तीखा होने के ही आसार हैं। विपक्षी कांग्रेस तो भाजपा में मचे इस कोहराम का मजा ही ले रही है। इसका नतीजा क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा।