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स्मार्ट बनने के दो साल

अगले दो साल में राजस्थान के चार शहरों को स्मार्ट सिटी के तहत पूरे करने हैं दो सौ से ज्यादा प्रोजेक्ट
उदयपुर का नजारा

करीब पांच लाख की आबादी वाले उदयपुर शहर के नगर निगम का सालाना बजट लगभग 300 करोड़ रुपये है। जिसका बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, भत्तों और साफ-सफाई के नियमित कामों पर खर्च हो जाता है। फिर भी आज उदयपुर नगर निगम 1200 करोड़ रुपये से ज्यादा की विकास योजनाओं पर काम कर रहा है। यानी नगर निगम के पास अपनी वित्तीय क्षमतासे कई गुना ज्यादा धनराशि खर्च कर झीलों की नगरी के कायाकल्प का मौका है। यह मौका मिला है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर शुरू हुए स्मार्ट सिटी मिशन की वजह से। उदयपुर ही नहीं राजस्थान के जयपुर, अजमेर और कोटा जैसे शहरों के पास भी स्मार्ट सिटी मिशन के जरिए चमकने का अवसर है।

राजस्थान के स्थानीय निकाय विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. मनजीत सिंह बताते हैं कि शहरी विकास से जुड़ी विभिन्न योजनाओं के जरिए राज्य में 2015 से 2019 के दौरान करीब 40 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। स्मार्ट सिटी मिशन में राज्य के चार शहर शामिल हैं जबकि 29 शहरों को अटल मिशन (अमृत योजना) के लिए चुना गया है। खास बात यह है कि इनमें शहरों के बुनियादी ढांचे, साफ-सफाई, जलापूर्ति और सीवरेज से जुड़े काम तो शामिल हैं ही, कई नए प्रोजेक्ट भी शुरू किए गए हैं। मिसाल के तौर पर, स्ट्रीट लाइटों को एलईडी से रोशन करने का अभियान राज्य के सभी 121 नगर निकायों में चल रहा है, जिसके तहत 7.59 लाख एलईडी लाइटें लगाई जा चुकी हैं। इस अभियान के तहत देश भर में लगी 24 लाख एलईडी स्ट्रीट लाइटों में से करीब एक तिहाई अकेले राजस्थान में हैं। मनजीत सिंह के मुताबिक, इससे राजस्थान के शहरी निकायों के बिजली बिल में सालाना करीब 150 करोड़ रुपये की बचत होगी।

उदयपुर नगर निगम के आयुक्त सिद्धार्थ सिहाग मानते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के अलावा स्मार्ट सिटी मिशन उदयपुर जैसे शहरों के लिए अपनी क्षमता विकसित करने का भी बड़ा मौका है। वरना नगर निगम को आमतौर पर साफ-सफाई जैसी सेवाओं तक ही सीमित माना जाता है। लेकिन जब स्मार्ट सिटी मिशन के लिए शहर के निवासियों से सुझाव मांगे गए थे तो 60 हजार से ज्यादा सुझाव मिले। इस फीडबैक के आधार पर शहर में ओपन एयर जिम शुरू करने और सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें लगाने जैसी पहल हुई। इसके अलावा फतेहसागर और गोवर्धन सागर झीलों को सीवर मुक्त किया गया। उदयपुर की प्रसिद्ध पिछोला झील को भी सीवर मुक्त कर दिया जाएगा।

सिहाग की मानें तो सबसे ज्यादा असर स्मार्ट सिटी मिशन को एक सरकारी योजना के बजाय नागरिकों की मुहिम के तौर पर चलाने से पड़ रहा है। वह बताते हैं कि शहर की झीलों में सीवरेज का पानी गिरने की सूचना देने पर पुरस्कार देने की योजना शुरू की गई थी। पिछले छह महीने में इस तरह की सिर्फ एक शिकायत मिली। अब लोग झीलों को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने देश में 100 स्मार्ट सिटी बनाने का वादा किया था। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद स्मार्ट सिटी की खूब चर्चा हुई लेकिन नए स्मार्ट सिटी बसाने के बजाय अब जोर पुराने शहरों को स्मार्ट बनाने पर है। दो साल पहले शुरू हुए स्मार्ट सिटी मिशन का काफी समय यह तय करने में गुजर गया कि स्मार्ट सिटी किसे कहा जाए और इस मिशन के तहत शहरों को स्मार्ट कैसे बनाया जाएगा। लंबी जद्दोजहद के बाद तय हुआ कि स्मार्ट सिटी के तहत शहरों में बेहतर बुनियादी ढांचे और जीवन की गुणवत्ता सुधारने पर जोर होगा। इसके लिए आईटी और स्मार्ट सॉल्यूशंस की मदद भी ली जा सकती है। ये ऐसे शहर होंगे जो देश के बाकी शहरों के लिए उदाहरण बन सकें। राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के आधार पर स्मार्ट सिटी मिशन के तहत अब तक 90 शहरों का चयन हो चुका है, जिनमें से 60 शहरों में प्रोजेक्ट शुरू हो गए हैं।

शहरी ट्रांसपोर्ट के विशेषज्ञ अजय अग्रवाल का कहना है कि स्मार्ट सिटी के तहत 1.33 लाख करोड़ रुपये के विकास कार्य शहरी क्षेत्रों में होने जा रहे हैं। यह बड़ा निवेश है। अगर सही तरीके से इस पैसे का इस्तेमाल किया जाए तो शहरों में जीवन की स्थितियों को बेहतर किया जा सकता है। लेकिन मिशन की ज्यादातर परियोजनाएं अभी प्लानिंग के स्टेज पर हैं, इसलिए असर दिखने में समय लगेगा।

स्मार्ट सिटी मिशन की चुनौतियों और अवसरों को राजस्थान के चार शहरों जयपुर, कोटा, अजमेर और उदयपुर के जरिए समझा जा सकता है। इन चारों शहरों में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 7025 करोड़ रुपये की योजनाओं को मंजूरी मिली है। इनमें से 5337 करोड़ रुपये शहरों के कुछ खास इलाकों पर खर्च होंगे। इस मुद्दे पर सवाल भी उठ रहे हैं कि स्मार्ट सिटी का अधिकांश फंड शहर के छोटे से हिस्से में खर्च होगा। इसके अलावा योजना की रफ्तार को लेकर भी स्थिति बहुत उत्साहजनक नहीं है। मिसाल के तौर पर, जयपुर में स्मार्ट सिटी के 46 में से अभी तक केवल चार

प्रोजेक्ट पूरे हुए हैं जबकि अधिकांश प्रोजेक्ट प्लानिंग के दौर में हैं। अजमेर में स्पेन की जिस फर्म को कंसल्टेंसी का जिम्मा दिया गया था, वह उम्मीदों के अनुसार काम नहीं कर पाई तो उसका अनुबंध बीच में रद्द कर दिया गया है। अजमेर नगर निगम के आयुक्त हिमांशु गुप्ता का कहना है कि स्मार्ट सिटी जैसे बड़े मिशन को लागू करने में इस तरह की चुनौतियां आनी स्वाभाविक हैं। लेकिन अहम बात यह है कि इस मिशन के तहत कई आईटी आधारित काम भी हो रहे हैं, जो नगर निगम की प्राथमिकता में नहीं थे। उदाहरण के तौर पर अजमेर में 4जी वाई-फाई और सीसीटीवी कैमरे लगेंगे।

स्मार्ट बनने की दौड़ में अब तक विभिन्न शहरों का जोर नए-नए तरह के प्रोजेक्ट पेश करने पर रहा है। जयपुर में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत पुराने तलाबों से लेकर सोलर लाइट लगवाने, स्मार्ट टॉयलेट बनवाने, सड़कों को स्मार्ट बनाने और एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग के लिए ऐप विकसित करने जैसे काम हाथ में लिए गए हैं। अब सबसे बड़ी चुनौती इन्हें समय पर पूरा करने की है। अगले दो साल के भीतर चारों शहरों को करीब सात हजार करोड़ रुपये के 250 प्रोजेक्ट पूरे करने होंगे। तभी पता चलेगा कि ये शहर किस हद तक स्मार्ट बन पाए हैं।

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