यह उम्मीदों और आकांक्षाओं का ही आलम था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को इस साल विधानसभा चुनावों में कुल 403 में से 325 सीटों का तोहफा मिल गया था। फिर, योगी आदित्यनाथ को जैसे ऊंचे दावों के साथ मुख्यमंत्री की गद्दी सौंपी गई, उससे भी प्रदेश के लोगों में हर मोर्चे पर हालात बदलने की उम्मीद बंधी। लेकिन योगी सरकार के सौ दिन क्या इन उम्मीदों पर खरा उतर पाए हैं? बेशक, ये शुरुआती दिन ही हैं पर मोटे तौर पर ये सौ दिन योगी सरकार के लिए उपलब्धियों से ज्यादा नाकामियां ही लेकर आए हैं। योगी सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कोई ठोस नीति निर्धारण भी नहीं कर पाई है। हालांकि 27 जून को आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सौ दिन की उपलब्धियों का ब्योरा देते हुए कहा कि राज्य में महिलाएं और बच्चियां अब पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रही हैं। लोक कल्याण संकल्प पत्र के वादों को पूरा करने की दिशा में महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। गन्ना किसानों को 22,517.52 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।
इससे पहले भी मुख्यमंत्री अपनी सभाओं में जमकर अपने काम और भविष्य की योजनाओं के पुल बांधते रहे हैं। लेकिन उनके दावों के उलट प्रदेश में कानून-व्यवस्था का हाल यह है कि विपक्ष ही नहीं, पार्टी के नेता, पदाधिकारी और सरकार के मंत्री भी मानते हैं कि इस ओर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। वैसे, योगी सरकार के मंत्री कहते हैं कि उन्हें राज्य का ढांचा जर्जर हालत में मिला, इसलिए सुधार करने में कुछ समय लगेगा। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा कहते हैं, ''यह किसी से छुपा नहीं है कि हमें किस हाल में ये विरासत प्राप्त हुई। हम अपनी तरह से सरकारी तंत्र को सुधारने पर काम कर रहे हैं और सुधार हो भी रहा है।’ लेकिन समाजवादी पार्टी नेता, पूर्व कैबिनेट मंत्री अभिषेक मिश्रा कहते हैं, ''सौ दिन महज बातों और दावों में ही बीत गए। राज्य में अपराध बढ़ते जा रहे हैं। सरकार के मंत्री दावा करते हैं कि काफी सड़कों का कायाकल्प हो चुका है, मगर मुझे तो राजधानी लखनऊ की सड़कों में भी कोई सुधार नजर नहीं आता है।’
अपनी सख्त और दृढ़ छवि के बावजूद योगी कई मामलों में नाकाम रहे हैं। योगी सरकार के विभिन्न मोर्चों पर कामकाज का एक आकलन:
कानून-व्यवस्था: राज्य में कानून-व्यवस्था का मामला योगी सरकार के गले की हड्डी बन गया है। उनके मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद, अपराध की घटनाओं में कमी आई थी, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, अपराध बढ़ते गए और ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिससे अब लोग कहने लगे हैं कि योगी राज में कानून-व्यवस्था की हालत पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार से तो बेहतर नहीं है।
गड्ढा मुक्त सड़कें: योगी ने घोषणा की थी कि जून 15 तक प्रदेश की सड़के पूरी तरह गड्ढा मुक्त हो जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है और बरसात का मौसम दस्तक दे चुका है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी माना है कि केवल 85 प्रतिशत सड़के ही गड्ढा मुक्त हुई हैं। हालांकि यह भी अतिशयोक्ति है। क्योंकि लखनऊ की सड़कों के गड्ढे भी कम नहीं हुए हैं, बल्कि पिछले तीन महीनों में बढ़ ही गए हैं।
गन्ना भुगतान: अपने चुनावी वादों में भाजपा ने गन्ना किसानों का शत-प्रतिशत भुगतान करने का वादा किया था। योगी ने 23 मार्च को मिल मालिकों को बकाया चुकाने के लिए एक महीने का वक्त भी दिया था, लेकिन अब तक गन्ने का शत-प्रतशत भुगतान नहीं हो पाया है। अब भी किसानों का करीब 3000 करोड़ रुपये का बकाया है, जिसमें सर्वाधिक निजी मिलों पर, करीब 2500 करोड़ रुपये बकाया है।
गेहूं खरीद: योगी सरकार ने एक अप्रैल से 15 जून के बीच 80 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस अवधि तक करीब 35 लाख टन की ही खरीद हुई है, जबकि प्रदेश में इस वर्ष कुल 300 लाख टन का गेहूं हुआ था। हालांकि खरीद पहले से अधिक हुई है लेकिन यह नाकाफी है।
फसली ऋण का गणित: अपनी पहली ही मंत्रिमंडलीय बैठक में योगी सरकार ने राज्य में छोटे और मझोले किसानों के करीब 36000 करोड़ रुपये का फसली ऋण माफ करने का ऐलान कर दिया। लेकिन बाद में, पता चला कि माफ राशि पिछले 2016-17 वित्त वर्ष की नहीं, बल्कि उसके पहले 2015-16 के लिए थी। चुनाव 2017 में हुए थे तो ये उम्मीद थी कि ऋण माफी भी 2016-17 की होगी लेकिन सरकार ने इस बारे में भी किसानों को निराश किया।
निजी विद्यालयों की फीस: भाजपा के 'लोक कल्याण संकल्प पत्र 2017’ में उल्लेख था कि सरकार प्राइवेट स्कूलों की फीस व्यवस्थित करने के लिए एक पैनल का गठन करेगी, ताकि निजी शिक्षण संस्थानों में ऊंची फीस से राहत मिले। नया सत्र शुरू हो चुका है और अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों में मुफ्त वर्दी, किताबें, बस्ते और जूते का वादा भी अधूरा ही है।
मुफ्त लैपटॉप: संकल्प पत्र में हर कॉलेज में दाखिला लेने वाले युवा को मुफ्त लैपटॉप और एक जीबी डाटा पैक देने की बात कही गई थी। नया सत्र शुरू हो चुका है और अभी कोई घोषणा नहीं हुई है।
यांत्रिक कसाईघरों की बंदी: प्रदेश के सभी यांत्रिक कसाईघरों की बंदी का चुनावी वादा भी अधूरा है। एक भी वैध यांत्रिक कसाईघर बंद नहीं हुआ है। बाद में यह स्पष्टीकरण दिया गया कि केवल अवैध रूप से चल रहे कसाईघरों को बंद किया जाएगा।
रोजगार: पत्र में, पांच साल में 70 लाख नई नौकरियों के सृजन की बात कही गई है, अब तक योगी सरकार इसकी कोई रूपरेखा तैयार नहीं कर पाई है।
बिजली: राज्य सरकार ने केंद्र के साथ 'पॉवर फॉर आल’ पर करार तो कर लिया है, लेकिन गर्मी के मौसम में बिजली आपूर्ति की हालत एकदम भी दुरुस्त नहीं है।
इसके अलावा भी कई मामले हैं। जैसे, किसान मंडियों को नया स्वरूप देने की योजना का खाका पेश नहीं हो पाया है। केन-बेतवा जोड़ने का प्रस्ताव अभी कागजों में ही है। लेकिन पूर्व मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता कहते हैं, ''इस सरकार की अच्छी बात है कि सरकार के मंत्री कर्मठ हैं और नीयत साफ है लेकिन अफसरशाही अभी तक सरकार के एजेंडा और नीतियों से तालमेल बैठाने में असफल रही है, या यह कहें कि सरकार अभी तक अपने लिए 'कोर’ अफसरों की टीम बनाने में सफल नहीं हुई है।’ लेकिन अब समय आ गया है कि योगी कमर कस लें और भाषण से अधिक अपने वादों को पूरा करने पर जोर दें। इस बात से भी इनकार नहीं है कि न केवल अफसरशाही बल्कि उनकी अपनी पार्टी के भी कुछ नेता योगी के असफल होने की कामना करते हों।