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रमन राज में आउटसोर्सिंग के सहारे पढ़ाई

दूसरे राज्यों से बुलाने पड़ रहे हैं टीचर, खाली पड़े हैं शिक्षकों के हजारों पद
स्कूली बच्चों से उनकी पढ़ाई की जानकारी लेते मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह

जब वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना था, तब स्लोगन दिया गया था, 'छत्तीसगढ़‌िया सबले बढ़‌िया’। विकास के कई सपने भी बुने गए थे। पर राज्य गठन के 17 साल बाद भी यहां गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाने वाले पैदा नहीं हो सके। वह भी ऐसी स्थिति में जब यहां 13 साल से लगातार भाजपा की सरकार है और डॉ. रमन सिंह मुक्चयमंत्री हैं। छत्तीसगढ़ सरकार को आउटसोर्सिंग के जरिए गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाने के लिए दूसरे राज्यों से टीचर बुलाने पड़ रहे हैं, वह भी प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से। रमन सरकार की इस नीति का विपक्षी पार्टियां जमकर विरोध कर रही हैं। छत्तीसगढ़ में इस वक्त साइंस टीचर के करीब आठ हजार पद खाली हैं, लेकिन टीचर नहीं मिल रहे हैं। इस वजह से सरकार ने दूसरे राज्यों के लोगों के लिए रास्ता खोल दिया है और टीचर तलाशने का काम ठेका कंपनी को दिया है।

राज्य में एक तरफ साइंस टीचर नहीं मिल रहे हैं वहीं इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर कई युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। बीई और एमबीए की पढ़ाई करने के बाद कई युवाओं ने शिक्षाकर्मी बनना स्वीकार भी किया लेकिन शिक्षक बनने के लिए निर्धारित योग्यता बीएससी, एमएससी और बीएड होने की शर्त की वजह से इंजीनियरिंग डिग्रीधारी टीचर बनने की दौड़ से बाहर हो गए। कुछ लोगों ने सरकार से मांग की कि इंजीनियरिंग को एमएससी के बराबर का दर्जा दिया जाए और इसकी डिग्री रखने वालों से गणित और साइंस पढ़वाया जाए, लेकिन सरकार ने इस मांग को नहीं माना। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में पिछले कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ सी आ गई और बच्चे साइंस पढ़ने के बजाय इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला ले रहे हैं। इस वजह से गणित और विज्ञान पढ़ाने वाले लोगों का अकाल पड़ गया है। छत्तीसगढ़ में दो साल पहले 50 से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज थे जिसमें से अब कुछ बंद हो गए हैं।

राज्य में गणित और विज्ञान शिक्षकों की कमी से निपटने के लिए सरकार ने आउटसोर्सिंग की नीति बनाई है। इस नीति के तहत दूसरे राज्यों के साइंस पढ़े युवाओं को यहां पर टीचर बनाना था। सरकार की इस नीति का विरोधी दलों और अन्य लोगों ने भारी विरोध किया। इसके बाद सरकार ने इसमें बदलाव करते हुए राज्य में विज्ञान और गणित के पढ़े लिखे युवा न मिलने पर ही दूसरे राज्यों के लोगों को रखने की नीति बनाई। छत्तीसगढ़ के शिक्षा सचिव विकास शील का कहना है कि अभी आउटसोर्सिंग के जरिए 1800 शिक्षकों की भर्ती की गई है, जिसमें केवल 100 टीचर ही दूसरे राज्यों के हैं। इनकी पदस्थापना आदिवासी इलाकों में की गई है। आदिवासी इलाकों में नियमित शिक्षक जाना नहीं चाहते हैं। शुरुआती दौर में आदिवासी क्षेत्र बस्तर और सरगुजा में ठेका कंपनियों को टीचर भर्ती करने का काम दिया गया, लेकिन अब पूरे राज्य में इस नीति को लागू करने का फैसला किया गया है।

आउटसोर्सिंग के जरिए शिक्षकों की भर्ती में कई तरह की छूट दी गई है। मसलन, न्यूनतम योग्यता के मापदंड भी कम रखे गए हैं। टीचिंग का अनुभव ही एक मात्र आधार बताया जा रहा है। आउटसोर्सिंग में सरकार ठेका कंपनी को एकमुश्त राशि दे देती है। इसके अलावा उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। ठेका कंपनियां आठ से 10 महीने के लिए शिक्षकों की भर्ती करती हैं। कहते हैं कि इन शिक्षकों को ठेका कंपनियां अपनी शर्त पर रखती हैं और वेतन देती हैं। सरकार की इस नीति का भारी विरोध हो रहा है। विधायक अमित जोगी का कहना है कि सरकार की गलत नीति के कारण राज्य में साइंस टीचर नहीं मिल रहे हैं। आउटसोर्सिंग की नीति राज्य के बेरोजगारों के साथ धोखा है। उन्होंने कहा कि रमन सरकार जानबूझकर और अपना कैडर मजबूत करने के लिए आउटसोर्सिंग की नीति अपना रही है। राज्य के नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव भी आउटसोर्सिंग नीति का विरोध कर रहे हैं। वे कहते हैं निचले स्तर के पदों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देना सरकार की जिम्मेदारी है। दूसरी ओर, राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप का मानना है कि यह तदर्थ व्यवस्था है। शीघ्र ही नियमित शिक्षकों की भर्ती की जाएगी।

राज्य में करीब 56 हजार सरकारी स्कूल हैं। इनमें प्राइमरी स्कूलों में 35 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं। इन शिक्षकों की नियुक्त‌ि के लिए किसी विषय विशेषज्ञता की जरूरत नहीं है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि प्राइमरी स्तर के स्कूलों में छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या अधिक होने के कारण पिछले तीन साल से भर्ती पर रोक है। बताया जा रहा है कि प्राइमरी स्कूलों में राष्ट्रीय स्तर पर तय नियम के मुताबिक 35 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए जबकि छत्तीसगढ़ में 26 छात्रों पर एक शिक्षक है। टीचर की समस्या ज्यादा हाईस्कूल और हायरसेकेंडरी स्तर पर है, क्योंकि यहां पर विषय विशेषज्ञ को ही टीचर नियुक्त किया जा सकता है। पिछले एक दशक के भीतर राज्य में विज्ञान और गणित पढ़कर निकलने वाले छात्रों की संख्या काफी कम हो गई, वहीं कम वेतन और सुविधाओं की कमी के चलते कोई शिक्षाकर्मी बनना नहीं चाहता। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में शिक्षकों की नियुक्त‌ि पंचायतों, नगरपालिकाओं और निकायों के जरिए होती है। इससे भी युवा शिक्षक नहीं बनना चाहते।

राज्य में कई वर्षों से शिक्षकों की नियमित भर्ती न होने से भी कई समस्याएं पैदा हो गई हैं। शिक्षा सचिव विकास शील का कहना है कि जल्द ही नियमित भर्ती की प्रक्रिया शुरू की जाएगी, लेकिन इसमें भी कम से कम छह महीने लग जाएंगे, तब तक तात्कालिक जरूरत के लिए आउटसोर्सिंग के जरिए शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। कहा जा रहा है कि आउटसोर्सिंग के जरिए टीचरों की नियुक्त‌ि से सरकार को आरक्षण नियमों का पालन नहीं करना होता। इसमें उम्र की भी कोई सीमा नहीं होती। वहीं, सरकार को दूसरी तरह की जिम्मेदारियों का भी वहन नहीं करना होता। इस वजह से सरकार आउटसोर्सिंग को प्राथमिकता दे रही है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि आउटसोर्सिंग से भ्रष्टाचार और शोषण को बढ़ावा मिलेगा और राज्य में अच्छे टैलेंट भी पैदा नहीं होंगे। छत्तीसगढ़ में कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, मुख्य सचिव विवेक ढांढ से लेकर कई मंत्री और अफसरों ने स्कूलों में जाकर बच्चों की पढ़ाई की जांच की और बच्चों को पढ़ाया भी। मुख्यमंत्री ने अपने 'लोक सुराज अभियान’ के दौरान भी कई बच्चों से उनकी पढ़ाई के बारे में पूछताछ की। पर, सवाल यह उठता है कि जब स्कूलों में टीचर ही नहीं होंगे तो बच्चों को पढ़ाएगा कौन और उनमें बुद्धि का विकास कैसे होगा?

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