Advertisement

जीएसटी से कितनी सहूलियत या दिक्कत

अर्थव्यवस्था
जीएसटी

एक जुलाई से देश की दो खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने वाली नई कर व्यवस्था लागू हो जाएगी। अप्रत्यक्ष करों के लिए लागू होने वाली गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी की नई व्यवस्था देश के करीब 130 करोड़ उपभोक्ताओं और कारोबार को एक राष्ट्रीय बाजार में तब्दील कर देगी। इस नई व्यवस्था से अर्थव्यवस्था और लोगों को होने वाले फायदे को लेकर लंबी बहस और चर्चा कई साल से हो रही है। लेकिन अब यह अमल में आ रही है। हालांकि जिस जीएसटी की परिकल्पना शुरू में की गई थी, मौजूदा जीएसटी का स्वरूप उससे कुछ अलग है। इसका नफा-नुकसान अब लोगों के सामने आ जाएगा। इससे कुछ वस्तुएं सस्ती हो जाएंगी तो कुछ वस्तुएं और सेवाएं महंगी हो जाएंगी। कुछ उत्पाद अभी नई कर व्यवस्था के बाहर रह गए हैं। नई व्यवस्था की चुनौती उसका कार्यान्वयन है। महंगे-सस्ते पर काफी चर्चा हो चुकी है। लेकिन कारोबारी लिहाज से सहूलियतों और दिक्कतों के बारे में अभी भी असमंजस और आशंकाएं हैं। एक नजर में सहूलियतों और दिक्कतों की जानकारी दे रहे हैं शशिकांत वत्स

क्या फायदा

1-इनपुट क्रेडिट का लाभ: जीएसटी में माल और सेवाओं पर दिए हुए टैक्स का पूरा इनपुट क्रेडिट मिल सकेगा। मौजूदा समय में केवल माल पर दिए हुए टैक्स का ही इनपुट क्रेडिट मिलता है। कोई भी कंपनी अपनी किसी भी इकाई को माल या सेवा देती है तो इस पर टैक्स देना पड़ेगा और वापसी का दावा करने पर वह पूरा क्रेडिट हो जाएगा। इसके अलावा अंतरराज्यीय स्तर पर भी दूसरे राज्य से माल खरीदने पर दिए हुए टैक्स का भी पूरा इनपुट क्रेडिट मिलेगा। जैसे केंद्रीय बिक्रीकर जमा कराने पर उसका लाभ नहीं मिलता लेकिन नए टैक्स में यह क्रेडिट मिलेगा। इससे वस्तुओं की लागत भी कम आएगी।

2-विभिन्न टैक्स से मुक्त‌ि: मौजूदा समय में कारोबारियों पर करीब 18 तरह के केंद्र और राज्य स्तरीय टैक्स लगे हुए हैं लेकिन अब यह सभी टैक्स जीएसटी में समाहित हो जाएंगे और कारोबारियों पर केवल एक ही टैक्स जीएसटी की जिम्मेदारी होगी। अभी विभिन्न टैक्स के लिए कारोबारियों को रिटर्न जमा कराने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं लेकिन अब केवल एक विभाग में टैक्स जमा कराना होगा।

3-अफसरों का मनमानापन नहीं: पूरा सिस्टम तकनीक पर आधारित होगा। इस लिहाज से अधिकारियों के मनमानेपन और हस्तक्षेप से बड़ी राहत मिलने की संभावना है। सब काम पोर्टल पर ही होगा। अधिकारी कौन होगा, इसकी कोई जानकारी नहीं होगी। अधिकारी के मनमाने रवैये से मुक्त‌ि मिलेगी। अभी फाइल सिस्टम है और अफसर मनमानी करते हैं। केवल कारोबार के तौर-तरीकों की गड़बड़ी जांचने का काम ही अधिकारी का होगा। टैक्स से जुड़े विवाद भी कम होंगे।

4-टैक्स ऑन टैक्स नहीं: टैक्स पर टैक्स नहीं लगेगा जिससे टैक्स प्रणाली सरल होने की संभावना है। अभी हर वस्तु पर जैसे पहले वैट लगता है, फिर उस पर सर्विस टैक्स लग जाता है और फिर उस पर आबकारी शुल्क लग जाता है, तब उस वस्तु की कीमत आंकी जाती है। बाजार में आने पर उस पर फिर टैक्स लगता है यानी टैक्स पर टैक्स लगता रहता है और वस्तु की लागत बढ़ जाती है। जीएसटी में इसकी कोई संभावना नहीं रहेगी और चीजें सस्ती होंगी तो कारोबार को भी बढ़ावा मिलेगा।

5-कारोबार की सीमा: जीएसटी में थ्रेसहोल्ड लिमिट 20 लाख रुपये करने और कंपोजिट स्कीम में 75 लाख रुपये करने से बड़ी संख्या में छोटे व्यापारियों को टैक्स प्रणाली में ज्यादा झंझट उठाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यानी जो कारोबारी सालाना इस सीमा तक कारोबार करते हैं, वे जीएसटी की चिंता किए बगैर खुलकर कारोबार कर सकते हैं। इससे अधिक सालाना कारोबार वालों को ही जीएसटी नंबर लेने की जरूरत होगी। अभी राज्यों के अनुसार तीन लाख से 20 लाख रुपये तक की सीमा ही है। कंपोजिट स्कीम में कारोबारी को सालाना एक फीसदी टैक्स देने पर भी जीएसटी से मुक्त‌ि मिल जाएगी।

6-ऑनलाइन कारोबारियों पर अंकुश: ई-कॉमर्स भी जीएसटी के दायरे में होगा। ऑनलाइन कारोबारियों को भी अब रजिस्ट्रेशन कराना होगा और इससे बाकी कारोबारियों को राहत मिलेगी। अभी ऑनलाइन कारोबारी बेलगाम घोड़े की तरह काम कर रहा है।

7-तकनीक आधारित सिस्टम: तकनीक द्वारा टैक्स प्रणाली का पालन करना आसान होगा। कारोबार स्थल पर ही दक्रतर का काम करा सकेंगे और कारोबार के लिए समय निकालकर उसे व्यवस्थित करना आसान होगा। कारोबारी विकल्पों को तलाश सकेंगे जबकि मौजूदा समय में कई तरह के टैक्स जमा कराने और कागजी खानापूर्ति में वक्त बर्बाद करना पड़ता है, उससे मुक्त‌ि मिल सकेगी।

8-ट्रांसपोर्टर्स भी दायरे में: जीएसटी के दायरे में आने से माल की आवाजाही अधिक सुगम होगी। रास्ते में परेशानी नहीं होगी और न ही बॉर्डर पर चेकिंग के नाम पर जाम लगेगा। जगह-जगह चेक पोस्ट नहीं रहेंगी। केवल उड़न दस्ता ही जांच कर सकेगा कि टैक्स दिया है या नहीं।

9-रिटेल ट्रेड का नेटवर्क बढ़ेगा: भारत का रिटेल ट्रेड स्वयं संगठित है लेकिन बिखरा हुआ है। जीएसटी लगने से इतने बड़े रिटले सेक्टर को एक सूत्र में बांधने में मदद मिलेगी। एक टैक्स प्रणाली लगने से एक नेटवर्क में रिटेल ट्रेड आ जाएगा। संगठित होने पर इसे उद्योग का दर्जा दिलाया जा सकेगा और नीतियां बन पाएंगी। इससे इस ट्रेड को सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिल सकेगा। मसलन, सब्स‌िडी वगैरह भी ली जा सकेगी।

10-आयकर दरें घटेंगी: जीएसटी में तय रूप से टैक्स का दायरा बढ़ेगा और अगर ऐसा हुआ तो तय समय के बाद आयकर की दरों में भी कटौती होने की बड़ी संभावना है। अभी अधिकतम टैक्स स्लैब तीस फीसदी तक है।

 

क्या नुकसान

1-सर्विस टैक्स से चीजें महंगी: जीएसटी में सर्विस टैक्स बढ़ने से कई तरह की सेवाएं मसलन, हवाई टिकट, बीमा प्रीमियम, मोबाइल बिल वगैरह महंगे होने की संभावना है क्योंकि मौजूदा समय में इन पर 14.5 फीसदी सर्विस टैक्स लगता है जबकि जीएसटी में टैक्स की दर 18 फीसदी होगी। साढ़े तीन फीसदी का इजाफा काफी होता है। रेस्तरां में खाने-पीने के चीजों के दाम भी बढ़ सकते हैं, जिससे कारोबार पर फर्क पड़ना तय है। इससे मुनाफे का मार्जिन कम हो जाएगा।

2-बैंकिंग सेवाओं पर असर: जीएसटी से बैकिंग सेवाएं भी महंगी होने की संभावना है। कारोबार के लिए बैंकिंग सेवाएं सबसे जरूरी हिस्सा हैं क्योंकि इसके बिना कारोबार की कल्पना नहीं की जा सकती। ये सेवाएं महंगी होने से अतिरिक्त खर्चा होगा और कारोबार पर असर पड़ना तय है। मौजूदा समय में बैंक कारोबार के लिए अहम हो गए हैं।

3-पेट्रोलियम पदार्थ पर जीएसटी नहीं: डीजल, पेट्रोल, कच्चा तेल वगैरह को जीएसटी से बाहर रखने के कारण माल ढुलाई महंगी होगी। इसका असर सभी वस्तुओं की आवाजाही पर पड़ता है। अगर पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में रखा जाता तो डीजल पर लगने वाले जीएसटी का क्रेडिट इनपुट लिया जा सकता था लेकिन अब नहीं मिल पाएगा। सीधे तौर पर ट्रांसपोर्टेशन से चीजों की लागत बढ़ेगी और कारोबार प्रभावित होगा।

4-हर राज्य में पंजीकरण: जीएसटी में व्यापार करने की लागत बढ़ेगी क्योंकि हर राज्य में कारोबार करने पर अलग पंजीकरण कराना होगा, यानी हर राज्य में ब्रांच खोलने पर वहां का नंबर लेना होगा। जब हम वन इंडिया वन टैक्स की बात करते हैं तो फिर यह सिस्टम क्यों? जब सिस्टम आसान बनाना है तो इस तरह पंजीकरण की शर्त बेमानी है। हर राज्य में रिटर्न भरना होगा और जटिलता को बढ़ावा मिलेगा।

5-इनपुट क्रेडिट नहीं: यह ठीक है कि कंपोजीशन स्कीम में 75 लाख रुपये के सालाना टर्नओवर पर एक फीसदी टैक्स देकर जीएसटी के झंझट से छोटे कारोबारी बच जाएंगे लेकिन इस स्कीम में आने वाले कारोबारियों को इनपुट क्रेडिट का लाभ नहीं मिल सकेगा। अगर किसी चीज पर 18 फीसदी टैक्स है तो वह उसे देना पड़ेगा। सीधे तौर पर छोटे कारोबारियों के लिए यह कदम नुकसानदायक हो सकता है।

6-ई-बिलिंग जटिल: ई-बिल का प्रावधान व्यापार की सुगमता में बाधक साबित होगा। अगर कारोबारी कोई माल बेचेगा तो पहले वह पोर्टल पर जाकर नंबर जनरेट करेगा और उसे ट्रांसपोर्टर को देगा। दिन में दस बार माल बेचने पर दस बार नंबर जनरेट करना होगा और दस ई-बिल ट्रांसपोर्टर को देने होंगे। इससे जटिलता बढ़ेगी। जब कोराबारी का सारा डाटा पोर्टल है तो फिर यह प्रावधान गलत है और इससे केवल परेशानी ही होगी। सर्वर डाउन होने की समस्या अलग खड़ी हो सकती है।

7-तकनीकी सिस्टम दुविधापूर्ण: मौजूदा सिस्टम से एकदम तकनीकी सिस्टम में जाना कारोबारियों के लिए संभव नहीं है और इससे काफी गलतियां होने की आशंका बनी रहेगी। करीब 60 फीसदी कारोबारियों के पास कंप्यूटर की सुविधा नहीं है। इसके लिए वैकल्पिक रास्ता भी होना चाहिए। जीएसटी सुविधा केंद्रों की व्यवस्था होनी चाहिए या कम चार्ज पर साइबर कैफे या कुछ कारोबारियों के कलस्टर बनाकर सुविधा दी जाए ताकि कार्यान्वन समस्या न बन जाए।

8- विमान कंपनियों पर असर: जीएसटी से एविएशन कंपनियों पर भी असर पड़ सकता है। फिलहाल घरेलू यात्राओं पर दरें कम हैं लेकिन जीएसटी के बाद हवाई यात्राएं महंगी हो जाएंगी और यात्रियों की संख्या घट सकती है। नई विमानन कंपनियों को भी नुकसान हो सकता है।

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement