भाजपा को मजबूत करने और उसका जनाधार बढ़ाने के लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लगभग 110 दिन देश भर के दौरों में ही कटते हैं। हाल में दिल्ली में एक पड़ाव के दौरान उनसे तमाम मौजूं मुद्दों पर आउटलुक की भावना विज अरोड़ा ने बातचीत की। कुछ अंश:
आप बतौर भाजपा अध्यक्ष तीन साल पूरे करने जा रहे हैं। किसी भी पार्टी अध्यक्ष के लिए यह सबसे सफल दौर रहा है। क्या हम एक नई भाजपा का उभार देख रहे हैं?
सफलता अकेले पार्टी अध्यक्ष पर निर्भर नहीं करती! कई चीजें जुड़ी हुई हैं। हमारी राज्य सरकारें, केंद्र की सरकार....सबके कामकाज ने पार्टी की इस सफलता में काफी योगदान किया है, जिसे आप देख पा रही हैं। उसके बाद करोड़ों कार्यकर्ता हैं जिन्होंने सरकार के अच्छे कामों की जानकरी लोगों को दी। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं ऐसे समय में पार्टी का मुखिया हूं।
आप पार्टी की इस सफलता में कितना मोदी जी के करिश्मे और कितनी अपनी रणनीति का योगदान मानते हैं?
आप दोनों को अलग नहीं कर सकते। यह पैकेज डील है।
आपने दलित नेता रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना। इसमें कौन-सा राजनैतिक संदेश है? क्या यह कोई रणनीति है.. ..खासकर यह जानकर कि उत्तर प्रदेश में ज्यादातर दलितों ने बसपा को वोट दिया?
कोविंद जी को उनकी योग्यता के आधार पर राष्ट्रपति का उम्मीदवार चुना गया है। भाजपा का मानना है कि समाज के पिछड़े और वंचित तबकों की उन्नति का काम करना हर किसी की जिम्मेदारी है। जब मोदी जी को पार्टी सांसदों ने नेता चुना तो उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि यह सरकार गरीबों, शोषितों, किसानों, महिलाओं और दलित तथा आदिवासियों सहित समाज के हर वंचित तबके की होगी। और वह उनके उत्थान के लिए काम करेगी।
क्या कोविंद की उम्मीदवारी से गुजरात चुनावों में कोई असर होगा, क्योंकि वे उस कोली समुदाय से हैं जिसकी आबादी राज्य में 20 प्रतिशत के करीब है?
असल में, हम चाहे जिसे चुनते, उसका समाज के एक या दूसरे तबके से ऐसा ही संबंध होता। इसी तरह कोविंद जी की उम्मीदवारी का कुछ सामाजिक तबकों पर असर होगा।
आप अपने मूल जनाधार वाले क्षेत्र, उत्तर भारत के गढ़ से बाहर की ओर जैसे असम में गए हैं। पार्टी का अगला मुकाम क्या है?
हमारा विस्तार पूरे देश में हो रहा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम कभी एक खास इलाके तक सीमित थे। भाजपा अपने गठन के समय से ही अखिल भारतीय पार्टी है। यह अलग मामला है कि हमारा संगठन सिर्फ कुछ राज्यों में ही उसका आधार तैयार कर पाया था। यहां तक कि चुनावी सफलता भी कुछ राज्यों तक सीमित थी। अब यह सब बदल रहा है। आपने सिर्फ असम की चर्चा की। लेकिन मणिपुर में हमारी वोट हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई। मेरा मानना है कि भाजपा की वहां सरकार बनना बड़ी उपलब्धि है। मेरी पार्टी को सबसे अधिक मत प्रतिशत मिला। असम में हमारी पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। उत्तर प्रदेश में हम 20 साल से बुरे हालात में थे और वहां हमारी वोट हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से अधिक बढ़ी। उत्तराखंड में जब भी हमने सरकार बनाई, बेहद मामूली बहुमत के साथ हुआ करती थी। कई बार हम हार भी गए। लेकिन इस बार हमें तीन-चौथाई बहुमत हासिल हुआ। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में हमारा वोट प्रतिशत लगभग दोगुना हो गया है। केरल में हमारा वोट प्रतिशत तीन गुना बढ़ा है। ओडिशा के स्थानीय निकाय चुनावों में हमारा वोट प्रतिशत काफी बढ़ा और हम दूसरे नंबर की पार्टी बन गए हैं। पूरे देश में भाजपा की स्थिति बेहतर हो रही है। संगठन मजबूत हो रहा है और हमें चुनावी सफलता भी मिल रही है।
दार्जिलिंग हिंसा के बारे में क्या सोचना है? क्या भाजपा दुविधा में नहीं है, क्योंकि आपने तो गोरखालैंड बनाने का वादा किया था?
हमारी दुविधा तो दूसरी बात है। पहले तो राज्य सरकार को वहां शांति स्थापित करनी चाहिए।
पिछले तीन साल में बतौर पार्टी अध्यक्ष आपकी बड़ी उपलब्धियां क्या हैं?
मुझसे अधिक, इसका श्रेय नरेन्द्र मोदी सरकार को दिया जाना चाहिए। मोदी जी ने भारत में लोगों के सोचने का तरीका बदल दिया है। तीन साल पहले लोगों की चिंता यह थी कि देश किस दिशा में जा रहा है। मैं बिना किसी हिचक के कह सकता हूं कि आज वह चिंता गायब हो गई है। लोग जानते हैं कि देश दुनिया के बड़े देशों की कतार में खड़ा होने जा रहा है। और यह जल्दी ही होने वाला है। लोगों को एहसास होने लगा है कि देश में अब चीजें बदलने लगी हैं। पहले यह कोई सोच नहीं सकता था कि एक गांव बिना बिजली के नहीं रह जाएगा, एक भी घर बिना शौचालय और एलपीजी सिलेंडर के नहीं रहेगा। कोई नहीं सोचता था कि वैज्ञानिकों की प्रचुर प्रतिभा और योग्यता के बावजूद भारत अंतरिक्ष तकनीक में कभी नंबर एक बन सकेगा। बहादुर और तकनीक से लैश अनुशासित फौज होने के बावजूद सर्जिकल स्ट्राइक की जा सकेगी। यह बेहद जरूरी था कि हम अपने बहादुर जवानों के लिए कुछ करते। उनकी एक रैंक, एक पेंशन की मांग 40 साल से लटकी थी। मोदी सरकार ने उसे एक झटके में पूरा कर दिया।
नोटबंदी पर क्या राय है? क्या आप सरकार के इस कदम को सफल मानते हैं?
बेशक, काफी पैसा जो व्यवस्था के बाहर था, नोटबंदी की वजह से औपचारिक व्यवस्था में आ गया। एक साल से भी कम में 92 लाख नए पैन कार्ड बने। आयकर पंजीकरण बढ़ गया है। पहली दफा प्रत्यक्ष और परोक्ष कर में 19 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस सबसे पता चलता है कि काले धन और भ्रष्टाचार से लड़ने में नोटबंदी कितनी कामयाब रही है।
बेनामी संपत्तियों, शेल कंपनियों और काले धन को व्यवस्था का हिस्सा मानकर स्वीकार कर लिया गया था और कोई नहीं सोच पाता था कि कोई इस सड़ी व्यवस्था से लड़ पाएगा। हमने नियम बनाए और अब बेनामी संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई होने लगी है। हमने शेल कंपनियों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया है.. ..हम कह सकते हैं कि हमने इस व्यवस्था को तोड़ने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।
सरकार किसानों की समस्याओं पर क्या कर रही है?
मेरी राय में किसानों की हालत सुधरी है। महाराष्ट्र में हम सत्ता में आए तो कृषि विकास दर शून्य से आठ प्रतिशत नीचे थी। वहां 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। मध्यप्रदेश में पिछले पांच साल से कृषि 14 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ रही है। देश भर में शून्य से दो प्रतिशत नीचे रही दर अब चार प्रतिशत पर आ गई। छह प्रतिशत की बढ़ोतरी हासिल हुई है।
हां, हमें विरासत में कुछ गंभीर समस्याएं मिली हैं, जिनसे हम पार पाने की कोशिश कर रहे हैं। मसलन, उत्तर प्रदेश में डेयरी विकास के ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। महाराष्ट्र में जल संचयन के उपाय किए जा रहे हैं। गुजरात में ऐसा ही अभियान सफल रहा है। सभी मंडियों को ऑनलाइन करने का अभियान चल रहा है, ताकि किसानों को उचित दाम मिल सके। केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद किसानों को कर्ज मिलना आसान हो गया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य योजना जैसी कई योजनाओं से किसानों को राहत मिली है।
मोदी सरकार शायद दुविधा में है कि कृषि पर जोर दें या उद्योग पर?
कतई नहीं। अब तक सरकारें जरूर दुविधा में रही हैं कि कृषि पर ध्यान दें या उद्योग पर। अब सभी इस पर राजी हैं कि दोनों का विकास साथ-साथ हो सकता है। यही नहीं, मोदी सरकार ने कई विरोधाभासों को दूर किया है। बड़े और छोटे उद्योग दोनों में विकास हुआ है। अब तक सरकारें यह नहीं सोच पाती थीं कि सुधारों पर आगे बढ़ें या कल्याणकारी राज्य के लिए काम करें। अब हर कोई मान रहा है कि दोनों एक साथ संभव है।
आपके लिए भविष्य का लक्ष्य क्या है?
जब मैं पार्टी अध्यक्ष बना तो मैंने कहा था कि भाजपा उन सात राज्यों और पूर्वोत्तर में मजबूत होगी, जहां उसका जनाधार नहीं रहा है। इनमें केरल, तमिलनाडु आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, बंगाल, असम और उस क्षेत्र के त्रिपुरा समेत दूसरे राज्य शामिल थे। हम इसमें काफी कामयाबी जुटा पाए हैं। हमें इन राज्यों में सफलता मिली है। त्रिपुरा में भी हम करीब-करीब नंबर दो हो गए हैं। भाजपा की विचारधारा और संगठन उन राज्यों में भी पहुंच रही है, जहां पहले उसका अस्तित्व नहीं था। हमारे कार्यकर्ता अच्छा काम कर रहे हैं।
आप कहते हैं कि पूरे देश में भाजपा का विस्तार होगा, लेकिन देश के हर हिस्से का सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू अलग है। बीफ पाबंदी कुछ राज्यों में मुद्दा बना हुआ है। मेघालय में आपकी पार्टी के नेताओं ने इसी पर इस्तीफा दे दिया.. ..
इस देश में इस्तीफे तो अनेक मुद्दों पर हो सकते हैं। ताजा नोटिफिकेशन तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही हुआ है। बीफ पर कोई प्रतिबंध नहीं है। मामला सिर्फ ढुलाई का है।
लेकिन कथित गोरक्षकों और लोगों को पीट-पीटकर मार डालने की वारदातों पर क्या कहेंगे?
इन घटनाओं को सांप्रदायिक रंग नहीं देना चाहिए। ये कानून-व्यवस्था की समस्याएं हैं। मुझे एक भी उदाहरण बताइए कि किसी भाजपा शासित राज्य में कार्रवाई नहीं हुई है। मैं ऐसी सभी घटनाओं की निंदा करता हूं, मैं उन्हें जायज नहीं ठहराता। इनकी अहमियत को घटाए बगैर मैं यह ध्यान दिलाना चाहता हूं कि ऐसी घटनाएं यूपीए राज में भी होती रही हैं। यही बात सांप्रदायिक दंगों के बारे में कही जा सकती है। 2012 और 2013 में कई जातिगत और सांप्रदायिक तनाव हुए। तब भी दलितों के साथ हर रोज बलात्कार की घटनाएं सामने आती थीं। तब किसी ने विरोध क्यों नहीं किया? पहले उन्होंने अवार्ड वापसी क्यों नहीं की? सिर्फ 2014 के बाद ही यह सब क्यों हुआ? पीटकर मार डालने की घटना चाहे कहीं भी हो, एक जैसी ही है, चाहे श्रीनगर में हो.. .. ..केरल या बंगाल में ऐसी घटनाओं के बारे में क्या है? तब तो किसी की बोली नहीं निकलती। आप ममता या कम्युनिस्टों से उनके शासन वाले राज्यों में होने वाली ऐसी घटनाओं के बारे में क्यों नहीं पूछतीं? क्यों सिर्फ भाजपा से ही पूछा जाता है?
आपने उन राज्यों का लक्ष्य बताया जहां आप नहीं रहे हैं। लेकिन जहां आप राज चला रहे हैं, उनका क्या हाल है? गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता कैसे बचाएंगे?
गुजरात में हम बड़े अंतर से जीतने जा रहे हैं। हमारी सीटें बढ़ेंगी.. ..
2018 में चुनाव में जा रहे सभी राज्यों के बारे में इतने ही आश्वस्त हैं?
अभी समय है, पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान की सरकारें अच्छा काम कर रही हैं।
नीतीश कुमार भाजपा के करीब आ रहे हैं?
उस मोर्चे पर कुछ खास नहीं हो रहा है। नीतीश जी ने रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार माना और हमने स्वागत किया। उससे आगे कयास लगाने की जरूरत नहीं है।
दिल्ली और बिहार की हार क्या आज भी सालती है?
कतई नहीं। चुनाव में हार के बावजूद वहां हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है। दिल्ली में तो सिर्फ आधा प्रतिशत ही घटा है।
क्या एनडीटीवी पर सीबीआइ छापा एक गलती थी? देश और विदेश में काफी आलोचना हुई!
हम कुछ भी इस आधार पर नहीं करते कि लोग क्या कहेंगे और क्या नहीं। हम सिर्फ सच पर कायम रहते हैं। हर फैसले को कुछ पसंद करेंगे तो कुछ नापसंद। हम क्या कर सकते हैं? जहां तक एनडीटीवी पर छापे का मामला है, यह सरकार का नहीं, सीबीआइ का फैसला था।
क्या विपक्ष की उभरती एकता 2019 में एनडीए के लिए चुनौती बनेगी?
अगर आप 1955 से देखें तो विपक्ष की एकता की कोशिशें सफल नहीं हुई हैं? विपक्ष में जो रहता है, कोशिश करता है। लेकिन याद रखें कि सभी बड़े मोर्चों पर यूपीए सरकार की नाकामी से ही लोगों ने भाजपा को वोट दिया। मेरा मानना है कि पिछले तीन साल में हमने बेहतर काम किया है और अगले दो साल में और बेहतर करेंगे। जो भी नाकामियों से दागदार यूपीए के साथ जाएगा, उसका हाल सपा जैसा होगा।
क्या कांग्रेस की कमजोरियां ही आपकी सबसे बड़ी सफलता की वजह हैं?
कांग्रेस की कमजोरी हमारी ताकत कभी नहीं रही। हमारी ताकत अपनी है।