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लालू यादवः सबसे बड़े लड़ैया

राजनी‌त‌िक संघर्ष की उपज हैं राजद नेता
लालू यादव

लालू यादव राजनैतिक संघर्ष की उपज माने जाते हैं। उन्हें राजनीति की सीख जो जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया से लेकर कर्पूरी ठाकुर जैसे संघर्षशील दिग्गजों से मिली है। हालांकि समय के साथ उनके मूल्यों का रूपांतरण जाति समीकरण में होता चला गया। लेकिन सांप्रदायिकता पर लालू कभी ढीले नहीं पड़े। उन्होंने 1990 में भाजपा का राम मंदिर का मुद्दा जब परवान पर था तो लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोक कर भूचाल ला दिया था। कुछ उसी तरह उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ महागठबंधन करके नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के अजेय रथ को रोका।

भाजपा के सामने अब मिशन 2019 है। बिहार और यूपी के बिना इसे भेदना आसान नहीं है। लालू यादव ने जिस तरीके से विपक्षियों का ध्रुवीकरण शुरू किया है वह भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। अगस्त में पटना के गांधी मैदान में लालू यादव ने 'भाजपा भगाओ रैली’ का आह्वान किया है। इसमें जदयू, कांग्रेस, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य राज्यों की सत्रह पार्टियां शिरकत कर रही हैं। पूरी कवायद लोकसभा चुनाव के लिए हो रही है। निशाने पर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं।

यूपी चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ ही अन्य क्षेत्रीय पार्टियां अलगाव के खतरे का अंजाम देख चुकी हैं। लालू यादव बसपा सुप्रीमो मायावती को बिहार कोटे से एक बार फिर राज्यसभा भेजने की तैयारी कर रहे हैं। यूपी ही नहीं, बिहार के दलितों में भी इसका बड़ा संदेश जाएगा। राजद भाजपा के साथ दलित नेता राम बिलास पासवान की काट के रूप में भी इस दांव को देख रहा है। अभी बिहार और यूपी की 90 फीसदी से अधिक लोकसभा सीटें भाजपा के पास हैं।

बिहार की राजनीति की पकड़ में लालू का कोई सानी नहीं है। राज्य में 16 फीसदी मुस्लिम और 14 फीसदी यादव हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस तीस फीसदी वोट बैंक पर लालू का अभी भी कब्जा है। बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू से अधिक 80 सीटें जीतकर लालू यादव ने यह साबित भी कर दिया है। भाजपा की बड़ी चुनौती लालू और नीतीश का साथ भी है। हाल के दिनों में कई बार ऐसा लगा कि यह गठबंधन अब टूटा तो तब। मगर हर बार स्थिति बदलती चली गई।

लालू एक बार फिर चर्चा में हैं। चारा घोटाले के बाद इस बार लारा (लालू-राबड़ी) मामले में उन्हें घेरने की कोशिश है। पटना में लालू का लारा मॉल बन रहा है। इसकी जमीन और इसमें लगे पैसे कहां से आए, जांच के दायरे में है। साथ में लालू यादव की बेटी और राज्यसभा सदस्य मीसा भारती के नाम दिल्ली में चार फार्म हाउस सहित अरबों की कथित बेनामी संपत्त‌ि पर आयकर के लगातार छापे पड़ रहे हैं। लालू यादव की पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास के साथ पटना और दिल्ली में कई जगहों पर छापेमारी हो चुकी है। लालू के साथ राबड़ी देवी और उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर सीबीआइ एफआइआर भी दर्ज करा चुकी है।

लालू पर आए इस संकट को भाजपा बड़े मौके के तौर पर देख रही है। बिहार में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी इन सभी मुद्दों पर लगातार गरज रहे हैं। भाजपा तेजस्वी यादव से इस्तीफे की मांग कर रही है। भाजपा नीतीश को मिस्टर क्लीन और सुशासन बाबू की छवि भी याद दिला रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय ने तो यहां तक कह दिया है कि नीतीश अगर चाहें तो भाजपा उन्हें बाहर से समर्थन दे सकती है। नीतीश इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं मगर जदयू प्रवक्ता कई बार कह चुके हैं कि उनका गठबंधन अटूट है और यह अगले विधानसभा चुनाव में भी रहेगा। वे सबसे भीड़ जुटाऊ नेता माने जाते हैं।

लालू यादव की राजनीति पर निगाह डालें तो यह स्पष्ट है कि लालू जब-जब संकट में फंसे हैं तब तब वे और मजबूत होकर उभरे हैं। लाख विरोध के बाद चारा घोटाले में जेल जाने के दौरान उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया और जेल से सत्ता चलाई। दूसरी पारी में राजद में कई वरिष्ठ नेताओं के रहने के बावजूद अपने बेटे को उप-मुख्यमंत्री बना दिया। लालू का नाम देश के बड़े लड़ाकू नेताओं के रूप में लिया जाता है। भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद वे ऐसा इसलिए कर पाते हैं कि उनके साथ समाज का एक बड़ा तबका खड़ा होता है।

हालांकि इस बार एक साथ पूरे परिवार के फंस जाने के कारण संकट बड़ा है। इससे निकलना उनके लिए आसान नहीं होगा। दूसरी ओर भाजपा को अभी भी इस बात का डर है कि लालू को भाजपा विरोधी अन्य पार्टियों की सहानुभूति मिल रही है। उसे इस बात का भी डर है कि यह सहानुभूति जनता में पैदा न हो जाए। यह तो तय है कि चाहे लालू संकट में हों या नहीं, दोनों परिस्थिति में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती हैं।

 

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