नासिक और मंदसौर से उठी चिंगारी अब राष्ट्रीय स्वरूप लेने लगी है। मध्यप्रदेश के मंदसौर में छह जून को हुए किसान आंदोलन की आंच की तपिश पूरे देश में महसूस की जाने लगी है। प्रशासन भी यह महसूस करने लगा है कि यह आंदोलन देशव्यापी हो सकता है। पिछले दिनों सरकार का यह डर सामने भी आ गया। किसानों के संघर्ष, उनके हक को आवाज देने और किसान आंदोलनों को दिशा देने के लिए 16 जून 2017 को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया गया। इस समिति के अंतर्गत लगभग डेढ़ सौ सामाजिक संगठनों ने मंदसौर गोली कांड के ठीक एक महीने बाद यानी छह जुलाई को मंदसौर में संगठित होकर 'किसान मुक्ति यात्रा’ को देश भर में ले जाने की तैयारी कर ली थी। लेकिन सरकार ने किसानों की सुनने के बजाय 'किसान मुक्ति यात्रा’ को कुचलने का काम किया। मंदसौर पुलिस ने यात्रा से ठीक एक दिन पहले दोपहर को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक डॉ. सुनीलम को शांति भंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के तत्काल बाद डॉ. सुनीलम को मल्हारगढ़ कोर्ट में पेश किया गया और कोर्ट ने डॉ. सुनीलम को अग्रिम आदेश तक जेल भेज दिया। प्रशासन का आरोप था कि सुनीलम और अन्य कार्यकर्ता पिपलिया मंडी में आयोजन करना चाहते थे, जिससे शांति भंग होने का खतरा था। इसलिए पुलिस ने उन्हें एहतियाती कार्रवाई के तहत गिरफ्तार किया है।
दरअसल, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सदस्य गोलीकांड के घटनास्थल पार्श्वनाथ चौपाटी (छह जून को अंधाधुंध पुलिस फायरिंग में पांच किसानों की मौत यहीं हुई थी) पर जाकर मृतकों को पुष्पांजलि अर्पित करना चाहते थे। लेकिन सरकार ने शांतिपूर्ण श्रद्धांजलि सभा भी नहीं होने दी। समिति इसी स्थल पर शहीद किसान स्मृति महापंचायत कर यहीं से 'किसान मुक्ति यात्रा’ निकालने का कार्यक्रम बना रही थी। यह यात्रा पांच राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, यूपी और हरियाणा से निकलकर 18 जुलाई को दिल्ली पहुंचने वाली थी।
सुनीलम पिपलिया मंडी में होने वाली किसान महापंचायत के मुख्य आयोजक थे। उनकी गिरफ्तारी के वक्त देश भर के 150 संगठनों के सिर्फ 300 लोग मंदसौर की सीमा में पहुंच पाए थे। बाकी लोग वहां पहुंचते उससे पहले ही प्रशासन ने सुनीलम को गिरफ्तार कर लिया। समिति का अंदाजा था कि 12 प्रदेशों से करीब 700-800 लोग पिपलिया मंडी के आयोजन से एक दिन पहले ही अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करा देंगे। लेकिन प्रशासन और समिति के बीच आयोजन स्थल को लेकर देर शाम तक बातचीत ही चलती रही और अंत में प्रशासन ने समिति के सदस्यों को पिपलिया मंडी में आयोजन की अनुमति नहीं दी। इस बीच विभिन्न संगठनों से इकट्ठा हुए करीब 600 लोग मंदसौर के पिपलिया मंडी और आस-पास के गांव, धर्मशाला में डेरा डाले हुए आगामी रणनीति का इंतजार ही करते रह गए।
आंदोलन विफल करने के लिए प्रशासन ने अपना पूरा अमला लगा दिया था। मंदसौर से लेकर पिपलिया मंडी और पार्श्वनाथ चौपाटी तक चप्पे-चप्पे पर पुलिस की नजर थी। हर आने-जाने वाले से पूछताछ के साथ उसकी वीडियोग्राफी भी कराई गई। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने भी मल्हारगढ़ में 'जेल भरो आंदोलन’ का आह्वान किया था। पुलिस को दो मोर्चों पर निपटना था। कांग्रेस कमेटी ने 'शहीद किसान स्मृति सभा’ के बैनर तले यह आह्वान किया था। तमाम अवरोधों के बावजूद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सदस्यों में जोश बरकरार था और समिति प्रशासन को अपनी ताकत दिखाने में सफल रही। बूढ़ा गांव में किसान नेताओं से लेकर आम किसान और महिलाएं भी इस यात्रा में जोश के साथ शामिल हुईं। कंधे पर प्रतीक के रूप में मिट्टी का कमंडल लटकाए हल के साथ सैकड़ों लोग इसमें शामिल हुए। कुछ किसानों के हाथ में हरे रंग का झंडा था। ये सभी लोग बूढ़ा गांव से पिपलिया मंडी पार करते हुए पार्श्वनाथ चौपाटी पुलिस चौकी पहुंचना चाहते थे। लेकिन उससे पहले ही ग्राम गुड़बेली पर प्रशासन ने कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर पहले से मौजूद बसों में बैठा लिया और मंदसौर जिले के दूसरे छोर दलोदा मंडी में छोड़ दिया। पुलिस ने लगभग 500 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। मंदसौर पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह का कहना है कि कार्यकर्ताओं को एहतियात के तौर पर धारा 151 के तहत गिरक्रतार किया गया था। क्योंकि पुलिस शांति बनाए रखना चाहती थी। देश के 150 से अधिक सामाजिक संगठनों ने मध्यप्रदेश से उठी किसानों की आवाज को नई दिल्ली तक पहुंचाने की तैयारी कर ली है।
लेकिन समिति ने दलोदा से ही अपनी यात्रा जारी रखने का फैसला लिया। यात्रा आगे बढ़ाते हुए समिति ने अपनी दो प्रमुख मांगों को रखा जिसमें सभी किसानों को कर्ज मुक्त करना और फसलों की लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देना शामिल है। लेकिन जिस तरह प्रशासन कोई भी मांग या अनुरोध सुनने का प्रयास नहीं कर रहा है उससे समिति को चिंता है कि आखिर वे लोग कैसे अपनी बात राज्य सरकार तक पहुंचा पाएंगे? समिति के सामने भी बहुत से प्रश्न हैं कि क्या यह यात्रा किसानों के जीवन में वाकई कोई परिवर्तन ला पाएगी? क्या समिति और भी संगठनों, जिनका कोई जनाधार न हो उनको भी, साथ लेकर चलने में सफल हो पाएगी? क्योंकि फिलहाल अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की उपस्थिति भी कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित है। वर्तमान समिति के साथ कितने संगठन हाथ मिलाएंगे यह भी महत्वपूर्ण सवाल है। अभी समिति भी शिशु अवस्था से गुजर रही है।
इसके सर्वमान्य नेता के बारे में भी सोचना होगा। समिति के संयोजक वीएम सिंह, स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के प्रतिनिधि और सांसद राजू शेट्टी, जय किसान आंदोलन के नेता योगेंद्र यादव, नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रवर्तक मेधा पाटकर, पूर्व सांसद (सीपीएम) सुभाषिनी अली, पश्चिम बंगाल के अभीक साहा, तमिलनाडु के स्वामी मलाई विमल नाथन, पश्चिमी ओडिशा कृषक संगठन समन्वय समिति के लिंगराज, राजस्थान राज्य के पूर्व विधायक अयूब खान, सुनीलम या कोई और? नेतृत्व चाहे किसी का भी हो लेकिन यह तय है कि छह जून की घटना के बाद से ही प्रशासन सहमा हुआ है। भाजपा के पोस्टर ब्वाय, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके चहेते अधिकारी नपी-तुली भाषा में इस बारे में बात करते हैं। भूले से भी कोई मंदसौर घटनाक्रम पर बात करना नहीं चाहता है। मंदसौर का नाम लेते ही नेता मोबाइल में व्यस्त हो जाते हैं और अधिकारी चाय/कॉफी ऑर्डर करने लगते हैं। मंदसौर से उठा किसानों का आंदोलन धीरे-धीरे देशव्यापी हो रहा है यह सरकार समझ रही है। कई संगठन किसानों की आवाज को स्थानीय स्तर से उठा कर देशव्यापी बनाने के प्रयास में हैं। जल्द ही पूरे भारत के किसानों के हक में एक स्वर में आवाज उठेगी। मध्यप्रदेश सरकार मंदसौर की स्थिति से अब तक संभल नहीं पाई है। यही वजह है कि वह यात्रा या श्रद्धांजलि के नाम पर कोई नया बखेड़ा नहीं चाहती।