वाकई जेल एक अलग संसार है। ऊंचे रसूखदार और धनी-मानी यहां परत-दर-परत फैले भ्रष्टाचार से हर सहूलियत ऐसे हासिल कर पाते हैं, गोया उनके ठाट-बाट पर कोई बंदिश ही न हो। लेकिन जिनके पास यह सब कुछ नहीं, उन्हें तो अपनी जान बचाए रखने के लिए तब तक जूझना है, जब तक वे कानूनी भंवर जाल से बाहर निकलने का रास्ता नहीं तलाश लेते। उनके लिए तो यह प्रक्रिया ही प्रताड़ना बन जाती है।
जेलों में क्या चल रहा है, इसका एक बार फिर कर्नाटक के बेंगलूरू केंद्रीय कारागार में हाइप्रोफाइल कैदी वी.के. शशिकला को हासिल ऐशो-आराम पर आइपीएस अफसर डी. रूपा की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है। हंगामे के बाद इस रिपोर्ट पर तो जांच शुरू हो गई लेकिन अफसर का तबादला ट्रैफिक विभाग में कर दिया गया। उनकी रिपोर्ट में उन अटकलों का भी जिक्र है कि तमिलनाडु की इस ताकतवर नेता को विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए दो करोड़ रुपये का वारा-न्यारा हुआ। रूपा बताती हैं कि एआइएडीएमके की इस 60 वर्षीय नेता के लिए एक विशेष रसोई का भी इंतजाम किया गया।
रिपोर्ट में दूसरे मामलों का भी पर्दाफाश किया गया है। इनमें फर्जी स्टांप पेपर घोटाले में दोषी ठहराए गए अब्दुल करीम तेलगी का मामला भी शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार कुछ विचाराधीन कैदी सेल में उसकी सेवा में तैनात थे। इतना ही नहीं, जेल के अंदर भांग वगैरह का प्रबंध खुलेआम है और प्रशासन नशीले पदार्थों की आमद रोकने में नाकाम रहा है।
देश की आपराधिक न्याय प्रक्रिया के बारे में जानकारी रखने वालों के लिए इसमें कुछ खास चौंकाने वाला नहीं है। आउटलुक ने विशेषज्ञों, वकीलों, पूर्व जेल अधिकारियों और कुछ पूर्व कैदियों तक से बात करके यह जानने का प्रयास किया कि जेलों में कुछ भी हासिल कर पाना कैसे संभव हो जाता है। बेशक, इसकी कीमत अदा करनी पड़ती है। विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारियों को एक साथ पिरोने पर यह साफ हो जाता है कि जेल में कोई भी कैदी हर महीने करीब पांच लाख रुपये खर्च करके हर तरह के ऐशो-आराम का जुगाड़ कर सकता है।
एनजीओ कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएच-आरआइ) के प्रोग्राम अफसर राजीव बग्गा कहते हैं कि शशिकला को जेल में मिल रही विशेष सुविधाएं, ''यकीनन कोई आश्चर्य नहीं हैं।’’ वे बताते हैं, ''सुविधाएं पाने की संभावनाएं अनंत हैं। हमने (दूसरी जेलों के) कैदियों से सुना है कि समोसा खाने का मन मचले तो 200 रुपये में एक पा सकते हैं। जो चाहें मिल जाएगा पर बस उसकी मुंहमागी कीमत चुकानी पड़ेगी।’’
जेल में समोसा से लेकर एक प्लेट सुशी (जापानी व्यंजन) या ब्लू लेबल जॉनी वाकर की बोतल से लेकर मोबाइल, जिसकी सबसे ज्यादा मांग होती है, तक की 'व्यवस्था’ की जा सकती है। सेलफोन और बाहर के भोजन के लिए कुछ ज्यादा खर्च करने की जरूरत पड़ती है। इसी तरह बढ़िया जेल कोठरी और चिकित्सा के बहाने बाहर की सैर करने के लिए और ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ेगी।
जेलों में रिश्वत की लेनदेन की सबसे बड़ी वजहों में एक मोबाइल फोन होते हैं। यही बाहर की दुनिया से संपर्क का साधन जो हैं। दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल के एक अधिकारी बताते हैं, ''खासकर छोटे गैंगस्टरों और उगाही करने वाले सरगनाओं को जेल से अपना धंधा चलाने के लिए मोबाइल फोन की दरकार होती है। तिहाड़ में जांच के दौरान गैंगस्टर नीरज बवाना (जो बाद में कोर्ट में पेशी के दौरान एक दूसरे सरगना की गोली से मारा गया) सेलफोन का इस्तेमाल करते हुए पकड़ा गया था।’’
तमिलनाडु की जेलें भी इस बात के लिए बदनाम रही हैं कि वहां अपराधों की 'योजना’ बनाने में मोबाइल फोन का इस्तेमाल होता रहा है। चेन्नै के पास पुझाल में 300 सजायाफ्ता और 2,000 विचाराधीन कैदियों की क्षमता वाला सेंट्रल जेल आपराधिक साजिश के गढ़ के रूप में मशहूर है। जेल में अपने मुवक्किलों से मिलने जाने वाले एक वकील के अनुसार, ''कैदियों को मोबाइल फोन आसानी से उपलब्ध हो जाता है और वे बाहर अपने आपराधिक धंधे को चलाने या फिर गवाहों को धमकाने के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं, ताकि वे गवाही देने न आएं।’’ वे कहते हैं, ''अगर आप को पता हो कि किसे रिश्वत देनी है तो आप आसानी से मनपसंद खाना, शराब या यहां तक कि गांजा भी पा सकते हैं। यह सब बेहद व्यवस्थित ढंग से चलता है जिसमें जेल स्टाफ बाकायदा शामिल रहता है।’’
दिल्ली, कर्नाटक और तमिलनाडु में पैसा खनकता है तो केरल में राजनैतिक रसूख का सिक्का चलता है। सूत्रों ने आउटलुक को बताया कि केरल प्रिजंस एंड करेक्शनल सर्विसेज (मैनेजमेंट) एक्ट, 2014 के तहत कैदियों के अधिकारों और जेल में सुविधाएं बेहतर करने की कोशिश की गई है लेकिन राजनैतिक बंदी अपने रसूख के बल पर विशेष सुविधाएं पा जाते हैं।
दबे स्वर में यह चर्चा भी है कि कई राजनैतिक दल जेल में बंद अपने 'लडक़ों’ या 'लड़कियों’ को विशेष सुविधा दिलाने के लिए जेल अधिकारियों को धमकाते हैं। स्टाफ की भारी कमी के कारण कैदियों पर नजर रखने के लिए जेल में हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगाना आवश्यक कर दिया गया है। मगर इनमें से अधिकांश सेट या तो काम ही नहीं करते या फिर उन्हें हटा दिया गया है ताकि राजनैतिक पहुंच वाले कैदियों के चैन में कोई खलल न पड़े।
ये खबरें भी आईं कि कैसे माकपा से अलग होने वाले नेता टी.पी. चंद्रशेखरन की हत्या के आरोप में जेल में बंद कैदियों ने फेसबुक पर मैसेज पोस्ट किए। ये आरोप तो साबित नहीं हो पाए, पर पाया गया कि कोझिकोड जेल में लगे 90 सीसीटीवी कैमरों में से 35 काम नहीं कर रहे थे।
कहते हैं, सोलर पैनल घोटाले की आरोपी हाइप्रोफाइल सरिता एस.नायर को जेल में विशेष सुविधाएं हासिल हैं। उन्हें कोर्ट में पेशी के दौरान अलग-अलग साड़ियों में देखा जाता है जबकि उन्हें जेल में कपड़ों के दो सेट ही रखने की अनुमति है।
दिल्ली के वकील बताते हैं कि उनके एक अमीर मुवक्किल ने तिहाड़ जेल के स्टाफ को खुश रखकर अपने लिए हर तरह की सुविधा जुटा ली। उसकी सेवा में कुछ कैदी ही मुस्तैद नहीं रहते हैं, बल्कि उसे बाथरूम और किचन की सुविधा वाला वीआईपी सेल भी मिल गया है। वकील कहते हैं, ''उसका पसंदीदा भोजन लकदक खान मार्केट के एक रेस्तरां का सुशी है। बस होता यह है कि जेल में तीन स्तरों की चेकिंग से गुजरने के बाद 1,000 रुपये की एक प्लेट 10,000 रुपये में पड़ती है। वह कहता है कि वह हरदम जेल स्टाफ को चखने को बुलाता है।’’ यही नहीं, उनका मुवक्किल विचाराधीन कैदियों से अपने सेल, कपड़े और टॉयलेट की सफाई तक भी करवाता है। वकील कहते हैं, ''ऐसी सुविधाएं हासिल करने वाला मेरा मुवक्किल अकेला नहीं है।’’
तिहाड़ जेल में तीन दशक से ज्यादा तैनात रहे, एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि कैसे जेल में सेल या कोठरियों की 'बिक्री’ होती है। उनके अनुसार जेल में अच्छी कोठरियों का आवंटन भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा स्रोत है। अमूमन कैदियों को एक बड़े हॉल में बने बैरकों में रखा जाता है। ये बैरक 30 कैदियों के लिए होते हैं। लेकिन जेल में कैदियों की भीड़ बढ़ने पर एक बैरक में सौ से अधिक कैदियों को भी ठूंस दिया जाता है। तिहाड़ परिसर में दस जेल बने हैं। इनमें 6,250 कैदियों को रखने की जगह है मगर यहां 14,500 से ज्यादा कैदी बंद हैं।
एक पूर्व जेलर बताते हैं, ''यहां 400 सेल (कोठरियां) हैं। हरेक में पांच कैदियों को रखा जा सकता है। लेकिन एक सेल में एक, तीन, चार या पांच कैदियों को जगह देना जेल स्टाफ की मर्जी पर होता है। कोई कैदी अगर अकेले ही सेल में रहना चाहता है तो उसे एकमुश्त लगभग पांच लाख रुपये और हर महीने एक लाख रुपये तक देने पड़ सकते हैं। महीने का पैसा इसलिए होता है कि सेल उसके पास ही बना रहे, वरना इकलौते सेल की बड़ी मारामारी रहती है। वैसे, अगर कोई कैदी पूरा बड़ा सेल लेना चाहता है तो उसे पहले एकमुश्त करीब दस लाख रुपये और हर महीने लगभग एक से लेकर तीन लाख रुपये तक देने पड़ सकते हैं।’’
दिल्ली के उपहार सिनेमा हादसे का दोषी, उद्योगपति गोपाल अंसल भी एक सेल में है। दो कैदी उसकी सेवा में रहते हैं। 1997 में हुए इस अग्निकांड में अपने दो किशोर बच्चों को गंवाने वाली नीलम कृष्णमूर्ति ने आउटलुक को बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी है कि अंसल इकलौती सेल में रहता है, उसके पास दो सेवादार भी हैं। कृष्णमूर्ति अंसल को मिल रही सुविधाओं के बारे में जानकारी के लिए कई आरटीआइ दायर कर चुकी हैं। एक आरटीआइ के जवाब में उन्हें बताया गया कि 27 मई को अंसल कोर्ट में क्यों पेश नहीं हुआ। वे कहती हैं, ''मुझे बताया गया कि पेशी के लिए प्रोडक्शन वारंट प्राप्त नहीं हुआ। इससे साफ है कि जेल के स्टाफ उसकी मदद कर रहे हैं। वजह यह है कि अंसल अन्य विचाराधीन कैदियों के साथ जेल की वैन में जाना पसंद नहीं करता है। उसे कुछ अलग व्यवस्था चाहिए।’’
इसके अलावा कुछ सेल ऐसे भी हैं जिन्हें वीआइपी वार्ड के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें से एक विपश्यना ध्यान के लिए है। एक पूर्व अधिकारी के अनुसार, ''ये सीआइपी (कॉमर्शियली इंपॉर्टेंट पर्सन) के लिए नहीं, बल्कि वाकई वीआइपी के लिए है। ये सेल पैसे लेकर आवंटित नहीं किए जाते हैं। इनका आवंटन जेल महानिदेशक या राज्य के गृह सचिव करते हैं।’’ इंडिया अगेंस्ट करप्शन के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान 2011 में गिरफ्तार हुए अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल को ये सेल आवंटित किए गए थे। इसके अलावा दिल्ली सरकार के पूर्व प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार को भी यहीं रखा गया था।
पूर्व पुलिस अधिकारी आर.के. शर्मा, द्रमुक नेता ए. राजा और बिहार के पप्पू यादव को भी वीआइपी वार्ड आवंटित किए गए। पूर्व समाजवादी पार्टी नेता अमर सिंह को भी वीआइपी वार्ड में रखा गया। उनकी देखरेख के लिए दो अन्य कैदियों को साथ में रखा गया। उन्हें स्वास्थ्य के आधार पर घर से खाना मंगाने की भी अनुमति दी गई थी।
मेडिकल सुविधा हासिल करना भी आरोपों के घेरे में है। यह भी कीमत चुकाकर हासिल की जा सकती है। सूत्रों के अनुसार इस बात के कई उदाहरण हैं कि कैदी जेल में समय गुजारने की जगह खुद को (जेल के डॉक्टर की अनुशंसा पर) अस्पताल में भर्ती करा लेते हैं। दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, जहां सामान्य तौर पर तिहाड़ के कैदी भेजे जाते हैं, के एक डॉक्टर कहते हैं, ''कई बार बीमारी काफी साधारण पेप्टिक अल्सर या माइग्रेन हो सकती है पर उसकी व्याख्या ट्यूमर की तरह की जाती है। यह पैसे लेकर किया जाता है।’’
राजनैतिक नेता डी.पी. यादव का बेटा विकास हत्या के मामले में दोषी साबित होने के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उसके बारे में रिपोर्ट है कि वह 2008 से 2010 के बीच 70 बार जेल से बाहर आया। उसने जेल में बंद रहने के दौरान ज्यादा समय अस्पताल में बिताया जबकि उसे कोई बीमारी भी नहीं थी। वह 2011 में दीवाली की रात एम्स से बाहर पकड़ा गया। वह यहां जेल के डॉक्टरों की अनुशंसा पर भर्ती था। जब दिल्ली हाइकोर्ट ने आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल की मेडिकल बोर्ड से इस बारे में रिपोर्ट मांगी तो बताया गया कि विकास और इस केस के सह अभियुक्त विशाल यादव को बिना जरूरत के अस्पताल लाया गया और भर्ती कराया गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा कहते हैं कि वे यह नहीं समझ पाते हैं कि जेल स्टाफ क्यों लोगों को अनावश्यक विशेष सुविधा देते हैं। वे कहते हैं, ''तिहाड़ हर तरह से एक मॉडल जेल है। कैदियों को सुविधाएं देने के मामले में यहां का रुख लचीला है। यहां सजा की जगह सुधार पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।’’ वे आउटलुक से कहते हैं, ''कैदी कैंटीन से खाना मंगा सकते हैं। यहां तक कि वे यहां से विशेष फल भी ले सकते हैं। इसके पैसे उनके खाते से काटे जाते हैं। यहां योग, ध्यान, कानूनी सहायता, कूलर, टीवी वगैरह की भी सुविधा है। कैदियों को आधिकारिक तौर पर जेल के अंदर मौजूद बूथ से पांच मिनट तक फोन कॉल करने की अनुमति है। विदेशी कैदी अधीक्षक के कार्यालय से स्काइप कॉल भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं, बूढ़े और बीमार कैदियों को आधिकारिक तौर पर सेवादार उपलब्ध कराए गए हैं।’
रसूखदार कैदियों के बारे में वे बताते हैं कि 1999 में मॉडल जेसिका लाल हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मनु शर्मा को तिहाड़ के अंदर स्थित सेमी ओपन जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है। वह परिसर के अंदर दो सौ एकड़ में कहीं भी घूम सकता है। सेमी ओपन जेल में दो साल गुजारने के बाद वह खुली जेल में रहने के काबिल हो जाएगा। इस दौरान उसे दिल्ली की सीमा के अंदर काम करने की अनुमति होगी पर उसे शाम को लौट आना होगा।
तिहाड़ जेल के पूर्व महानिदेशक नीरज कुमार बताते हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान वहां कनिमोझी, ए. राजा और सुरेश कलमाड़ी जैसे नेता जेल में रखे गए थे। लेकिन उन्हें किसी तरह की विशेष सुविधा नहीं दी गई थी। वे कहते हैं, ''मैं केवल उनकी सुरक्षा पर ध्यान देता था ताकि कोई कैदी उन पर हमला न कर दे।’’ कुछ कैदियों द्वारा विशेष सुविधा लेने के सवाल पर वे कहते हैं कि इस पर जेल प्रशासन को रोकथाम के प्रयास करने चाहिए।
एचआरआइ के बग्गा कहते हैं, ''समय-समय पर जेल का निरीक्षण किया जाना खास मतलब का नहीं है। अगर इसे जरूरी बना दिया जाए तो उन्हें इस तरह की घटना (शशिकला को मिले विशेषाधिकार) की जानकारी मिल जाएगी। हमने हाल ही में एक अध्ययन किया है जिसके अनुसार देश की 1,400 जेलों में से एक फीसदी से भी कम जेल जांच-पड़ताल के नियमों का पालन करते हैं। अगर आपके पास जांच की व्यवस्था ही नहीं होगी तो ऐसी घटनाएं होती रहेंगी और लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं मिलेगी।’’
पूर्व सतर्कता आयुक्त आर. श्रीकुमार कहते हैं, ''आपराधिक न्याय प्रणाली सड़ चुकी है। यही हाल जेल और दंडात्मक प्रणाली की है। ऐसे में जो हो रहा है वह संगठित अपराध से कम नहीं है।’’ वे कहते हैं, ''डंडा चलाकर इसे रोका नहीं जा सकता है। फिलहाल जो कार्रवाइयां होती हैं, वह सिर्फ एक से दूसरे सिर पर जिम्मेदारी थोपने जैसी होती हैं। असल में पूरी व्यवस्था में ही आमूलचूल बदलाव की दरकार है।’’