‘‘साहब... हम तो दिहाड़ी मजदूर हैं। हमारे यहां दिन भर काम के बाद ही शाम को चूल्हा जलता है। पिछले 15 दिनों काम बंद पड़ा रहा। ऐसा ही चलता रहा तो मुझे शहर में दिहाड़ी के लिए जाना पड़ेगा। डर भी लगता है कि कहीं बैरंग न लौटना पड़े। कुछ लोग जो पहले गए, कह रहे थे की शहर में भी काम मंदा है। मजदूर न अब शहर में, न ही गांव में काम पा रहे हैं। साहूकार और उद्योगपति तो कोई और धंधा कर मुनाफा कमा लेंगे, पर हम जैसे मजदूर जाएं तो जाएं कहां?’’
तारीख: 14 जुलाई, समय: सुबह नौ बजे। बुरहानपुर शहर के नयामतपुरा के रहने वाले इकरम उल्ला अंसारी घर में फुरसत मगर तनाव की मुद्रा में बैठे हैं। अंसारी को इंतजार है कि पिछले दिनों से बंद पावरलूम और टेक्सटाइल उद्योग में काम जल्दी शुरू हो जाए। वे कहते हैं, ''साहब, बस काम शुरू हो जाए। हमारी धड़कन तो पॉवरलूम के खटपट में बसी है।’ यह नजारा अंसारी जैसे लगभग 70,000 मजदूरों, मास्टर वीवर्स और पॉवरलूम ओनर्स की बेबसी का है। इस बेबसी की वजह 1 जुलाई से लागू हुआ वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) है। इसके पहले यहां पावरलूम और टेक्सटाइल उद्योग में काम कर रहे मजदूरों को फुरसत में पाने के लिए लोगों को सुबह जल्दी जाना पड़ता था। बाजार में सन्नाटा पसर गया। बुरहानपुर में 20 से लेकर 50 रुपये मीटर का कपड़ा तैयार होता है। लेकिन 1 जुलाई के बाद से करीब 15 दिन तक जिले के तकरीबन 300 छोटे-मोटे टेक्सटाइल यूनिट और 35, 000 पावरलूम बंद पड़े रहे। जिले की अर्थव्यवस्था ठप हो गई। हजारों मजदूर बेरोजगार हो गए। इस बंदी से सीधे तौर पर सवा लाख से ज्यादा लोगों के प्रभावित होने का अनुमान है। पावरलूम उद्योग से अधिकतर छोटे बुनकर और मजदूर जुड़े हैं। सो, बंद से उनकी रोजी-रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया।
मध्यप्रदेश का बुरहानपुर शहर मुगलकाल से ही कपड़े के लिए प्रसिद्घ रहा है। इसका इतिहास और ऐतिहासिक विरासत उतनी ही रोमांचक है जितना यहां के बुनकर। आज भी यह प्रदेश के कपड़ा उद्योग का गढ़ माना जाता है। जिले की 75 प्रतिशत आबादी कपड़ा उद्योग पर निर्भर है। उद्योगपतियों ने बताया जब तक सरकार जीएसटी से राहत नहीं देगी, तब तक शहर के कपड़ा उद्योग में काम प्रभावित ही रहेगा।
दरअसल, जीएसटी के कारण कपड़े पर पहली बार टैक्स लग रहा है। पांच प्रतिशत टैक्स लगने से कपड़े की लागत बढ़ेगी। लागत बढ़ने से बाजार में कीमत और बढ़ेगी, जिसका असर बिक्री पर पड़ सकता है।
सूरत की तरह ही बुरहानपुर के कपड़ा व्यापारियों ने जीएसटी कानून का विरोध किया। सरकार से जीएसटी कानून वापस लेने की मांग को लेकर विभिन्न संगठन, बुरहानपुर टेक्सटाइल एसोसिएशन, बुनकर संघ, टेक्सटाइल प्रोसेस एसोसिएशन, एमार्गिद एसोसिएशन, यार्न मर्चेंट एसोसिएशन, साड़ी बाजार एसोसिएशन, मास्टर वीवर एसोसिएशन, शहर के उद्योगपति, बुनकर एकजुट हो गए और कपड़ा उद्योग बंद रखने का निर्णय किया।
मध्यप्रदेश लघु उद्योग संगठन के उपाध्यक्ष सईद फरीद कहते हैं, ''पहले यार्न के ऊपर ही टैक्स लगता था जिसे स्पिनिंग मिल को चुकाना पड़ता था। जीएसटी के बाद हर प्रक्रिया में जैसे साइजिंग, प्रोसेसिंग, ब्लीचिंग, पावरलूम, वीवर वगैरह सभी टैक्स के दायरे में आ गए हैं। सभी की मांग है कि या तो जीएसटी को हटाया जाए या सरल बनाया जाए।’’
गौरतलब है कि पावरलूम मंदी के दौर से गुजर चुका है। जीएसटी से हालात और बिगड़ने की आशंका है। माना जा रहा है कि इस हड़ताल से कपड़ा उद्योग को लगभग 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान भुगतना पड़ा। अब धीरे-धीरे काम-धंधे शुरू हो रहे हैं। जीएसटी को बुनकर समझ नहीं पा रहे हैं। बुनकरों को नहीं पता कि जीएसटी के बाद से कब-कब टैक्स लगेगा? क्या महीने में तीन बार रिटर्न भरना पड़ेगा या फिर सालभर में 36 रिटर्न भरने होंगे? क्या उन्हें भी जीएसटी भरने के लिए कंप्यूटर, सीए की जरूरत पड़ेगी? क्या शहर में छोटे उद्योगपतियों पर जीएसटी का भार पड़ेगा और उन्हें चार बार चुकाना पड़ेगा?
बुरहानपुर में पहले सूत तैयार होता है। इसके बाद सूत से कपड़ा तैयार कर चौथी स्टेज में बाजार में आता है। तो, क्या पहले सूत वाला टैक्स चुकाएगा, या सूत खरीदकर पॉवरलूम पर कपड़ा बनाने वाला कारखाना संचालक टैक्स चुकाएगा, या फिर इसके बाद साइजिंग मालिक और आखिर में प्रोसेसिंग होकर बाहर निकलने पर कपड़े पर टैक्स चुकाना होगा?
बुरहानपुर में मुगलकाल से कपड़ा बन रहा है, पर अब तक टैक्स नहीं लगा है। यह पहला मौका है जब कपड़ा उद्योग बंद हुआ है और इससे शहर की फिजा में घुल चुकी पॉवरलूम की खटपट आवाज गुम हो गई।