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नए टैक्स से हाल बेहाल

बड़े से छोटे उद्यमी, व्यापारी, दुकानदार सभी हलकान, काम ठप और ट्रांसपोर्टर बैठे खाली
कानपुर का चमड़ा और होजरी उद्योग ही नहीं सभी कारोबारी पस्त

उत्तर प्रदेश में होजरी के बड़े निर्माता जेट निटवीअर्स के प्रबंध निदेशक तथा यूपी होजरी मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन के संरक्षक बलराम नरूला आजकल काफी दुविधा में हैं। वजह रोजमर्रा के कारोबारी मसले नहीं, देश में हाल ही में लागू नई कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) है। नरूला के मुताबिक, ''हमारे 80 प्रतिशत ग्राहक कंप्यूटर प्रणाली से अनभिज्ञ हैं और जीएसटी में कंप्यूटर के बिना कोई काम संभव ही नहीं है। छोटे व्यापारियों में अभी भी भारी भ्रम की स्थिति है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें।’’

जीसटी लागू होने के बाद छोटे व्यापारी और दुकानदार ही नहीं, बड़े उद्यमी भी भ्रम की स्थिति में हैं। सामान्य कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। नतीजतन करीब 500 करोड़ रुपये सालाना कारोबार वाले कानपुर का होजरी उद्योग आज सुस्त पड़ा हुआ है, जो करीब एक लाख लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार मुहैया कराता है। नरूला के मुताबिक, फिलहाल सिर्फ 10-15 प्रतिशत ही काम हो रहा है और बाकी काम ठप है।

देश में होजरी के लिए तीन अग्रणी केंद्रों में तिरुपुर (तमिलनाडु) और कोलकाता (पश्चिम बंगाल) के बाद कानपुर का नाम आता है। कानपुर में करीब 500 सूती होजरी की इकाइयां हैं। इसके अलावा यहां हजारों छोटी-बड़ी होजरी संबंधित सिलाई, बुनाई और रंगाई के उद्यम हैं। नरूला ने दावा किया कि कानपुर, जो उत्तर प्रदेश का प्रमुख औद्योगिक नगर है, जीएसटी की मार से अत्यधिक बेहाल है और यहां होजरी ही नहीं, सभी उद्योग-धंधे रकटने लगे हैं।

वैसे तो कानपुर में कई प्रकार के उद्योग हैं, लेकिन मुख्य रूप से चमड़ा, वस्त्र और होजरी के लिए यह मशहूर है। एक समय इसे 'पूरब का मैनचेस्टर’ भी कहा जाता था। अब वह गुजरे वक्त की बात है। अब यहां अधिकतर व्यापारिक और उत्पादन इकाइयां लघु और मध्यम श्रेणी की हैं। जीएसटी के तहत, न सिर्फ औद्योगिक इकाइयों का पंजीकरण अनिवार्य है, उसकी प्रक्रिया और प्रणाली भी अधिकतर उद्यमियों को काफी कठिन और पेचीदा लग रही है। इसी से वे परेशान हैं।

उद्यमियों की सबसे बड़ी शिकायत है कि उनके करीब 80 प्रतिशत संगठित ग्राहक छोटे और मझोले व्यापारी तथा दुकानदार हैं, जो दूरदराज के इलाकों और कस्बों में स्थित हैं, और ज्यादातर को कंप्यूटर का कोई ज्ञान नहीं है। दूसरे, वैसे तो 20 लाख की आय तक सभी प्रतिष्ठान जीएसटी के दायरे से बाहर हैं, लेकिन यह व्यावहारिक रूप से लागू नहीं है। नरूला ने बताया कि ट्रांसपोर्ट कंपनियां अब सिर्फ तभी माल ढुलाई की बुकिंग कर सकती हैं, जब बेचने या खरीदने वाले में से कम से कम एक जीएसटी में पंजीकृत हो। इस नाते छोटे व्यापारी अपना सामान एक से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए भी धक्के खा रहे हैं। वे कहते हैं, ''व्यापारियों और उद्यमियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है और इसका दूरगामी असर हमारे व्यापार पर पड़ रहा है।’’ उनका अनुमान है कि जल्दी कोई समाधान न निकला तो कानपुर होजरी उद्योग को करीब 200 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा।

कुछ यही हाल, छोटे होजरी निर्माताओं और होजरी से जुड़े दूसरी इकाइयों का भी है जो इसी आस में हैं कि किसी तरह झंझट मिटे और उनकी इकाइयां फिर से चालू हो सकें। नार्दर्न इंडिया होजरी मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज बंका की दिनचर्या भी आजकल बदली हुई है। वे कहते हैं, ''करीब-करीब सारी इकाइयां बंद पड़ी हैं और छोटे और मझोले उद्यमी इस नई प्रणाली को ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं।’’

कानपुर का होजरी उद्योग पहले ही राज्य सरकारों की उदासीनता के चलते संकट से जूझ रहा था, जीएसटी ने उनका रास्ता और दुर्गम बना दिया है। बंका कहते हैं, ''पहले कच्चे माल पर कोई कर नहीं लगता था पर अब जॉब वर्क के आधार पर 18 प्रतिशत कर लग रहा है, जिससे तैयार माल करीब 10 प्रतिशत तक महंगा हो जाएगा।’’ उद्यमियों में असमंजस की स्थिति है और ट्रांसपोर्टर भी खाली बैठे हैं।

होजरी के अलावा कानपुर चमड़े से बने उत्पादों के लिए भी मशहूर है। कानपुर का चमड़ा उद्योग अनुमानित करीब 20, 000 करोड़ रुपये का है, जिसमें करीब आधा कमाई निर्यात से ही होती है। काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट (सीएलए) के क्षेत्रीय अध्यक्ष जावेद इकबाल के मुताबिक, ''सरकारी अधिकारी भी जीएसटी को लेकर स्पष्ट नहीं हैं, ऐसे में चमड़ा व्यापारियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।’’ उनके अनुसार, पहले कच्चे चमड़े पर दो प्रतिशत कर लगता था जो अब 18-28 प्रतिशत हो गया है, जिससे लागत काफी बढ़ गई है।

इसी तरह प्रदेश के प्लाईवुड उत्पादकों के अनुसार प्लाईवुड पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगने से यह आम आदमी की जद से बाहर हो गया है। उत्तर प्रदेश में इसके ऊपर 2.5 प्रतिशत का अतिरिक्त मंडी शुल्क भी है। अवध प्लाईवुड मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल के अनुसार प्रदेश में करीब 500 प्लाईवुड निर्माता हैं जो सालाना 1100 करोड़ रुपये का कुल कारोबार करते हैं। वे कहते हैं, ''जीएसटी और मंडी शुल्क की मार से न सिर्फ उद्यमी बल्कि वे किसान भी परेशान हैं, जिनसे हम कच्चा माल खरीदते हैं, उन पर भी इससे जबर्दस्त चोट पहुंची है।’’

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