केंद्र सरकार में ग्रामीण और शहरी विकास मंत्रालयों की जिम्मेदारियां संभाल रहे नरेंद्र सिंह तोमर की गिनती भाजपा के कद्दावर नेताओं में होती है। मध्यप्रदेश से आकर राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले तोमर पार्टी के लिए संकटमोचक का काम भी करते रहे हैं। हाल में किसान आंदोलन से लेकर मोदी सरकार के तीन साल के कामकाज पर उनसे आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह की खास बातचीत:
मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि किसानों के लिए बहुत कुछ किया। फिर भी किसान आंदोलन ने जैसा उग्र रूप धारण किया, उसकी आप क्या वजह मानते हैं?
दुर्भाग्य से ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गईं। हालांकि, मध्यप्रदेश की सरकार ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है। तुलना करेंगे तो देखेंगे की देशभर में सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश की सरकार ने ही किसान के लिए काम किया है। देश में कहीं भी प्याज नहीं खरीदी जा रही है। लेकिन मध्यप्रदेश में आठ रुपया किलो प्याज खरीदी जा रही है। फिर भी किसान की दृष्टि से लगातार विचार करते रहने और उनकी समस्याओं का हल निकालने की जरूरत है।
क्या सरकार किसानों के असंतोष को भांप नहीं पाई? राज्य से किसानों की आत्महत्याओं की खबरें लगातार आ रही हैं। इससे क्या समझा जाए?
दरअसल, मुख्यमंत्री से बात होने के बाद किसानों ने आंदोलन वापस ले लिया था। बाद का आंदोलन पॉलिटिकल था और इस दौरान हुई हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है। जो वीडियो आए हैं उनसे स्पष्ट है कि आंदोलन को भड़काने के लिए किसने क्या-क्या किया। बाकी न्यायिक जांच में सारी चीजें सामने आ जाएंगी। जहां तक किसानों का सवाल है, तो किसान संगठनों से मुख्यमंत्री ने बात की और उनकी बात मान भी ली।
आपके पास ग्रामीण विकास जैसा अहम मंत्रालय है। पिछले तीन वर्षों में केंद्र सरकार ने ग्रामीण विकास के लिए ऐसा क्या किया है जिससे देश की बड़ी आबादी का जीवन बदल सके?
ग्रामीण विकास, पंचायती राज और स्वच्छता तीनों जनता से जुड़े विषय हैं। पिछले दिनों में हमने मनरेगा को परिवर्तित स्वरूप में लोगों के सामने रखा। हमारी उपलब्धि यह है कि आज मनरेगा के 96 फीसदी मजदूरों को उनके अकाउंट में भुगतान मिलता है। इससे भ्रष्टाचार पर काफी अंकुश लगा है। मनरेगा में इस बार बजट प्रावधान 48 हजार करोड़ रुपये का है। हमारी कोशिश है कि इतनी बड़ी राशि से लोगों को रोजगार भी मिले। निर्माण कार्य भी होने चाहिए। इसलिए हमने एसेट बनाने पर बल दिया। अभी हम 85 लाख से अधिक मनरेगा की संरचनाएं 'जिओटैग’ कर चुके हैं जिन्हें कोई भी देख सकता है। राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि मनरेगा का उनका जो अपना 65 फीसदी पैसा है वह जल संरक्षण पर खर्च करें। मनरेगा की दृष्टि से ये तीन-चार चीजें उपयोगी हैं।
इसी तरह प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का लक्ष्य भी हम 2019 तक पूरा कर लेंगे। अभी प्रतिदिन 130 किलोमीटर सड़कें बन रही हैं जिसे हम 150 किलोमीटर तक ले जाएंगे। इसके अलावा पंचायतों को पहले जो फाइनेंस कमीशन का पैसा मिलता था, अब उससे तीन गुना अधिक मिल रहा है। यह पैसा ठीक से खर्च हो, यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं। स्वच्छता का काम काफी अच्छे पैमाने पर चल रहा है। अभी तक पांच राज्य और दो लाख पांच हजार से अधिक गांव खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। अब इन जगहों पर हम कचरा प्रबंधन पर जोर दे रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या को सिर्फ मनरेगा से हल किया जा सकता है?
मनरेगा में भी हम शिक्षित लोगों को स्किल्ड करने की कोशिश कर रहे हैं। उनको हम ट्रेनिंग दे रहे हैं। दूसरा पंडित दीनदयाल आजीविका के माध्यम से लगभग देशभर में सैंतीस लाख सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं, जिनके माध्यम से हम उन्हें स्वावलंबी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस वर्ष में लोग 40 हजार करोड़ रुपया बैंक से सेल्फ हेल्प ग्रुप को दिला पाए हैं। इसके अलावा दीनदयाल कौशल योजना है, उसके माध्यम से हमने आठ लाख लोगों को प्रशिक्षित किया है।
मनरेगा में कितने दिन रोजगार दे पा रहे हैं?
यह अलग-अलग जगह अलग है। कुछ लोग ऐसे हैं जो सौ दिन करते हैं, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पचास दिन ही काम करते हैं।
मनरेगा की वजह से खेती में मजदूरों की कमी का सवाल भी उठता है। इस मसले को किस तरह देखते हैं आप?
मनरेगा में जिस भी व्यक्ति को रोजगार चाहिए वह इसमें शामिल हो सकता है। खेतिहर मजदूर भी हो सकता है और छोटा किसान भी हो सकता है। जिसको आवश्यकता है और जो मांग करता है, हम मांग के अनुसार उसको मदद करते हैं। हमारी कोशिश है कि राज्य सरकारें अपनी जरूरतों के हिसाब से मनरेगा फंड का इस्तेमाल करें। कई राज्य ऐसा कर भी रहे हैं।
पिछली सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराई थी, जिसके पूरे नतीजे जारी नहीं किए गए हैं। ऐसे में इसका क्या औचित्य है?
सामाजिक-आर्थिक जनगणना का काफी इस्तेमाल हो रहा है। प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों की पहचान में इसका उपयोग किया जा रहा है।
सरकार ने 2022 तक सभी को मकान मुहैया कराने का लक्ष्य रखा है। इस दिशा में अब तक कितनी प्रगति हुई है?
मैं समझता हूं कि अच्छी प्रगति है। प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) पिछले साल 16 नवंबर को ही लांच हुई थी। अभी पूरा साल भी नहीं हुआ। आमतौर पर ये आवास 2-4 साल में बनते थे लेकिन अभी कई राज्यों में बहुत तेजी से काम चल रहा है। मध्यप्रदेश के लोगों को मकानों का आवंटन शुरू हो गया है। इसमें सबसे पहला मकान अशोक नगर जिले में एक 100 साल की महिला को मिला है।
प्रधानमंत्री की पहल पर शुरू हुई आदर्श ग्राम योजना में बहुत से सांसदों ने खास रुचि नहीं ली?
मैं समझता हूं कि आदर्श ग्राम योजना को प्रधानमंत्री से नहीं जोड़ा जा सकता। प्रधानमंत्री ने लोगों से आग्रह किया था। अगर प्रधानमंत्री को पैसा इसमें डालना होता तो सांसद ग्राम योजना नहीं फिर वह प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना होती। उन्होंने आग्रह किया था कि सभी सांसद अपने प्रभाव, बुद्धिमत्ता और संपर्क का उपयोग कर गांवों के कायाकल्प की शुरुआत करें। इसके काफी अच्छे परिणाम जमीन पर भी आए हैं। मैं आपको प्रमाण दिखा सकता हूं।
क्या अपने संसदीय क्षेत्र के हजारों गांवों में से किसी एक गांव को चुनना सांसदों के लिए मुश्किल साबित हो रहा है?
हां, यह सच है कि एक सांसद के क्षेत्र में काफी गांव होते हैं। लेकिन हमें एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। एक ऐसा गांव जहां सभी बच्चे स्कूल जाएं। इसमें कौन-सा पैसा लगना है। जितने भी बच्चे हैं उनका टीकाकरण हो तो इसमें कौन-सी सांसद निधि की जरूरत है।
ग्रामीण विकास के लिए काम करने वाली संस्था 'कपार्ट’ अक्सर विवादों में रहती है। इसे लेकर क्या योजना है?
अब हम 'कपार्ट’ को समाप्त करने पर विचार कर रहे हैं। इस प्रस्ताव को मंत्रिमंडल में ले जा रहे हैं। अगर 'कपार्ट’ ठीक से काम करता तो उसका फायदा गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलता। उनके माध्यम से लोगों को मिलता। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
मध्यप्रदेश में भाजपा नेतृत्व में बदलाव की अटकलें लगती रहती हैं। क्या राज्य नेतृत्व में किसी तरह के फेरबदल की उम्मीद की जा सकती है?
नहीं-नहीं, मध्यप्रदेश में भाजपा बहुत ताकतवर है, संगठनात्मक रूप से बहुत ताकतवर है और भाजपा का बहुत बड़ा जनाधार है। लीडरशिप भी बहुत अच्छी है आप सर्वे करवाकर देख लीजिए।