Advertisement

धराशायी प्रॉपर्टी बूम

यह रियल एस्टेट सेक्टर के लिए कठिन समय है। कीमतें गिर रही हैं और बिक्री में मंदी का दौर है। लेकिन निवेशक होशियार हैं और संभव है कि मकान खरीदने वालों के चेहरे पर फिर मुस्कान लौटे
नोएडा, एनसीआर में खाली पड़ी गगनचुंबी इमारतें

'सपनों का महल!’  यह मुहावरा हर इंसान के अरमान जगा देता है। लेकिन शहरों के बाहर उगी गगनचुंबी इमारतों पर नजर डालें तो पता चलता है कि यह अरमान आज भारतीय महानगरों के उपनगरों में कैसे हंसी-खुशी बसता है। पिछले दो दशक में अंधाधुंध निर्माण की होड़ ने शहरों को पूरी तरह बदल डाला। शहरी इलाके हर इंसान के 'घर के सपने’ को पूरा करने में जुट गए, कंक्रीट घोलने वाली मशीनें बिना थमे चलती रहीं। नोएडा एक्सटेंशन को ही लीजिए। रिहाइशी विकास के लिए इसे एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) का सबसे पसंदीदा इलाका बताया जाता था। मगर आज यहां कर्फ्यू के बाद जैसा सन्नाटा पसरा दिखाई पड़ता है। बेचैन करती खामोशी है, अधूरे पड़े अपार्टमेंट हैं और निर्माण कार्य तकरीबन थम-से गए हैं। इस तरह के कोई संकेत भी नहीं हैं कि बिल्डर इन एक-सी इमारतों में बने खांचों को बेचने की कोशिश भी कर रहे हैं।

शहरों के क्षितिज को बदल रही बहुमंजिला इमारतों की कतारें आपको अच्छी लगें या बुरी, मगर रियल एस्टेट देश के विकास की महत्वपूर्ण निशानी और सोना के बाद लोगों के लिए निवेश का प्रमुख ठिकाना है। हालांकि, सदी के शुरुआती दशक में छाया प्रॉपर्टी बूम अब पीछे छूट चुका है। पिछले ढाई साल में भारत के रियल एस्टेट मार्केट को गहरा झटका लगा है। खासतौर पर एनसीआर में तैयार मकानों और रिसेल वाली प्रॉपर्टी की कीमतों में 20-25 फीसदी गिरावट के बावजूद नोटबंदी के बाद बिक्री और भी कम हो गई। निवेशकों का भरोसा ऐसा डगमगाया कि 2015 के बाद से देश के ज्यादातर हिस्सों में प्रॉपर्टी के दाम 30-40 फीसदी तक गिर चुके हैं। कभी लुभावने रहे इस सेक्टर में अपना पैसा लगाने से निवेशक अब कतरा रहे हैं।

राजधानी में नए हाउसिंग प्रोजेक्ट के अकाल के बावजूद दो साल पुरानी कीमतों से काफी कम दाम पर प्रॉपर्टी के सौदे हो रहे हैं। मिसाल के तौर पर, दक्षिणी दिल्ली के साकेत इलाके में तीन बेडरूम का डुप्लेक्स फ्लैट नोटबंदी से पहले दो करोड़ रुपये में बिका, जबकि 2014 में इसी तरह का फ्लैट ढाई करोड़ रुपये में बिका था। इसी तरह, दक्षिणी दिल्ली के ही मुनिरका में पुराने डीडीए कॉम्प्लेस में दो बेडरूम का फ्लैट 95 लाख में बिका। पहले इसकी कीमत 1.35 करोड़ रुपये लगाई गई थी। शहर के मुख्य इलाकों में भी बिल्डर फ्लैट अधिकतम कीमत के मुकाबले 20 फीसदी कम दाम पर बेचे जा रहे हैं। देश भर के प्रमुख शहरों में अधूरे प्रोजेक्ट और बिना बिके मकानों को खरीदारों का इंतजार है, जबकि खरीदार कीमतों में और गिरावट की आस लगाए बैठे हैं।

प्रॉपर्टी बाजार में लोगों का विश्वास बढ़ाने के लिए लाया गया नया कानून भी इस सेक्टर को उबारने में मददगार साबित नहीं हो पाया। नियमों का सही से क्रियान्वयन न हो पाना इसकी बड़ी वजह है। रियल एस्टेट सेवाओं और डाटा विश्लेषण से जुड़ी कंपनी प्रॉपइक्विटी के सीईओ समीर जसूजा कहते हैं, ''एनसीआर में नए प्रोजेक्ट्स की बिक्री में 70 फीसदी की गिरावट आई है जबकि देश के अन्य हिस्सों में यह आंकड़ा 40 से 50 फीसदी है।’’

रियल एस्टेट क्षेत्र की परामर्शदाता कंपनी कुशमैन एंड वेकफील्ड के प्रबंध निदेशक (भारत) अंशुल जैन के अनुसार, ''आवासीय रियल एस्टेट अपनी परेशानियों से गुजर रहा है और 2013 से गिरावट की ओर है। 2010 से 2012 तक बाजार में काफी तेजी थी और देश भर में कई प्रोजेक्ट लॉन्च हुए। इन तीन वर्षों में कीमतें दुगनी हो गईं। ये टिकाऊ नहीं थीं। इस दौरान कई नए डेवलपर बाजार में आ गए, जिनमें डिलीवर करने की क्षमता नहीं थी। अब बाजार में खरीदार नहीं हैं और भरोसा भी डिग चुका है।’’ जैन का अनुमान है कि एनसीआर में उपलब्ध अधिकांश फ्लैटों की कीमत 2012 की तुलना में 20-25 फीसदी कम है और अगले दो साल तक रेजिडेंशियल मार्केट मंदा रहेगा।

रियल स्टेट सलाहकार जेएलएल के आंकड़ों के अनुसार मुंबई (शहर के पॉश इलाके को छोड़कर) में मकानों की बिक्री में 19.9 फीसदी, एनसीआर में 7.5 फीसदी, चेन्नै में 15.7 फीसदी और कोलकाता में 12.7 फीसदी की कमी देखी गई है। पुणे और बेंगलूरू इस मामले में अपवाद हैं, जहां मकानों की बिक्री क्रमश: 21.1 फीसदी और 0.9 बढ़ी। ज्यादातर शहरों में मकानों की कीमतें 15-25 फीसदी तक गिर चुकी हैं।

जानकारों का मानना है कि रेजिडेंशियल रियल स्टेट मार्केट में गिरावट के कई कारण हैं। हर इलाके पर हरेक कारण लागू नहीं होता है। नोटबंदी से मकानों की खरीद को बड़ा झटका लगा क्योंकि लेनदेन का बड़ा हिस्सा ब्लैक में होता था। इसके अलावा मकानों की अवास्तविक कीमतों ने भी खरीदारों को दूर रखने और मांग खत्म करने में अहम भूमिका निभाई। जेएलएल रेजिडेंशियल के चेयरमैन अनुज पुरी कहते हैं, ''अत्यधिक ऊंची कीमतें, मांग की अनदेखी कर हुए निर्माण और समय पर प्रोजेक्ट पूरा करने में बिल्डरों की नाकामी रियल एस्टेट को इस स्थिति तक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं। इससे खरीदारों के मन में अविश्वास पैदा हो गया। उनमें डेवलपरों द्वारा ठगे जाने का अहसास बढ़ता गया।’’  इसके अलावा ऊंची ब्याज दरों और मकान खरीदारों को सरकार द्वारा पर्याप्त रियायतें नहीं मिलने से भी स्थिति बिगड़ी। हालांकि, समय के साथ कई डेवलपरों को अपनी भूल का अहसास हुआ है और वे अपने कारोबारी तौर-तरीकों में सुधार ला रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि कमोबेश पूरे देश में मकानों की बिक्री मंद पड़ी है। डेवलपर भी इस बात को महसूस कर रहे हैं। खरीदारों के हितों की रक्षा और निवेशकों के भरोसे को जगाने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। इससे धीरे-धीरे ही सही बाजार फिर से उबरने लगा है, लेकिन केवल कुछ पॉकेट्स में। इसलिए एनसीआर जैसे बाजारों में जहां भरोसे की कमी और प्रोजेक्ट में देरी सबसे ज्यादा है, वहां तेजी आने में ज्यादा समय लगेगा।

अनुज पुरी के अनुसार, ''अब मकानों की कीमतों में इजाफा तभी होगा, जब पर्याप्त मांग हो। फिलहाल बड़ी तादाद में मकान बिना बिके पड़े हैं। इनके बिकने से पहले डेवलपर कीमतें बढ़ाने का जोखिम नहीं लेंगे। अगले कुछ महीनों में मांग बढ़ सकती है, क्योंकि रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट के चलते खरीदारों का भरोसा बढ़ा है।’’

खासतौर पर एनसीआर और बाहरी मुंबई में मकानों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि ने समूचे हाउसिंग सेक्टर को मंदी के मुंह में धकेलने में अहम भूमिका निभाई। रियल एस्टेट सलाहकार सीबीआरई के चेयरमैन (इंडिया एंड साउथ ईस्ट एशिया) अंशुमान मैगजीन के मुताबिक, ''डॉलर में भी दिल्ली एनसीआर और मुंबई की प्रॉपर्टियों के दाम आमदनी और क्रय-क्षमता के मुकाबले काफी ज्यादा बढ़ गए थे। इस दौरान इकोनॉमी में तेजी बरकरार नहीं रह पाई क्योंकि जीडीपी की विकास दर आठ फीसदी से घटकर छह फीसदी पर आ गई। इससे बाजार में गिरावट और माहौल के नकारात्मक होने का दौर शुरू हुआ, जिससे नकदी और मांग में कमी आ गई। एनसीआर और मुंबई के साथ-साथ बेंगलूरू, पुणे, हैदराबाद, चेन्नै और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में यही हुआ।’’

संभवत: एनसीआर पर इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ी क्योंकि यहां कीमतों में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई। रियल एस्टेट कंसल्टेंट और उत्तर भारत के बाजारों पर नजर रखने वाले प्रदीप मिश्रा बताते हैं, ''पिछले छह माह में एनसीआर की प्रॉपर्टी के दाम 20 से 25 फीसदी तक गिर चुके हैं। सबसे ज्यादा असर नोएडा में दिखा जहां डेवलपरों ने नोएडा अथॉरिटी से किश्तों पर जमीन खरीदी थी और बड़ी तादाद में डेवलपर भुगतान करने में नाकाम रहे।’’ हाल ही में नोएडा अथॉरिटी ने ऐसे 91 बिल्डरों की सूची जारी की है। इनमें से अधिकांश प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं।

मिश्रा के अनुसार, ''पूर्वी दिल्ली, द्वारका, वसंत विहार और ग्रेटर कैलाश जैसे इलाकों में भी प्रॉपर्टी के दाम 20 फीसदी तक गिरे हैं। गुरुग्राम में भी यही स्थिति है। फरीदाबाद में कीमतें 25 फीसदी तक गिरी हैं। प्रॉपर्टी ब्रोकर्स बताते हैं कि आजकल केवल रहने के लिए तैयार मकानों की मांग है, जबकि निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स में मुश्किल से 10 फीसदी लोगों की दिलचस्पी है।’’

देश के दूसरे हिस्सों में भी यही स्थिति है। मुंबई के मुख्य इलाकों में मंदी का कोई खास असर नहीं दिखता लेकिन नवी मुंबई और पनवेल जैसे बाहरी हिस्से इससे अछूते नहीं हैं। आरएनए कॉर्प, मुंबई के प्रबंध निदेशक अनुभव अग्रवाल कहते हैं, ''नकदी के प्रवाह में कमी और कर्ज मंजूरी के कड़े नियमों के चलते नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट को झटका लगा। लग्जरी और कमर्शियल सेग्मेंट के खरीदारों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, निक्वन और मध्यम कीमत वाले मकानों के दाम में थोड़ी कमी आई है लेकिन बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा।’’

सुस्ती के इस दौर में भी पुणे के लग्जरी और सुपर प्रीमियम सेग्मेंट के मकान इससे अछूते रहे हैं। पिछले साल से पुणे में मकानों की बिक्री में सर्वाधिक उछाल आया है। पंचशील रियलिटी, पुणे के चेयरमैन अतुल चोरडिया बताते हैं, ''हमने लग्जरी या सुपर प्रीमियम सेग्मेंट में कोई गिरावट नहीं देखी। जबकि इस दौरान नोटबंदी और नए रियल एस्टेट कानून जैसे फैसले लागू हुए।’’

एनसीआर और मुंबई के बाद बेंगलूरू देश का तीसरा सबसे बड़ा रियल स्टेट मार्केट है। अन्य जगहों की तुलना में यहां भी स्थिति बेहतर रही। हालांकि, बाजार के जानकारों का मानना है कि 2016 के आखिर और इस साल के शुरुआती कुछ महीनों में बेंगलूरू में भी मकानों की बिक्री गिरी। रियल एस्टेट कंसल्टेंट नाइट फ्रैंक इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री और राष्ट्रीय निदेशक (शोध) सामंतक दास कहते हैं, ''मार्च के अंत से अप्रैल-मई तक बाजार दिसंबर तिमाही की तुलना में काफी बेहतर रहा है। पिछली तिमाही के मुकाबले चीजें बेहतर होने लगी हैं, लेकिन बिक्री के आंकड़े पिछले साल की समान अवधि की तुलना में अभी भी कम रहेंगे।’’ होम लोन की ब्याज दरों में कमी की वजह से एनसीआर और देश के अन्य हिस्सों में मार्च-अप्रैल के दौरान थोड़ा सुधार आया है। दास मानते हैं कि अभी भी डेवलपर बहुत ज्यादा निराश नहीं हैं। क्योंकि ब्याज दरें कम हैं और कीमतें स्थिर बनी हुई हैं।’’

आमतौर पर बेंगलूरू में 50-60 लाख रुपये से कम कीमत के मकान जल्दी बिक जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, दक्षिण बेंगलूरू जैसे शहर के कई इलाकों में मकान बिना बिके पड़े हैं। दास बताते हैं कि बेंगलूरू में जितने मकान बिना बिके पड़े हैं, उन्हें बिकने में तीन साल से ज्यादा समय नहीं लगेगा।’’ बेंगलूरू का रियल एस्टेट मुख्यत: आईटी उद्योग पर आधारित है, इसलिए बिक्री और नए प्रोजेक्ट के मामले में देश के दूसरे शहरों के मुकाबले ज्यादा स्थिर है। दास के मुताबिक, ''पिछले तीन साल के दौरान एनसीआर में नई लांन्चिग और बिक्री में 50-70 फीसदी और मुंबई के बाहरी इलाकों में 30-50 फीसदी की गिरावट देखी गई, पर बेंगलूरू में ऐसा नहीं हुआ।’’ 2010-11 को याद करते हुए दास कहते हैं, ''पांच-छह साल पहले यदि आप नोएडा या ग्रेटर नोएडा के किसी डेवलपर के ऑफिस में जाते तो वहां आपको सिर्फ अंडरराइटर्स ही बैठे मिलते थे। मगर आज अंडरराइटर समेत निवेशकों की पूरी जमात बाजार से बाहर है।’’

जीओजित बीएनपी पारेबा के निवेश विशेषज्ञ वी.के. विजयकुमार के अनुसार, रियल एस्टेट में आठ साल का चक्र चलता है। 2004 से लेकर 2012 तक बाजार में धूम रही। इस दौरान कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के पीछे काला धन भी एक वजह था। पैन नंबर के बगैर भी लोग प्रॉपर्टी खरीद सकते थे। स्टॉक मार्केट और म्यूचुअल फंड की तरह सोने और प्रॉपर्टी में नकद लेनदेन की प्रक्रिया अस्पष्ट थी। 2012 के बाद से प्रॉपर्टी की कीमतों और लेनदेन में कमी आई, क्योंकि इनमें से ज्यादातर सौदे बढ़ा-चढ़ाकर किए गए थे। दस में से नौ लोगों ने इस आशा में खरीदारी की थी कि कीमतें बढ़ने पर प्रॅापर्टी बेच देंगे। जब बाजार में गिरावट आती है तो इस तरह के खरीदार गायब हो जाते हैं।’’

केरल में पिछले दो महीनों के दौरान जमीन के सौदों में पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले साल भी उससे पिछले साल के मुकाबले कम सौदे हुए थे। खबरों के मुताबिक, कई डेवलपरों ने पिछले एक साल में एक भी मकान नहीं बेचा है। वहां भी रियल एस्टेट की कीमतों में सुधार का दौर चल रहा है। सौदे कम हो रहे हैं और सट्टेबाजों की तादाद घटी है। अनुमान है कि अगले पांच-छह साल तक कीमतें स्थिर बनी रह सकती हैं। केरल में प्रॉपर्टी बाजार की सुस्ती का एक कारण यह भी है कि अप्रवासी मलयाली जमीन में कम निवेश कर रहे हैं। पहले वे सोने के साथ-साथ प्रॉपर्टी में भी खूब पैसा लगाते थे। इसे कच्चे तेल की कीमतों में कमी के चलते खाड़ी के देशों में नौकरियों पर संकट से समझा जा सकता है।

कोच्चि में प्रेस्टिज एस्टेट के उपाध्यक्ष वी. थंकाचन थॉमस के अनुसार, ''नवंबर-दिसंबर में नोटबंदी के कारण रियल एस्टेट में थोड़ी अनिश्चितता जरूर आई थी पर अब हालात बदल चुके हैं। चीजें बेहतर हो रही हैं। हालांकि, जीएसटी के बाद थोड़ी रुकावट आ सकती है लेकिन आगे चलकर सब ठीक हो जाएगा।’’

चेन्नै में पिछले एक साल में प्रॉपर्टी की कीमतों में करीब 16 फीसदी की गिरावट आई है। सुस्त पड़े रियल एस्टेट मार्केट में प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त कम हो रही है। जिसका असर राज्य के राजस्व संग्रह पर भी पड़ा है। इससे चिंतित तमिलनाडु सरकार ने प्रॉपर्टी रजिस्ट्री के लिए 2012 में तय अत्यधिक ऊंची कीमतों में 33 फीसदी की कटौती कर दी है। साथ ही रजिस्ट्री फीस तीन फीसदी बढ़ा दी है। परिणामस्वरूप अब तमिलनाडु में संपत्ति की रजिस्ट्री के लिए सात फीसदी स्टांप ड्यूटी और चार फीसदी रजिस्ट्रेशन फीस चुकानी होगी। यानी उपभोक्ताओं को कोई फायदा नहीं हुआ। कंफेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) के चेन्नै चैप्टर के अध्यक्ष सुरेश कृष्ण कहते हैं कि यदि सरकार केवल स्टांप ड्यूटी ही घटा देती तो ज्यादा बेहतर होता।’’

ऊंची कीमतों और कम किरायों की वजह से चेन्नै में तीन लाख से ज्यादा अपार्टमेंट खाली पड़े हैं। शहर के एक प्रॉपर्टी ब्रोकर महालिंगम के अनुसार, ''राजीव गांधी सलाई (चेन्नै और महाबलीपुरम के बीच), जहां ज्यादातर आईटी कंपनियां और इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, के आसपास अधिकांश बहुमंजिला इमारतें मुश्किल से 60 फीसदी भरी हैं। पिछले एक दशक में यहां बहुत ज्यादा फ्लैट बन गए थे।’’ 

कोलकाता और देश के पूर्वी इलाकों में भी स्थिति इतनी ही खराब है। बंगाल के जाने-माने एसपीएस कंस्ट्रक्शन के मालिक स्वप्न भट्ट कहते हैं, ''रियल एस्टेट बाजार गिरावट के दौर से गुजर रहा है। पुरानी स्थिति में लौटना काफी मुश्किल लगता है। मंदी का दौर 2009 में शुरू हुआ और बाजार अभी तक इससे उबर नहीं पाया है।’’ एक प्रोमोटर और डेवलपर अपनी पहचान छुपाने की शर्त पर कहता है, ''बंगाल में गिरावट का एक कारण राजनीतिक 'सिंडिकेट’ का उभार भी है। 'सिंडिकेट’ सत्ताधारी दल से जुड़े हैं उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिससे निर्माण सामग्री तक ले जाने में परेशानी होती है।’’

दूसरी ओर, व्यावसायिक रियल स्टेट में स्थिति ठीक इसके उलट है। 2008 के वैश्विक मंदी के बाद इस सेक्टर में संपत्ति की भरमार थी, पर कुछ वर्षों के बाद जब मांग बढ़ी तो यह स्थिति खत्म हो गई। सीबीआरई के एमडी (एडवायजरी एंड ट्रांजेक्शन सर्विसेज) राम चंदानी बताते हैं, ''पिछले तीन साल अभूतपूर्व रहे हैं और आज की तारीख में पूरे भारत के प्रमुख बाजारों में सीमित संख्या में रेडी टू मूव यूनिट उपलब्ध हैं।’’

ऐसे में एक बात तो तय है कि आवासीय रियल स्टेट की कीमतों में कम से कम दो साल तक गिरावट ही रहेगी। इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि मध्यम आय वर्ग के लोग कोई खास रुचि दिखाएंगे। काले धन के खिलाफ सरकार के अभियान के कारण रियल एस्टेट से लेकर स्टॉक मार्केट तक में ज्यादा कमाई की इच्छा से निवेश करने वाले लोग यहां से दूर ही रहेंगे। रेरा से भी उम्मीद है कि वह पहले की गई गड़बड़ियों को दूर करेगी। ऐसा होने के बाद यह खरीदारों का बाजार होगा। अगर आप 'सपनों का घर’ खरीदने की सोच रहे हैं तो समय आ गया है।

बेंगलूरू से अजय सुकुमारन, कोच्चि से मीनू इट्टीपे, मुंबई से प्राची पिंगले प्लंबर, चेन्नै से जी.सी. शेखर और कोलकाता से डोला मित्रा

Advertisement
Advertisement
Advertisement