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महिला क्रिकेट का टर्निंग पॉइंट

महिला क्रिकेट टीम विश्वकप में भले ही हार गई हो लेकिन इसने भारत में लाखों क्रिकेट प्रेमियों का दिल जीत लिया, यही उसकी जीत है
इस बार मह‌िला टीम के मैचों की न स‌िर्फ जोरदार चर्चा रही बल्क‌ि दर्शक भी बढ़े

भारतीय महिला क्रिकेट टीम आईसीसी महिला विश्वकप में जीत से जरा सा चूक गई। इतिहास बनने-बनते रह गया लेकिन यदि टीम के जज्बे की तारीफ न करें तो यह टीम के प्रति अन्याय होगा। भारत दो बार फाइनल में पहुंचा लेकिन दोनों बार हार का सामना करना पड़ा। अब तक सिर्फ तीन टीमें ही विश्वकप जीत सकीं हैं। यदि भारत यह स्पर्धा जीतता तो वह भी ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड की श्रेणी में आ जाता। सबसे ज्यादा ऑस्ट्रेलिया ने छह बार विश्वकप जीता है। लेकिन इस बार ऑस्ट्रेलिया की टीम फाइनल में नहीं पहुंच सकी। इस बार खिताब की सबसे प्रबल दावेदार इंग्लैंड टीम को कड़ी टक्कर देने वाली भारतीय टीम ने हार के बावजूद कई रेकॉर्ड बनाए। मिताली राज 6000 रन पूरे करने वाली पहली महिला क्रिकेटर बनीं। 15 खिलाड़ियों को आउट करने वाली सुषमा आर्य विश्वकप की सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपर बनीं। टीम ने विश्वकप में नौ मैचों में से छह पर कब्जा जमाया। लेकिन फाइनल में 28 रन बनाने के लिए टीम ने सात विकेट खो दिए और यही टीम पर भारी पड़ा। टीम ने हर संभव कोशिश की लेकिन अंतत: भारत की लड़कियां विश्वकप को हाथ में नहीं उठा सकीं। नीली जर्सी वाली लड़कियों ने बहुत कुछ बदला, यही वजह रही कि इस बार प्रसारण की दुनिया भी बदली। इस बार टेलीविजन पर मैचों का प्रसारण भी हुआ जो बताता है कि महिला क्रिकेट में बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। यह अलग बात है कि पूर्व टेस्ट खिलाड़ी वकार युनुस का कहना है, 'महिला क्रिकेट टीम में पुरुष टीम जैसा ग्लैमर नहीं आ सकता। दोनों की कोई तुलना भी नहीं है।’ लेकिन इस विश्वकप में भारतीय महिलाओं की मजबूत दावेदारी ने बता दिया कि युनुस गलत हैं। महिला क्रिकेट पर पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी सुरेंद्र खन्ना ने आउटलुक से बहुत साफगोई से कहा, 'अभी महिला क्रिकेट टीम बहुत मजबूत है। टीम में बहुत सी खिलाड़ी बॉलिंग-बैटिंग दोनों में माहिर हैं। बहुत दिनों बाद हो रहा है कि महिला खिलाडिय़ों का परफॉर्मेंस कंसिस्टेंट है। कप्तान मिताली राज के पास अच्छा सेटअप है और इसके परिणाम भी आ रहे हैं।’ वह यह भी मानते हैं कि जब बात होती है तो सुधार खुद-ब-खुद आता है। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं, 'मिताली पर अब ऐसे दबाव नहीं हैं जो कुछ साल पहले तक थे। दबाव न रहने से खिलाड़ी खुल कर खेलते हैं।’ इस बार मीडिया ने भी मैचों के कवरेज में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि हर मैच विकेट-दर-विकेट अपडेट होते रहे जैसे पुरुष क्रिकेट टीम के खेलने पर होता है। यह कवरेज महिला क्रिकेट टीम के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। यह बहुत बड़ा बदलाव है, जो महिला क्रिकेट टीम की दशा और दिशा बदल देगा। 

 इस सोच को क्या नाम दें

हार सबक के लिए और जीत उत्सव के लिए होती है। इंग्लैंड के दौरे से लौटने के बाद मात्र नौ रन से दूर रह गई जीत पर कई बातें होंगी। लेकिन टीम के लिए कोच, फिटनेस एक्सपर्ट, पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों के समान वेतन और भत्ते, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा से ज्यादा मैच खेलने के मौकों पर बात नहीं होगी। इसकी वजह पर गौर करने से पहले एक बयान पर ध्यान देना चाहिए।

बीसीसीआई यानी भारतीय क्रिकेट की माई-बाप संस्था (पाठक इस शब्द के लिए माफ करेंगे) के बोल भुलाए नहीं जा सकते। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष ने एक बार महिला क्रिकेट टीम की सर्वाधिक लोकप्रिय कप्तान डायना इडुलजी को कहा था, 'मेरा वश चले तो महिलाओं को क्रिकेट न खेलने दूं। मैं चाहता भी नहीं कि वे क्रिकेट खेलें। हम इसे (महिला क्रिकेट को) इसलिए चला रहे हैं क्योंकि आईसीसी के लिए यह जरूरी है।’ जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पदाधिकारियों की यह मंशा हो तो समझा जा सकता है कि महिला क्रिकेट खिलाडिय़ों को कैसी-कैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ता होगा।

क्रिकेट की दुनिया में हिंदी के पहले कमेंट्रेटर सुशील दोषी कहते हैं, 'महिला खिलाडिय़ों का मानदेय बढ़ाना होगा। यह बढ़ने से खेलने का जज्बा जागेगा और खेल निखरेगा। तब ग्लैमर भी आ जाएगा। साथ ही पुरुष और महिला खिलाडिय़ों से तुलना की प्रवृत्ति भी छोड़नी होगी। दो खिलाड़ी के बीच ही तुलना ठीक नहीं है तो फिर दो जेंडर के बीच तुलना क्यों हो। इस विश्वकप में महिला टीम का प्रदर्शन बेहतरीन रहा। ऐसी ही लय बनी रहे इसके लिए कोशिश करनी चाहिए।’ मिताली की सेना में विश्वकप में आठ मैचों में 381 रन बनाने वाली पूनम राउत मुंबई की चॉल में रहती थीं। टैक्सी ड्राइवर की यह बेटी इस बार स्टार बल्लेबाज के रूप में उभरी। इसी तरह वनडे में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी, पाकिस्तान के खिलाफ विश्वकप में पांच विकेट लेने वाली स्पिनर एकता बिष्ट की कहानी भी अलग नहीं है। एकता अल्मोड़ा की रहने वाली हैं और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कमजोर है। 2010 में 'इंडिया ए’ के मैच खेलने के लिए मुंबई जाना था, तब एकता के माता-पिता ने उन्हें मुंबई भेजने के लिए दस हजार रुपये का कर्ज लिया था। इस विश्वकप में एक और लड़की ने अपनी ओर ध्यान खींचा और वह हैं, वेदा कृष्णमूर्ति। वेदा चिकमंगलूर की रहने वाली हैं। उनके पिता केबल ऑपरेटर हैं। वेदा के पिता ने उन्हें क्रिकेट खिलाड़ी बनाने के लिए बहुत मेहनत की है। उन्हें क्रिकेट की ट्रेनिंग मिले इसके लिए पिता ने उन्हें घर से 250 किलोमीटर दूर बेंगलुरू ट्रेनिंग के लिए भेजा। हरमनप्रीत कौर किसी हीरो की तरह इस विश्वकप में उभरीं।

बाजार का गणित

बाजार ने खिलाडिय़ों पर भी ध्यान देना शुरू किया है। प्रसिद्ध ब्रांड के नमक में बॉक्सर मैरी कॉम से लेकर स्थानीय घी बनाने वाली कंपनी में पहलवान सुशील कुमार तक खिलाड़ी टेलीविजन पर कोई न कोई उत्पाद बेचते नजर आते हैं। अभी तक महिला क्रिकेट टीम की किसी खिलाड़ी के पास ऐसा अनुबंध नहीं पहुंचा है। मुंबई में ग्लोबल विजन विज्ञापन एजेंसी चलाने वाले सौरभ जैन कहते हैं, 'इन खिलाडिय़ों का चेहरा फिलहाल तक जाना-पहचाना नहीं था। सेलेब्रिटी को प्रचार अभियान में लेने का फायदा तभी है जब लोग उससे कनेक्ट हो सकें। किसी रणनीति के तहत महिला क्रिकेट टीम के सदस्यों को नहीं लिया जाता ऐसा नहीं है।’ प्रचार अभियानों से जुड़े लोगों का मानना है कि बहुत से खिलाड़ी अच्छा खेलते हैं लेकिन सभी को विज्ञापन मिलें जरूरी नहीं है। शायद हम झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत कौर, मिताली राज को कुछ न कुछ बेचते हुए देख पाएं। क्योंकि 2013 की तुलना में महिला क्रिकेट देखने वालों में 80 फीसदी इजाफा हुआ है। 47 फीसदी से ज्यादा लोगों ने टीवी पर मैच देखे। 

 उम्मीद का मैदान

भारत में 1976 में महिला क्रिकेट टीम अस्तित्व में आई थी। तब से टीम ने कई टूर्नामेंट खेले और कई अच्छी खिलाड़ी भी निकलीं। डायना इडुलजी और शांता रंगास्वामी ऐसे ही नाम हैं। लेकिन भारतीय टीम को कई कारणों से खेलने के कम मौके मिले। इंग्लैंड की टीम ने जहां अब तक 88 टेस्ट मैच खेले हैं, भारत के खाते में यह संख्या केवल 34 है। नवंबर 2006 में भारतीय महिला क्रिकेट संघ का बीसीसीआई में विलय हो गया। इससे पहले टीम 2002 से 2006 के बीच पांच साल में नौ टेस्ट खेल चुकी थी। लेकिन 2006 में जैसे ही कमान बीसीसीआई के हाथों में आई महिला क्रिकेट की गतिविधियां एक तरह से रुक गईं। अब बीसीसीआई में सुधार के लिए बनी लोढ़ा कमेटी से बहुत उम्मीदें हैं। पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी डायना इडुलजी लोढ़ा कमेटी द्वारा बनाई गई समिति में एकमात्र महिला सदस्य हैं।   

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