हमारे मुल्क का एक हिस्सा 15 अगस्त 1947 से पहले ही 30 दिसंबर 1943 को ही आजाद हो गया था। हर भारतवासी के हृदय में बसे महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सबसे पहले ‘स्वतंत्र भारत’ के इस अहम हिस्से अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में राष्ट्र ध्वज तिरंगा फहराया था। नेताजी देश की पहली अंतरिम सरकार के मुखिया थे।
दूसरी ओर, 15 अगस्त 1947 को भारत से अंग्रेजी शासन का अंत हुआ था और देश की बागडोर हमारे राजनेताओं के हाथों में आई थी। इस दिन पूरा देश बहुत शिद्दत के साथ अपने उन वीर सपूतों को याद करता है जिनकी कुर्बानी से हमें आजादी मिली। इसके पीछे अंग्रेजी सरकार से लोहा लेने वाले लाखों क्रांतिकारियों का गौरवपूर्ण इतिहास है। जिस आजाद मुल्क की आबोहवा में हम आज सांस ले रहे हैं उसकी मिट्टी में क्रांतिकारियों की खुशबू रची बसी है।
एशिया के कई मुल्कों में रहने वाले भारतीयों के सहयोग से नेताजी ने आजाद हिंद फौज का गठन किया था। 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजी सेना के साथ जापानी सेना का युद्ध चल रहा था। जापानी पूरे उत्साह के साथ नेताजी की आजाद हिंद सेना का सहयोग कर रहे थे। अंग्रेजों से लड़ते हुए जापानी सेना 1942 में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह तक आ पहुंची और 23 मार्च 1942 को जापानी सेना ने अंडमान के द्वीपों पर कब्जा कर वहां से अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया। 25 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने भी अंग्रेजी सरकार के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी थी। तब तक नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतरिम आजाद हिंद सरकार का गठन कर चुके थे। जापानियों के साथ नेताजी के संबंध बहुत प्रगाढ़ थे। जापानियों ने नेताजी के पास संदेश पहुंचाया कि अंडमान-निकोबार पर उनका कब्जा हो चुका है। इस संदेश के बाद नेताजी ने अंडमान-निकोबार द्वीपों का दौरा करने का निश्चय किया।
तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री हिदेकी तोजो ने नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर सात नवंबर 1943 को अंडमान-निकोबार द्वीपों को नेताजी की अंतरिम सरकार को सौंप दिया।
नेताजी ने 30 दिसंबर 1943 को पहली बार अंडमान-निकोबार की धरती पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया और इन द्वीपों का नाम शहीद और स्वराज रखा। पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान (जिसे अब नेताजी स्टेडियम के नाम से जाना जाता है) पर तिरंगा फहराने के बाद नेताजी ने वहां क्रांतिकारियों, आजाद हिंद फौज के सिपाहियों और जनता से कहा कि हिंदुस्तान की आजादी की जो गाथा अंडमान की भूमि से शुरू हुई है वह दिल्ली में वायसराय के घर पर तिरंगा फहराने के बाद ही रुकेगी।
पोर्ट ब्लेयर के जिस जिमखाना मैदान पर नेताजी ने तिरंगा फहराया था वहां भारत सरकार ने उनकी याद में एक स्मारक का निर्माण किया है। हर वर्ष 30 दिसंबर को अंडमान प्रशासन द्वारा यहां कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
बीते 30 दिसंबर को आयोजित हुए कार्यक्रम में भारतीय सेना के तीनों अंगों की टुकड़ियों, अंडमान-निकोबार पुलिस के जवानों, छात्रों और पांच हजार से ज्यादा लोगों की उपस्थिति में मैंने भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस को याद किया और तिरंगे की सलामी ली। पोर्ट ब्लेयर जैसे छोटे से शहर में इस मौके पर जुटे पांच हजार लोगों की भीड़ इस बात का परिचायक थी कि अंडमान-निकोबार के निवासी सारे देशवासियों की तरह नेताजी को बहुत आदर के साथ याद करते हैं।
भारत के गौरवपूर्ण स्वतंत्रता संग्राम के सुनहरे अध्याय के तौर पर अंडमान-निकोबार की भूमि जुड़ी है। अंडमान की सेल्यूलर जेल जिसे आज क्रांतिकारियों का पवित्र मंदिर कहा जाता है वहां भी नेताजी ने अनेक क्रांतिकारियों से मुलाकात कर उन्हें कारागार से मुक्त करने का आदेश दिया था। सेल्यूलर जेल में अंग्रेजी सरकार उन क्रांतिकारियों को भेजती थी जिन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जाती थी। इस जेल को आज एक स्मारक के तौर पर विकसित कर यहां वीर सावरकर, पंडित परमानंद, उल्हासकर दत्त, बीरेंद्र कुमार घोष, पृथ्वी सिंह आजाद, पुलिन दास, त्रिलोक नाथ चक्रवर्ती और महावीर सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों की यादों को संजो कर रखा गया है।
(लेखक अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के उपराज्यपाल हैं)