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संसद में जाकर क्या करें

भारतीय जनता पार्टी के कई राज्यसभा सांसदों को इस बात पर डांट पड़ गई कि वे संसद से गायब थे।
सांकेतिक चित्र

वैसे सांसदों को संसद से गायब होने पर डांट पड़ने का कोई रिवाज नहीं है क्योंकि ऐसा रिवाज हो तो सांसदों का जीवन डांट खाने में ही गुजरे। इस बार डांट पड़ने की वजह यह थी कि इस दौरान एक बिल में विपक्ष के संशोधन पास हो गए, वरना उन्हें भी डांट नहीं पड़ती।

ऐसा नहीं है कि अपने सांसदों के मन में संसद का कोई सम्मान नहीं है, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि वे संसद में इसलिए कम जाते हैं क्योंकि उनके मन में संसद के प्रति बहुत ज्यादा सम्मान है। वे उसे लोकतंत्र का पवित्र मंदिर मानते हैं इसलिए वहां जाते हैं, श्रद्धा से चौखट पर माथा टेकते हैं, प्रसाद लेते हैं और चले आते हैं। अब मंदिर कोई ऐसी जगह तो नहीं होती है कि वहां बैठक जमा ली जाए इसलिए वे ज्यादा ठहरते नहीं हैं। मंदिर में ज्यादा देर रहने पर बाहर चप्पल चोरी होने का भी डर रहता है। काफी ऐसे लोग होते हैं जिनका काम ही मंदिर में गए लोगों की चप्पलें चुराना है, उनसे सावधान रहना जरूरी है। कई लोगों के मन में तो इस लोकतंत्र के मंदिर के लिए इतना सम्मान है कि वे वहां कभी-कभार ही जाते हैं, जब जाते हैं तो माथा टेकते हुए उनकी फोटो छपती है।

एक बड़ी समस्या यह है कि हमारी राजनीति में इस बात की ट्रेनिंग तो खूब मिलती है कि संसद या विधानसभा में कैसे जाया जाए बल्कि नेताओं का लगभग पूरा वक्त वहां पहुंचने की कोशिश में ही जाता है, इसलिए उन्हें उस प्रक्रिया की भरपूर प्रैक्टिस होती है। लेकिन उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं होता कि वहां पहुंचकर क्या करना है क्योंकि यह बड़े नेताओं को भी नहीं मालूम होता, क्योंकि उन्हें भी उनके बड़े नेताओं ने कभी बताया नहीं।

हमारे नेता यह जानते हैं कि संसद में या विधानसभा में पहुंचना महत्वपूर्ण है लेकिन उन्हें यह नहीं बताया गया कि वहां पहुंचकर कुछ करना भी जरूरी है। वे मानते हैं कि जनप्रतिनिधि का काम तो संसद के बाहर है। किसी को थाने से छुड़ाना, किसी को पकड़वाना, तबादले करवाना या रुकवाना, नालियां खुदवाना, खड़ंजे बिछवाना, जन्मदिन मनाना, शादियों, मुंडन समारोहों और अभिनंदन समारोहों में जाना, उद्घाटन करना, ठेके दिलवाना, ऐसे सैकड़ों काम हैं जो संसद से बाहर ही होते हैं और उनका अगली बार सांसद बनना भी उन्हीं पर निर्भर है। अगर वे संसद में बैठे रहें तो ये काम कौन करेगा।

अक्सर नेताओं को यही मालूम रहता है कि सांसद या विधायक बनने के बाद अगला एकमात्र काम मंत्री बनना है। यह ऐसा ही है कि कोई लोकतंत्र के मंदिर का पुजारी हो जाए। अब पुजारी का तो मंदिर में बैठे रहना स्वाभाविक भी है, उसके पास कई काम होते हैं लेकिन बाकी लोग तो बस आ जा ही सकते हैं, इसलिए उन्हें डांट पड़ना अन्यायपूर्ण है। इसलिए अगर बड़े नेता चाहते हैं कि उनके सांसद संसद में बैठें तो वे उन्हें यह सिखाएं कि संसद में रह कर शोर मचाने के अलावा क्या-क्या काम करने होते हैं, बशर्ते उन्हें खुद यह जानकारी हो।

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