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अरबों का चूना लगाने का सशक्तिकरण सृजन

चारा घोटाले से बड़े सृजन घोटाले के उजागर होने से सुशासन बाबू और भाजपा के दावों पर संदेह उभरा, विपक्ष को हमले का मौका मिला
घोटाले की संस्थाः भागलपुर में सृजन का दफ्तर और

भागलपुर का सृजन घोटाला बिहार की हालिया राजनीति को ऐसे मोड़ पर ले आया, जहां सियासी संभावनाओं का आकाश मानो पल-पल रंग बदलने लगा है। अभी-अभी तो सुशासन बाबू, मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार की दुहाई देते हुए लालू यादव की पार्टी राजद से पल्ला झाड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। लेकिन चारा घोटाले से भी अधिक राशि के सृजन घोटाले के उजागर होते ही पांसा पलटता लगा। लालू यादव और उनकी पार्टी हमलावर हो उठी। लालू इसके लिए मुख्‍यमंत्री के साथ भाजपा नेता सुशील मोदी को जिम्मेदार बता रहे हैं। आर्थिक अपराध शाखा के मुताबिक, इसमें अभी तक करीब 1,000 करोड़ रुपये के घपले का खुलासा हो चुका है और मुख्य आरोपी भाजपा से जुड़े बताए जाते हैं। इस दौरान मोदी बिहार के उप मुख्यमंत्री के साथ ही वित्त मंत्री भी थे। वे फिर वही जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

यही नहीं, नीतीश घोटाले की जांच सीबीआइ से कराने की सिफारिश करके अपनी साफगोई का संकेत दे ही रहे थे कि घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार नाजिर महेश मंडल की हिरासत में मौत हो गई है। फिर तो राजद को हमला करने का और मौका मिल गया। विधान परिषद के बाहर राबड़ी देवी की अगुआई में प्रदर्शन हुए। विधानसभा में पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी ने कहा, "अरबों के घोटाले पर परदा डालने के लिए उसी तरह जेल में हत्याएं की जा रही हैं, जैसे मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाले में हुई हैं।"

महेश मंडल दरअसल सरकार के कल्याण विभाग में क्लर्क था, जो एनजीओ को रकम की मंजूरी दिलाने में अहम भूमिका निभाता था। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वह गिरफ्तारी से पहले ही गुर्दे का मरीज था लेकिन शंका तो बनी रह सकती है।

कितना बड़ा घोटाला

बिहार का अब तक का यह सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है। पशुपालन यानी चारा घोटाला 960 करोड़ रुपये का था, जबकि सृजन घोटाले का ग्राफ 1000 करोड़ रुपये से लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अब तक 18 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है और 11 एफआइआर दर्ज की जा चुकी है। गिरफ्तार लोगों में कई हाई प्रोफाइल भी हैं। इनमें भागलपुर डीएम का एक स्टाफ, सुपौल के वर्तमान जिला सहकारिता अधिकारी पंकज झा, बैंक ऑफ बड़ौदा के रिटायर्ड मैनेजर एके सिंह शामिल हैं। पंकज झा 2007 से 2014 तक भागलपुर को-ऑपरेटिव बैंक के प्रबंध निदेशक थे। मामले में कई अन्य बैंकों के आला अधिकारी, जिला प्रशासन से जुड़े अधिकारी और नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं।

अब तक आठ आइएएस अधिकारियों के नाम इससे जुड़ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर वे हैं जो 2007 के बाद भागलपुर के डीएम रह चुके हैं। वहीं ‘सृजन’ की संस्थापक मनोरमा देवी की बहू तथा संस्था की सचिव प्रिया कुमार और उनके पति अमित कुमार फरार हैं। प्रिया कुमार झारखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष अनादि ब्रह्म की पुत्री हैं। इन दोनों मुख्य आरोपियों को देश छोड़कर भागने से रोकने के लिए उनके खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी कर दिया गया है।

विडंबना देखिए कि सृजन घोटाला  समाजसेवा और नारी सशक्तिकरण की आड़ में किया गया। गरीब महिलाओं के उत्थान के नाम पर सरकार के खजाने की लूट चल रही थी। उससे भी बड़ी विडंबना यह है कि भाजपा से जुड़ी बताई जाने वाली एक महिला ने हजारों गरीब महिलाओं का चेहरा बनकर इस महाघोटाले को अंजाम दिया। शातिर इतनी कि उनके जीते-जी इस खेल को कोई पकड़ नहीं पाया। उनका निधन इसी साल फरवरी में हो गया। उसके बाद घोटाले की कूटनीति और राजनैतिक पकड़ दोनों ढीली पड़ गई। इसका बड़ा उदाहरण यह है कि एक चेक बाउंस हुआ और पूरा घोटाला सामने आ गया।

 

इस तरह हुई शुरुआत

बीस साल पहले एक साधारण महिला मनोरमा देवी भागलपुर ने सबौर ब्लॉक में सृजन महिला विकास सहयोग समिति की शुरुआत की। महिलाएं अचार,पापड़ और मसाला तैयार करती थीं। लेकिन जिस तरीके से मनोरमा देवी ने इसका विस्तार किया, वह एक अलग ही कहानी है। परत-दर-परत खुलने के बाद यह साफ हो गया है कि यह धंधा केवल लोगों को गुमराह करने के लिए था। मुख्य उद्देश्य था सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की अवैध निकासी का। निकासी के बाद इसे रियल एस्टेट और बाजारों में निवेश किया जाता था। चर्चा तो यहां तक है कि शहर के कई बड़े व्यापारी मनोरमा देवी से पैसे लेकर अपने कारोबार में लगाते थे। पंद्रह से बीस फीसदी की ब्याज दर पर कर्ज दिया जाता था। इसमें कई बड़े सफेदपोश कारोबारी शामिल बताए जाते हैं।

 

स्वयं सहायता समूह बना ढाल

बिहार में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का तेजी से प्रसार हुआ। सरकार ने महिला सशक्तिकरण और गांवों के अन्य विकासात्मक कार्यों की जिम्मेदारी इन समूहों को देनी शुरू की। इसी दौरान ‘सृजन’ को बड़ी जिम्मेदारी मिली। माइक्रो फाइनेंस में कागजी अनुभव होने के कारण कई आर्थिक दायित्व मिले और वहीं से खेल शुरू हो गया। सरकारी राशि लाभार्थियों तक भेजने के लिए सरकारी बैंकों में तेजी से खाते खुलने लगे। मनोरमा देवी की ऊंची पहुंच के कारण इन मदों की राशि ‘सृजन’ के खाते में आने लगी।

 

शातिराना अंदाज में दिया अंजाम

घोटाले के तरीकों से यह स्पष्ट है कि इसके पीछे कई मास्टरमाइंड काम कर रहे थे। इनमें बैंक के वरीय अधिकारी और जिला प्रशासन से जुड़े कई विभागीय अधिकारी शामिल थे। संरक्षण कई अन्य स्तरों से मिल रहा था। जांच अधिकारी के अनुसार, दो तरीकों से सरकारी खजाने से अवैध निकासी की जाती थी। स्वाइप और चेक मोड से। स्वाइप के माध्यम से बड़ी राशि केंद्र और राज्य सरकारों के माध्यम से जिलों के सरकारी खातों में आती थी। सरकार पत्र द्वारा इसकी जानकारी बैंक को देती थी। यहीं पर खेल होता था। बैंक अधिकारी सरकारी खाते की जगह पैसा ‘सृजन’ के खाते में डाल देते थे। दूसरा था चेक मोड। केंद्रीय योजनाओं का चेक डीएम कार्यालय के माध्यम से ही बैंक तक पहुंचता है। इस कार्यालय के अधिकारी या बाबू डीएम के फर्जी हस्ताक्षर से पूरी राशि ‘सृजन’ के खाते में जमा कर देते थे। चेक के पीछे ‘सृजन’ का अकाउंट नंबर लिख दिया जाता था। फर्जी पासबुक और बैंक स्टेटमेंट तक छपवा लिया गया था। दोनों मोड की पुष्टि संबंधित अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद हो चुकी है।

 

लालू को मिला पलटवार का मौका

जदयू के साथ गठबंधन टूटने के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को इस घोटाले से नीतीश और सुशील मोदी पर वार करने का बड़ा मौका हाथ लगा है। जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार ने लालू से किनारा किया था उसी मुद्दे पर वे नीतीश पर वार कर रहे हैं। बिहार में नीतीश की सरकार 2005 से है और पूरा घोटाला इसी दौरान का है। सुशील मोदी उस वक्त उपमुख्यमंत्री के साथ वित्त मंत्री भी थे।

इसके अलावा एनडीए के कई नेताओं के नाम भी सामने आ रहे हैं। घोटाले में शामिल रहे भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष विपिन शर्मा को पार्टी से निष्कासित तक कर दिया गया है। दूसरी ओर एनडीए के नेताओं ने भी लालू पर वार करते हुए कहा है कि घोटाले के दौरान भागलपुर के एक डीएम उनके करीबी थे। आरोप-प्रत्यारोप राजनीति का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन इस घोटाले से बिहार की छवि एक बार फिर तार-तार हुई है। घोटाले न केवल विकास को बाधित करते हैं बल्कि राष्ट्रीय फलक पर बिहार की छवि भी खराब करते हैं। पशुपालन घोटाला उजागर हुए भले दो दशक से अधिक हो गए, लेकिन इस बदनुमा दाग से छुटकारा नहीं मिला है। जिस ढंग से सृजन घोटाला का ‘पेट’ बड़ा होता जा रहा है उससे एक और धब्बा लगना तय है। यही नहीं, यह सुशासन बाबू के राजकाज पर भी गंभीर सवाल उठा रहा है।

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