Advertisement

मीडिया को है अभिव्यक्ति की आजादी

सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर सुनिश्चित किया है कि मीडिया को किसी तरह के दबाव का सामना न करना पड़े
भारत का सुप्रीम कोर्ट

हमारा संविधान नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा अधिकार देता है। देश की न्यायिक व्यवस्था आजादी के बाद से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिभाषा को लगातार नए आयाम दे रही है। एक तरफ जहां अन्य मौलिक अधिकार उचित कारणों की वजह से नियंत्रित या प्रतिबंधित किए जा सकते हैं, वहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर तभी प्रतिबंध लगाया जा सकता है, जब अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लेखित नियमों का हनन हो रहा हो। भारत में नया संविधान लागू होने के बाद कई मौलिक अधिकारों को कमजोर किया गया। आजादी और स्वतंत्रता के अधिकार आपातकाल के समय खत्म कर दिए गए। अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के दौरान कारोबार के अधिकार प्रभावित हुए। आपातकाल के दौरान संपत्ति के अधिकारों का हनन किया गया। हालांकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को हमेशा मजबूत किया गया और इस पर कुठाराघात कभी नहीं किया गया। इस तरह अधिकारों को व्यापक करते हुए उसे मजबूत करने की एक राष्ट्रीय नीति हमेशा इस देश में रही। संविधान के शुरुआती वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने समाचार पत्र शुरू करने के लिए आवश्यक अत्यधिक शुल्क को अवैधानिक ठहराया। इसके बाद पहले दशक में ही कोर्ट ने कहा कि वेज बोर्ड मीडिया में एक कठिन बोझ होगा और इससे बोलने की आजादी प्रभावित होगी। क्या कारोबार या व्यापारिक हित किसी समाचार पत्र की अभिव्यक्ति की आजादी से अलग किए जा सकते हैं, क्या समाचार पत्र का कारोबार अभिव्यक्ति की आजादी पर असर डाल सकते हैं? सकाल समाचार पत्र के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने 1960 की नीति को आधार बनाया था। जिसके तहत सरकार ने समाचार पत्र की बिक्री के मूल्य को नियंत्रित करने का निर्णय लिया। बिक्री का मूल्य समाचार पत्र के पेजों पर निर्भर करेगा। सरकार का इसमें तर्क था कि यह कारोबार के अधिकार पर एक उचित प्रतिबंध है, जो उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए लिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि यदि समाचार पत्रों को मोटाई के आधार पर मूल्य बढ़ाने पर मजबूर किया गया तो इसके दो परिणाम हो सकते हैं, या तो मोटाई या कहें कि पाठ्य सामग्री घटाई जाएगी या फिर मूल्य बढ़ेगा और इस बात के अनुभवजन्य प्रमाण हैं कि मूल्य बढ़ने से प्रसार घट जाता है। इसलिए देखा जाए तो प्रसार का अधिकार भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक हिस्सा है। इसी तरह सरकार ने जब न्यूजप्रिंट में विदेशी मुद्रा विनिमय तथा आयात बढ़ोतरी की आशंका के बाद समाचार पत्र के आकार पर प्रतिबंध लगाया तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विज्ञापनों में कमी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर डालेगा। समाचार पत्र और सीमा शुल्क के एक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि नए प्रकाशन में सीमा शुल्क लगाने को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह कर के दायरे में आता है। इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित होगी। कोर्ट ने तय किया कि समाचार पत्रों का कारोबार उसमें प्रकाशित सामग्री से अलग नहीं किया जा सकता। संविधान सभा में रामनाथ गोयनका ने कहा था कि भविष्य में सरकार अपरिपक्व तरीकों से सेंसरशिप लागू करने के बजाय समाचार पत्रों के आर्थिक हिसाब-किताब पर गहनता से नजर रखें। इस विचार से सहमत होते हुए कोर्ट ने तय किया कि समाचार पत्र जनमानस के मानसिक स्तर को निर्धारित करता है और उस पर अधिक कर लगाने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा आती है। अगर कर लगाने का लक्ष्य राजस्व जुटाने के बजाय समाचार पत्र पर एक तरह बोझ डालना है तो इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा आती है। कोर्ट ने कहा कि अगर कर समाचार पत्र को कीमती या एक तरह से प्रतिबंधित बनाता है तो कर को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बाधा समझ चुनौती दी जा सकती है।

दुनिया के अन्य लोकतंत्रों में अमेरिका की तरह परिपाटी नहीं है। लेकिन अपने भारत में हमने इसे स्वीकार किया है। मेरी समझ में इस पूरे विकासीय क्रम में सीमा शुल्क का प्रकरण एक तरह कानून की व्यापक व्याख्या और अभिव्यक्ति के अधिकारों की मजबूती को दर्शाता है। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कारोबार और उसके मुख्य वैचारिक तथ्यों के अंतर भी सार्वजनिक होते हैं। इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टाटा यलो पेज प्रकरण में वाणिज्यिक स्वतंत्र अभिव्यक्ति जैसे विज्ञापन को भी स्वतंत्र अभिव्यक्ति का हिस्सा मान लिया। यह कदम हालांकि अब तक संदेहास्पद है। इससे पैसों के लेन-देन के बाद तैयार की जाने वाली पेड न्यूज भी स्वतंत्र अभिव्यक्ति के तहत मिलने वाले अधिकारों के दायरे में आ गई है। आज पेड न्यूज एक वास्तविकता है इसलिए अगर आप अमेरिका के उस आदेश को मानते हैं, जो टाटा प्रेस भारत में अपनाता है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से पेड न्यूज में भी बढ़ोतरी होगी। इस परिकल्पना में हालांकि कोई वैचारिक तथ्य नहीं है। लिहाजा यह मसला कोर्ट में नहीं आ सका। हालांकि पेड न्यूज पर अगर कोई पैनल नियम हो तो यह भी एहसास हो जाएगा कि पेड न्यूज से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन होता है या नहीं।

(लेखक देश के वित्त मंत्री हैं।)

Advertisement
Advertisement
Advertisement