गैस पीड़ित मरीजों के उपचार के लिए बना भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) आज खुद बीमार हो चला है। अपने दो दशक से कम समय के जीवन में ही इसकी सांसें अब उखड़ने लगी हैं। अत्याधुनिक सुपर-स्पेशलिटी चिकित्सा सुविधाओं वाले इस अस्पताल में पांच सितंबर को भी मरीज बेहाल रहे। गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज अपना इलाज सुपर स्पेशलिटी ऑन्कोलॉजी और कार्डियोलॉजी विभाग में एक बार फिर नहीं करा पाए। यहां ऐसा नजारा अब एक आम बात हो चुकी है। प्रशासन ने मरीजों को वापस यह कहकर लौटा दिया कि डॉक्टरों की कमी के चलते उन्हें देख पाना और ऑपरेशन कर पाना किसी भी सूरत में संभव नहीं हैं, कृपया अस्पताल खाली कर दे।
जब कुछ मरीज जाने को राजी नहीं हुए तो प्रशासन ने उन्हें इलाज के लिए निजी अस्पतालों में भेजना शुरू कर दिया। प्रशासन के रुख ने कई मरीजों के सामने दो दिसंबर 1984 की भयावह रात का दर्दनाक मंजर एक बार फिर सामने लाकर खड़ा कर दिया। उस दिन भी जहरीली गैस आंखों और फेफड़ों में समा जाने के कारण उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल इलाज के लिए भटकना पड़ा था।
बहराल, इस बीच, तीन दशक बीत गए पर मानो गैस पीड़ितों की स्थिति वैसी ही बनी हुई है। यहां इलाज करा रहीं सुषमा शर्मा कहती हैं, “बीएमएचआरसी अब एक कामचलाऊ अस्पताल बन कर रह गया है। मैं एक गैस पीड़ित ओवेरियन कैंसर रोगी हूं और मेरा इलाज अप्रैल 2014 से यहां चल रहा है। प्रारंभ में डॉ. मनोज पांडेय (पूर्व संचालक, बीएमएचआरसी) ने मेरा इलाज किया। कुछ दिनों तक ठीक रहने के बाद रोग के लक्षण पुनः दिखाई दिए और इस बीच डॉ. पांडेय का तबादला हो गया। तब से अब तक डॉ. विनय कुमार ही मेरा और अन्य कई कैंसर मरीजों का इलाज कर रहे हैं।”
अकीला बी की कहानी सुषमा से अलग है। सीने में दर्द की शिकायत की वजह से अकीला अस्पताल में भर्ती तो हो गईं, पर अस्पताल प्रशासन ने एक दिन बाद आने वाले बायोप्सी रिपोर्ट का इंतजार भी नहीं किया और उन्हें अस्पताल से जाने को कह दिया।
दिल का इलाज करा रहे अब्दुल जब्बार कहते हैं, “आप अस्पताल में भर्ती हो कर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं ताकि ऑपरेशन के लिए आप मजबूती के साथ तैयार हो सकें। पर ऑपरेशन के ठीक एक दिन पहले आपको पता चलता है कि विशेषज्ञों की जिस टीम को आपका ऑपरेशन करना था वह बीएमएचआरसी छोड़ चुकी है। मतलब साफ है, अब आपको अपना बिस्तर खाली कर देना चाहिए।” आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक समय में गैस पीड़ितों और यहां तक कि बाहरी मरीजों के लिए आस्था का केंद्र रहा बीएमएचआरसी आज खुद बीमार हो चला है। क्यों एक के बाद एक डॉक्टर बीएमएचआरसी छोड़ अन्य अस्पतालों की तरफ जा रहे हैं? अस्पताल की इस दुर्दशा के लिए गैस पीड़ित और उनके हक के लिए लड़ाई लड़ रहे संगठन इसके लिए सरकार को ही दोषी मानते हैं। भोपाल महिला गैस पीड़ित उद्योग संगठन के प्रमुख 60 वर्षीय जब्बार कहते हैं, “गैस पीड़ित और मरीज पहले से ही सर झुकाए बैठा है। अगर सरकार चाहे तो सर झुकाए बैठे इंसान में जान फूंक दे। सरकार चाहे तो बीएमएचआरसी की हालत तुरंत सुधार दे।”
ऐसा नहीं कि सरकार को इन समस्याओं की जानकारी नहीं है। सरकार जानती सब कुछ है पर करना कुछ नहीं चाहती। आउटलुक ने इस संबंध में डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और बीएमएचआरसी प्रबंधन से बातचीत करने की कोशिश की।
डॉ. सौम्या स्वामीनाथन, सेक्रेटरी, डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के कार्यालय से जवाब मिला, “मैडम बाद में ज्वाइन करेंगी।” इसी विभाग की ज्वाइंट सेक्रेटरी डॉ. सरिता मित्तल के कार्यालय से जवाब मिला, “मैडम आज मीटिंग्स में व्यस्त हैं।” यहीं अंडर सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत एस.एन. शर्मा ने कहा, “मैं मीडिया से बातचीत करने के लिए अधिकृत नहीं हूं।” वहीं बीएमएचआरसी की निदेशक डॉ. प्रभा देसिकन के ऑफिस से जवाब मिला, “मैडम कॉन्फ्रेंस रूम में हैं। नंबर नोट करा दें, मैसेज पहुंचा दिया जाएगा।”
वर्ष 2000 में 400 करोड़ रुपये के कोष से बीएमएचआरसी को सिर्फ एक ही उद्देश्य से स्थापित किया गया था कि यह अस्पताल सभी पंजीकृत गैस पीड़ितों और उनके आश्रितों को अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं आजीवन और निःशुल्क प्रदान करता रहेगा। पर बीएमएचआरसी लगातार मरीजों के प्रति उदासीन और उनसे टकराव बढ़ाने पर आमादा है।