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नोटबंदी की मार, आंकड़ों की गवाही

आरबीआइ की रिपोर्ट और जीडीपी के आंकड़ों के जरिए उजागर हुई नोटबंदी की मार, कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक के दावे निकले बेदम
तकलीफ के मायनेः नोटबंदी या नोटबदली

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में कोल्हू चलाने वाले मोहम्मद यूनुस का कारोबार पिछले साल पीक सीजन में नोटबंदी के चलते ठप हो गया था। पूरी तरह नकदी पर टिके गुड़ व्यापार की कमर ऐसी टूटी कि महीनों तक संभल नहीं पाए। लेकिन एक बात की तसल्ली थी, “हमारा क्या, इस नोटबंदी में तो बड़े-बड़े पैसे वाले लुट गए।’’ नोटबंदी ने धन्नासेठों की काली कमाई पर ऐसी चोटकर दी है कि पिछले साल की मार भूलकर अब वह नए गन्ना सीजन की तैयारी में जुटे हैं। इस बात से बेखबर कि आरबीआइ की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के तहत चलन से बाहर हुए 500 और 1,000 रुपये के कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये के नोटों में से 99 फीसदी नोट आरबीआइ के पास वापस आ गए हैं। जो एक फीसदी नोट वापस नहीं आए हैं, उनमें काला धन हो सकता है और कटे-फटे नोट भी। लेकिन एक बात साफ, जिस काली कमाई के रातों-रात जला दिए जाने, नदी-नालों में बहा दिए जाने या आयकर छापों में पकड़े जाने के अनुमान आम भारतीय को संतोष दे रहे थे वह एक फीसदी भी नहीं है। कालेधन, आतंकवाद और नकली नोटों पर सर्जिकल स्ट्राइक बताकर देश की 86.4 फीसदी करेंसी को अमान्य करार दिया गया था, अब उसके मकसद और कामयाबी पर सवाल उठने लगे हैं।

लाखों लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा करने वाली नोटबंदी पर सवाल तो शुरू से उठ रहे थे। अब इन सवालों को सरकारी आंकड़ों का साथ मिला है। आरबीआइ की रिपोर्ट के अगले दिन जीडीपी के आंकड़ों से पता चला कि पिछली तीनों तिमाहियों की ग्रोथ पर नोटबंदी की जबरदस्त मार पड़ी है। वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान जो भारतीय अर्थव्यवस्था 7.9 फीसदी की विकास दर से बढ़ रही थी, चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में 5.7 फीसदी पर आ गई है। जबकि अक्टूबर-दिसंबर 2015 के दौरान जीडीपी ग्रोथ का यह आंकड़ा 9.1 फीसदी तक पहुंच गया था।

अर्थव्यवस्था की विकास दर का तीन साल में यह न्यूनतम स्तर है। रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के बूते कृषि क्षेत्र की जो विकास दर जनवरी-मार्च 2017 में 5.2 फीसदी तक पहुंच गई थी, अप्रैल-जून 2017 में घटकर 2.3 फीसदी रह गई है। मैन्युफैक्चरिंग की हालत तो और भी ज्यादा खराब है।

याद आने लगे मनमोहन सिंह

नोटबंदी और जीडीपी के इन आंकड़ों ने विपक्षी दलों को सरकार पर हमले का नया हथियार दे दिया। अचानक संसद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का वह भाषण याद आने लगा जिसमें उन्होंने नोटबंदी को मॉन्यूमेंटल डिजास्टर करार दिया था और जीडीपी को दो फीसदी नुकसान पहुंचने की आशंका जताई थी। 24 नवंबर, 2016 की संसद बहस का वह वीडियो लोग खोज-खोजकर सुन रहे हैं। शायद इतिहास ने मनमोहन सिंह पर अपनी दया दिखानी शुरू कर दी है। इस बीच, आरबीआइ के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी किताब में लिखा है कि उन्होंने नोटबंदी को लेकर सरकार को आगाह किया था।

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले और इसके दुष्परिणामों को लेकर सरकार पर तीखे प्रहार कर रहे हैं। आरबीआइ के आंकड़ों के बाद तंज कसते हुए उन्होंने ट्वीट किया, “जब 99 फीसदी नोट कानूनी तौर पर बदल लिए गए तो क्या नोटबंदी काले धन को सफेद करने की स्कीम थी? यह नोटबंदी की सिफारिश करने वाले रिजर्व बैंक के लिए शर्मनाक है। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने नोटबंदी को राष्ट्र विरोधी कृत्य करार देते हुए कहा कि देश मोदी सरकार को कभी माफ नहीं करेगा। कांग्रेस ने सरकार पर नोटबंदी का मकसद बदलते रहने का भी आरोप लगाया।

इन आरोपों को खारिज करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली मानने को तैयार नहीं हैं कि नोटबंदी फेल रही। उनका कहना है कि नोटबंदी को विपक्ष के लोग समझ नहीं रहे हैं। इसका मकसद केवल नोट जब्त करना नहीं था। यह केवल नोटबदली नहीं थी। नोटबंदी से कैशलेस लेनदेन बढ़ा, डिजिटलाइजेशन बढ़ा, काले धन पर कड़ी चोट हुई, टैक्स देने वाले बढ़े, टैक्स कलेक्शन बढ़ा, भ्रष्टाचार और कालेधन पर अंकुश लगा। ये सभी नोटबंदी के मकसद थे, जो ट्रैक पर हैं। उनका तर्क है कि बैंकों में जमा होने से पैसा वैध नहीं हो जाता है। उसकी भी जांच होती है।

विपक्ष के आरोपों को भले ही सरकार राजनीति से प्रेरित बताकर पल्ला झाड़ ले। लेकिन नोटबंदी का असल मकसद क्या था और उसमें कितनी कामयाबी मिली है। इस सवाल का स्पष्ट जवाब सरकार को देना ही चाहिए। अभी तक तो आरबीआइ को यह बताने में भी 10 महीने लगे कि नोटबंदी के बाद आखिर कितने नोट बैंकों में जमा हुए। आयकर विभाग का मानना है कि नोटबंदी के बाद मई, 2017 तक कुल 17,526 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला है जबकि 1,003 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की गई है। इन मामलों में छानबीन जारी है। इनमें से कुछ पैसा कालाधन हो सकता है। अगर इस पूरी रकम को ब्लैकमनी मान भी लिया जाए तो यह भी नोटबंदी की चपेट में आई कुल नकदी के मुश्किल से एक-सवा फीसदी के बराबर है।

नकली नोटों पर अंकुश के दावे

नकली करेंसी पर लगाम कसने के मामले में भी नोटबंदी बहुत कामयाब होती नजर नहीं आ रही है। आरबीआइ की रिपोर्ट के अनुसार, नोटबंदी से पहले वित्त वर्ष 2015-16 में कुल 6.32 लाख नकली नोट पकड़े गए थे, जबकि नोटबंदी वाले साल यानी वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान 7.62 लाख नकली नोट पकड़ में आए हैं। यानी 20 फीसदी ज्यादा नकली नोट बरामद हुए। नोटबंदी के दौरान ही 2,000 और 500 रुपये के नए नकली नोट पकड़े जाने लगे थे। इससे साबित होता है कि नकली नोटों के गिरोह लगातार सक्रिय हैं। खुद को अपडेट भी कर रहे हैं। नोटबंदी की वजह से वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान नोटों की छपाई का खर्च दोगुने से ज्यादा बढ़कर 7,965 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि इससे पिछले साल नोटों की छपाई पर कुल 3,421 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

कुल नकदी में 17 फीसदी की कमी

नोटबंदी से पहले कुल 17.77 लाख करोड़ रुपये की नकदी चलन में भी जबकि अब 14.75 लाख करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में है। यानी नकदी में 17 फीसदी की कमी आई है। इसकी भरपाई ऑनलाइन लेनदेन से होगी। लेकिन यह कहां की अक्लमंदी है कि 10-20 हजार करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगाने के लिए अर्थव्यवस्था को करीब ढाई लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा दिया जाए। इस हार्ड वर्क के चलते ही सौ से ज्यादा लोगों ने बैंक की लाइनों में लगे-लगे दम तोड़ दिया। तमाम उद्योग-धंधे निपट गए। उसके जमा हासिल का हिसाब-किताब तो बनता है।  

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